हिमाचल फर्ज़ी डिग्री घोटाले की जड़ें कहाँ तक

कुल 55 हार्ड डिस्क में से सिर्फ 14 में ही 36,000 फर्ज़ी डिग्रियों का खुलासा

अगर 17 राज्यों में लोगों को जारी की गयी 36,000 फर्ज़ी डिग्रियों को जाँचकर्ता फर्ज़ीबाड़े का एक छोटा हिस्सा कहा जा रहा है, तो हिमाचल प्रदेश के इस घोटाले का पूरा पैमाना चौंकाने वाला होगा। सोलन के मानव भारती विश्वविद्यालय से ज़ब्त की गयीं 55 हार्ड डिस्क में से केवल 14 को एक विशेष जाँच टीम द्वारा अब तक स्कैन किये जाने पर 36,000 फर्ज़ी डिग्रियों का खुलासा हो चुका है। मालिक और परिवार / सहयोगी की सम्पत्ति का मूल्य 194 करोड़ रुपये है; जो घोटाले की कार्यवाही से जुड़ा है। धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) मामले में इसे देश के किसी भी शैक्षणिक संस्थान की सम्पत्तियों की सबसे बड़ी कुर्की के रूप में देखा जा रहा है।

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मानव भारती विश्वविद्यालय, इसकी सम्बद्ध संस्थाओं और प्रमोटरों से सम्बन्धित 194 करोड़ रुपये से अधिक की सम्पत्ति को कुर्क किया है और इसे उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग जाँच के सम्बन्ध में एक कथित फर्ज़ी डिग्री घोटाले से जोड़ा है, जो हिमाचल प्रदेश में पिछले साल ही उजागर हुआ है। यह धन्धा कई साल से चल रहा था, जबसे इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई है। विश्वविद्यालय मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वामित्व में है और राज्य पुलिस के अनुसार, मानव भारती विश्वविद्यालय (स्थापना और विनियमन) अधिनियम 2009 के तहत इसे स्थापित किया गया था।

ईडी के सूत्रों के अनुसार, संलग्न सम्पत्तियाँ हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में भूमि, आवासीय घर और व्यावसायिक भवनों के रूप में हैं; जिनकी कीमत 186.44 करोड़ रुपये है, जबकि 7.72 करोड़ रुपये की छ: सावधि जमाएँ भी हैं। यह सम्पत्ति सोलन स्थित मानव भारती विश्वविद्यालय (एमबीयू), माधव विश्वविद्यालय, मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट और ट्रस्ट के अध्यक्ष राज कुमार राणा के नाम पर है। विश्वविद्यालय मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट के स्वामित्व में है और राज्य पुलिस के अनुसार, मानव भारती विश्वविद्यालय (स्थापना और विनियमन) अधिनियम-2009 के तहत स्थापित किया गया था। प्रवर्तन निदेशालय द्वारा संलग्न सम्पत्ति का कुल मूल्य 194.17 करोड़ रुपये है।

ईडी ने पिछले साल राज्य पुलिस द्वारा दर्ज एक एफआईआर का संज्ञान लेने और अध्ययन के बाद आरोपियों के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था। ईडी ने एक बयान में दावा किया कि राणा ने हरियाणा के करनाल में अपने कार्यालय से 2009 में एमबीयू के नाम पर फर्ज़ी डिग्री जारी करने का यह घोटाला शुरू किया। ईडी ने कहा कि 387 करोड़ रुपये की आपराधिक आय अर्जित हुई। फर्ज़ी डिग्री जारी करना और राणा द्वारा उनके नाम के साथ-साथ उनके बेटे मनदीप राणा और परिवार के अन्य सदस्यों के नाम पर कई सम्पत्तियों में निवेश किया गया था। ईडी ने आरोप लगाया कि यह पता चला है कि इन सम्पत्तियों का मूल्यांकन किया गया था कि अवैध नकद आय को समायोजित किया जा सकता है। एजेंसी ने दावा किया कि राणा ने माउंट आबू में माधव विश्वविद्यालय नाम से राजस्थान में फर्ज़ी डिग्री जारी करने के अवैध कार्य के माध्यम से एक और संस्थान का निर्माण किया। एजेंसी ने कहा कि मानव भारती विश्वविद्यालय (राजस्थान) के निर्माण के लिए मानव भारती विश्वविद्यालय, सोलन और मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट के बैंक खातों के माध्यम से धन का उपयोग अप्रत्यक्ष रूप से किया गया था।

एजेंसी के मुताबिक, मानव भारती विश्वविद्यालय, सोलन और मानव भारती चैरिटेबल ट्रस्ट के बैंक खातों में इतनी अवैध आय खातों की किताबों में अकादमिक प्राप्तियों के रूप में गलत तरीके से दिखायी गयी और इसलिए इसे वास्तविक कार्यवाही के रूप में दिखाने के लिए प्रेरित किया गया। वास्तव में सोलन में मानव भारती विश्वविद्यालय (एमबीयू) का फर्ज़ी डिग्री घोटाले में विशेष हार्डकोर टीम द्वारा अब तक स्कैन किये गये 55 हार्ड डिस्क में से 14 में 36,000 फर्ज़ी डिग्री का पता लगा है और इसके बाद इसके अपनी तरह के सबसे बड़े घोटालों में से एक होने के संकेत मिल रहे हैं।

