सुखविंदर सिंह से खास मुलाकात…‘रहमान के साथ दिल का रिश्ता’

एक दौर था, जब ए.आर. रहमान और सुखविंदर सिंह की जोड़ी ने अपनी आवाज़ से लोगों का मन मोह लिया था। दोनों आवाज़ें अपने आप में मुकम्मल, ज़बरदस्त, दिलकश और जब मिलीं तो ऑस्कर भी ले आयीं। लेकिन कहते हैं कि दिलों के रिश्ते कभी-कभी गलतफहमियों से थोड़े-बहुत दरक जाते हैं। पर मलाल रहता है; सुखविंदर को भी इस बात का मलाल है।

‘तितली दबोच ली’, ‘रुत आ गयी रे’, ‘रमता जोगी’ और ‘जय हो’ जैसे सुपरहिट गाने साथ में क्रिएट करने वाले सुखविंदर सिंह और ए.आर. रहमान ने देश को एक और ऑस्कर दिलाकर भारतवासियों का सिर गर्व से ऊँचा तो कर दिया, लेकिन न जाने किन वजहों से उनके बीच की गर्मजोशी भरी दोस्ती टूट गयी। दिल के रिश्तों का दरक जाना सुखविंदर को अब तक टीसता है। वे इस ब्रेकअप के कारणों को समझ नहीं पा रहे या कि परखना नहीं चाहते। एक खास मुलाकात में सुखविंदर ने कहा- ‘रहमान एकदम दिलदार इंसान है। यारों का यार। िकस्मत का ही खेल है कि जब मैं पहली बार चेन्नई गया, तो वह मुझे एक दरगाह पर ले गया, ताकि मैं खुदा की रहमत से रू-ब-रू हो सकूँ। अपने दिल में सुरों की लियाकत को जगह दे पाऊँ और अच्छे गीत रच सकूँ। ऊपर वाले का कुछ करम भी ऐसा ही रहा कि हमने जो गाने बनाये, वे लोगों के दिल में उतर गये। पहली रात रहमान ने मुझसे कहा था कि तू दरगाह में रुक। ऊपर वाले की इबादत में अपना सब कुछ लगा दे। बस रूह को महसूस कर, सुरों की इबादत कर। अल्लाह चाहेगा, तो सब अच्छा होगा। उसकी बात कितने कमाल की थी! अब सोचता हूँ, तो खुशी और हैरत का ठिकाना नहीं रहता। मैं ठहरा एक पंजाब नौजवान, जो सारी दुनिया घूमकर आया था। जिसे बहुत-सी चीज़ों का अंदाज़ा ज़रूर था, लेकिन साउथ इंडियन लैंग्वेजेज से ज़्यादा करीबी न थी। इससे बढक़र हैरत वाली बात क्या होगी कि वही दक्षिण भारत मेरे ठहरने का, हुनरमंद होने का, सक्सेस हासिल करने का सबसे बड़ा ठिकाना बना। सच तो ये है कि चेन्नई मेरे लिए किसी तीर्थस्थान की तरह है। मैं आज भी जब चेन्नई जाता हूँ, तो उस शहर को और वहाँ के लोगों को सिर झुकाकर सलाम करता हूँ। मेरे और रहमान के बीच सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन कहते हैं न कि कई बार कामयाबी आसानी से हज़म नहीं होती। हमारे रिश्ते के बीच का हाज़मा कुछ ज़्यादा ही खराब हो गया।

