स्विस बैंक में काले धन वालों पर अभी भी गोपनीयता

भारत द्वारा प्राप्त डेटा उन लोगों के खिलाफ एक मजबूत अभियोजन मामले को स्थापित करने के लिए काफी उपयोगी हो सकता है जिनके पास बेहिसाब धन है, क्योंकि यह जमा और हस्तांतरण के साथ-साथ अर्जित आय और अन्य परिसंपत्तियों में निवेश के माध्यम से संपूर्ण विवरण प्रदान करता है तहलका ब्यूरो

आखिरकार भारत को पहली बार स्विस बैंक खातों की पहली सूची मिली है और यह मोदी सरकार की काले धन के खिलाफ लड़ाई की बड़ी सफलता है। हालांकि डेटा के साथ अभी गोपनीयता का अनुच्छेद बचा हुआ है। क्या यह सूचना प्रयास के लायक है?

स्विस अधिकारियों की जानकारी एईओआई की संरचना के तहत है जो उन वित्तीय खातों पर सूचना का आदान-प्रदान का व्यवस्था करता है जो वर्तमान में सक्रिय हैं और साथ ही उन खातों की जिन्हें 2018 में बंद कर दिया गया है, जिस साल यह संरचना समझौता लागू हो गया था। अब तक यह बहुत अच्छा है, लेकिन सूचना का आदान-प्रदान सख्त गोपनीयता अनुच्छेद द्वारा नियंत्रित है।

गोपनीयता अनुच्छेद की ओर ध्यान दिलाते हुए एफटीए अधिकारियों ने खातों की संख्या और स्विस बैंक के साथ भारतीयों से सबंधित वित्तीय लेनदेन की मात्रा के बारे में विशेष विवरण देने से इंकार कर दिया।

स्विस सरकार के संघीय राजपत्र में प्रमुख रूप से शामिल नामों में कृष्ण भगवान रामचंद्र, पोटलपुरी, राजमोहन राव, कल्पेश हर्षद किनारीवाला, कुलदीप सिंह ढींगरा, भास्करन नलिनी, ललिताबिन चिमनभाई पटेल, संजय डालमिया, पंकज कुमार सरोगी, अनिल भारद्वाज,महेश टीकमदास थरानी, सावनी विजय कन्हैयालाल, भास्करन थरूर, कल्पेशभाई पटेल महेंद्रभाई, अजोय कुमार और दिनेश कुमार हिम्मतसिंगका, रतन सिंह चौधरी और कथोटिया राकेश कुमार शामिल है।

बेशक स्विस सरकार के संघीय राजपत्र में कुछ नामों का उल्लेख किया गया है, लेकिन फिर भी कई और मामले हैं जिनमें केवल भारतीय नागरिकों के प्रारंभिक नामों का खुलासा किया गया है । इनमें केवल संक्षिप्त नाम या प्रारंभिक नाम जैसे एनएमए, एमएमए, पीएएस, आरएएस, एपीएस, एएसबीके, एमएलए, एडीएस, आरपीएन, एमसीएस, जेएनवी, जेडी, एडी, यूजी, वाईए, डीएम, एसएलएस, यूएल, एसएस, आरएन, वीएल, यूएल, ओपीएल, पीएम, पीकेके , बीएलएस, एसकेएन और जेकेजे शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से कई लोग और उनकी कंपनियां कोलकाता,गुजरात, बेंगलुरू, दिल्ली और मुंबई में स्थित हैं।

बड़ी संख्या में भारतीय जिन्हें नोटिस जारी किया गया है, उनमें वे लोग शामिल हैं जिनके नाम एचएसबीसी और पनामा सूचियों में शामिल हैं, साथ ही आयकर विभाग और प्रवर्तन द्वारा और अन्य एजेंसियों की बीच जांच की जा रही है।

