सिरदर्द बन चुका है दिल्ली का जाम

आज के दौर में हर किसी का एक-एक लम्हा कीमती है। एक समय था जब लोग एक-दूसरे से गप्पे मारने में, एक-दूसरे की मदद में या तास खेलने में काफी समय बिता दिया करते थे। परन्तु अब किसी के पास इतना समय नहीं है। आजकल हर इंसान रोज़ी-रोटी और तरक्की की दिन-रात कोशिशें करता रहता है। या यह कहें कि 99 के चक्कर में अब हर आदमी है। यह बात गाँवों पर भले ही पूरी तरह लागू न हो, मगर शहरों पर, खासकर बड़े शहरों पर तो ज़रूर लागू होती है। आजकल हर आदमी अपनी रोज़मर्रा की भागदौड़ में इतना मशरूफ हो गया है कि उसे एक लम्हा भी गँवाना गवारा नहीं। अब तो सफर के लिए सवारी भी लोग समय का आकलन करके किया करते हैं। कुल मिलाकर पैसे ज़्यादा खर्च हो जाएँ, पर समय की बचत होनी चाहिए। हमारे बहुत से बड़े-बूढ़े, विद्वान, यहाँ तक कि ग्रन्थ भी कहते हैं कि समय बहुत कीमती है। कहा जाता है कि जो लोग समय बर्बाद करते हैं, समय उनका भविष्य बर्बाद कर देता है। अगर बात देश की राजधानी दिल्ली की करें, तो यहाँ का छोटा-सा सफर बहुत समय खा जाता है। हालात यह हैं कि अगर किसी को पाँच किलोमीटर का भी सफर करना हो, तो कई जगहों पर आधे से एक घंटा तक खराब हो जाता है। हाल ही में किये गये एक सर्वे के मुताबिक, दिल्ली में एक कामकाजी इंसान को आठ घंटे की ड्यूटी के लिए 12 से 14 घंटे तक निकालने पड़ते हैं। इसकी वजह क्या है? इससे कैसे निजात पायी जा सकती है? इससे हर दिन सडक़ से गुज़रने वाले लोगों का कितना नुकसान होता है? आज के समय में कम-से-कम दिल्ली के मामले में यह सब गहन चर्चा के विषय हैं।

क्यों लगता है जाम?

दिल्ली में जाम के कई कारण सामने आते हैं, जिनमें से प्रमुख है निजी वाहनों की बढ़ती संख्या। एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली में लगभग सवा करोड़ वाहन सडक़ों पर दौड़ रहे हैं। इनमें 70 लाख से अधिक दोपहिया वाहन हैं। यह डाटा 2018 का है। दिल्ली में जाम का दूसरा बड़ा कारण एक कार में एक या दो लोगों का सफर करना है। वहीं तीसरा बड़ा कारण है- सडक़ों किनारे का अतिक्रमण। इस अतिक्रमण में घरों, दुकानों या आम सडक़ों के सामने खड़े वाहन बहुत बड़ा सिरदर्द हैं। कई जगह का तो यह हाल है कि आधे से ज़्यादा रास्ता सडक़ों पर खड़े वाहन ही घेर लेते हैं। जाम का चौथा कारण है- ज़ल्दबाजी। कुछ लोग ज़ल्दबाजी में अपने वाहन को उलटा-सीधा फँसा देते हैं, जिसके चलते थोड़ी ही देर में दूर तक जाम लग जाता है। हर रोज़ अपने ऑफिस के लिए लक्ष्मी नगर से करोल बाग जाने वाले सुमित गुप्ता कहते हैं कि वे कार से सफर करते हैं। लक्ष्मी नगर से करोल बाग पहुँचने में उन्हें लगभग डेढ़ से दो घंटे लगते हैं। कभी-कभी तो ढाई-तीन घंटे तक का समय उन्हें इस सफर को तय करने में लग जाता है। वहीं लाजपत नगर में एक इंश्योरेंस कम्पनी में मैनेजर पद पर कार्यरत रंजीत कुमार बताते हैं कि उन्हें हर दिन द्वारका से लाजपत नगर आना होता है। उन्हें हर रोज़ अपनी बाइक से यह सफर तय करना होता है। इसके लिए उन्हें हर रोज़ एक तरफ से ढाई से तीन घंटे का समय निकालना पड़ता है। उनकी हर दिन की ड्यूटी 15 से 16 घंटे की पड़ती है। जाम के चलते हर रोज़ उनके दो से तीन घंटे ज़्यादा खर्च होते हैं।

