हद से गुज़र गया दर्द और मर्ज!

बालिग और पूरी तरह होशमंद शख्स आखिर कैसे बलात्कार पर आमादा हो सकता है? लेकिन न सिर्फ आमादा है, बल्कि दरिन्दगी पर उतारू है? पगलाए कुत्ते की सी सनक है….. बर्बरता भी ऐसी कि राक्षस को भी मात कर दे! ऐसी घटना तो सन्न करने वाली है कि मासूम बच्ची से बलात्कार, फिर हत्या और फिर बलात्कार? निखालिश बर्बरता ही नहीं वहशत पर सवार पागलपन और यह सिलसिला अंतहीन है, न रुकता है और थमता है ….. फांसी की सजा मुकर्रर होने और दो दरिन्दों को सूली पर चढ़ाए जाने के बाद भी किसी दरिन्दे को इबरत नहीं मिली है…. ऐसी वहशत में कदम-कदम पर पाक्सो कोर्ट खुल भी जाए तो क्या होगा? राजस्थान के हर जिले शहर, कस्बों और मोहल्लो में बच्चियों के मां-बाप बुरी तरह थर्राए हुए हैं, लेकिन इस बात से बेखबर है कि ‘आखिर किस तरफ से दरिन्दा अपने पैने दांतों से जीभ लपलपा रहा है? लेकिन सरकार है कि उसे शर्मिन्दगी तक नहीं है….

उसकी उम्र कोई तीन साल की रही होगी…. अबोध और मासूम। जयपुर के निकटवर्ती कानोता गांव में सोमवार 2 जुलाई की रात दस बजे के करीब अपने दो भाई-बहनों के साथ घर के बाहर छुपम-छुपाई का खेल खेल रही थी। खेलने में मगन उस मासूम को कहां पता था कि कोई दरिन्दा उसकी मासूमियत पर अपने पैने दांत गड़ाने की ताक में है। पड़ोस में रहने वाला युवक था वो… उसकी फुंफकार से बेखबर बच्चों को लगा, ‘अंकल उनका खेल देख रहे हैं, लेकिन नशे में धुत्त दरिन्दे की वहशत मासूम बच्ची को निगलने को बेताब थी। वो लकड़बग्घे की तरह लडख़ड़ाता हुआ दबे पांव मासूम बच्ची के सिर पर पहुंचा और अपने पंजों में दबोच लिया। साथ खेल रहे चार साल का भाई और दो साल की बहन दहशत से कांपते-थर्राते घर के भीतर दौड़ गए…. दरिन्दे के चंगुल में फंसी डर से कांपती बच्ची के प्राण कंठ में अटक गए, बिलखती बच्ची की कलेजा फाड़ देनेवाली चीख आखिर मां को सुनाई दे ही गई, भीतर से दौड़कर आती मां ने बाहर जो नजारा देखा तो उसके होश फाख्ता हो गए, लेकिन ममता ने जोर मारा तो पूरी ताकत से उस राक्षस से उलझ गई, लेकिन तब तक वो दुष्कर्मी बच्ची के साथ दर्द के हर दाव आजमा कर भाग छूटा था। जख्मी और कराहती बच्ची को लेकर घटना से सन्न हुए मां-बाप अस्पताल दौड़े। लेकिन अस्पताल ने तुरंत मदद की बजाय पुलिस थाने की राह सुझा दी…. खून से सनी लथपथ बच्ची बेपनाह दर्द से बेहाल एक-एक फुट ऊंची उछल रही थी, आखिर बच्ची अस्पताल पहुंची तो मरणासन्न हालत में! जयपुर के जे.के लोन में बच्ची के सिरहाने बैठी रोती, बिलखती मां बच्ची के हाथ में पैसे रखते हुए बोली, ‘चुप हो जा बेटी, घर जाएंगे तो आइसक्रीम खा लेना। बच्ची के तन की चोट दुरूस्त भी हो गई तो मन की चोट हरदम कराहती रहेगी, ‘वो तो अंकल थे, सोचा था मेरे साथ खेलने आए हैं, लेकिन अंकल ने तो…!

