स्टेम के क्षेत्र में माँग के मुताबिक नौकरियों के लिए नहीं मिल रहीं लड़कियाँ

इस बार संसद का मानसून सत्र में कोरोना वायरस, महँगाई, बेरोज़गारी, फोन हैकिंग और किसानों के मुद्दे पर बेशक हंगामा हो रहा है; लेकिन इसी शोर-शराबे के बीच 19 जुलाई को लोकसभा में देश में बीते तीन वर्षों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग व गणित (स्टेम) से स्नातक (ग्रेजुएशन) करने वालों की संख्या को लेकर एक सवाल पूछा गया।
इस सवाल में यह भी जोड़ा गया कि क्या देश में स्टेम से स्नातक करने वालों में लड़कों की संख्या लड़कियों से अधिक है? केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धमेंद्र प्रधान ने जो जवाब दिया, वह भारतीय समाज की लड़कियों के प्रति बनी कई रूढ़ धारणाओं में से एक के प्रति नज़रिये में आ रहे बदलाव को दर्शाता है।
केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री ने सदन में ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन के बीते तीन साल के आँकड़े साझा किये। उन्होंने बताया कि बीते तीन साल में स्टेम ग्रेजुएट लड़कों की तादाद में कमी आयी है; जबकि लड़कियों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है। वित्त वर्ष 2017-18 में लड़कों की संख्या तक़रीबन 12.9 लाख थी, जो कि वित्त वर्ष 2019-20 में घटकर लगभग 11.9 लाख रह गयी। वहीं लड़कियों की संख्या इस अवधि में 10 लाख से बढ़कर लगभग 10.6 लाख तक पहुँच गयी।
विश्व बैंक का डाटा भी बताता है कि वर्ष 2018 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में स्टेम ग्रेजुएशन में 42.73 फ़ीसदी लड़कियाँ हैं; जो कि अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन से भी अधिक है। अमेरिका में स्टेम ग्रेजुएशन में लड़कियाँ 34 फ़ीसदी हैं, तो जर्मनी और ब्रिटेन में क्रमश: 27 और 38 फ़ीसदी हैं। बेशक भारत इस सन्दर्भ में शीर्ष पर है; लेकिन चिन्ता की बात यह है कि विज्ञान प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग व गणित (स्टेम) सम्बन्धित क्षेत्रों में महिला विज्ञानियों, प्रौद्योगिकीविद्, इंजीनियर व गणितज्ञों की संख्या महज़ 14 फ़ीसदी है। जबकि वैश्विक स्तर पर यह आँकड़ा 28 फ़ीसदी है। स्वीडन में स्टेम ग्रेजुएट लड़कियाँ 35 फ़ीसदी हैं और इस क्षेत्र में नौकरी करने वालों में महिलाओं की भागीदारी 34 फ़ीसदी है, जो कि उल्लेखनीय है। भारत के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती महिलाओं को विज्ञान, प्रौद्यागिकी, इंजीनियर व गणित सम्बन्धी क्षेत्र में करियर को अपनाने व उसमें टिके रहने के लिए प्रोत्साहित करने की ही नहीं, बल्कि सकारात्मक नतीजे भी दिखाने की है।
इस क्षेत्र सम्बन्धित कार्यबल में लैंगिक असमानता एक बहुत बड़ा मुद्दा है, जिसे समझना और सुलझाना बेहद ज़रूरी है; अन्यथा समाज, देश और अर्थ-व्यवस्था को बहुत बड़ा ख़ामियाज़ा भुगतना होगा। इसमें कोई दो-राय नहीं कि समाज ने शिक्षा व श्रम को लिंग के आधार पर तय किया और इस आधार की भूमिका समाज की महिलाओं को लेकर बने पूर्वाग्रहों ने तैयार की। लड़कियों को सीमाओं में बाँधने का काम लोग पूर्वाग्रहों के चलते करते हैं, जो उनके मन में घर कर चुके हैं। लोग न केवल विज्ञान व प्रौद्याोगिकी को पुरुषों के साथ जोड़कर देखते हैं, बल्कि महिलाओं को पुरुषों की तरह कम्प्यूटर विज्ञानी व इंजीनियर वाले पद पर देख उसके प्रति नकारात्मक राय बना लेते हैं।