ट्रैफिक पुलिस मुस्तैद, फिर भी समस्या

दिल्ली में हर कहीं ट्रैफिक पुलिस खड़ी मिल जाएगी। धूल, सर्दी, गर्मी और बारिश में ट्रैफिक पुलिस के जवान जाम कम करने की जद्दोजहद से दिन भर उलझते हैं। परन्तु दिल्ली के कई इलाके ऐसे हैं, जिन्हें जाम से निजात दिलाना बीरवल की खिचड़ी पकाने से भी कठिन काम है। ट्रैफिक पुलिस की लाख कोशिशों के बावजूद भी दिल्ली को ट्रैफिक जाम से निजात नहीं मिल सकी है। ट्रैफिक पुलिस ऑफिसर विवेक का कहना है कि हम दिन भर ड्यूटी करके भी लोगों की नज़रों में खटकते रहते हैं। विवेक कहते हैं कि कोई भी मौसम हो, हमें किसी-न-किसी चौराहे पर खड़े रहकर ही ड्यूटी करनी होती है। मगर लोग फिर भी नहीं समझते कि हम लोग आिखर यह करते किसके लिए हैं। अकसर लोग कहते हैं कि ट्रैफिक पुलिस रिश्वत लेती है, चालान करती है। कहते हैं कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। हम यह नहीं कह रहे कि ट्रैफिक पुलिस में सब ईमानदार हैं। कुछ लोग गलत भी हो सकते हैं, मगर ज़्यादातर ट्रैफिक पुलिस के जवान ईमानदार होते हैं। रही चालान की बात, तो वह भी हम काटना नहीं चाहते, परन्तु जब कोई कानून या ट्रैफिक रूल तोड़ता है, तो हमें चालान करना ही पड़ता है। जतिन कहते हैं कि वे चाहे भूखे खड़े हों, चाहे प्यासे, लोग उन्हें रिश्वत लेने वाले पुलिसकर्मी के नज़रिये से पहले देखते हैं। लोग यह भी नहीं समझते कि हर दिन वे कितने ट्रैफिक रूल तोड़ते हैं और उनकी वजह से कितने दूसरे लोगों को परेशानी होती है।

मेट्रो से राहत, फिर भी आफत

हालाँकि, राजधानी में दिल्ली मेट्रो ने ट्रैफिक की समस्या से काफी हद तक निजात दिला दी है, फिर भी अभी दिल्ली में जाम एक बड़ी चुनौती है। इसका एक कारण यह भी है कि दिल्ली में अभी कई स्थानों पर मेट्रो नहीं है। साथ ही कुछ मेट्रो स्टेशन भी जाम का कारण बनने लगे हैं। इन मेट्रो स्टेशन के नीचे वाहन चालक वाहन खड़े कर देते हैं, खासतौर से ई-रिक्शा, ऑटो रिक्शा वाले मेट्रो स्टेशनों के नीचे खड़े हो जाते हैं और आने-जाने वाले वाहनों के रास्ते में बाधा बनते हैं। वहीं सडक़ों पर दिन-ब-दिन बढ़ते ट्रैफिक के चलते जाम कम होने का नाम नहीं ले रहा है।

अभी और होना चाहिए मेट्रो का विस्तार

दिल्ली के बहुत-से इलाके ऐसे हैं, जहाँ मेट्रो की सख्त ज़रूरत है, परन्तु मेट्रो अभी पहुँची नहीं है। इनमें कुछ ऐसे इलाके भी हैं, जहाँ तक मेट्रो पहुँचना बहुत टेढ़ी खीर है। ऐसे इलाकों में अधिकतर घनी और कच्ची कॉलोनिया शामिल हैं।

डीटीसी और कलस्टर बसों की है कमी

दिल्ली में तकरीबन ढाई करोड़ की आबादी रहती है, जिसमें सवा करोड़ यहाँ वाहनों की संख्या है। यानी सवा करोड़ लोगों के पास अपना कोई वाहन नहीं है। जबकि यहाँ डीटीसी की तकरीबन 4,000 और कलस्टर की 1800 बसें दिल्ली और एनसीआर में दौड़ती हैं। जिसमें लगभग हर रोज़ 45 लाख लोग सफर करते हैं, जिनके हिसाब से बसों की यह संख्या काफी कम है।

लोगों का होता है बड़ा नुकसान

जो लोग दिल्ली में हर रोज़ काम के सिलसिले में सफर करते हैं, उनका जाम के चलते काफी समय जाया चला जाता है। घरोली डेयरी फार्म के रहने वाले कालीचरन सिंह कहते हैं कि उन्हें हर रोज़ ओखला तक नौकरी के लिए जाना होता है। अपने घर से बाइक से ऑफिस तक जाने और ऑफिस से घऱ आने में उन्हें हर रोज़ तीन से चार और कभी-कभी पाँच-छ: घंटे भी लग जाते हैं, जबकि अगर जाम न हो तो वे तीन घंटे के अंदर दोनों तरफ का सफर आसानी से तय कर सकते हैं। बाकी का समय हर रोज़ उनका नष्ट ही होता है। अगर वे इस समय का उपयोग कर सकें, तो इसी खराब हुए समय में वे 200 से 250 रुपये का काम कर सकते हैं। कालीचरन सिंह कहते हैं कि समय की इंसान के जीवन में बहुत कीमत होती है, ऐसे में हमारा हर रोज़ जो घंटों का समय बर्बाद हो जाता है, वह बहुत खलता है। जाम को लेकर रवि चौहान ने बताया कि वे नोएडा में नौकरी करते हैं और उनके घर से नोएडा जाने में उन्हें 45 से 50 मिनट ही लगने चाहिए, लेकिन उन्हें हर रोज़ एक से डेढ़ घंटा सिर्फ जाम के चलते लगता है। कभी-कभी जाम के चलते वह देरी से ऑफिस पहुँचे हैं, जिससे काफी दिक्कत होती है।