सुखविंदर सिंह ने बताया कि एक तरफ ऑस्कर अवॉर्ड हासिल कर रहमान बेहद खुश था, उसकी खुशी से हम लोग बहुत ही प्रसन्न थे। वहीं अफसोस की बात कि गलतफहमियाँ भी सिर उठाने लगी थीं। न जाने असल वजह क्या है? कि हमारी दोस्ती में एक दरार-सी पड़ गयी। लेकिन मुझे लगता है कि कुछ लोगों ने उसे यही समझाया होगा- ‘ऑस्कर का क्रेडिट सुखविंदर को नहीं, बल्कि तुम्हें मिलना चाहिए।’ अचानक से वह जो ऑस्कर की बात आयी, तो बाकी सब कुछ रहा, लेकिन काम और दोस्ती का रिश्ता कमज़ोर पड़ गया। मुझे अब भी उसके कमबैक का इंतज़ार है। ये कमअक्ली वाली बात भी थी। लेकिन लगता है कि वह दूसरों के झाँसे और बहकावे में फँस गया।’

रहमान और अपने सम्बन्धों में यकायक आ गयी दूरी के बारे में सुखविंदर सिंह बताते हैं कि रहमान पूरी तरह अन्तर्मुखी बंदा है। वह अपनी भावनाओं का खुलकर इज़हार नहीं करता। मुझे याद है कि रहमान शुरू से ही ऐसा है। चाहे गम की हालत हो या खुशी का समाँ… वह कम ही बात करता था। कभी अपनी भावनाओं को उजागर नहीं होने देता। यहाँ तक कि कई बार तो  मुस्कुराता भी नहीं है। मैं उसे हँसाने की भरपूर कोशिश करता और अक्सर इस प्रयास में पूरी तरह कामयाब भी हो जाता। रहमान आश्चर्य से कहता था कि आिखरकार तेरे पास ऐसा कौन-सा जादू है, जो मेरे चेहरे पर हँसी ले आता है। मैं उसे जवाब देता कि कुछ खास जादू नहीं दिखाता हूँ, बस तेरा दिल पहचान लेता हूँ।’

सुखविंदर और रहमान की जोड़ी में दरार ज़रूर पड़ी; लेकिन दूरी प्रोफेशनल फ्रंट पर ही रही। वहाँ भी पूरी तरह नहीं; क्योंकि श्रीदेवी की  ‘मॉम’ और सचिन की बायोपिक में बाद में भी सुखविंदर सिंह ने गीत गाया। श्रीदेवी और बोनी ने कहा था कि हमें बतौर सिंगर सिर्फ सुखविंदर चाहिए। रहमान ने इस बात की कोई मुखालिफत भी नहीं की। ये बात दीगर बात है कि दोनों िफल्मों में सुखविंदर सिंह के गीतों को जिस तरह हाईलाइट किया जा सकता था, वो अंजाम नहीं दिया जा सका। दोनों गाने ज़्यादा नहीं चले और फिर उसके बाद रहमान-सुखविंदर सिंह अभी तक साथ नहीं आये।  वैसे, सुखविंदर सिंह बताना नहीं भूलते कि सचिन की बायोपिक को ज्यादा प्रमोट नहीं किया गया था, ऐसे में गाने को भी जगह नहीं मिली। ‘मॉम’ का गीत चार्टबस्टर न होने की वजह वे बताते हैं कि कई गीतों की अपनी िकस्मत भी होती है।

इस सबके बावजूद सुखविंदर मानते हैं कि जब किसी दोस्त से बिना खास वजह के झड़प हो जाए, तो उसकी आलोचना करने की जगह हमारा एक साथ बीता वक्त कितना खूबसूरत था, यह याद करना चाहिए। सुखविंदर कहते हैं कि खुदा का शुक्र है कि रहमान के संग ऐसी कोई खटास नहीं है- न ही ऐसी दूरी कि उस दूरी को वक्त भर नहीं पायेगा। सच यही है कि रहमान के साथ रिश्ते सुधारने की मैंने कभी-कोई बनावटी कोशिश नहीं की है। मैं उस वक्त का इंतजार कर रहा हूँ, जब  गलतफहमियाँ अपने आप दूर हो जाएँगी और हम फिर से उसी तरह एक अच्छे दोस्त की तरह साथ-साथ होंगे। लेकिन अच्छी बात यह है कि दोस्ती की इस नियामत को, पवित्रता को रहमान ने पूरी डिग्निटी के साथ आज तक सँभाले रखा है। भले ही हमारे बीच थोड़ी-बहुत गलतफहमियाँ हुईं, लेकिन रहमान ने लोगों को बीच आज तक ऐसी किसी बात को सिर नहीं उठाने दिया, जो अफवाह हो या हमारी दोस्ती के रिश्ते की पवित्रता को मैला या धूमिल करे।

