सियासी अपराध : उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के बाद हिंसा

पंचायत चुनाव के परिणाम संकेत दे रहे हैं कि अगर योगी सरकार ने शासन व्यवस्था में सुधार नहीं किया, तो उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनावों के परिणाम भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहतर नहीं होंगे

यह पहली बार नहीं है, जब चुनावों के बाद दो राज्यों में हिंसा हुई है। यह दो जगहें बंगाल और उत्तर प्रदेश हैं। यह अलग बात है कि बंगाल हिंसा पर पूरे देश में शोर हो रहा है और उत्तर प्रदेश में हो रही हिंसा पर कोई बोलने को तैयार नहीं है। हालाँकि हिंसा किसी भी रूप में हो और कहीं भी हो, वह ग़लत ही है और सरकार को उसे तुरन्त रोकना चाहिए। लेकिन लेकिन उत्तर प्रदेश में तो कम से कम ऐसा बहुत मरे मन से किया जा रहा है। यहाँ पंचायत चुनावों का परिणाम घोषित होते ही जगह-जगह हिंसा हुई है, जिसमें कई लोग भी मारे गये हैं। सूत्र बताते हैं कि पूरे प्रदेश में लगभग 30 जगह हिंसा हुई है। कहीं जमकर मारपीट हुई है, तो कहीं फायरिंग जैसी घटनाएँ भी हुई हैं। लेकिन बारबंकी में सबसे ख़तरनाक घटना होने से बची, वहाँ छतों पर बम फेंके गये। अधिकतर जगहों पर हारे हुए प्रत्याशियों ने हिंसा को बल दिया है। अपना नाम गोपनीय रखने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि ‘सत्ताधारी पार्टी के हारे हुए लोग सबसे ज़्यादाउपद्रव कर रहे हैं और फोन करके भी परेशान कर रहे हैं।’
हमने जब प्रदेश में हो रही मारपीट और हिंसा की घटनाओं के बारे में जानकारी जुटायी, तो पता चला कि प्रदेश में 25 जगहों पर तो मतगणना के दौरान और परिणाम आने पर ही हिंसा हुई और पाँच जगह पर जीत का जश्न मनाने पर हारे हुए प्रत्याशियों और उनके लोगों के हमले के बाद मारपीट हुई। इसके अलावा भी कुछ जगहों पर हिंसा होने से बची, जिसका क्रेडिट पुलिस प्रशासन और स्थानीय लोगों को जाता है। सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में रामपुर, मुरादाबाद, प्रयागराज, गोरखपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, खीरी, रायबरेली, आजमगढ़, जौनपुर, बिजनौर, लखीमपुर खीरी, अयोध्या, बागपत, सहारनपुर और मिर्जापुर में हिंसा की घटनाएँ सामने आयी हैं। हिंसा के बाद अपर पुलिस महानिदेशक क़ानून व्यवस्था प्रशांत कुमार ने मीडिया को बताया कि प्रदेश में दो हत्या के मुक़दमे (हमारी जानकारी में क़रीब पाँच हत्याएँ), हत्या के प्रयास के सात मुक़दमे, पुलिस पर हमले के पाँच मुक़दमे, बलवा करने के 11 मुक़दमे और मारपीट की घटनाओं के पाँच मुक़दमे दर्ज किये गये हैं। इन मामलों में 35 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। यह सब 7-8 मई तक हो चुका था।

ज्ञात हो राज्य निर्वाचन आयोग ने निर्देश दिया था कि चुनाव परिणाम के बाद किसी तरह का विजय जुलूस नहीं निकाला जाए और न ही भीड़ इकट्ठी की जाए। कोरोना-काल में चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही की जाएगी। लेकिन जैसे ही पंचायत चुनाव के परिणाम सामने आये, कई जगहों पर हिंसा भडक़ उठी।
ज्ञात हो कि उत्तर के 75 ज़िलों में 3051 पद ज़िला पंचायत, 75,808 पद क्षेत्र पंचायत सदस्य, 58,194 पद ग्राम प्रधान और 7,31,813 पद ग्राम पंचायत सदस्यों के हैं। इस बार सबसे ज़्यादानिर्दलीय जीते हैं। पार्टियों में सबसे ज़्यादासीटें अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी जीते हैं। दूसरे संख्या पर भारतीय जनता पार्टी रही है और तीसरे संख्या पर मायावती की बहुजन समाज पार्टी रही और चौथे संख्या की आम आदमी पार्टी ने मारी है। इसके बाद कांग्रेस और रालोद का संख्या आया है और इसके बाद कुछेक अन्य दल।