दिल्ली सरकार के प्रयास

मौज़ूदा दिल्ली सरकार ने जाम से मुक्ति के कई तरीके निकाले हैं। इससे पहले कांग्रेस की दिल्ली सरकार ने भी दिल्ली को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए अनेक फ्लाई ओवर, सडक़ चौड़ीकरण और अंडरपास बनवाये। वहीं मौज़ूदा सरकार भी जाम से मुक्ति के लिए अनेक फ्लाई ओवर बनवा चुकी है, जिनमें कुछ पिछली सरकार के अधूरे पड़े फ्लाई ओवर्स को भी पूरा करने का काम शामिल है। आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने बाहरी रिंग रोड से एयरपोर्ट जाने वाले राव तुला राम (आरटीआर) फ्लाई ओवर भी बनाया है। तीन लेन का यह फ्लाई ओवर 2.85 किलोमीटर लम्बा है। बता दें कि इस फ्लाई ओवर के देरी से बनने के चलते दिल्ली सरकार ने ठेकेदार पर ज़ुर्माना भी लगाया गया था। इसके अलावा विकासपुरी से मीना बाग के बीच एक फ्लाई ओवर और दिया मौज़ूदा सरकार ने। इसी तरह और भी फ्लाई ओवर दिल्ली सरकार ने बनाए हैं। हालाँकि दिल्ली सरकार का दिल्ली को 23 फ्लाई ओवर देने का वादा है, जो अभी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन काम जारी है।

हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने ओखला क्षेत्र का दौरा किया था और वहाँ लगने वाले जाम के बारे में जैसे ही उन्हें मालूम हुआ, उन्होंने तत्काल घोषणा कर दी कि वे ज़ल्द ही ओखला क्षेत्र को जाम से मुक्ति दिलाएँगे। इसके लिए कुछ जगहों पर काम भी शुरू हो चुका है।

पाॄकग की है कमी

दिल्ली में जितने वाहन हैं, उनके हिसाब से पाॄकग की संख्या बहुत कम है। जबकि चार पहिया वाहन खरीदने के लिए हर किसी को पाॄकग दिखानी पड़ती है। मगर आधे से अधिक लोगों के पास पाॄकग की व्यवस्था नहीं है। दिल्ली में प्राइवेट पाॄकग भी अनेक हैं, परन्तु उनमें भी बहुत-से लोग अपना वाहन खड़ा न करके, अपने घर या दुकान के सामने सडक़ पर खड़ा कर देते हैं।

अधूरी पड़ी हैं पाॄकग

दिल्ली में कांग्रेस के समय में ही कुछ मल्टीलेवल पाॄकग का मसौदा तैयार हुआ था, जिनमें से कुछ पर काम भी होना शुरू हो गया था, पर कुछ अधूरी ही रह गयीं। इन पाॄकग में से एक कनॉट प्लेस में है, जिसका काम कांग्रेस की दिल्ली सरकार के समय में ही रुक गया था। बताया जाता है कि यह पाॄकग किसी विवाद के चलते नहीं बन सकी है।

साधनों को विकसित करने की ज़रूरत

बढ़ते जाम को देखते हुए दिल्ली की सडक़ों और फ्लाई ओवर को तकनीकी रूप से विकसित करने की ज़रूरत है। यह कहना है- दिल्ली की एक प्राइवेट फर्म में कार्यरत इंजीनियर नयन प्रकाश का। नयन प्रकाश के अनुसार, दिल्ली की कई सडक़ें पहले के हिसाब से बनी हुई हैं। ज़ाहिर है कि उस समय इतना ट्रैफिक नहीं होता होगा; परन्तु अब उनमें ज़रूरत के हिसाब से परिवर्तन की ज़रूरत है।

130 फुट ऊँची टॉवर पाॄकग तैयार

एक तरफ जहाँ दिल्ली में पाॄकग की दिक्कत है। चारों नगर निगमों ने दिल्ली में अपने-अपने क्षेत्र में कई पाॄकग बना रखी हैं। लेकिन मल्टीलेबल पाॄकग की अभी भी दिल्ली में कमी है। वहीं ग्रीन पार्क एरिया में पहली सबसे ऊँची टॉवर पाॄकग ग्रीन पार्क  में बनायी गयी है। स्टील फिटेड इस पाॄकग में दो टॉवर बनाये गये हैं। पाॄकग की ऊँचाई करीब 130 फीट है, जिसमें 102 गाडिय़ाँ खड़ी की जा सकती हैं। इसके अलावा ज़ल्द ही दो और मल्टीलेबल पाॄकग साल 2020 में बनाने का प्रस्ताव भी है।