बिडंवना यह है कि स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा लगाए गए धन में वृद्धि हुई है और 2017 में यह 50फीसद तक बढ़ गया । दिलचस्प बात यह है कि स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा किया गया धन कई गुणा बढ़ गया है, लेकिन पडोसी देश पाकिस्तान कें लोगों का धन 21 फीसद से अधिक कम हुआ है। आंकडों से पता चलता है कि 2017 में भारतीयों के पास 6,891 करोड़ की राशि थी। इसमें 3200 करोड़ रुपए ग्राहक जमा के रूप में, अन्य बैंकों के माध्यम से 1050 करोड़ और 2640 करोड़ रुपए शामिल थे।

आयकर विभाग ने एक ट्वीट में कहा,‘‘भारत कों स्विटजरलैंड में भारतीयनागरिकों द्वारा रखे गए सभी वित्तीय खातों के संबंध में कैलेंडर साल 2018 की जानकारी प्राप्त होगी। स्विस बैंक के गोपनीयता का युग की समाप्ति काले धन के खिलाफ सरकार की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।

इस ट्वीट के बाद राजस्व सचिव अजय भूषण पांडे और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ स्विस प्रतिनिधिमंडल की बैठक कर विभाग के उप अध्यक्ष और अंतराष्ट्रीय राज्य सचिव निकोलस मारियो लूसर के साथ हुई। सामान्य रिपोर्टिंग मानक (सीआरएस) के तहत वित्तीय खातों की जानकारी का स्वचालित विनिमय इस विचार-विर्मश का परिणाम है।

बैठक में अंदरूनी सूत्रों ने ‘तहलका’ को बताया कि 29-30 अगस्त को नई दिल्ली में दो दिवसीय बैठक के दौरान भारतीय अधिकारियों और स्विस अधिकारियों ने विशेष मामलों में भारत द्वारा किए गए अनुरोध के निष्पादन में तेजी लाने के लिए सूचना मामलों के द्विपक्षीय आदान.प्रदान पर चर्चा की। सूत्रों ने कहा कि स्विस प्रतिनिधिमंडल का दृष्टिकोण सकारात्मक था। सूचना ढांचे के वैश्विक स्वचालित विनिमय पर हस्ताक्षर करने के बाद, स्विस प्राधिकरण स्विट्जरलैंड स्थित बैंकों में कम से कम 50 भारतीय नागरिकों के खातों के विवरण साझा करने की प्रक्रिया में है। दोनों देशों में विनियामक और प्रर्वतन एजेंसियां अवैध धन रखने वाले व्यक्तियों पर शिकंजा कसने वाली हैं। इन में रियल स्टेट, वित्तीय सेवाओं, प्रौद्योगिक, और दूरसंचार से लेकर पेंट, घर की सजावट, वस्त्र, इंजीनियरिंग सामान, रत्न और आभूषण जैसे क्षेत्रों के व्यक्ति और दोनों देशों में प्रशासनिक सहायता देने की प्रक्रिया में शामिल अधिकारी भी हैं।

विशेषज्ञ बताते है कि स्विट्जरलैंड विदेशों में काले धन को छुपाने के लिए एक सुरक्षित ठिकाना होने के नाते स्विस बैंकों के बारे में लोगों की धारणा को बदलने की पुनजोर कोशिश कर रहा है। भारत और स्विस ने सहयोग को बढ़ाने के लिए अपने द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को भी मज़बूत किया है विशेष रूप से अवैध घन रखने वाले संदिग्ध रिकॉर्ड वाले लोगों को पकडऩे के लिए। दोनों देशों की सूची में शीर्ष एजेंडा निश्चित रूप से स्विस बैंकों में भारतीयों द्वारा रखा गया काला धन है।

वर्तमान स्विस कानून के अनुसार, स्विस बैंक में खाता रखने वाले किसी भी व्यक्ति को इन बैंकों में अपने खातों और जमा राशिी के बारे में जानकारी साझा करने के खिलाफ अपील करने का अवसर दिया जाता है। एक जमाकर्ता 30 दिनों में अपील दायर कर सकता है। प्रभावित व्यक्ति को अपील के अवसर की अनुमति देने के बाद स्विस सरकार संघीय राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से जमाकर्ता के नाम सहित विवरण, खातों में वास्तविक राशि, की जानकारी दे सकता है।

