हदें पार करता आततायी चीन

बातचीत से नहीं निकल रहा हल, सीमा पर चीन बढ़ा रहा दबाव और गतिविधियाँ

इसी महीने के मध्य में चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स की इस बात को गम्भीरता से लिया जाना चाहिए, जिसमें उसने धमकी भरे शब्दों में कहा है कि यदि दोनों देशों के बीच युद्ध होता है, तो नई दिल्ली को हार का सामना करना पड़ेगा। इससे कुछ दिन पहले ही अरुणाचल सेक्टर में अक्टूबर के शुरू में दोनों देशों के सैनिकों के बीच टकराव हुआ था। गलवान घाटी में पिछले साल दोनों देशों के बीच हुई ख़ूनी भिड़ंत के बाद लगातार तनाव बना हुआ है। हालाँकि इस मामले में 13 दौर की बातचीत के बाद भी कोई हल नहीं निकल सका है। हालात बताते हैं कि दोनों देशों के बीच शीत युद्ध जैसी स्थिति बन रही है।

यदि हाल की घटनाओं पर नज़र दौड़ाएँ, तो साफ़ ज़ाहिर होता है कि चीन की नीयत ठीक नहीं है। वह सीमा के कई हिस्सों में जो गतिविधियाँ चला रहा है, वो उसके इरादों का संकेत देती हैं। अरुणाचल प्रदेश से लेकर नेपाल तक उसके निर्माण संदिग्ध हालात का इशारा करते हैं। नेपाल में तो हाल में स्थानीय लोगों ने देश की ज़मीन हड़पने का आरोप लगाते हुए चीन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। चीन भले यह दावा कर कि उसने अपनी ज़मीन पर निर्माण किये हैं। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन की गतिविधियाँ भारत के लिए चिन्ता पैदा करने वाली हैं।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, पिछले साल जून में गलवान घाटी की ख़ूनी भिड़ंत के बाद पहली बार सीमा पर तनाव गम्भीर स्तर पर दिख रहा है और स्थिति काफ़ी तनावपूर्ण बनी हुई है। अब चीन के सरकारी अख़बार ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने अपने सम्पादकीय में जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है, उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता। जानकारी के मुताबिक, भारत के साथ हो रही बैठकों में कोई सकारात्मक नतीजा इसलिए नहीं निकल रहा; क्योंकि चीन भारत के किसी भी सुझाव पर सहमत नहीं हो रहा।

दोनों देशों के बीच 13वें दौर की बातचीत पूर्वी लद्दाख़ में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चूशुल-मोल्दो सीमा इलाक़े में चीन की तरफ़ रविवार को हुई थी जिसमें भारत की तरफ़ से 14वीं कॉप्र्स कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन और साउथ शिनजियांग मिलिट्री डिस्ट्रिक चीफ मेजर जनरल लियु लिन की अगुआई में दोनों देशों के बीच क़रीब साढ़े आठ घंटे तक बातचीत हुई। भारत का कहना है कि चीन ने उसके सकारात्मक सुझावों को नहीं माना।

दरअसल देपसॉन्ग बुल्ज एरिया में कई जगह भारत और चीन के सैनिक जिस तरीक़े से अड़े हुए हैं, जिससे वहाँ तनाव स्थिति है। पीएलए भारतीय सैनिकों को पिछले साल से ही अपने पारम्परिक गश्त स्थल (पेट्रोलिंग प्वाइंट्स) पीपी-10, 11, 11(ए), 12 और 13 के साथ-साथ देमचॉक सेक्टर में ट्रैक जंक्शन चार्डिंग निंगलुंग नाला (सीएनएन) तक जाने नहीं दे रही है। चीनी सैनिकों ने इन इलाक़ों के रास्ते रोक रखे हैं। चीन की नीति भारत पर लगातार दबाव बनाये रखने की है।

जानकारी कहती है कि पैंगॉन्ग त्सो और गोगरा पोस्ट के उत्तर और दक्षिण तट पर तो हालात में कुछ सुधार हुआ है। हालाँकि हॉटस्प्रिंग्स में पिछले साल मई से ही दोनों देशों की सेनाएँ आमने-सामने हैं और यहाँ सुधार की सम्भानाएँ क्षीण दिख रही हैं। हाल में यह रिपोट्र्स आयी हैं कि चीनी सैनिक, भारतीय सेना को दौलत बेग ओल्डी में रणनीतिक भारतीय चौकी के पास स्थित डेपसांग गश्त स्थल (पेट्रोलिंग प्वाइंट) पर जाने से भी रोक रहे हैं। अभी तक की अन्तिम बैठक में भारतीय प्रतिनिधियों ने बाक़ी तीन इलाक़ों में समाधान के लिए कई सुझाव दिये; लेकिन चीनी प्रतिनिधि इनसे बिल्कुल सहमत नहीं हुए। वैसे दोनों पक्ष आगे भी बातचीत पर सहमति जता रहे हैं; लेकिन निश्चित ही इन बैठकों के नतीजों पर कई सवाल हैं।

