सज़ा पर सियासत क्यों?

हाल निर्भया के गुनाहगारों को 22 जनवरी को फाँसी नहीं होगी। अदालत ने 17 जनवरी को नया डेथ वारंट जारी कर उनकी मौत का समय 01 फरवरी सुबह 6 बजे तय कर दिया है। दोषी मुकेश की याचिका पर यह फैसला आया। कानून जानकारों का मानना है कि दोषी लगातार कानूनी पैंतरे अपना रहे हैं। जैल मैनुअल के अनुसार किसी केस में अधिक दोषियों को मौत की सज़ा मिली है तो फाँसी एक साथ ही होगी। दया याचिका खारिज होने के 14 दिन बाद ही फाँसी दी जा सकती है। इन्हीं नियमों का फायदा उठाकर दोषी फाँसी टलवा रहे हैं। फाँसी की नयी तारीख और दिल्ली में 8 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के माहौल में निर्भया मामले में दिल्ली में सियासत भी गरमा गयी है। दिल्ली राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने तो यहाँ तक कह दिया कि अब समय है कि मुल्क के हर बलात्कारी को फाँसी की सज़ा दी जाए और एक कड़ा संदेश दिया जाए। केंद्रीय मंत्री व भाजपा के नेता प्रकाश जावड़ेकर की राय में चारों दोषियों को फाँसी देने का दिल्ली की अदालत का फैसला महिलाओं को सशक्त करेगा और न्यायपालिका पर लोगों के विश्वास को मज़बूत करेगा।

गौरतलब है कि फाँसी के समर्थन में राजनेताओं, दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल की फाँसी के पक्ष उठती आवाज़ के माहौल में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने निर्भया की माँ से अपील की कि वह दोषियों को माफ कर दें। उन्होंने ट्वीट किया कि जिस तरह सोनिया गाँधी ने नलिनी (राजीव हत्याकांड की दोषी) को माफ किया, उन्हें भी दोषियों को माफ कर देना चाहिए। इस पर निर्भया की माँ आशा देवी ने कहा कि पूरा देश चाहता है कि दोषियों को फाँसी की सज़ा हो। दरअसल, दुनिया भर में फाँसी की सज़ा के पक्ष व विरोध में लोगों की अपनी-अपनी राय है। समर्थन करने वालों की राय है कि इससे अपराधियों,अपराधिक प्रवत्ति वाले लोगों के मन में भय पैदा होगा और वे ऐसा जधन्य अपराध करने से पहले कई बार सोचेंगे। मगर फाँसी का विरोध करने वाले इसे मानवाधिकार से जोडक़र देखते हैं और सभ्य व आधुनिक समाज में इसकी कोई जगह नहीं कहकर अपना पक्ष रखते हैं। फाँसी किसी भी जुर्म को खत्म करने का शर्तिया इलाज नहीं है। वैसे महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली कार्यकर्ताओं का एक वर्ग ऐसा भी है, जो फाँसी का विरोध करता है। उनकी अशंका है कि फाँसी की सज़ा का खामियाज़ा लड़कियों/महिलाओं को अधिक भुगतना पड़ सकता है। बलात्कार करने के बाद बलात्कारी पीडि़ता की हत्या करने वाले जुर्म की ओर बढ़ेगा क्योंकि उसे पता होगा कि पीडि़ता को अगर ज़िन्दा छोड़ दिया, तो वह उसके बारे में पुलिस को बता देगी और उसे फाँसी हो जाएगी। वह अपनी जान बचाने के लिए पीडि़ता की जान ले लेगा। बलात्कार, लड़कियों के साथ होने वाले यौन अपराधों के मामलों में अपराधी अक्सर जान-पहचान/दूर के रिश्तेदार होते हैं। ऐसे में अपराधियों को बचाने, उन्हें फाँसी से बचाने के लिए पीडि़तों पर रिपोर्ट दर्ज नहीं कराने का दबाव बढ़ सकता है। इस बीच दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि अगर दो दिन के लिए उन्हें दिल्ली पुलिस दे दी जाए, तो दोषियों को फाँसी पर लटका दिया जाएगा।