गढ़ों और धार्मिक नगरियों में भाजपा के पिछडऩे का मतलब
बड़ी बात यह रही कि भारतीय जनता पार्टी बनारस, गोरखपुर, अयोध्या, मथुरा, प्रयागराज यानी इलाहाबाद में भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी है। जबकि भाजपा को हिन्दू तीर्थ माने जाने वाले इन स्थानों पर इस तरह के परिणाम की उम्मीद क़तई नहीं थी। इसका मतलब साफ़ है कि लोग अब भारतीय जनता पार्टी के हिन्दुत्व के मोहपाश और प्रधानमंत्री मोदी के जादुई झांसे से बाहर निकलने लगे हैं। धार्मिक स्थलों पर और वह भी योगी के गढ़ गोरखपुर और मोदी के गढ़ बनारस में भारतीय जनता पार्टी का जनाधार खिसकना इस बात का संकेत है कि जनता 2022 के विधानसभा चुनाव में उसे दोबारा प्रदेश की डोर देना नहीं चाहती। कुछ सियासी जानकार कहते हैं कि बंगाल के बाद पंचायत चुनाव के परिणामों ने भारतीय जनता पार्टी के दिग्गजों की नींद उड़ा दी है। भाजपा कार्यकर्ता दिनेश कहते हैं कि इसमें किसी और का दोष नहीं है, हमारी पार्टी के नेता सत्ता के नशे में इतने चूर हो गये हैं कि अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं तक पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। अभी कोरोना-काल में यदि पार्टी के किसी कार्यकर्ता का कोई आदमी या परिजन बीमार पड़ रहा है, तो उसे भी इलाज नहीं मिल पा रहा है।

हत्यारे कौन?
अब हिंसा की एक बानगी देखिए, एक अख़बार ने ख़बर छापी है कि ‘गोरखपुर के एक गाँव में भीड़ ने लाठी और धारदार हथियारों से रमा शंकर नामक एक व्यक्ति पर हमला कर दिया गया, जिससे उसकी मौत हो गयी।’ बताया जा रहा है कि रमा शंकर की ग़लती सि$फ़ इतनी थी कि उन्होंने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को वोट दिया था। इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि रमा शंकर पर हमला करने वाले कौन लोग हो सकते हैं? गोरखपुर में कुछ जगह आगजनी की घटनाएँ भी हुई हैं। कुछ लोगों ने वार्ड संख्या-60 में चुनाव परिणाम में फेरबदल का आरोप लगाते हुए चौकी फूँक दी। इसके बाद ज़िलाधिकारी ने काउंटिंग में गड़बड़ी पाये जाने पर रिटर्निंग ऑफिसर (आरओ) के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज कराने की धमकी दी। बाद में पता चला कि आरओ ने सही परिणाम घोषित किये थे; लेकिन लिपिकीय ग़लती के चलते परिणाम ग़लत घोषित हो गया था।

