हम जानते कितना हैं बहादुर टीपू को

टीपू सुल्तान एक ऐसा शासक था जिसका नाम सुनते ही ब्रिटेन में कभी थरथराहट होने लगती थी। जब वह मरा तो ब्रिटेन में खुशी के दिए जगमगाने लगे। टीपू की राजधानी श्रीरंगपट्टनम पर कब्जा और लूटपाट तो मशहूर उपन्यास ‘द मूनस्टोन’ का शुरूआती दृश्य है।

टीपू अकेला ऐसा भारतीय शासक था जो यह समझता था कि भारत के लिए अंग्रेज क्या-क्या खतरे बढ़ा रहे हैं। भारत के लिए ब्रिटिश कितने खतरनाक हैं इस बात को वह अच्छी तरह जानता समझता था। उन्हें देश से बाहर निकालने के लिए उसने चार लडाइयां लड़ीं। उसने इतनी वीरता से ये लड़ाइयां लड़ीं कि उसे भारतीय उपमहाद्वीप का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना भी जाता है।

टीपू ने ओटोमन और फ्रांसीसी शासकों के पास मिशन भेजे। उनसे अनुरोध किया कि वे देश से अंग्रेजों को बाहर करने में सहयोग करें। पश्चिमी देशों में विज्ञान और तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल से वह खासा प्रभावित था। उसने बंदूक बनाने वालों को, इंजीनियरों, घड़ीसाज और दूसरे विशेषज्ञों को मैसूर बुलाया। फिर उसने पीतल की अपनी तोपें बनवाई, गोला-बारूद और मस्कट पर ‘मेक इन मैसूर’ खुदवाया।

टीपू हमेशा बाघ की तस्वीर साथ रखता। यह जताने के लिए कि उसके पास अद्भुत ताकत है। टाइगर उसके स्वर्ण सिंहासन, उसके कपड़ों, सिक्कों, तलवारों और सिपाहियों की वर्दियों तक पर बना होता था। उसने सूर्य को भी अपना प्रतीक बनाया था जो यह बताता था कि मैसूर का यह शासक हिंदू और मुसलमान दोनों को एक नज़र से देखता है। टीपू ने सपनों पर एक किताब ‘बुक ऑफ ड्रीम’ भी लिखी थी। ‘ख्वाब नामा’ नाम की इस किताब में सपनों में हुई उसकी लड़ाइयों के संकेत हैं। टीपू बाहर से आया आक्रमणकारी नहीं था। वह इस देश की मिट्टी में पैदा हुआ था। उसकी परिवार की तीसरी पीढ़ी दक्षिण भारत में जन्मी और पली-बढ़ी। टीपू के मुख्यमंत्री पूरनैय्या थे जो हिंदू थे। वे उसके दरबार में मौजूद कई दरबारियों में एक थे। कई हिंदू मंदिरों के संरक्षक के तौर पर टीपू इतिहास प्रसिद्ध है। उसने श्री रंगनाथ मंदिर को वित्तीय मदद दी थी जो श्रीरगपहने से उसके अपने महल के पास है। उसने तंगेरी मठ को भी संरक्षण और वित्तीय सहयोग दिया। मठ के स्वामी को वह जगदगुरू कहता था।

टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली और फिर खुद टीपू तीस साल तक ब्रिटिश सत्ता और जनता के दिलो-दिमाग पर बतौर खतरा छाए रहे। ब्रिटिश सेनाओं पर अचानक हमले और फिर बस्तियों पर बातचीत। मसलन मद्रास पर बातचीत का सिलसिला खासा रोमांचक रहा था जो अंग्रेजों की धरती पर भी चर्चा में रहता।

दशकों चले चार मैसूर युद्ध का ब्यौरा जानने के लिए इंग्लैंड में काफी इंतजार रहता था। उन्हें आश्चर्य होता कि यह कथित तानाशाह किस तरह के अत्याचार अंग्रेजों पर कर रहा है। ब्रिटिश सेना के जो सिपाही सालों से मैसूर की जेल में रखे जाते थे वे लौट कर अपनी किताबों में कठिन जि़ंदगी और सेना के रवैए पर किताबें लिखते थे। उनके ब्यौरे उनके पाठक के लिए उतनी रुचि के नहीं होता थे जितनी रुचि टीपू के गौरव की बातों में होतीं। टीपू को जनरल हैरिस की सेनाओं ने घेर कर मारा था। 1799 में उसके द्वीप राजधानी को घेर लिया गया था। टीपू सुल्तान युद्ध पारंगत भारतीय योद्धा था जो खलनायक तो नहीं लेकिन गौरवशाली हिंदुस्तानी के तौर पर ब्रिटेन में जाना जाता था। इसी कारण टीपू सुल्तान ब्रिटेन के नाटककारों, लेखकों, कवियों और चित्रकारों की प्रेरणा का स्रोत बना रहा जो चित्रों में ब्रिटिश के उत्साह के साथ-साथ उसे भी महत्वपूर्ण स्थान देते।

आर्थर वेलेजली जो बाद में ड्यूक ऑफ वेलेंगिटन भी बने उन्हें वाटरल् की लड़ाई में नेपोलियन को परास्त करने के लिए जाना जाता है। उन्हें श्रीरंगपट्टन पर जीत की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। बाद में 1803 में उन्होंने बैटल ऑफ ऐसाई में मराठों पर जीत हासिल की थी। भारत वेलेजली के लिए ऐसा चुनौतीपूर्ण देश था जहां उन्होंने अपनी बहादुरी के झंडे गाड़े।

गवर्नर जनरल लॉर्ड मोरिंगटन जो आर्थर के बड़े भाई रिचर्ड थे वे अपने काम में बढिय़ा प्रदर्शन नहीं दिखा पाए। ब्रिटेन से आए आदेशों के खिलाफ उन्होंने मैसूर पर हमला तो किया लेकिन उनके समर्थकों ने उन्हें सही ठहराने के तमाम प्रयास किए। लेकिन उनका सम्मान इतना नहीं रहा कि वे आयरिश अभिजात्य जीवन जीने और सेवानिवृत्ति पर भेज दिए जाते।

उन्नीसवीं सदी में टीपू सुल्तान की बदनाम तस्वीर ब्रिटिश जनता की दिमाग में कौंधती रही। 1868 में विल्की कालिंस ने श्रीरंगपट्टन के चारों और घेरा डाल दिया और लूटपाट शुरू की। यही वाक्या उनके लोकप्रिय उपन्यास ‘द मूनस्टोन’ की शुरूआत भी बना। टीपू सूल्तान की यह खासियत थी कि वह अपने दुश्मनों को भयग्रस्त रखने के लिए कल्पना और प्रतीकों का इस्तेमाल करता। इसमें उसे कामयाबी भी मिली। उसे यह अंदाज शायद नहीं था कि उसका बाघ को चुनना एक तरह से ब्रिटेन के प्रतीक शेर से मुकाबला था।

यह सहसा नहीं हुआ है कि जिन लोगों ने श्रीरंगपट्टनम को घेरा था उन्हें वह मेडल मिला जिसमें आक्रामक शेर एक बाघ को दबोचे हुए है। टीपू सुल्तान के दिमाग में यह बात साफ थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी की योजना इस उपमहाद्वीप के वासियों को पूरी तौर पर पराधीन बनाने की ही थी। टीपू की मौत के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी और गहराई से भारतीय भूमि पर काबिज हुई।

साभार: केट ब्रिटलबैंक

: स्क्राल.इन