भारतीय सेना ने 13वीं बैठक के बाद एक बयान में कहा कि बैठक में भारतीय पक्ष ने बाक़ी तीन विवादित क्षेत्रों में यथास्थिति बहाल करने के लिए चीन से उचित क़दम उठाने को कहा है। भारतीय पक्ष ने ज़ोर देते हुए कहा कि बाक़ी तीन ठिकानों के समाधान से ही दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सम्बन्ध भी आगे बढ़ेंगे।

भारतीय प्रतिनिधियों ने कहा कि एलएसी पर यह स्थिति चीन की ओर से यथास्थिति बदलने और द्विपक्षीय समझौतों के उल्लंघन के कारण हुई। लिहाज़ा यह ज़रूरी था कि चीन इस मामले में उचित क़दम उठाये। यह भी दिलचस्प है कि 13वें दौर की सैन्य वार्ता से पहले दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने दुशांबे में मुलाक़ात की थी, जहाँ भारत-चीन के शेष मुद्दों को जल्दी सुलझाने सहमति जतायी थी।

कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इस साल के शुरू में दोनों देशों के बीच तनाव वाली स्थिति से पीछे हटने का जो समझौता हुआ था, उसमें भारत कहीं-न-कहीं नुक़सान में रहा है। तब पैंगोंग झील से सैनिकों की वापसी के बदले भारत ने ऊँचाई वाली कैलाश पर्वतमाला (कैलाश रेंज हाइट्स) को छोडऩे पर सहमति दे दी थी। उस समय कुछ रक्षा विशेषज्ञों ने कहा था कि ऊँचाई वाली कैलाश पर्वतमाला पर भारत का रहना भविष्य में उसके लिए बड़ी उपयोगी बढ़त साबित हो सकता है; लेकिन उसके हाथ में जाने से अब भारत नुक़सान में दिख रहा है। यदि भारत का अभी की ऊँचाई वाली कैलाश पर्वतमाला पर क़ब्ज़ा होता, तो वह इस बढ़त को चीन को पूर्वी लद्दाख़ के उन सभी इलाक़ों से उसके सैनिकों की वापसी को मजबूर करने के लिए इस्तेमाल कर सकता था, जहाँ उसने घुसपैठ कर ली है।

भारत ने चीन के साथ जो समझौता किया था, उसमें ज़्यादातर प्रतिरोधी इलाक़े (बफर जोन) वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के भारतीय इलाक़े के बाहर ही बनाये जाने पर भी विशेषज्ञों ने चिन्ता जतायी थी। उनका कहना था कि इससे गलवान घाटी में गश्त स्थलों 14 और गोगरा के पास 17(ए) और पैंगोंग झील इलाक़ों में भारतीय सैनिक भी पेट्रोलिंग नहीं कर पाएँगे, जो कि भारत अपना इलाक़ा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत समझौते से साथ मोल-भाव करने की स्थिति में नहीं रहा है, जो रणनीतिक रूप से घाटे का सौदा कहा जा सकता है।

यह सही है कि भारत ने चीन के साथ बातचीत का रास्ता अपनाया है; लेकिन इसके यह मायने नहीं हैं कि इस दौरान भारत ने अपनी तैयारियों को बेहतर नहीं किया है। हाल के महीनों में भारत ने अपने सैन्य बेड़े को मज़बूत किया है। राफेल से लेकर दूसरे अस्त्र उसने इस बेड़े में जोड़े हैं।

हालाँकि चीन के साथ युद्ध की स्थिति में क्षेत्रीय स्थिति भारत के बहुत पक्ष में नहीं दिखती। पाकिस्तान के साथ भारत छत्तीस का आँकड़ा बना हुआ है, जबकि अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने से भी भारत को रणनीतिक नुक़सान हुआ है। चीन तालिबान को समर्थन देता दिख रहा है, जो उसकी रणनीति का एक बड़ा अहम पहलू है। याद रहे भारत ने गलवान की ख़ूनी झड़प के बाद पिछले साल अगस्त के आख़िर में ऊँचाई वाली कैलाश पर्वत माला पर क़ब्ज़ा करके बड़ी रणनीतिक बढ़त हासिल कर ली थी। चीन इसके बाद दबाव में दिखा था। तब भारत ने कहा था कि उसके सैनिकों का कैलाश रेंज पर मोर्चा सँभालाने का मक़सद चीनी सैनिकों को वहाँ किसी तरह का दुस्साहस करने से रोकना है। हालाँकि इस साल के शुरू में चीन के साथ समझौते के बाद भारत ने वहाँ से हटने पर सहमति जता दी थी।

