सुक्खू की चुनौतियाँ, हिमाचल मंत्रिमंडल के गठन में क्षेत्र से ज़्यादा जातिवाद पर किया गया फोकस

हिमाचल में नया सरकार बन गयी, मंत्री भी बन गये। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने और उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री के अलावा सात ही मंत्री बनाये हैं। चाहते, तो 10 मंत्री बना सकते थे। कुल 68 की विधानसभा में क़ानून के मुताबिक, 12 मंत्री बनाये जा सकते हैं। कांग्रेस ने चुनाव में 40 सीटें जीती थीं। लिहाज़ा किसी के नाराज़ होने से पहले सुक्खू ने मंत्रियों से पहले छ: मुख्य संसदीय सचिवों को शपथ दिलाकर उन्हें शान्त रखने की रणनीति अख़्तियार की। इस तरह तीन मंत्रियों के जगह बची है। लिहाज़ा नाराज़गी की सम्भावना नहीं रहेगी, क्योंकि विधायकों को मंत्री बनने की उम्मीद रहेगी। शायद सुक्खू अब 2024 के लोकसभा चुनाव का गुना भाग देखकर यह तीन मंत्री पद भरेंगे। वैसे यह मंत्रिमंडल क्षेत्रीय सन्तुलन के  लिहाज़ से बहुत सही नहीं कहा जा सकता। सुक्खू ने शायद क्षेत्रवाद से बाहर निकलने की कोशिश की है। लेकिन वह जातिवाद के भँवर में फँस गये हैं; क्योंकि अभी तक बने कुल नौ मंत्रियों में से छ: राजपूत हैं, जिनकी आबादी प्रदेश में सबसे ज़्यादा है। ख़ुद सुक्खू भी राजपूत हैं।

चुनाव के दौरान पार्टी की स्टार प्रचारक महासचिव प्रियंका गाँधी, जिनका शिमला में घर भी है; ने महिलाओं के लिए 1,500 रुपये मासिक भत्ता पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र में डलवाया था। लेकिन दुर्भाग्य से एक भी महिला पार्टी के टिकट पर नहीं जीती। इस तरह बिना महिला के मंत्रिमंडल बना है। लेकिन प्रियंका गाँधी सम्भवता सुक्खू से कहेंगी कि इसका कोई रास्ता निकाला जाए और महिलाओं को किसी और जगह बेहतर प्रतिनिधित्व दिया जाए। यदि मंत्रिमंडल पर नज़र दौड़ाएँ, तो साफ़ है कि मुख्यमंत्री सुक्खू ने लोकसभा चुनाव पर फोकस किया है।

कांगड़ा ज़िला प्रदेश में सबसे बड़ा ज़िला है और वहाँ से कांग्रेस ने 15 में से 10 सीटें  जीती हैं। कांगड़ा ज़िला से अभी सिर्फ़ एक- चंद्र कुमार, जो ओबीसी वर्ग से हैं; मंत्री बनाये गये हैं। इससे कांगड़ा में नाराज़गी फ़ैल सकती है। लेकिन सन् 2014 से पहले वहाँ से एक या दो मंत्री और बना सकते हैं। काफ़ी लोगों को लगता है कि कांगड़ा और मंडी संसदीय क्षेत्र में 2024 के चुनाव में इससे मुश्किल आ सकती है। इसी 8 जनवरी को बने मंत्रिमंडल में शिमला संसदीय क्षेत्र को सबसे ज़्यादा प्रतिनिधित्व मिला है। वहाँ से पाँच मंत्री बने हैं। इनमें से ज़्यादातर सुक्खू समर्थक या कह लीजिए कि वीरभद्र सिंह के विरोधी हैं। माना जाता है कि अगले चुनाव में पार्टी इस आरक्षित सीट से कर्नल धनी राम शांडिल को मैदान में उतार सकती है, जो विधानसभा चुनाव में सोलन सीट से जीते हैं और सुक्खू सरकार में मंत्री बनाये गये हैं। वह दो बार इस सीट से सांसद भी रहे हैं।

वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह मंडी लोकसभा हलक़े से सांसद हैं। उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह को भी केबिनेट मंत्री बनाया गया है। लेकिन सुक्खू ने इस लोकसभा सीट से सिर्फ़ एक मंत्री बनाया है। ज़ाहिर है कांग्रेस को अगले चुनाव में इससे दिक़्क़तत आ सकती है। वैसे सन्तुलन के लिए मंडी संसदीय क्षेत्र के तहत पडऩे वाले कुल्लू ज़िले से सुन्दर सिंह ठाकुर को मुख्य संसदीय सचिव बनाया गया है। हैरानी नहीं होगी, यदि भाजपा यहाँ से 2024 के लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को मैदान में उतार दे, जो चुनाव में पार्टी की हार के बाद पार्टी विधायक दल के नेता बनाये गये हैं। मंडी जयराम ठाकुर का गृह ज़िला है। अपने ज़िले में जयराम 10 में से 8 सीटें पार्टी की झोली में डालने में सफल रहे थे, जबकि पूरे संसदीय हलक़े में भाजपा ने 12 सीटें जीती हैं। सुक्खू ने पूरे कांगड़ा संसदीय क्षेत्र को भी एक ही मंत्री दिया है; लेकिन भटियात से जीतने वाले विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप पठानिया, भी इसी संसदीय क्षेत्र से हैं। एक मुख्य संसदीय सचिव (सीपीएस) भी कांगड़ा से बनाया गया है। वैसे पूरे कांगड़ा संसदीय क्षेत्र की 17 विधानसभा सीटों में से 12 कांग्रेस के हिस्से आयी हैं।