सुत्रों ने कहा कि स्विस बैंक प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने की वर्तमान सफलता विदेशों में जमा काले धन के खिलाफ सरकार की लड़ाई में एक प्रमुख मील का पत्थर है। वास्तविक कार्रवाई अगले साल शुरू होगी जब सितंबर 2020 में स्विस बैंक में खातों के विवरण का अगला आदान-प्रदान होगा। भारत अब उन 75 देशों में शामिल है जिनके साथ स्विट्जरलैंड के फेडरल टैक्स प्रशासन (एफटीए) ने एईओआई पर वैश्विक मानकों के ढांचे के अनुसार वित्तीय खातों की जानकारी का आदान-प्रदान किया है।

एईओआई एक जनवरी 2017 को 36 देशों में लागू हुआ और वर्तमान में स्विट्जरलैंड में लागू है। अब आर्थिक सहयोग और विकास संगठन का ग्लोबल फोरम नामक एक प्राधिकरण है जो ईओआई कार्यान्वयन की देखरेख करता है। संघीय कर प्रशासन कुल मिलाकर अब तक भागीदार राज्यों को लगभग 3.1 मिलियम वित्तीय खातों के बारे में जानकारी दे चुका है और भागीदार राज्यों से लगभग 2.4 मिलियन की जानकारी प्राप्त की है।

भारत द्वारा प्राप्त डेटा उन लोगों के खिलाफ एक मजबूत अभियोजन मामले को स्थापित करने के लिए काफी उपयोगी हो सकता है जिनके पास बेहिसाब धन है, क्योंकि यह जमा और हस्तांतरण के साथ-साथ अर्जित आय और अन्य परिसंपत्तियों में निवेश के माध्यम से संपूर्ण विवरण प्रदान करता है

ठसके अलावा भारतीयों के 2018 से पहले बंद किए गए पुराने खातों के कम से कम 100 मामले हैं जिनके लिए स्विट्जरलैंड आपसी प्रशासनिक सहायता के एक पुराने ढांचे के तहत भारत के साथ विवरण साझा करने की प्रक्रिया में है । भारतीय अधिकारियों ने उन खाताधारकों के द्वारा कर से संबंधित गलत कार्य करने के सबूत प्रदान किए थे। ये विभिन्न व्यवसायों जैसे ऑटो पुरजे, रयायनों, कपड़ा, रियल एस्टेट हीरे आभूषण और इस्पात उत्पादों आदि से संबंधित लोग हैं।

एक स्विस प्रतिनिधिमंडल अगस्त में भारत में था, इससे पहले कि विवरणों का पहला सेट साझा किया जा सके और दोनों पक्षों ने विशिष्ट मामलों में भारत द्वारा किए गए कर सूचना-सांझा करण अनुरोधों के निष्पादन में तेजी लाने के लिए संभावित कदमों पर चर्चा की। ऐसे आरोप हैं कि कई मूल निवासियों ने अपने खातों को बंद कर दिया है क्योंकि स्विस बैंकों के काकले धन पर वैश्विक दबाव के कारण अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग के तहत अपने बैंकिंग क्षेत्र को खोलने के लिए दबाव डाला जा रहा है। स्विट्जरलैंड लंबी प्रक्रिया के बाद भारत के साथ एईओआई के लिए सहमत हुआ, जिसमें डेटा सुरक्षा और गोपनीयता पर भारत में आवश्यक कानूनी ढांचे की समीक्षा भी शामिल थी।

गेंद अब अभियोजन पक्ष की अदालत में है। यह बेहिसाब धन का पता लगाने के लिए प्राप्त आंकडों का उपयोग करना चाहिए। जिन लोगों के नाम एचएसबीसी सूची, पनामा और पैराडाइज पेपर्स और अब स्विस बैंक सूची में शामिल किया गया है उन्हें पकडा जाना चाहिए और जांच को अपने तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचना चाहिए। उन्हें दंड मिलना चाहिए।