यही सच्चा रिश्ता होता है कि पहले तो तकरार हो ही न और अगर किसी गलतफहमी के चलते तकरार हो भी जाए, तो मन में गुंजाइश रहे और वह तकरार दो दोस्तों के अलावा किसी तीसरे को सुनाई न दे। सुखविंदर अक्सर चेन्नई चले जाते हैं और रहमान के साथ क्वालिटी टाइम बिताकर मुम्बई लौट आते हैं। मज़ेदार बात यह है कि दोनों के बीच गाने और संगीत की चर्चा नहीं होती। बस, खाने की महिफल जमती है। यह जानकर आपको ताज्जुब होगा कि सुखविंदर सिंह वहाँ रवा मसाला डोसा खाने और छाछ खाने पहुँचते हैं और रहमान उन्हें बड़े प्यार के साथ ईडियट कहकर बुलाते हैं। सुखविंदर सिंह कहते हैं कि हम दोनों पूरे नौटंकीबाज़ हैं। अपन दुनिया भर का खयाल नहीं रख सकते; लेकिन जिन लोगों के साथ अच्छा वक्त बीता है, उनकी िफक्र तो करनी ही पड़ती है। सुखविंदर बताते हैं कि भले ही रहमान के साथ मैंने बहुत से गाने नहीं भी गाये, लेकिन उसका काम हमेशा मुझे सुकून देता रहा है। वह अपनी कण्ठ कला से दुनिया भर को नचा लेता था, जबकि अब खुद खामोशी से घिर गया है। एक कलाकार को तंगदिली का शिकार नहीं होना चाहिए। जैसे ही वह संगीत में फिर पहले की तरह सक्रिय होगा, हमारे रिश्ते पहले की तरह मधुर हो जाएँगे। सुखविंदर सिंह के मुताबिक, मैं डांसिंग स्टाइल के गाने गाता हूँ। इसलिए दिल से भले सूफी रहूँ, लेकिन मंच पर झूमना-थिरकना होता है। अपने प्रशंसकों से भी यही चाहता हूँ कि वे ज़िन्दगी का पूरी तरह आनंद लें एंज्वाय और अन्दर से अंतरात्मा के परम् आनंद को महसूस करते रहें।

जैसा कि बातचीत से पता चला कि नयी पीढ़ी तक संगीत की विरासत पहुँचाने के लिए सुखविंदर जल्द ही कई नयी योजनाओं पर काम शुरू करेंगे। उनकी ख्वाहिश है कि मीरा रोड, दहिसर या विरार में वे कोई संगीत आश्रम शुरू करें, जहाँ बच्चों को नि:शुल्क संगीत सिखाया जा सके। सुखविंदर सिंह कहते हैं- ‘महँगी फीस लेकर बच्चों को ट्रेनिंग दी जाएगी तो सारी सोच पैसे कमाने तक सिमट जाएगी। मैं चाहता हूँ कि ट्रेनिंग सेंटर जैसे कॉन्सेप्ट को छोडक़र संगीत से प्यार का ठिकाना तैयार किया जाए। मैं व्यापार करने के लिए एक और दुकान नहीं शुरू करने वाला। मेरा संगीत ईश्वर की उपासना है। उसे बाज़ार में नहीं भेज सकता। इसके लिए ज़रूरी है कि अपना सम्मान बनाये रखूँ, तब ही मैं अपने ईश्वर की, संगीत की प्रतिष्ठा और इ•ज़त बरकरार रख सकूँगा।