जाँच एजेंसी के मुताबिक, यह तो बड़े घोटाले का सिर्फ एक हिस्सा भर है; क्योंकि बाकी 41 हार्ड डिस्क की स्कैनिंग के साथ फर्ज़ी डिग्रियों की संख्या कई गुना होने की आशंका है। जाँच दल ने कहा कि यह घोटाला करोड़ों-करोड़ रुपये का है।

पुलिस महानिदेशक संजय कुंडू ने बताया कि मुख्य आरोपी राज कुमार राणा (एमबीयू चला रहे मानवभारती चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष) का पासपोर्ट रद्द कर दिया गया है और उनकी पत्नी, बेटे और बेटी को वापस लाने की कार्यवाही चल रही है। राणा और उनके परिवार की 440 करोड़ रुपये की सम्पत्तियों में से 194.74 करोड़ रुपये का मूल्य अपराध की आय से जुड़ा हुआ है और उन्हें संलग्न किया गया है। डीजीपी ने कहा कि यह किसी भी शैक्षणिक सम्पत्ति की बड़ी रकम है और देश में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में संस्था को सामने लाती है।

अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजी), सीआईडी, एन. वेणुगोपाल ने कहा- ‘फर्ज़ी डिग्रियों की संख्या अलग-अलग हो सकती है। हम इसे बहुत अधिक मानते हैं। यह एक बहुत संगठित गिरोह है, जो पिछले एक दशक से चलाया जा रहा था। जाँच में पता चला कि तकनीकी विषयों से सम्बन्धित प्रत्येक डिग्री हिमाचल प्रदेश (एचपी) के भीतर और बाहर के छात्रों को एक लाख से तीन लाख रुपये में बेची गयी थी। एसआईटी टीम ने विश्वविद्यालय के एक जम्मू स्थित एजेंट को भी पकड़ा, जिसने फर्ज़ी डिग्री बेचने के लिए स्थानीय स्तर पर सौदे किये।’

जाँचकर्ताओं ने पाया कि एमबीयू के प्रबन्धक ने राज्य के बाहर के लोगों के ज़रिये डिग्रियाँ बेचीं और बदले में मोटा कमीशन प्राप्त किया। अधिकांश मामलों में खरीदारों ने इन एजेंटों को डिग्री के लिए नकद भुगतान किया, जिन्होंने फर्ज़ी डिग्री बनाने के लिए उम्मीदवारों को विश्वविद्यालय का विवरण प्रदान किया।

एसआईटी ने सात अलग-अलग राज्यों- राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, और उत्तराखण्ड को अलग-अलग राज्यों में अपने एजेंटों को भेजा। उनके ठिकाने का पता लगाने के लिए जम्मू, दिल्ली, चंडीगढ़ और कश्मीर का दौरा भी किया गया था। जाँच में पाया गया कि एमबीयू में विभिन्न पाठ्यक्रमों में 95,000 से अधिक छात्रों ने दाखिला लिया। जून में एमबीयू के चेयरमैन राजकुमार राणा को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने अग्रिम जमानत देने से इन्कार कर दिया। जमानत याचिका खारिज होते ही राणा को अदालत परिसर में एसआईटी ने गिरफ्तार कर लिया। उसे पूछताछ के लिए सोलन ले जाया गया। इससे पहले एसआईटी ने विश्वविद्यालय के एक पूर्व रजिस्ट्रार के.के. सिंह को गिरफ्तार किया था। विश्वविद्यालय के दो अधिकारियों, रजिस्ट्रार अनुपमा ठाकुर और सहायक रजिस्ट्रार मुनीश गोयल को मार्च, 2020 में गिरफ्तार किया गया था।

जब यह सब हिमाचल प्रदेश में चल रहा था। पंजाब पुलिस ने हाल ही में फर्ज़ी शिक्षा सलाहकारों के एक अंतर्राज्यीय गिरोह का भंडाफोड़ किया, जिन्होंने छात्रों और अभिभावकों को शैक्षणिक डिग्री प्रदान करने के नाम पर ठगा। गिरोह विश्वविद्यालयों के झूठे डोमेन नाम बनाने और फर्ज़ी प्रमाण पत्र बनाने का काम करता था। संदिग्धों की पहचान करतारपुर गाँव, मुल्लापुर के गरीबदास के निर्मल सिंह उर्फ निम्मा, मोहाली निवासी अंकित अरोड़ा, मथुरा निवासी विष्णु शर्मा, मेरठ निवासी सुशांत त्यागी और गाज़ियाबाद निवासी आनंद विक्रम सिंह के रूप में हुई है। पुलिस ने अपराध में प्रयुक्त बड़ी संख्या में फर्ज़ी डिग्री, प्रिंटर, स्कैनर, लेमिनेशन मशीन, नकली होलोग्राम, मोबाइल फोन, लैपटॉप के अलावा कार भी बरामद की है।

26 जनवरी को ज़ीरकपुर पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धाराओं- 259, 260, 420, 465, 467, 468, 469, 470, 471, 473 और 120 के तहत मामला दर्ज किया गया था। संदिग्धों ने अलग-अलग नामों से राज्य में कई स्थानों पर केंद्र खोले थे। वे 2017 से यह धन्धा चला रहे थे। पुलिस ने कहा कि करीब 1,000 लोग उनके सम्पर्क में थे। एसपी (ग्रामीण) रवजोत ग्रेवाल और ज़ीरकपुर के डीएसपी अमरो सिंह ने कहा कि गिरफ्तारियाँ मोहाली, मेरठ, मथुरा और दिल्ली से की गयी हैं। संदिग्धों को पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है और उनसे पूछताछ की जा रही है।  मामले में अभी और भी खुलासे हो सकते हैं।