साहित्य के नोबल पुरस्कार की जूरी में होंगे अब और सदस्य

स्वीडिश अकादमी जो साहित्य, अर्थशास्त्र, चिकित्सा, भू-भौतिकी, रसायन आदि क्षेत्रों में 1901 से नियमित सालाना पुरस्कार देती आ रही है। पहली बार इस साल साहित्य के पुरस्कार की घोषणा नहीं की।

दरअसल दुनिया भर में नोबल पुरस्कारों को देने के लिए मशहूर इस अकादमी में नवंबर 2017 में साहित्य के पुरस्कारों पर एक विवाद छिड़ा। यह विवाद का मसला था अकादमी सदस्यों के बीच। एक ऐसे फ्रांसीसी व्यक्ति से किस तरह के संबंध हों जिस पर बलात्कार का आरोप है। अब तो खैर सजा भी हो गई। अपने 70 साल के इतिहास में पहली बार अकादमी ने इस साल का साहित्य पुरस्कार न केवल एक साल के लिए टाल दिया बल्कि अपनी समस्याओं के निदान के लिए भी समय लिया।

स्वीडिश अकादमी ने अपने एक संक्षिप्त बयान में जानकारी दी है कि नोबल पुरस्कार समिति में पांच सदस्य ही होते थे जो मिल कर किसी एक को नामित करते थे। अब 2019 और 2020 में पांच बाहरी निष्पक्ष विशेषज्ञ भी इस समिति की चयन प्रक्रिया में शामिल होंगे। इन विशेषज्ञों की उम्र में 27 से 75 साल होगी। दो साल के लिए यह अस्थाई नियुक्ति होगी।

अमेरिका और यूरोप में मी टू आंदोलन ने नवंबर 2017 में ज़ोर पकड़ा था। तब ज्यां-बलाद अरनॉल्ट के खिलाफ 18 महिलाओं ने आरोप लगाया था कि उसने इनके साथ बलात्कार और छेड़छाड़ की थी। उसकी पत्नी तब अकादमी की सदस्य थी।

इस व्यक्ति ने 1989 में एक साहित्यिक बैठक ‘कोरम क्लबÓ की शुरूआत की थी। इसमें यूरोप-अमेरिका के बेहद सभ्रांत के साहत्य प्रेमी इकट्ठे होते। इसमें युवा लेखक और लेखिकाएं भी आते। रचना-पाठ होते। समीक्षा और गपशप होती। इस क्लब में प्रकाशित नामी गिरामी लेखक और पत्रकार भी जाते। अपने-अपने स्तर पर सभी को अपना संपर्क बनाने और अपने को पेश करने के सलीके की जानकारी भी होती। घंटों चलने वाली इस बैठक से साहित्य-समाज संस्कृति का एक अनोखा माहौल बनता। इसमें जो मुद्दे उभरते उन पर बाहर भी चर्चा होती। अखबारों में चर्चा रहती। एक माहौल बनता। इस बैठकी का खर्च बरसों स्वीडिश अकादमी उठाती।

बैठकी चलाने वाले सज्जन के चाल-चलन, व्यवहार और समक्ष की पूरी जानकारी अकादमी को थी लेकिन यह सिलसिला चलता रहा। अकादमी का नाम, और असर इतना था कि कभी बैठकी के उन पहलुओं पर ज़ोरदार तरीके से दूसरे साहित्यिक हलकों में चर्चा भी नहीं होती।

नोबल फाउंडेशन के अध्यक्ष जो नोबल पुरस्कारों के आर्थिक पहलुओं और प्रशासन देखते हैं उन्होंने फिर साहित्य पर नोबल पुरस्कार टाला और अकादमी पर दबाव बनाया बाहर के कि निष्पक्ष लोगों को साहित्य पर नोबल पुरस्कार की जूरी में शामिल किया जाए।