सियासत पर हावी किसान आन्दोलन!

देश के इतिहास में यह अपनी तरह का अनोखा सरकारी विरोध है कि किसानों को रोकने के लिए उसे सड़कें खोदनी पड़ रही हैं और कीलों से अवरोध बनाने पड़ रहे हैं। सरकार की इन कोशिशों के बावजूद किसान आन्दोलन नयी ताकत से खड़ा होता दिख रहा है और अब इसका बड़ा राजनीतिक असर भी दिखने लगा है। उत्तर प्रदेश और हरियाणा में किसान पंचायतों में जुटती भीड़ भाजपा, केंद्र की मोदी सरकार और राज्यों में भाजपा सरकारों, सबके लिए चिन्ता का सबब बन रही है। विदेशों में मोदी सरकार के किसान आन्दोलन से निबटने के तौर-तरीकों की कटु आलोचना होने लगी है। देश के हर हिस्से के किसान आन्दोलनरत हो रहे हैं। किसान आन्दोलन में बढ़ती सरगर्मी और राजनीतिक उथल-पुथल पर विशेष संवाददाता राकेश रॉकी की रिपोर्ट :-

क्या 26 जनवरी को लाल िकले की घटना के बाद खत्म होने की कगार पर पहुँचकर किसान आन्दोलन ने अचानक भाजपा और वर्तमान में केंद्र की सत्ता के लिए ज़्यादा खतरे वाला रुख अिख्तयार कर है? राजनीतिक रूप से भाजपा के लिए बेहद संवेदनशील उत्तर प्रदेश में आन्दोलन की मज़बूत दस्तक से केंद्र में सत्तारूढ़ दल के खेमे में अन्दर-ही-अन्दर हलचल है और किसानों के समर्थन में हो रही पंचायतों में उमड़ रही हज़ारों-लाखों की भीड़ ने जहाँ किसान आन्दोलन में जबरदस्त जान फूँक दी है, वहीं आन्दोलन अब राजनीति, खासकर केंद्र की राजनीति के लिए भी बहुत अहम हो गया है। उत्तर प्रदेश के साथ-साथ भाजपा की सत्ता वाले हरियाणा में भी आन्दोलन पार्टी के लिए मुसीबत बनता दिख रहा है। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आन्दोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज़िलों में जिस तेज़ी से फैल रहा है, उसने सूबे में अजीत सिंह की रालोद (राष्ट्रीय लोकदल) के साथ कांग्रेस को भी सक्रिय कर दिया है। सहारनपुर में किसान पंचायत में 10 फरवरी को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी की शिरकत और आरएलडी नेता जयंत चौधरी का इस दौरान किसान नेताओं से मिलना भाजपा की पेशानी पर बल डाल रहा है। किसान आन्दोलन ने हाल के पखवाड़े में विपक्ष में नयी जान फूँक दी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जो पंचायतें हो रही हैं, उनमें अब सीधे-सीधे भाजपा को निशाने पर रखा जा रहा है। हरियाणा में भी यही दिख रहा है, जहाँ कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा किसान आन्दोलन के बहाने भाजपा के खिलाफ मैदान में उतर चुके हैं।

रक्षात्मक भाजपा इस नयी परिस्थिति में नयी रणनीति बनाने को मजबूर हुई है। भाजपा ने पार्टी के विधायकों-मंत्रियों से लेकर नेताओं तक को केंद्रीय बजट में किसानों के लिए की गयी घोषणाओं को जनता, खासकर किसानों तक पहुँचाने का ज़िम्मा सौंपा है और लोकल फॉर वोकल के तहत व्यवस्थाओं को हर गाँव में पहुँचाने का ज़िम्मा दिया गया है। भाजपा जनता को यह बताना चाहती है कि विपक्ष किसान आन्दोलन के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं के खिलाफ साज़िश कर रहा है। गाँवों में किसान पंचायतों में उमड़ रही भीड़ के बीच भाजपा के इस प्रचार का कितना असर होगा? इसका आने वाले दिनों में ही पता चल पाएगा। फिलहाल तो भारी विरोध के कारण भाजपा नेताओं का जनता के बीच जाना मुश्किल हो रहा है।

भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अलावा पंजाब में भी गम्भीर राजनीतिक दिक्कतें पैदा हुई हैं। जिस तरह किसानों को आतंकवादी और खालिस्तानी बताकर आन्दोलन को बदनाम करने की कोशिश की गयी, उसका बहुत उलटा असर हुआ है। सोशल मीडिया पर किसान आन्दोलन को लेकर जिस तरह घृणा का माहौल बनाने की कोशिश हुई, उससे पंजाब में लोगों में गुस्सा पैदा हुआ है। पंजाब में कांग्रेस जनता को यह बताने में सफल रही है कि सोशल मीडिया में तमाम नफरती बयानों के पीछे दरअसल भाजपा ही है। यही कारण है कि पंजाब में पहले से किसान आन्दोलन का खुला समर्थन कर रही कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी (आप) भी भाजपा के खिलाफ सक्रिय हो चुकी है। आप नेता राघव चड्ढा पंजाब का दौरा कर चुके हैं, जबकि दिल्ली की सीमाओं पर भी आप नेता किसानों से मिलने के साथ-साथ उनकी मदद करते रहे हैं। दिल्ली सरकार खुले तौर पर आन्दोलन में पानी, वाईफाई और शौचालय जैसी सुविधाएँ दे रही है।

पंजाब में भाजपा के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसकी दशकों पुरानी सहयोगी अकाली दल कृषि कानूनों को लेकर भाजपा के खिलाफ आने को मजबूर हुई है। भाजपा अकेले अपने बूते पंजाब में कुछ नहीं कर सकती। न तो उसके पास मज़बूत नेतृत्व है, न पुराना सहयोगी अकाली दल। ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन कैसा रहेगा? कहना मुश्किल है। पंजाब में, खासकर सिख समुदाय में किसानों को आतंकवादी बताने के अभियान से गहरी नाराज़गी बनी है। भाजपा को इसका नुकसान पंजाब, दिल्ली सहित दूसरे राज्यों में भी भुगतना पड़ सकता है। भाजपा के लिए बड़ी समस्या यह है कि किसान आन्दोलन में पंजाब से सिख समुदाय, जाट समुदाय के अलावा बड़ी संख्या में दूसरे समुदायों के लोग भी उसी शिद्दत से जुट रहे हैं।

यह आश्चर्य की बात है कि उत्तर प्रदेश में बसपा और समाजवादी पार्टी इक्का-दुक्का बयानों से ज़्यादा किसान आन्दोलन के समर्थन में कुछ नहीं कर रहीं; जबकि राज्य में बहुत कमज़ोर जनाधार वाली कांग्रेस कहीं ज़्यादा सक्रिय है। चौधरी अजीत सिंह की रालोद, जो हाल के वर्षों में कमज़ोर हुई है; भी इस आन्दोलन के बहाने खुद को पुनर्जीवित करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। पार्टी नेता जयंत चौधरी खुद किसान महापंचायतें कर रहे हैं, जिनमें खासी भीड़ दिख रही है। फरवरी के पहले सप्ताह तक जयंत चौधरी करीब 10 महापंचायत कर चुके थे।

इधर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी पिछले कई महीनों से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को खड़ा करने की कोशिशों में जुटी हुई हैं। अब किसान आन्दोलन ने उन्हें नया मंच दे दिया है। वाक्पटु प्रियंका गाँधी की छवि उत्तर प्रदेश के गाँवों में वैसे भी इंदिरा गाँधी से जोड़ी जाती है। ऐसे में प्रियंका ने मैदान में उतरकर मोर्चा सँभाल लिया है। उत्तर प्रदेश में बहुत कमज़ोर संगठन होने के बावजूद कांग्रेस को वहाँडार्क हार्स की संज्ञा दी जाती है। सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अचानक 23 सीटें जीतकर सभी को हैरान कर दिया था। कांग्रेस की रणनीति पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसानों का अगुआ बनने की है, जबकि उसे भरोसा है कि भविष्य में मुस्लिम फिर से पूरी ताकत के साथ उससे जुड़ेंगे। इसके अलावा ब्राह्मण और कुछ अन्य समुदाय साधने की भी उसकी कोशिश शुरू हो चुकी है। वैसे प्रियंका की रणनीति सभी वर्गों को साथ जोडऩे की है, ताकि पार्टी को पुरानी मज़बूत स्थिति में लाया जा सके।

सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुरादाबाद, रामपुर, अलीगढ़, गाज़ियाबाद यहाँ तक कि मथुरा में भी कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। सन् 2013 के मुज़फ्फरनगर दंगे के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश का समीकरण बिगड़ गया और वहाँ भाजपा ने अपना आधार मज़बूत किया। लेकिन यह भी एक बड़ा सच है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का कोई बड़ा नेता पार्टी छोड़कर नहीं गया है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी करीब 35 फीसदी है। सन् 2009 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों ने कांग्रेस पर भरोसा जताया था। तीन दर्ज़न विधानसभा सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में हैं। यही नहीं, जाट समुदाय भी दो दर्ज़न सीटों पर जीतने और दो दर्ज़न सीटों पर दूसरे को जिताने की ताकत रखते हैं। सीएए आन्दोलन के दौरान भी प्रियंका गाँधी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कमोवेश सभी ज़िलों में दौरा किया था। जिस तरह 10 फरवरी को सहारनपुर में इमरान मसूद के अलावा जाट समुदाय के नेता हरेंद्र मलिक और पंकज मलिक सक्रिय दिखे, उससे कांग्रेस की रणनीति को समझा जा सकता है। साफ दिख रहा है कि कांग्रेस किसान जातियों खासकर हिन्दू-मुस्लिम जाटों और और गुर्जरों में मज़बूत पकड़ की रणनीति पर काम कर रही है।

फरवरी में प्रियंका गाँधी ने दिल्ली की ट्रैक्टर परेड के दौरान जान गँवाने वाले किसान नवरीत सिंह के परिजनों से उनके घर रामपुर जाकर मुलाकात की थी। सहारनपुर में वह किसान महापंचायत शुरू कर चुकी हैं। इसमें कोई दो-राय नहीं कि किसान आन्दोलन से खासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँवों में भाजपा के प्रति नाराज़गी उभरी है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस सहारनपुर के इलाके में ही सबसे मज़बूत है, जहाँ उसके पाँच में से दो विधायक हैं। सहारनपुर की किसान पंचायत में इमरान मसूद भी प्रियंका की सभा में उपस्थित थे।

सहारनपुर देहात से मसूद अख्तर और बेहट से नरेश सैनी कांग्रेस के विधायक हैं। कांग्रेस यहाँ ज़मीन रखती है, यह इस बात से ज़ाहिर होता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सहारनपुर लोकसभा सीट पर उसे दो लाख से ज़्यादा मत मिले थे। शायद यही कारण है कि प्रियंका ने किसान पंचायतों की शुरुआत सहारनपुर से की।

पंजाब और हरियाणा बॉर्डर की तर्ज पर राजस्थान के शाहजहाँपुर बॉर्डर पर भी फरवरी के दूसरे पखवाड़े किसान आन्दोलन रफ्तार पकड़ सकता है। कांग्रेस नेता राहुल गाँधी सीमा सभा कर रहे हैं। राजस्थान कांग्रेस प्रभारी अजय माकन का कहना है कि किसानों के हितों की लड़ाई लडऩे, किसानों की आवाज़ बुलंद कर केंद्र सरकार के तीनों काले कानूनों को वापस लेने के संघर्ष के लिए राहुल गाँधी राजस्थान आये हैं। नये कृषि कानूनों के खिलाफ राजस्थान में कई स्थानों पर किसानों के चक्काजाम को सत्तारूढ़ कांग्रेस का समर्थन मिल चुका है। पार्टी प्रदेश के अन्य हिस्सों में राहुल गाँधी की किसान सभाएँ करवाने की योजना बना रही है।