गोरखपुर में तीन वार्डों- वार्ड संख्या-45, वार्ड संख्या-60 और वार्ड संख्या-61 में गड़बड़ी मिली। जिसके चलते हिंसा हुई। इसी तरह आजमगढ़ के एक गाँव में बहुजन समाज पार्टी के एक उम्मीदवार की बहू की गोली मारकर हत्या कर दी गयी और बेटी को भी गोली मारी गयी, परन्तु वह बच गयी। समझा जा सकता है कि गोली मारने वाले कौन लोग हो सकते हैं? इसी प्रकार जौनपुर के एक गाँव में सन्तोष वर्मा नामक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या कर दी गयी। सन्तोष के पिता ने भी बेटे की हत्या का आरोप भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर लगाया है। इसी प्रकार समाजवादी पार्टी को वोट देने के कारण बिजनौर की राशिदा बेग़म की हत्या कर दी गयी। इससे भी साफ़ ज़ाहिर है कि हमलावर कौन लोग होंगे? रामपुर में भी चुनाव नतीजों की घोषणा के बाद ज़िला कांग्रेस उपाध्यक्ष मतिउर्रहमान ख़ान पर हमला किया गया। वह घायल हो गये। इसी तरह बाराबंकी में तो छतों पर गोले भी फेंके गये। मतलब जहाँ देखो वहाँ हमले समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पार्टी के लोगों पर हुए हैं। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के बाद हुई हिंसा करने वालों के ख़िलाफ़ सरकार से कड़े क़दम उठाने की माँग की है। उन्होंने ट्वीट किया कि ‘उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के बाद जिस प्रकार से राजनीतिक हिंसा, झड़प, आगजनी और अन्य आपराधिक घटनाएँ लगातार घटित हो रही हैं, यह अति-दु:खद और अति-चिन्ताजनक है। बहुजन समाज पार्टी की यह माँग है कि राज्य सरकार इस मामले में गम्भीर होकर तत्काल आवश्यक सख़्त क़दम उठाये।’

लोगों में चर्चा है कि भारतीय जनता पार्टी के दाँत खाने के और दिखाने के और ही हैं। वह दिखाने के लिए राम राज्य की बात करती है, असल में तो रावण राज्य से भी बुरा हाल उत्तर प्रदेश का है, जिसमें हिंसा के पुजारी कुर्सियों पर विराजमान हैं। तनाव की उम्मीद भारतीय जनता पार्टी की सरकार में लोगों को क़तई नहीं थी। बड़ी बात यह है कि प्रदेश का मीडिया भी हिंसा की इन ख़बरों को दिखाने से घबरा रहा है या फिर विज्ञापन के चक्कर और दफ़्तर बन्द होने के डर से उस तरह नहीं दिखा रहा है, जैसे बंगाल हिंसा को दिखा रहा था। सवाल यह है कि भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता बंगाल की हिंसा के ख़िलाफ़ धरने पर उतर आये, तो उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान और परिणाम के बाद हुई हिंसा किसी को क्यों नहीं दिखायी दी? उल्टा भारतीय जनता पार्टी के लोग हिंसा का आरोप समाजवादी पार्टी के लोगों पर लगाकर उन्हें समाजवादी गुंडा कहकर अपना पल्ला झाडऩे में लगे हैं। लेकिन पूछा जा सकता है कि जब प्रदेश की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी जैसी अहिंसक पार्टी की सरकार है, तो भी उत्तर प्रदेश में यह हिंसा क्यों हुई? और गुंडागर्दी में प्रदेश का नाम ऊपर की श्रेणी में कैसे आता जा रहा है?

काम नहीं आयी रणनीति
उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में प्रदेश की योगी सरकार की रणनीति कोई ख़ास काम नहीं आ सकी। ज्ञात हो कि योगी सरकार ने पिछले साल कोरोना वायरस का बहाना करके इन चुनावों को काफ़ी दिनों तक टरकाया था। उसके बाद पिछले लगभग छ:-सात महीने से योगी और उनकी टीम पंचायत चुनावों में जीत की रणनीतियाँ तैयार कर रहे थे। इसके लिए उन्होंने सैकड़ों अधिकारियों का चुनाव से ठीक पहले तबादला किया। जमकर प्रचार किया और लोगों को राम मन्दिर निर्माण की ख़याली मिठाई भी खिलायी, अपनी कामयाबी के विज्ञापन जमकर लगवाये। लेकिन कोई भी नुस्ख़ा उनके काम न आ सका। अब देखना यह है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वह उनकी टीम, जिसमें पक्के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जैसे दिग्गज भी पूरा ज़ोर लगाएँगे। वह कौन-सी रणनीति का इस्तेमाल करेंगे? यह तो नहीं पता। लेकिन आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारियाँ योगी सरकार ने लगभग शुरू कर दी हैं।