सीबीआई जाँच में देरी से गहराया रहस्य

दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) में बिजली कर्मचारियों के भविष्य निधि (पीएफ) कोष से 4,122.70 करोड़ रुपये के अवैध निवेश की जाँच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित करने के सरकार के बहु-प्रचारित कदम में देरी से घोटाले को लेकर रहस्य गहराता जा रहा है।

इससे कई लोगों की भृकुटि तनी है; क्योंकि कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों के आचरण ने निर्णय लेने की प्रक्रिया को रोक दिया था। इस बीच राज्य सरकार ने 48 घंटे की सफल विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति (वीकेएसएसएस) के बैनर तले उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के हज़ारों बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की काम छोड़ो हड़ताल की सफलता के बाद बेमियादी आन्दोलन को असफल करने की कोशिशों में जुट गयी है।

राज्य सरकार ने 23 नवंबर को एक आदेश जारी किया, जिसमें आंदोलनकारी कर्मचारियों को आश्वासन दिया गया था कि जब तक ट्रस्टों द्वारा वसूली की कार्यवाही नहीं की जाती है, तब तक सरकार पॉवर कॉर्पोरेशन कर्मचारियों की देनदारियों को समाप्त करने के लिए ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करेगी; यदि वह अपने संसाधनों से ऐसा करने में विफल रहता है। कर्मचारियों ने इसके संचालन को सामान्य करने के लिए आन्दोलन स्थगित कर दिया है। सरकार ने दो अन्य गैर-बैंकिंग वित्त कम्पनियों के साथ-साथ एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस और पीएनबी हाउसिंग फाइनेंस में भी पीएफ कॉर्पस के विनिवेश की प्रक्रिया शुरू की है, जिसे मानदण्डों के अनुरूप अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थानों में निवेश किया जाएगा।

20 नवंबर, 2019 को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के डीएचएफएल के बोर्ड को हटा देने और एक पूर्व बैंकर को वित्तीय रूप से कम्पनी का प्रशासक नियुक्त करने के बाद बिजली कर्मचारियों में पूरा धन गँवा देने का भय समा गया। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (डीएचएफएल) में कर्मचारियों के भविष्य निधि ट्रस्टों के कोष से 4,122.70 करोड़ रुपये के अवैध निवेश को लेकर लगातार बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा पर हमला कर रहे हैं। जबसे कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने भाजपा के शासनकाल में पीएफ निवेश में भ्रष्टाचार पर हमला किया है, तबसे ही राज्य कांग्रेस अध्यक्ष अजय लल्लू बिजली मंत्री से मानहानि की धमकी के बावजूद मज़बूती से इस मुद्दे को उठा रहे हैं।

कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि यह देखते हुए कि दागी डीएचएफएल में अधिकांश अवैध निवेश भाजपा के शासन के दौरान बिजली मंत्री के रहते किये गये थे, श्रीकांत शर्मा को नैतिक आधार पर पद छोड़ देना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि बड़ी मछलियों को क्यों बख्शा जा रहा है और जाँच एजेंसियों ने उन्हें पकडऩे के लिए पर्याप्त साहस क्यों नहीं दिखाया है? सीबीआई को जाँच क्यों नहीं सौंपी गयी है? क्यों सरकार इन निगमों को चलाने वाले वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों को बचा रही है? सरकार ने ऐसे गम्भीर मामले में मौन क्यों साध रखा है? शुरुआत में 2 नवंबर को ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा था कि चूँकि, डीएचएफएल निवेश मानदण्डों के पालन के बाद किये गये थे, इसलिए सरकार ने राज्य की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) से जाँच को कहा था- जब तक केन्द्रीय एजेंसी के हाथ में जाँच न आ जाए।

 मामले में अब तक तीन सेवानिवृत्त और सेवारत यूपीपीसीएल के अधिकारियों सहित पाँच व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है; लेकिन जाँच सीबीआई को स्थानांतरित नहीं की गयी है। वीकेएसएसएस नोएडा के संयोजक जितेन्द्र शांडिल्य ने कहा- ‘हम निगम के अध्यक्ष और घोटाले के लिए •िाम्मेदार अन्य आईएएस अधिकारियों की तत्काल गिरफ्तारी की माँग करते हैं। यह केवल वर्तमान अध्यक्ष के शासन के तहत है कि लगभग 4,122 करोड़ का निवेश किया गया है।’

वे कहते हैं कि 99 फीसदी से अधिक फंड जानबूझकर उनकी तीन अन्य कम्पनियों में निवेश किया गया था, जिनमें से अकेले डीएचएफएल में 65 फीसदी का निवेश किया गया था। इस घोटाले में शामिल अधिकारियों ने इस लूट को साझा करने के लिए सभी अवैध तरीकों को अपनाया। आन्दोलनकारी भी तत्काल की माँग कर रहे हैं कि राज्य सरकार द्वारा सरकारी भविष्य निधि (जीपीएफ) और अंशदान प्रदान करने वाली निधि (सीपीएफ) के निवेश से सम्बन्धित श्वेत पत्र जारी किया जाए। बिजली निगम के सामान्य कर्मचारियों को लगता है कि पीएफ घोटाले का स्वरूप कुछ ऐसा है कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि शीर्ष नौकरशाही की इसमें सक्रिय भागीदारी न हो। सीबीआई को जाँच सौंपने में देरी से कर्मचारियों के मन में संदेह है कि प्रशासन जानबूझकर आरोपियों के नाम छिपा रहा है।