लगातार युद्धाभ्यास कर रहा चीन

एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाल में चीन ने सीमा के पास युद्ध के कई बार अभ्यास कर चुका है। इनमें पीएलए को नये हथियारों के इस्तेमाल के साथ अभ्यास करते देखा गया है। ग्लोबल टाइम्स भी भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के इरादे से इन युद्धाभ्यासों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता रहा है। इसके अलावा चीन भारत के साथ लगती सीमाओं के नज़दीक बड़े पैमाने पर निर्माण कर रहा है। अरुणाचल से लेकर नेपाल तक चीन ने ढाँचे खड़े कर लिये हैं। भारत को इसकी जानकारी है। यह भी रिपोट्र्स हैं कि चीन सीमाओं पर बंकर तक बना रहा है।

नेपाल में तो हाल में चीन के ख़िलाफ़ इसलिए जबरदस्त प्रदर्शन हुए हैं कि वह नेपाल की ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर रहा है। काठमांडू में डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े युवा संगठन ने महंत ठाकुर के नेतृत्व में चीन के ख़िलाफ़ जबरदस्त विरोध-प्रदर्शन किया। इसके अलावा डेमोक्रेटिक यूथ एसोसिएशन ने भी ध्वज मन मोकतन के नेतृत्व में मैतीघर मंडाला में प्रदर्शन किया। कार्यकर्ता हाथों में पोस्टर लिए हुए थे, जिनमें चीन से कहा गया था कि ‘हमारी क़ब्ज़ायी ज़मीन वापस करो।‘

हालाँकि चीन का कहना है कि उसने जो कुछ किया है, वह उसकी अपनी ज़मीन है। नेपाल के प्रदर्शनकारी लगातार नेपाल-चीन सीमा पर लीमी लापचा से हुमला ज़िले में हिल्सा तक चीन द्वारा कथित भूमि अतिक्रमण का अध्ययन करने के लिए बनायी गयी समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की माँग अपनी सरकार से कर रहे हैं। नेपाल ने अपनी ज़मीन पर चीन के क़ब्ज़े के मामले की जाँच के लिए यह समिति बनायी थी। याद रहे भारत के साथ गलवान में हुई सैन्य झड़प के तुरन्त बाद चीन ने नेपाल के हुमला में क़रीब 150 हेक्टेयर ज़मीन पर क़ब्ज़ा कर लिया था। हाल में भी ऐसी और रिपोट्र्स आयी हैं, जिनसे पता चलता है कि चीन वहाँ निर्माण कर रहा है।

 

चीन की धमकी

नई दिल्ली स्पष्ट रूप से समझ ले कि जिस तरीक़े से वह सीमा को हासिल करना चाहती है, उस तरीक़े से उसे वह नहीं मिलेगी। अगर युद्ध शुरू होता है, तो निश्चित रूप से उसे हार का सामना करना पड़ेगा। चीन और भारत के बीच सीमा विवाद अभी भी बरक़रार है। इसका मूल कारण भारतीय पक्ष की ओर से वार्ता में एक सही रवैये की कमी है। वास्तविक स्थिति के इतर भारत की माँगें अव्यावहारिक होती हैं।

(ग्लोबल टाइम्स का सम्पादकीय)

 

“चीनी सैनिकों की हर गतिविधियों पर भारतीय सेना की पैनी नज़र है। चीन को उसकी सैन्य कार्रवाई के आधार पर ही जवाब दिया जाएगा। पूर्वी लद्दाख़ क्षेत्र में चीन द्वारा सैन्य निर्माण और बड़े पैमाने पर तैनाती बनाये रखने के लिए नये बुनियादी ढाँचे का विकास चिन्ता का विषय है और भारत चीनी पीएलए सैनिकों की सभी गतिविधियों पर कड़ी नज़र रख रहा है। वहाँ बड़े पैमाने पर चीन की तरफ़ से आधारभूत ढाँचे का निर्माण किया जा रहा है। इसका मतलब है कि वो लोग वहाँ टिकेंगे। यदि वो लोग वहाँ टिकेंगे, तो हम भी वहाँ डटे रहेंगे। चीन के साथ अरुणाचल में हाल के टकराव की प्रमुख वजह चीन की तरफ़ से बड़े पैमाने पर किया जा रहा निर्माण और पूर्व में निर्धारित प्रोटोकाल का पालन न करना रहा है।”

जनरल एम.एम. नरवणे

सेना प्रमुख