तेज़ हो रहा आन्दोलन

किसान आन्दोलन अब देश के अन्य राज्यों में सुलगने लगा है। महाराष्ट्र के किसान जनवरी में मुम्बई में जुटकर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बोल चुके हैं। राजस्थान में भी आन्दोलन सुलगता दिख रहा है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि किसी भी गैर-भाजपा राज्य में किसानों के खिलाफ सरकार कुछ नहीं करेगी। ऐसे में आने वाले दिनों में किसान आन्दोलन देश के दूसरे राज्यों में भी विकराल रूप ले सकता है। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत घोषणा कर चुके हैं कि गाँधी जयती तक किसान कहीं नहीं जाने वाले। किसान आन्दोलन का वर्तमान स्वरूप कहीं ज़्यादा गहरा दिखने लगा है और भाजपा के लिए चिन्ता की बात यह है कि यह राजनीतिक मार भी करने लगा है। गाँवों में आन्दोलन के फैलने से सबसे बड़ा नुकसान भाजपा का ही होगा। इसलिए वह अपनी तरफ से उत्तर प्रदेश में अभी से सक्रिय हो गयी है और सम्मेलनों और गोष्ठियों के ज़रिये लोगों को केंद्रीय बजट की खूबियाँ समझाने का अभियान शुरू कर चुकी है।

छोटे और सीमात किसानों के आन्दोलन से जुडऩे से भाजपा में चिन्ता फैली है। भाजपा किसान आन्दोलन से कितनी चिन्तित है, यह इस बात से ज़ाहिर हो जाता है कि संसद में अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रणनीति के तहत किसानों का वर्गीकरण करने की कोशिश की। उन्होंने जब यह कहा कि करीब 12 करोड़ छोटे किसान उनकी सरकार के कानूनों से सबसे ज़्यादा लाभान्वित होंगे।

इसमें कोई शक नहीं कि सरकार, खासकर प्रधानमंत्री मोदी आने वाले विरोध-प्रदर्शनों की धार को समझ रहे हैं। इसलिए वह किसानों पर फोकस कर रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि बहुत कुछ सरकार के हाथ से निकल चुका है। किसान जानते हैं कि मोदी किसान कानून वापस नहीं लेंगे, न न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी जामा पहनाएँगे; लिहाज़ा राहुल और प्रियंका गाँधी से लेकर जयंत चौधरी तक मोदी और उनकी सरकार को पूँजीपतियों की सरकार बता रहे हैं।

राहुल गाँधी के बाद अब प्रियंका गाँधी भी किसानों को ज़ोर देकर कह रही हैं कि मोदी सरकार की सहानुभूति उनसे नहीं, गिने-चुने मित्र पूँजीपतियों से हैं। किसान नेता उत्तर प्रदेश और हरियाणा में किसान पंचायतों में उमड़ती भीड़ से उत्साहित हैं और उन्होंने 10 फरवरी की बैठक में अगले कार्यक्रमों का ऐलान कर दिया। आन्दोलन की नयी रणनीति तैयार करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक हुई, जिसमें अगले आठ दिन के लिए आन्दोलन की रूपरेखा तैयार की गयी। इस पर अमल करते हुए किसानों ने 12 फरवरी से राजस्थान के सभी टोल प्लाजा को टोल मुक्त करवाना शुरू कर दिया, जबकि 14 फरवरी को पुलवामा हमले में शहीद जवानों के बलिदान को याद करते हुए देश भर में कैंडल मार्च, मशाल जुलूस और अन्य कार्यक्रम आयोजित किये।

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉ. दर्शन पाल के मुताबिक, 18 फरवरी को दोपहर 12 से शाम 4 बजे तक देश भर में रेल रोको कार्यक्रम किया जाएगा। वहीं किसान 16 फरवरी को किसान मसीहा सर छोटूराम की जयंती के दिन देश भर में एकजुटता दिखा चुके हैं और याद रहे तीन कृषि कानूनों को रद्द किये जाने की माँग को लेकर 6 फरवरी को भी किसानों ने तीन घंटे के लिए सड़कों पर ट्रैफिक रोका था। किसान आन्दोलन पूरी तरह शान्तिपूर्ण रहा है, जिससे सरकार के पास उसके खिलाफ बोलने को कुछ नहीं है।