गौरतलब है कि दिसंबर, 2012 में दिल को दहला देने वाली घटना के बाद मुल्क में महिलाओं के िखलाफ होने वाले अपराधों को लेकर लोगों का गुस्सा सडक़ों पर दिखाई दिया। सरकार पर दबाव बनाया और फौजदारी कानून में संशोधन किये गये। जस्टिस जेएस वर्मा समिति का गठन किया गया और इस समिति के सुझावों के मुताबिक, दुष्कर्म और महिलाओं के िखलाफ होने वाले दूसरे अपराधों के मामले में कठोर सज़ा की व्यवस्था की गयी। कुछ मामलों में फाँसी का भी प्रावधान किया गया। दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य विधि में संशोधन किया गया। मुल्क की अवाम को उम्मीद जगी कि अब यहाँ की धरती पर देवी सुरक्षित है। लेकिन हकीकत सबके सामने है। हर 13 मिनट में एक दुष्कर्म। 28 नवंबर, 2019 को हैदराबाद में चार युवकों ने एक महिला पशु चिकित्सक को दुष्कर्म के बाद ज़िन्दा जला दिया। 30 नवंबर, 2019 को राजस्थान के टोंक में छ: साल की छात्रा के साथ दुष्कर्म के बाद स्कूल बेल्ट से गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी गयी।। जनवरी को निर्भया के चारों दोषियों का अदालत ने फाँसी का समय तय किया, अगले दिन अखबारों में इस खबर के साथ यह खबर भी छपी कि 5 जनवरी को पश्चिम बंगाल के दक्षिण दिनाजपुर ज़िले में एक युवती के साथ पहले दुष्कर्म किया गया और फिर उसे ज़िन्दा जला दिया गया। 2020 के दशक का समाज क्या महिलाओं के प्रति अधिक संवेदनशील साबित होगा और क्या अदालतों, कानून से उन्हें सही समय पर पूरा इंसाफ मिलेगा। रष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट ‘क्राइम इन इंडिया-201’ के अनुसार वर्ष 2018 में देश में बलात्कार की कुल 33,356 घटनाएँ हुईं। इनमें से 5,433 घटनाएं मध्य प्रदेश में हुर्ईं, इनमें छ: साल से कम आयु की 54 बच्चियों के साथ हुईं दुष्कर्म की घटनाएँ भी शमिल हैं। बलात्कार की कुल घटनाओं में से 16 फीसदी मध्य प्रदेश में हुईं और इस तरह मध्य प्रदेश देश में बलात्कार के मामलों में पहले नम्बर पर है। मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान दूसरे नम्बर पर और उत्तर प्रदेश तीसरे नम्बर पर है। 201। में बलात्कार के 32,550 मामले दर्ज किये गये। 2018 में 201। की तुलना में बलात्कार के अधिक मामले दर्ज किये गये। यही नहीं 201। में बलात्कार के बाद पीडि़ता की हत्या करने वाले मामलों को संख्या 223 थी, जो कि 2018 में बढक़र 291 हो गयी। क्या इस बढ़ी हुई संख्या के पीछे दोषी को फाँसी की सज़ा देने वाला कानूनी प्रावधान है, एक आला पुलिस अधिकारी का मानना है कि ऐसे निर्णय पर पहुँचने के लिए कुछ साल इंतज़ार करना होगा। इधर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट बताती है कि 2018 में दुष्कर्म के बाद हत्या के 58 मामलों में फाँसी की सज़ा दी गयी है। वर्ष 201। की तुलना में 2018 में यौन अपराध के मामलों में फाँसी की सज़ा देने में 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मध्य प्रदेश में लोक अभियोजन विभाग की प्रमुख जनसम्पर्क अधिकारी मौसमी तिवारी का कहना है कि बच्चियों से बलात्कार के मामलों में जल्द से जल्द सज़ा दिलाने के मामले में मध्य प्रदेश देश में नंबर-वन है। मध्य प्रदेश में 2019 में बच्चियों से दुष्कर्म के 11 मामलों में दोषियों को फाँसी की सज़ा दी गयी। एक अहम सवाल ऐसे मामलों में अदालत द्वारा मिलने वाली तारीख पर तारीख का भी है। कई मर्तबा पीडि़ता की हिम्मत जबाव दे जाती है। कानून कितना ही कड़ा क्यों न हो अगर अदालतों में मामले कई साल-साल तक लम्बित रहेंगे, तो अपराध करने वालों के लिए यह प्रक्रिया ऑक्सीजन का काम करती है। आँकड़े बहुत कुछ बयाँ करते हैं-2018 में दुष्कर्म के 1,38,642 मामले लम्बित थे। 201। में ऐसे मामलों में सज़ा की दर 32.2 फीसदी थी; लेकिन 2018 में यह दर पिछले साल के मुकाबले  घटी है और 2।.2 फीसदी है। 19।3 में यह दर 44.3 फीसदी थी। अदालतों में बलात्कार के मामलों की जल्द सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक अदालतें यानी त्वरित अदालतों की माँग नयी नहीं है, जब भी कोई ऐसी घटना देश की सुॢखयाँ बनती हैं, तो यह माँग ज़ोर पकडऩे लगती है। वक्त बीतने के साथ-साथ महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा भी पीछे छूटता चला जाता है। निर्भया मामले के बाद निर्भया कोष का गठन किया गया; लेकिन उसका पूरा इस्तेमाल नहीं किया गया। आिखर क्यों? ऐलान करने के पीछे मंशा खुद को महिला हितैषी दिखाना मगर कार्यान्वन की ज़िम्मेदारी में ढीलापन क्यों? हाल ही में दुष्कर्म के 1.60 लाख से अधिक लम्बित मामलों के जल्द-से-जल्द निपटारे के लिए 24 राज्य और केंद्र शसित प्रदेश 1023 विशेष त्वरित अदालतों की स्थापना से जुड़ी एक योजना में शमिल हुए हैं। इनमें आंध्र प्र्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, दिल्ली, नागालैंड, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलगांना, केरल, त्रिपुरा, चंडीगढ़, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश शामिल हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि मिजोरम, मेघालय, सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और पुडुचेरी इस योजना का हिस्सा नहीं बने हैं। यह योजना कितनी कारगर साबित होती है और इसके कार्यान्वन को लेकर सरकार कितनी गम्भीर है, यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा।