सियासी धुन्ध में तैरते पंजाब कांग्रेस के कई सवाल

कृपया, कोई अटकलबाज़ी नहीं। -पंजाब में सियासी उथल-पुथल के बीच पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ के ट्वीट का यह एक हिस्सा है। इसी ट्वीट में बाद में जाखड़ ने लिखा- ‘क्या अब सब कुछ ठीक है और युद्धविराम हो गया है? या यह केवल एक अस्थायी युद्धविराम है?’ पंजाब कांग्रेस में कुर्सी के अन्तहीन खेल के बीच सुनील जाखड़ के कटाक्ष से भरे इस ट्वीट का अर्थ हर कोई समझने के कोशिश कर रहा था। संक्षिप्त ट्वीट सन्देश तब और भी महत्त्वपूर्ण बन गया, जब देश भर में 3 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में चार किसानों को कथित तौर पर वाहन के नीचे रौंद देने की घटना पर चर्चा हो रही थी, और पंजाब कांग्रेस महीनों से उथल-पुथल के दौर के बाद अपने घर को व्यवस्थित करने के कोशिश में विफल दिख रही थी; जबकि कुछ ही समय में वहाँ चुनाव हैं।

जैसा कि हम जानते हैं कि सोशल मीडिया आपको अपने लक्षित पाठकों तक पहुँचने, आपकी बात को पोषित करने और उनसे जुडऩे की अनुमति देता है। लेकिन साथ ही यह एक दोधारी तलवार भी साबित हो सकता है। ऐसा तब हुआ, जब पंजाब के बड़े राजनीतिक नेता जाखड़ ने कुछ सन्देश भेजकर लोगों को हैरान कर दिया। जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था, तब सुनील जाखड़ हाल ही में एक छुपे रुस्तम के रूप में मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में उभरे थे। अगर ऐसा होता, तो वह शायद सन् 1966 में राज्य के पुनर्गठन के बाद से पंजाब के पहले हिन्दू मुख्यमंत्री होते। वह पहले पंजाब में विपक्ष के नेता और इसी जुलाई तक चार साल पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। उनके पिता बलराम जाखड़ को सन् 1980 से सन् 1989 तक दो बार लोकसभा अध्यक्ष रहने का गौरव प्राप्त था।

सुनील जाखड़ ने ट्वीट के ज़रिये यह निशाना तब साधा, जब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच बैठक ख़त्म हुई और जब पंजाब पुलिस प्रमुख और महाधिवक्ता की नियुक्तियों पर विरोध जताते हुए पार्टी प्रमुख सिद्धू ने इस्तीफ़े की घोषणा की। इसी साल 19 जुलाई को पीसीसी अध्यक्ष बनाये गये सिद्धू ने सहोता को पंजाब पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) का अतिरिक्त प्रभार देने के लिए अपनी ही पार्टी की सरकार का विरोध करते हुए दावा किया कि जब सन् 2015 में श्री गुरुग्रन्थ साहिब की बेअदबी हुई थी, तो उनके (सहोता के) नेतृत्व वाली एसआईटी ने दो सिखों को आरोपित किया था और बादलों को क्लीन चिट (दोषमुक्ति की पर्ची) दे दी थी। सिद्धू द्वारा ट्वीट किये जाने के कुछ घंटे बाद उनकी टिप्पणी आयी कि डीजीपी इक़बाल प्रीत सिंह सहोता और महाधिवक्ता (एजी) अमर प्रीत सिंह देओल को प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए; क्योंकि इनकी नियुक्तियाँ बेअदबी के पीडि़तों के घावों पर नमक छिड़कने जैसी हैं। जाखड़ को एक विनम्र राजनीतिक नेता माना जाता है, जो अपना कार्य अच्छी तरह से करते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि विपक्षी नेता भी उनकी बात ध्यान से सुनते हैं।

सिद्धू ने ट्वीट किया था कि डीजीपी और महाधिवक्ता को नहीं बदलने से कांग्रेस कैसे अपना चेहरा दिखाएगी? उन्होंने कहा कि सन् 2017 में हमारी पार्टी सत्ता में आयी ही जनता से बेअदबी के मामलों में न्याय देने और नशीली दवाओं के व्यापार के मुख्य दोषियों की गिरफ़्तारी के वादे पर थी। इसी नाकामी के कारण पिछले मुख्यमंत्री को हटाया गया। ऐसे में एजी / डीजी पद पर से इन्हें बदला जाना चाहिए। अन्यथा हम जनता के सामने चेहरा दिखाने लायक नहीं रहेंगे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को लिखे एक पत्र, जिसे सिद्धू ने सोशल मीडिया पर भी साझा किया; में कहा- ‘नैतिकता से समझौता करने पर एक आदमी के चरित्र का पतन होता है। मैं पंजाब के भविष्य और पंजाब के कल्याण के एजेंडे (नीति) से कभी समझौता नहीं कर सकता। इसलिए मैं पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देता हूँ। मैं कांग्रेस की सेवा करता रहूँगा।‘

एडवोकेट जनरल एपीएस देओल पर सिद्धू की आपत्ति यह है कि उन्होंने कथित तौर पर पंजाब के पूर्व पुलिस प्रमुख सुमेध सिंह सैनी का बचाव किया, जो सन् 2015 के बहबल कलां पुलिस फायरिंग मामले में एक आरोपी थे। सहोता ने तब सिद्धू की नाराज़गी मोल ले ली, जब एक विशेष जाँच दल के प्रमुख के रूप में उन्होंने बेअदबी के मुद्दे पर कथित तौर पर बादलों को दोषमुक्ति की पर्ची दी थी। सुनील जाखड़ का नाम मुख्यमंत्री के लिए सबसे आगे था। लेकिन कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि पंजाब कांग्रेस के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने राज्य में एक सिख को मुख्यमंत्री बनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। इसमें कोई शक नहीं कि इसके बाद जाखड़ का नाम दौड़ से अचानक बाहर हो गया। ज़ाहिर है सिद्धू ख़ुद को पंजाब के भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे थे और जब उन्होंने वर्तमान मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को अपने बूते बदलाव करते और एक अलग छवि बनाते हुए देखा, तो उन्होंने पीसीसी अध्यक्ष के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। हालाँकि उनका इस्तीफ़ा अभी स्वीकार नहीं हुआ है।

मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पीसीसी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच बैठक तब तय हुई, जब कई विधायकों ने दोनों नेताओं से एक सौहार्दपूर्ण समाधान खोजने का आग्रह किया। इसके बाद तनाव में कुछ कमी आती दिखी; लेकिन सिद्धू ने मुलाक़ात के बाद भी इस्तीफ़ा वापस लेने की घोषणा नहीं की। यह बैठक सरकार को सही तरीक़े से चलाने के लिए किसी शान्ति समझौते पर पहुँचने के लिए थी। इस्तीफ़े के बाद पटियाला स्थित अपने आवास पर रहने के बाद सिद्धू कांग्रेस के केंद्रीय पर्यवेक्षक हरीश चौधरी की मौज़ूदगी में चन्नी से मिलने पहुँचे। सिद्धू के क़रीबी सहयोगी और केबिनेट मंत्री परगट सिंह भी चन्नी के सुझाव पर हुई बैठक में शामिल थे।

सिद्धू-चन्नी की बैठक के बाद जाखड़ ने सवाल उठाया- ‘क्या अब समझौता हो गया है? युद्धविराम कर दिया गया है? या यह केवल एक अस्थायी युद्धविराम है?’ कहानी को एक अलग मोड़ देने के लिए सुनील जाखड़ ने बाद में अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल पर पोस्ट कर कहा कि वह हाल ही में हमारे क्षेत्र में चीनी घुसपैठ के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति का ज़िक्र कर रहे थे। कृपया कोई अटकल न लगाएँ। फिर भी जंग जारी रही, तो जाखड़ ने ट्वीट किया- ‘बस बहुत हो गया। मुख्यमंत्री की सत्ता को बार-बार कमज़ोर करने की कोशिशों पर विराम लगाएँ। एजी और डीजीपी के चयन पर बात करने से वास्तव में मुख्यमंत्री और गृह मंत्री की ईमानदारी / क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं। यह शान्त रहने और अफ़वाहों पर लगाम लगाने का समय है।‘

अपने रूख़ को नरम करते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री ने एक नियमित डीजीपी की नियुक्ति के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को 10 अधिकारियों का एक पैनल भेजा। जानकारी के मुताबिक, भेजे गये 10 नामों में सन् 1986 के बैच (जत्थे) के आईपीएस अधिकारी एस. चट्टोपाध्याय, सन् 1987 के बैच के मौज़ूदा डीजीपी दिनकर गुप्ता के अलावा एम.के. तिवारी, वी.के. भवरा, प्रबोध कुमार, रोहित चौधरी, आईपीएस सहोता, संजीव कालरा, पराग जैन (केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर) और बी.के. उप्पल शामिल हैं।

सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि चट्टोपाध्याय सिद्धू के चहेते हैं। यूपीएससी तीन अधिकारियों का पैनल अधिकारियों के सेवा रिकॉर्ड और अन्य आवश्यकताओं के आधार पर विचार कर सरकार को लौटाएगा। इन तीनों में से राज्य को शीर्ष पद के लिए एक अधिकारी का चयन करना होता है।

हालाँकि सरकार ने मौज़ूदा डीजीपी दिनकर गुप्ता को बदलने का मन बना लिया है; जो एक महीने की छुट्टी पर गये हुए हैं। इसके बाद आईपीएस सहोता को कार्यालय का प्रभार दिया गया है। मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के एक बयान में कहा गया है कि अब उसे तीन नामों के एक पैनल को केंद्र की मंज़ूरी का इंतज़ार है, जिसमें से नये डीजीपी की नियुक्ति की जाएगी। सीएमओ के बयान में कहा गया है कि सिद्धू, सभी मंत्रियों और विधायकों के साथ विचार-विमर्श के बाद नाम को अन्तिम रूप दिया जाएगा। मामले को शान्त करने के प्रयास में चन्नी सरकार ने बेअदबी से सम्बन्धित सभी मामलों को देखने के लिए आरएस बैंस को विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किया है।

ग़ौरतलब है कि कुछ प्रमुख पदों पर दाग़ी लोगों को लेने के विरोध में नैतिक आधार पर उच्च पद छोड़ देने वाले प्रदेश कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू ने इस्तीफ़े पर फ़िलहाल स्थिति स्पष्ट नहीं की है। हाँ, उन्होंने यह ज़रूर कहा है कि वह गाँधी परिवार के साथ खड़े रहेंगे; चाहे उनके पास कोई पद हो, या न हो।