सियासत का ‘सरकारी रंग’

यह आधा सच और आधा झूठ है।Ó जयपुर में शनिवार 7 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जनसभा में एक नया सियासी इतिहास रचा गया और लोगों ने सियासत के नए ‘सरकारी रंगÓ को अस्तित्व में आते देखा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की तारीफों के पुल बांधते नजर आए तो वसुंधरा राजे प्रसन्नता से फूलती नजर आई। लेकिन मोदी ने राजे की तारीफों में इजाफा करते हुए जब अंदेशों की स्लेट को साफ किया कि, ‘भाजपा अगला चुनाव वसुंधरा राजे के चेहरे के साथ ही लड़ेगी तो उनकी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही, लेकिन यह आधा सच था। मोदी ज्यों-ज्यों बोलते गए चुनावी सुगंध फैलती चली गई लेकिन चतुराई भरे नए ‘सरकारी रंगÓ के साथ। इसके साथ ही बाकी आधा सच नई उत्कंठा के साथ तब समझ में आया, जब मोदी ने एक बार भी वसुंधरा सरकार को ‘भाजपाÓ से जोड़कर संबोधित नहीं किया। क्या यह आधा झूठ था कि, ‘सरकारी रैली में मोदी ने चुनाव का आगाज कर दिया और जनता की तो छोडि़ए मंच पर मौजूद राज्यपाल कल्याण सिंह भी देखते रह गए।

कांग्रेस पर हमलावर होते हुए मोदी ने एक नया चुनावी जुमला फेंक दिया कि, ‘कांग्रेस के कई नेता अब ‘बेलÓ(जमानत) पर है, लिहाजा यह पार्टी बेलगाड़ी की तरह है। लेकिन कांग्रेस ने इस ‘तंजÓ को हाथों हाथ लिया और उसी शाम मोदी पर पलटवार करते हुए कहा, ‘मोदी तैयार रहें, जनता आगामी चुनावों में जब उन्हें सत्ता से बाहर खदेड़ेगी तो भाजपा के बहुत से नेता ‘बेलÓ पर नहीं ‘जेलÓ में होंगे। वरिष्ठ पत्रकार रमण स्वामी का कहना है कि, ‘दरअसल अगले लोकसभा चुनावों में किसी ना किसी थीम की जबरदस्त जरूरत थी, इस लिहाज से राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनावों में भी यह जुमला दोहराया जा सकता है। इस स्थिति में ‘बेलÓ और ‘जेलÓ मुख्य चुनावी नारों का गौरव पाने के प्रबल दावेदार बन सकते हैं। स्वामी कहते हैं ‘बेल और जेल की ध्वनि और खनक, पहले के नारों जैसे बोफोर्स, गरीबी हटाओ, शाइनिंग इंडिया की अपेक्षा ज्य़ादा अच्छी है। हाल ही में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बने मदनलाल सैनी का राजनीतिक मर्तबा बढ़ाने के लिए मोदी ने मंच पर पीछे की कतार में बैठे सैनी के अपने करीब बिठाया, और उनके साथ पुरानी नजदीकियों का भी जिक्र किया। प्रसन्नता के आवेग में भले ही वसुंधरा राजे इस परिदृश्य का गहन अर्थ नहीं समझ पाई, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि, ‘जब मोदी ने प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए नकार दिए गए मंच पर बैठे गजेन्द्र सिंह शेखावत का खास तौर से जिक्र किया, तब मंच पर पांच केन्द्रीय मंत्री और भी बैठे थे लेकिन उन्हें काबिले जिक्र नहीं समझा गया। विश्लेषकों का कहना है कि, ‘मंच पर केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री राघवेन्द्र सिह राठौर भी बैठे थे, लेकिन उनकी चर्चा को नकार कर मोदी ने इन कयासों पर भी फुलस्टाप लगा दिया कि, ‘राठौर आज नही ंतो कल राजस्थान में भाजपा के नए चेहरे हो सकते हैं।

मोदी ने प्रदेश के किसानों की नाराजी के मुद्दे को भांपते हुए खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफे का जिक्र करते हुए फसल खरीद के भव्य आंकड़े गिनाए। वरिष्ठ पत्रकार कल्पेश याग्निक कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने डेढ़ गुना समर्थन मूल्य घोषित कर दिया तो नीति नीयत और निर्णय के रूप में बहुत अच्छा और आवश्यक कार्य किया, लेकिन हकीकत समझे ंतो वास्तविकता, व्यवस्था और व्यवहारिक रूप से बहुत कम किसानों को लाभ मिल सकेगा। क्योंकि स्वयं कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट कह रही है कि आधे से ज्यादा किसान तो ‘समर्थन मूल्यÓ के बारे में जानते तक नहीं? स्पष्ट है कि, जब जानेंगे ही नहीं तो मूल्य पाएंगे कैसे? याग्निक कहते है कि, ‘अंधेर, अनर्थ और आत्महत्या से घिरे किसान परिवारों को दोगुनी आमदनी का जो वचन दिया था, अभी तो उसका ही पालन होता कहीं दिखाई नहीं दे रहा। उनका कहना है, इस बार भी धान के समर्थन मूल्य को लें तो यह बढ़कर 1750 रुपए हुआ है जबकि स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों के मुताबिक यह प्रति क्विंटल 2340 रुपए होना चाहिए था तो कैसे खुश होगा किसान?

प्रधानमंत्री मोदी की राजस्थान यात्रा को देखते हुए उम्मीद की गई थी कि, राजस्थान में चल रही जल परियोजनाओं को गति देने के लिए विशेष पैकेज की घोषणा कर सकते हैं, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ जबकि बीते साल केन्द्रीय जल आयोग द्वारा स्वीकृत की गई इस योजना के पूरा हो जाने पर झालावाड़, बारां, कोटा, जयपुर तथा सवाई माधोपुर समेत तेरह सूखाग्रस्त जिलों में सिंचाई तथा पीने के पानी की आपूर्ति हो सकेगी।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट का कहना है, ना कोई सौगात और ना विकास बस मुख्यमंत्री की पीठ थपथपाकर लौट गए प्रधानमंत्री। पायलट कहते हैं, ‘जब लाभार्थियों से प्रधानमंत्री की बात ही नहीं करवाई गई तो ‘प्रधानमंत्री लाभार्थी-‘जनसंवाद सभाÓ का क्या मतलब हुआ? लेकिन चुनावी इम्तहान के लिए तो उन्हें पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से ही रूबरू होना पड़ेगा। फिलहाल तो शाह ने वसुंधरा राजे से अपनी चुनावी तैयारियों की रिपोर्ट तलब कर ली है।

सूत्रों का कहना है कि उसके बाद ही भाजपा अध्यक्ष राजस्थान समेत चुनावी राज्यों का दौरा करेंगे। सूत्रों का कहना है कि शाह ने चुनावी राज्यों में कांग्रेस को घेरने के लिए क्या क्या मुद्दे हो सकते हैं? इसकी भी रिपोर्ट भेजने के कहा है। इसके साथ ही राज्य सरकार की क्या उपलब्धियां रही, जनता के हितार्थ कौन कौन से फैसले लिए गए है, इसकी भी विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है।

उधर वसुंधरा राजे ने अपने विधायकों के काम-काज का फीड बैक लेने के लिए प्रदेश के दौ सौ विधानसभा क्षेत्रों में विस्तारकों की तैनाती कर दी है। उनसे कहा गया है कि वे निडर होकर उनके काम-काज का बेबाकी से खुलासा करें। इसलिए शाह की जवाब तलबी का असर हो रहा है, इस बात में दम तो है।