शनिवार 22 जून

सीमावर्ती जिले बाड़मेर के गिराज थाना क्षेत्र का एक गांव है, ऊनारोड। दरिन्दा ना जाने कब से आठ साल की मासूम तारा (बदला हुआ नाम) की ताक में था? नाना के घर आई हुई तारा अपने ननिहाल में नींद में गाफिल सोई हुई थी, घर पर उसके अलावा कोई ना था? पहले ही ताक में बैठे दरिन्दे के लिए अचूक मौका था, उसे उठाया और दबोच कर घने जंगलों में घुस गया….. मासूम की नींद खुली, वो चौकी और दरिन्दे की आंखों में तैरती वहशत से थर्राई तो चीख पड़ी, लेकिन सुनने वाला कौन था? उसने पहले चीखती-बिलखती बच्ची से रेप किया फिर शोर से भिन्नाकर उसका गला दबा दिया, उसके बाद फिर रेप किया और बच्ची को ऊंचाई से गिरते झरने में फेंक दिया। आखिर पुलिस की दौड़ धूप रंग लाई, जो दरिन्दा पकड़ा गया, चालीस वर्षीय रईस उर्फ रसीद था। उसने गुनाह कबूल कर लिया लेकिन इस बात का क्या जवाब था कि उसके प्राइवेट पार्टस तो ऐसे कर दिए मानों बर्छी भालों से रोंदे गए हों? वरिष्ठ पत्रकार गुलाब कोठारी कहते हैं, ‘आसुरी अहंकार को अपराध बोध कैसा….अब तो धरती को ही फटना होगा या फिर यदा-यदा हि धर्मस्य…

एक दुष्कर्म पीडि़ता की खुद बयानी

‘…..मेेेरे साथ आठ साल की उम्र में जो बीती, उसे बयान करने के लिए तो आखर की भी समझ नहीं थी? पता ही नहीं था, किसे कैसे और क्या बताऊं? लेकिन अब 15 साल की उम्र में इसके मायने पता है और मां भी बता रही है ‘जब मेरे साथ यह वारदात हुई तो कुकर्मी मुझे घर के पास एक वीराने में छोड़ गया था और मैं बुरी तरह बदहवास थी…… बस इतना ही समझ पाई कि मेरे साथ जो हुआ, वो बहुत बुरा था, खराब था। चार घंटे तक मां मेरे इलाज के लिए जूझती रही, डाक्टरों से मिन्नतें करती रही, लेकिन इलाज की बजाय नसीहतें मिल रही थी कि, ‘इसे घर ले जाओ…।Ó बाद में थाना कोर्ट-कचहरी का अंतहीन सिलसिला चलता रहा…ना पुलिस मददगार रही, ना बिरादरी के लोग? अलबत्ता बचपन के इस तनाव ने मेरी उम्र में जरूर चार साल का इजाफा कर दिया?

मंा ने बताया पेट में पत्थर

‘…….वो करीब नो साल की थी, परिवार को उसके साथ हुई बेरहमी का पता तब चला जब वो प्रेग्नेंट हो गई। शरीर में आए बदलाव को वो समझ पाती? कहां थी इतनी समझ? मां से बार-बार पूछा तो आखिर खीझकर कह दिया, ‘तेरे पेट में पत्थर है।Ó मैं सहमकर दीवार के पीछे छिप गई, ‘मेरे पेट में कहां से आया पत्थर? एक बलात्कार पीडि़ता युवती की यह पीड़ा इंसानियत के पूरे वजूद को हिलाकर रख देती है। कि, ‘सबसे ज्य़ादा रूला देने वाली स्थिति तब पैदा होती थी, जब बलात्कारी अदालत में टकराता था, उसकी मुस्कुराहट मेरे भीतर तक चोट करती थी…आज मेरे जैसी कई भुक्तभोगी जिंदा तो है लेकिन मुर्दा की तरह ….शरीर के जख्म शायद भर भी गए लेकिन मन के जख्म?

वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मी प्रसाद पंत की मानें तो ‘एक बच्ची ने तो डायपर पहना हुआ था, लेकिन वो भी दरिन्दों की शिकार हो गई। ना बुर्का बच पाता है ना डायपर, ना जाने दरिन्दे कैसे बच जाते हैं? पंत कहते हैं – बलात्कार के खिलाफ तमाम क्रोध-प्रतिशोध और फांसी को कानून बनने के बावजूद हालात बेचैन करने वाले हैं। हर समझदार और संवेदनशील व्यक्ति इसके मायने तो समझता है लेकिन बावजूद इसके ये हमारे समाज का सबसे क्रूर और विदू्रप यथार्थ है। विडंबना बस यह है कि न्यायपालिका की अपनी सीमाएं और समस्याएं हैं। सबसे बड़ी समस्या है संख्या। राजस्थान की सिर्फ निचली अदालतों में ही 14 लाख से ज्य़ादा केस विचाराधीन है और फाइलों के इस ढेर में चेन स्नेचिंग और कार चोरी के साथ 6 साल की बच्ची के दुष्कर्म जैसा अमानवीय कृत्य भी एक केस नंबर ही है ….. उफ! ….कितनी बेरहम है ये व्यवस्था? इसीलिए हर जिले में पॉक्सो अदालतों की ज़रूरत है ताकि संवेदना का गुरूत्वाकर्षण तंत्र पर ऐसा दबाव बनाए कि किसी मां-बाप या बच्ची को यह बोझ सहना ही ना पड़े।

याद रखें कि दुष्कर्म सिर्फ दुखद घटना नही ंहै। यह असाधारण और कई बार की अंतहीन त्रासदी है। जो भी महिला इस पाश्विक यातना से गुजरती है, मान के चलिए उसके देह और आत्मा पहले ही भीतर तक छलनी हो चुकी होती है। देह में बचे थोड़े बहुत श्वास के लिए एक इकलौती उम्मीद है न्याय? इसके अलावा तो पीडि़ता का सब कुछ पहले ही दरहम-बरहम हो चुका होता है। इसलिए अगर लाज रखने की यह आखिरी ढाल भी हमें देर से ही न्याय दे तो कई अंदेशे और आशंकाएं तो पैदा होंगी ही?

वकील नहीं करेंगे आरोपियों की पैरवी

आगरा रोड पर कानोता के पास मालपुरा चैड़ में तीन साल की मासूम के साथ दरिन्दगी को लेकर आरोपी पवन के खिलाफ पूरा समाज एकजुट हो गया है। वकीलों ने भी घटना को लेकर आक्रोश जताया है। घटना को लेकर उत्तर भारत की सबसे बड़ी बार एसोसिएशन, जयपुर से इस मामले के आरोपित पवन की पैरवी नहीं करने का निर्णय किया है। एसोसिएशन की बैठक में यह निर्णय किया गया। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन जयपुर की ओर से इस मामले में रणनीति तय करने के लिए बैठक बुलाने की तैयारी है। मुकेश समेत गांव के कई लोगों ने बताया कि पुलिस की कमजोर पैरवी की वजह से अपराधी छूट जाते हैं। वे दुबारा घिनौना अपराध करते हैं। ऐसे में उनके खिलाफ समाज को ही सख्त एक्शन लेना होगा। कोई भी घटना करे तो उसके पूरे परिवार को बेदखल करने की सजा मिलनी ही चाहिए। सुमेल ग्राम पंचायत समिति भवन में सरपंच, पंचायत के अन्य प्रतिनिधियों के साथ आमजन की आपात बैठक बुलाई गई। बैठक में लोगों ने कहा कि कल किसी अन्य बालिका के साथ ऐसी घटना हो सकती है। ऐसे दरिन्दों को सबक मिलना चाहिए। पूरे परिवार को गांव से बेदखल किया जाए, तभी लोग चैन की सांस लेंगे। सुमेल सरपंच मदनलाल गुर्जर ने बताया कि लोगों ने गुरूवार सुबह आरोपी के घर का बिजली-पानी का कनक्शन काट दिया है। लोगों की मांग पर पंचायत के कोरम में आरोपी पवन के परिवार को बेदखल करने का प्रस्ताव लिया जाएगा।