लाल िकले की 26 जनवरी की घटना में अपने शामिल होने से किसान नेता पहले ही इन्कार कर चुके हैं। पुलिस ने इस घटना के आरोपी दीप सिद्धू और इकबाल सिंह को गिरफ्तार किया है। अभी तक की जाँच में ऐसी कोई तथ्य नहीं मिला है, जिससे यह ज़ाहिर हो गया कि आम किसान नेता लाल िकले या हिंसा वाले मामले में किसी तरह शामिल नहीं थे। ‘तहलका’ से बातचीत में किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि यह सरकार के ही लोग थे, ताकि हमारे आन्दोलन को बदनाम किया जा सके। हम तो पहले ही माँग कर चुके हैं कि जो भी इस मामले में शामिल है, उसके खिलाफ सरकार सख्त कार्रवाई करे।

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत अपने आन्दोलन में राजनीतिक दखल इन्कार करते हैं। उन्होंने कहा कि आन्दोलनकारी किसान केंद्र में सत्ता परिवर्तन नहीं, बल्कि अपनी समस्याओं का समाधान चाहते हैं। किसान नेता आन्दोलन के प्रसार के लिए देश के विभिन्न हिस्सों का दौरा करेंगे। देश भर में बड़ी बैठकों का आयोजन कर और 40 लाख ट्रैक्टरों को शामिल करके आन्दोलन को और बड़ा किया जाएगा। तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ आन्दोलन तब तक जारी रहेगा, जब तक कि केंद्र सरकार कृषकों के मुद्दों का समाधान नहीं कर देती।

सरकार की कोशिश

सरकार बार-बार दोहरा रही है कि वह किसानों की तरक्की के लिए लगातार काम कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोकसभा में कहा कि संसद और सरकार किसानों का बहुत सम्मान करती है और तीनों कृषि कानून किसी के लिए बाध्यकारी नहीं, बल्कि वैकल्पिक हैं; ऐसे में विरोध का कोई कारण नहीं है। उन्होंने किसानों से बातचीत के लिए आने का फिर आह्वान करते हुए साफ किया कि जो पुरानी कृषि विपणन प्रणाली को जारी रखना चाहते हैं, वे ऐसा कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरकार ने तीन कृषि कानूनों को लेकर हर उपबन्ध पर चर्चा की पेशकश की और अगर इसमें कोई कमी है, तब बदलाव करने को भी तैयार है। उन्होंने कहा कि पुरानी मंडियों पर भी कोई पाबंदी नहीं है। इतना ही नहीं इस बजट में इन मंडियों को आधुनिक बनाने के लिए और बजट की व्यवस्था की गयी है।

हमारे कानून लागू होने के बाद न देश में कोई मंडी बन्द हुई, न एमएसपी बन्द हुआ; यह सचाई है। इतना ही नहीं ये कानून बनने के बाद एमएसपी पर खरीद भी बढ़ी है। किसानों से मेरी अपील है कि आइए, बातचीत की टेबल पर बैठकर चर्चा करें और समाधान निकालें।

नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

विदेशों में आन्दोलन की धमक

मोदी सरकार के लिए सबसे दिक्कत वाली स्थिति किसान आन्दोलन को विदेशों में बड़े पैमाने पर समर्थन मिलने से पैदा हुई है। किसानों के इस आन्दोलन की चर्चा विदेशों में बहुत हो रही है। वहाँ के मीडिया में आन्दोलन से जुडी खबरें सुर्खियाँ पा रही हैं। अमेरिका में तो फरवरी के पहले हफ्ते एक फुटबॉल प्रतियोगिता के दौरान किसान आन्दोलन से जुड़ा एक वीडियो चलाये जाने की जानकारी भी सामने आयी। अमेरिका के कैलिफोर्निया में एक फुटबॉल प्रतियोगिता सुपर बाउल के दौरान भारत में जारी किसान आन्दोलन पर आधारित 40 सेकेंड का वीडियो चलाया गया। इस प्रतियोगिता को अमेरिका में करोड़ों लोग देखते हैं। यह वीडियो मानवाधिकार के लिए पहचाने जाने वाले मार्टिन लूथर किंग के बयान के साथ शुरू हुआ। यही नहीं, इस वीडियो में फ्रेस्नो शहर के महापौर जेरी डेयर यह कहते दिखे कि भारत के हमारे भाई-बहनों! हम आपको बताना चाहते हैं कि हम आपके साथ खड़े हैं। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर इस वीडियो को साझा किया। उधर कनाडा के बाद अब ब्रिटिश संसद में किसान आन्दोलन की चर्चा होने की सम्भावनाएँ जतायी जा रही हैं। पंजाब के एनआरआई को-ऑर्डिनेटर ने भी किसानों का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा मानवाधिकारों से जुड़ा है। ब्रिटिश संसद की वेबसाइट पर बने एक प्लेटफार्म पर एक लाख से अधिक स्थानीय लोगों ने किसान आन्दोलन को लेकर हस्ताक्षर किये हैं। इसके बाद किसान आन्दोलन का मुद्दा ब्रिटिश संसद में उठाये जाने की सम्भावनाएँ बढ़ गयी है। आन्दोलन में अब तक 210 से ज़्यादा किसानों की मौत को भी विदेशी मीडिया में बहुत जगह मिल रही है। निश्चित ही इससे मोदी सरकार की छवि को बट्टा लग रहा है। अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा में राजनेता और सेलिब्रिटी इस आन्दोलन का समर्थन कर रहे हैं। जानी मानी स्वीडिश जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने ट्वीट करके किसानों के समर्थन में एकजुटता दिखायी। थनबर्ग ने लिखा- ‘हम भारत में चल रहे किसान आन्दोलन के साथ एकजुटता से खड़े हैं।’ हॉलीवुड की पॉप स्टार रिहाना ने 26 जनवरी को हिंसा के बाद इंटरनेट बन्द करने की खबरों पर ट्वीट किया और कहा कि आप इस पर कुछ बोलोगे नहीं क्या? इसके बाद सोशल मीडिया पर इस पर जबरदस्त चर्चा शुरू हो गयी। भारत की पर्यावरणवादी कार्यकर्ता लिसिप्रिया कंगजू ने भी किसान आन्दोलन को अपना समर्थन जताया। इतना सब कुछ होने के बाद केंद्र सरकार कह रही है कि देश में चल रहे किसान आन्दोलन को किसी भी विदेशी सरकार ने समर्थन नहीं दिया है। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि कनाडा, यूके, यूएस और कुछ यूरोपीय देशों में किसानों के समर्थन और कृषि कानूनों के मुद्दे पर भारतीय मूल के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किये हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत में किसानों से सम्बन्धित मुद्दों पर एक टिप्पणी भी की है; लेकिन किसी देश की सरकार ने किसानों के आन्दोलन को समर्थन नहीं दिया है। विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया कि कनाडा के प्रधानमंत्री की टिप्पणी के बाद हमने कनाडा के अधिकारियों के साथ इस मामले को उठाया है। हमारी ओर से साफ कहा गया कि भारत के आंतरिक मामलों पर ऐसी टिप्पणियाँ अस्वीकार्य हैं। ये भारत-कनाडा द्विपक्षीय सम्बन्धों को नुकसान पहुँचाएँगी। किसान आन्दोलन से जुड़े मुद्दे पर केंद्रीय मं‍त्री रतनताल कटारिया ने कहा है कि देश में कुछ ताकतें ऐसी हैं, जो नहीं चाहतीं कि मामले का हल निकले। उन्होंने कहा कि ये लोग अब इतनी नीचता पर उतर आये हैं कि सरकार को बदनाम करने के लिए विदेशों का सहारा ले रहे हैं। हालाँकि संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के नेता दर्शन पाल ने कहा कि एक तरफ यह गर्व का विषय है कि दुनिया की बड़ी हस्तियाँ किसान आन्दोलन का समर्थन कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत सरकार किसानों का दर्द नहीं समझ रही है और कुछ लोग तो शान्तिपूर्ण किसानों को आतंकवादी बता रहे हैं। जब किसान आन्दोलन तेज़ी पकडऩे लगा और विदेशी हस्तियों ने आन्दोलन का समर्थन करने वाले ट्वीट किये, तो जबाव में भारतीय सेलिब्रिटी, जिनमें खिलाड़ी और कलाकार शामिल हैं; आन्दोलन के खिलाफ बयान करने लगे। इस पर बहुत सवाल उठे और आरोप लगाया गया कि इसके पीछे सरकार का हाथ है। महाराष्ट्र सरकार तो बाकायदा इसकी जाँच की घोषणा कर चुकी है। सवाल तब उठा, जब सेलेब्रिटीज के ट्वीट्स की भाषा मेल खाती दिखी; मानों इन्हें एक ही जगह बनाया गया हो। विदेश मंत्रालय ने जब विदेशी हस्तियों के कमेंट्स पर बयान जारी किया, तो कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने इसे विदेश मंत्रालय की बचकाना हरकत बताया। भाजपा से जुड़े रहे नेता सुधींद्र कुलकर्णी ने ट्वीट में लिखा- ‘क्या कुछ नामी गैर-सरकारी हस्तियों की आलोचना मात्र से भारत की सम्प्रभुता खतरे में पड़ जाती है? क्या भारतीय दूसरे देशों के अंदरूनी मामलों में कभी नहीं बोलते?