सबसे बेहतर हालत में हमीरपुर संसदीय क्षेत्र माना जा सकता है। केंद्र में मंत्री अनुराग ठाकुर इसी सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री सुक्खू और उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री दोनों इसी संसदीय हलक़े से हैं। हालाँकि इस हलक़े के तहत राजेश धर्माणी को मंत्री न बनाये जाने पर कई को हैरान हुई है। धर्माणी इस समय एआईसीसी के सचिव हैं और ब्राह्मण हैं। मंत्रिमंडल के गठन के बाद कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या मंडी और कांगड़ा सनासदीय क्षेत्र अभी से मुख्यमंत्री सुक्खू ने भाजपा के लिए खुले छोड़ दिये हैं? क्या कांग्रेस सिर्फ़ शिमला और हमीरपुर पर फोकस करना चाहती है? पिछले चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की हवा के सहारे भाजपा राज्य की सभी चार सीटें जीत गयी थी। हालाँकि बाद में मंडी से भाजपा सांसद रामस्वरूप शर्मा की मौत के कारण उपचुनाव हुआ, जिसमें प्रतिभा सिंघी ने भाजपा उम्मीदवार को हरा दिया। अब शिमला, हमीरपुर और कांगड़ा सीटें ही भाजपा के पास हैं। यदि 2024 की बात की जाए कांग्रेस के लिए चुनौती कई ज़िलों में है। मसलन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मंडी में 10 में दो, चम्बा में पाँच में दो, बिलासपुर में चार में एक, और सिरमौर में पाँच में से तीन सीटें मिली थीं। इन ज़िलों में भाजपा का प्रभाव ख़त्म करने के लिए कांग्रेस को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे। मंत्रिमंडल गठन इसमें काम आ सकता था; लेकिन समस्या यह है कि छोटा राज्य होने के कारण 10 ही मंत्री बन सकते हैं। शायद यही कारण है कि मुख्यमंत्री सुक्खू ने क्षेत्रीय सन्तुलन की जगह जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखा।

चूँकि राज्य में राजपूतों की संख्या सबसे ज़्यादा 33 फ़ीसदी है। उनके बाद ब्राह्मण हैं, जिनकी संख्या 18 फ़ीसदी के क़रीब है। हालाँकि अनुसूचित जाति की संख्या 25 फ़ीसदी है, जबकि अन्य पिछड़ा वरह (ओबीसी) 14 फ़ीसदी और अनुसूचित जनजाति पाँच फ़ीसदी हैं। हिमाचल में अब तक छ: मुख्यमंत्री बने, जिनमें सिर्फ़ शांता कुमार ही ब्राह्मण थे, बाक़ी सभी राजपूत रहे। ऐसे में हिमाचल की राजनीति को राजपूत दबदबे वाली कहा जा सकता है। शायद सुक्खू ने मंत्रिमंडल गठन में इसी तथ्य को ध्यान में रखा।

जो पहली बार में ही मंत्री 

यह दिलचस्प है कि सुक्खू सरकार में छ: ऐसे विधायक हैं, जो पहली बार मंत्री बने हैं। ख़ुद सुक्खू कभी मंत्री नहीं रहे और अब सीधे मुख्यमंत्री बने हैं। उनके अलावा हर्षवर्धन चौहान, रोहित ठाकुर, विक्रमादित्य सिंह, अनिरुद्ध सिंह जगत सिंह नेगी भी पहली बार मंत्री बने हैं। हालाँकि यह सभी एक से ज़्यादा बार विधायक बन चुके हैं। अनुभव के  लिहाज़ से देखा जाए उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री सभी पर भारी पड़ते हैं। एक पत्रकार से मंत्री बनने तक मुकेश का सफ़र अफ़सरशाही से बेहतर तालमेल के लिए जाना जाता है।

यह माना जाता है कि केंद्रीय सरकार में भी अफ़सरों से मुकेश का तालमेल बेहतरीन रहा है और दिवंगत वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली पिछली कांग्रेस सरकार के समय दिल्ली से पैसा और परियोजनाएँ, दोनों ही लाने में उनकी बड़ी भूमिका रही थी। उन्हें हमेशा से वीरभद्र सिंह (अब प्रतिभा सिंह) ख़ेमे का नेता माना जाता रहा है, जिन्होंने प्रदेश कांग्रेस में कभी अपना कोई गुट नहीं बनाया।

सत्ता से बाहर होने वाली भाजपा सरकार के समय नेता प्रतिपक्ष के नाते मुकेश ने दर्ज़नों बार सरकार को घेरा और कांग्रेस को मज़बूत विपक्ष के रूप में खड़ा किया। हालाँकि यह माना जाता है कि उन्हें मिलने वाले विभागों से उनके समर्थक ख़ुद नहीं हैं, क्योंकि वीरभद्र सरकार में उनके पास उद्योग जैसा बड़ा महकमा था। यहाँ यह बता दें कि सुक्खू ख़ुद वीरभद्र सिंह के कट्टर विरोधी रहे हैं। हालाँकि उन्हें राहुल गाँधी का क़रीबी नेता माना जाता है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि वह राहुल के कारण ही मुख्यमंत्री बने हैं। अन्यथा चुनाव के बाद ज़्यादातर लोग मान रहे थे कि मुकेश ही मुख्यमंत्री बनेंगे।

नये मंत्रियों के सामने लोकसभा चुनाव से पहले बेहतर काम करने की चुनौती रहेगी, ताकि पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर सके। सुक्खू को भी प्रशासन की बारीकियाँ सीखनी होंगी और अफ़सरशाही पर नकेल कसकर रखनी होगी। साथ ही पार्टी के विधायकों की नाराज़गी का भी उन्हें ख़याल रखना होगा।