अक्सर महिलाओं को उनके पुरुष सहकर्मियों से कमतर आँका जाता है। यहाँ पर यह तथ्य ध्यान देने योग्य है कि जिस गति से दुनिया का डिजिटल युग में परिवर्तन हो रहा है, उस अनुपात में लड़कियों का विज्ञान व प्रौद्योगिकी में प्रतिनिधित्व बहुत कम है। अब समय साफ़ इशारा कर रहा है कि वर्तमान में अधिकतर नौकरियों के लिए बुनियादी विज्ञान, गणित और प्रौद्योगिकी के कौशल की अहम भूमिका है, जो आने वाले दिनों में और अहम होगी।
जनवरी, 2020 में एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में सन् 2016 से सन् 2019 के दरमियान स्टेम सम्बन्धी नौकरियों में 44 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ।
आर्थिक वृद्धि में जान फूँकने, ख़ासतौर पर कोविड-19 महामारी वाले मौज़ूदा परिदृश्य में भारत के लिए यह बहुत ही अहम हो जाता है कि उसके यहाँ काम करने वाले लोग स्टेम कौशल में निपुण हों। यही नहीं, प्रौद्योगिकी क्षेत्र में काम करने वाला नज़रिया भी होना चाहिए।
मुम्बई आईआईटी से इंजीनियरिंग करने वाले शुभांशु जैन, जो कि स्टार्टअप में भी काम करते हैं; का कहना है कि आईआईटी में बहुत-ही कम लड़कियाँ पहुँचती हैं। उसके बाद जब रोज़गार का सवाल आता है, तो लड़कियों की प्राथमिकताएँ अक्सर लड़कों से अलग हो जाती हैं।
नौकरी के सन्दर्भ में वे एक जगह से दूसरी जगह जाने से पहले कई बार सोचती हैं। सिर्फ़ शादीशुदा महिलाएँ ही इस विचार में नहीं अटकी रहतीं कि उनके परिवार का क्या होगा? बल्कि जो महिलाएँ हमसफ़र की तलाश कर रही होती हैं, वे भी इसी विचार में अपना करियर दाँव पर लगा देती हैं। उनकी तरक़्क़ी के रास्तों में कई बाधाएँ हैं, जिस पर नीति स्तर पर काम करने की दरकार है।

प्रोत्साहन के लिए कार्यक्रम
दरअसल भारत सरकार व राज्य सरकारों ने लड़कियों को स्टेम की पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित करने के मक़सद से कई कार्यक्रम शुरू किये और उसका परिणाम आज यह है कि लड़कियों की संख्या ने अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे विकसित देशों को इस सन्दर्भ में पीछे छोड़ दिया है। सरकार ने किरन नामक स्कीम शुरू की है, जो लड़कियों को स्टेम की पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित करती है। स्टेम में महिलाओं के लिए इंडो-यूएस फैलोशिप (अध्येतावृत्ति) शुरू की गयी। इसका मक़सद भारतीय महिला विज्ञानियों, इंजीनियर व प्रौद्योगिकीविद् को अमेरिका के प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थानों में तीन से छ: माह के शोध कार्य करने के लिए मौक़े प्रदान करना और उन्हें प्रोत्साहित करना है।
विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग ने स्टेम में पढ़ाई जारी रखने के लिए लड़कियों के लिए कई योजनाएँ बनायी हैं। समाज ने कुछ हद तक लड़कियों के लिए विज्ञान व प्रौद्योगिकी की पढ़ाई वाले विषयों को तो आत्मसात कर लिया है। इसके पीछे कई कारक काम कर रहे हैं। मगर यह समाज और सरकार के लिए स्टेम ग्रेजुएट लड़कियों की संख्या को लेकर गौरवान्वित होकर शान्त बैठने का समय नहीं है। इस समय रोज़गार बाज़ार की ज़रूरतों को देखते हुए समय की पुरज़ोर माँग यह है कि स्टेम सम्बन्धी नौकरियों में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए ठोस क़दम उठाये जाने चाहिए। स्टेम क्षेत्र वाली नौकरियों में इज़ाफ़ा हो रहा है और यह रुझान जारी रहेगा।
एक कम्पनी महिला कर्मचारी को अपने यहाँ नौकरी देने के लिए विशेष प्रस्ताव (ऑफर) तक प्रदान कर रही है। एक नियोक्ता कम्पनी में काम करने वाली एक युवती बताती है कि इस समय स्टेम और आईटी के क्षेत्र में पेशेवर लड़कियों की माँग बहुत है। आईटी क्षेत्र अपने कर्मचारियों, ख़ासतौर पर महिला कर्मचारियों को कई सुविधाएँ दे रहा है; ताकि वे वहाँ टिकी रहें।