किसान आन्दोलन के दौरान हमारे किसान साथियों की शहादत हुई है; यह सरकार की ज़िम्मेदारी है। जब इतिहास लिखा जाएगा, तो यह भी लिखा जाएगा कि यह किस राजा के कार्यकाल के दौरान हुआ। आधे दाम पर फसल बिक रही है। ग‍न्ने का 12 हज़ार करोड़ रुपये अभी बकाया है। हम आन्दोलन को खत्म नहीं कर रहे, कृषि कानूनों को लेकर हम सड़क पर बैठे हुए हैं। आन्दोलन को खत्म करना सरकार की ज़िम्‍मेदारी है। केंद्र सरकार को किसानों के मुद्दे पर बात करनी चाहिए और मसला हल करना चाहिए। यदि ऐसा ही चलता रहा, तो हम महीनों आन्दोलन पर बैठे रहेंगे। आन्दोलन हर दिन तेज़ होता जा रहा है। उत्तर प्रदेश में किसान महापंचायतों में बड़ा समर्थन मिलने के बाद किसानों ने मध्य प्रदेश के डबरा और फूलबाग, राजस्थान के मेहंदीपुर और हरियाणा के जींद में महापंचायत आयोजित की हैं। आने वाले दिनों में बड़ी संख्या में किसान दिल्ली आएँगे। शाहजहाँपुर बॉर्डर पर प्रतिदिन राजस्थान और पंजाब से किसान आ रहे हैं। पलवल बॉर्डर पर किसानों ने पुन: धरना शुरू कर दिया है और मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से कई किसान आने वाले दिनों में आन्दोलन में शामिल होंगे।राकेश टिकैत, भारतीय किसान यूनियन

क्रॉनीजीवी (मुकुटजीवी) है, जो देश बेच रहा है वो। नरेंद्र मोदी एक-एक चरण के हिसाब से किसानों को खत्म करने में लगे हैं। ये (मोदी) सिर्फ तीन कानूनों पर नहीं रुकेंगे, बल्कि अन्त में किसानों को खत्म करना चाहते हैं।

राहुल गाँधी, कांग्रेस नेता

(प्रधानमंत्री की आन्दोलनजीवी टिप्पणी पर)