भारत में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी कम है। स्टेम क्षेत्र में भी उनकी भागीदारी महज़ 14 फ़ीसदी ही है। वैश्विक स्तर पर यह आँकड़ा 28.8 $फीसदी है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टिफिशिल इंटलीजेंश (एआई) में तो पुरुषों का वर्चस्व है। दुनिया भर में एआई प्रोफसरों में 80 फ़ीसदी पुरुष हैं। गूगल व फेसबुक में एआई सम्बन्धित काम करने वालों में महिलाओं की संख्या सिर्फ़ 10 से 15 फ़ीसदी है। ऐसे क्षेत्रों में लैंगिक बराबरी के लिए चौतरफ़ा प्रयासों की दरकार है। परिवार, समाज, सरकार, निजी कम्पनियाँ व अन्य संस्थानों के सहयोग से ही आगे बढ़ा जा सकता है। भारत में मोबाइल इंटरनेट इस्तेमाल करने वाली लड़कियों की संख्या लड़कों से 56 फ़ीसदी कम होने की सम्भावना है। आज के दौर में इंटरनेट पढ़ाई करने व ज्ञान हासिल करने का एक अहम ज़रिया है; लेकिन अपने देश में आज भी ऐसी ख़बरें अक्सर सामने आती हैं कि फलाँ गाँव की पंचायत ने अपने यहाँ की लड़कियों के द्वारा मोबाइल फोन इस्तेमाल करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
हाल ही में धमेंद्र प्रधान ने ओ.पी. जिंदल विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में कहा कि शिक्षा को कौशल विकास के साथ जोडऩे से सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण के नये रास्ते खुलेंगे। कोरोना महामारी के कारण ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल तकनीक के इस्तेमाल को अपनाने की ज़रूरत का पता चला, जिससे सुनिश्चित होता है कि शिक्षा जारी रहेगी।
यह मोड़ शिक्षा और ज्ञान के प्रसार के तरीक़ों को रास्ता देता रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इसलिए हमें भविष्य के लिए ऐसी योजना बनानी चाहिए, जो डिजिटल खाई को भर सके या डिजिटल असमानता को दूर कर सके। डिजिटल असमानता देश में अमीरों-ग़रीबों के बीच है; पुरुषों-महिलाओं के बीच है।
हालाँकि इस शिक्षा से ग़रीब तबक़े के बच्चे-बच्चियाँ वंचित रह सकते हैं। अब देखना यह है कि सरकार इस डिजिटल खाई को पाटने के लिए क्या ठोस क़दम उठाती है? सरकार व निजी संस्थाओं को स्टेम सम्बन्धी रोज़गार में अधिक-से-अधिक महिलाओं को नौकरी देने के लिए गम्भीरता और दिलचस्पी दिखानी होगी। महिलाओं को उनकी सुविधानुसार कौशल सम्बन्धित कार्यशालाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए ख़ास इंतज़ाम करने होंगे। ऑटोमेशन से मानव नौकरियों पर ख़तरा मँडराने की ख़बरें आती रहती हैं और यह भी आशंका जतायी जा रही है कि आने वाले समय में इस कारण जिन लोगों की नौकरियाँ जा सकती हैं, उनमें पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या अधिक होगी।
महिलाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी सम्बन्धित कौशल हासिल करने पर फोकस करना होगा, ताकि रोज़गार बाज़ार में वे बराबर बनी रहें और अपने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार से किसी भी दृष्टि में कमतर न दिखें। इस रोज़गार में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार को नीतिगत फ़ैसले लेने चाहिए और ऐसी रणनीतियाँ अपनानी चाहिए, जो समावेशी हों एवं फ़ासलों को पाटने वाली हों। लक्षित कार्यक्रमों के ज़रिये इस दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है।