‘सामाजिक न्याय भूलकर लालू यादव परिवार का न्याय करने में लग गए हैं’

ramराजद को छोड़कर भाजपा में जाने का फैसला अचानक ही लिया या लंबे समय से इस दिशा में विचार चल रहा था?
राजद में लगातार कार्यकर्ताओं और दूसरे नेताओं की उपेक्षा से मन काफी आहत था, लेकिन यह सब बहुत पहले से विचार कर नहीं किया है. एक हद होती है, उसके बाद हमारे सामने क्या उपाय था? सामाजिक न्याय करते-करते लालू प्रसाद सिर्फ अपने परिवार के पक्ष में न्याय करने तक सिमट गए हैं. पार्टी से सालों से जुड़े हुए कार्यकर्ता लगातार उपेक्षित महसूस कर रहे थे.

यह पहली बार तो नहीं हुआ कि लालू प्रसाद परिवार मोह से इस कदर ग्रस्त हुए हों. कई अवसरों पर उन्होंने परिवार के साथ न्याय करने का काम किया है. तो क्या यह माना जाए कि उन्होंने आपको टिकट नहीं दिया, सिर्फ इसी वजह से आपने वर्षों पुराना रिश्ता तोड़ दिया?
मैंने कहा न कि हर चीज की हद होती है. जब टिकट बंटवारे की बारी आई तो हर दिन कहते थे कि फलां को टिकट देंगे, फलां को नहीं देंगे. उस वक्त मैंने भी कुछ नहीं बोला कि क्योंकि उनका काम था और हमें उम्मीद थी कि वे ईमानदारी से करेंगे. कार्यकर्ता, नेता सालों-साल तक पार्टी के लिए काम करते रहते हैं और जब टिकट देने की बारी आई तो अपने परिवारवालों के साथ अपने पीए तक को टिकट देने पर विचार करने लगे.

आप तो राजद के महासचिव थे, लालू प्रसाद के बाद दूसरे सबसे महत्वपूर्ण नेता. क्या आपको पहले खबर नहीं थी कि आपकी जगह अपनी बिटिया मीसा भारती को टिकट देने का निर्णय ले चुके हैं?
राजद में किसी को कुछ भी बाहर पता नहीं चलता. सब फैसले घर में बैठकर लिए जाते हैं, परिवार के बीच सलाह-मशविरा करके. तो हमें कैसे पता चलता पहले.

आज आप लालू प्रसाद के खिलाफ जितनी आग उगल रहे हैं और पार्टी की बुराई कर रहे हैं, इतने वर्षों से पार्टी में रहते क्या कभी लालू प्रसाद को समझाने की कोशिश की आपने या कार्यकर्ताओं की ओर से कोई शिकायत रखी आपने?
कुछ माह पहले मैंने उन्हें समझाया था और उनसे इन विषयों पर बात भी की थी.

राजद छोड़ने का फैसला करने के बाद आप भाजपा और जदयू में से किसी एक को चुनने को लेकर बेहद दुविधा में थे. ऐसा लग रहा था कि भाजपा में जाने से हिचक हो रही थी?
वास्तव में बहुत दुविधा में था और परेशान भी. यह फैसला करना इतना आसान नहीं था. राजनीतिक दुविधा थी, और भी कई तरह के सवाल थे. लेकिन सहयोगियों और कार्यकर्ताओं से लगातार विचार-विमर्श करने के बाद भाजपा में जाने का निर्णय लिया.

तो भाजपा में आपको ऐसी क्या खासियत लगी कि आपने इसमें शामिल होने का फैसला किया?
कांग्रेस को लगातार देखा जा रहा है. भ्रष्टाचार-महंगाई चरम पर है. देश के अहम सवालों के प्रति कांग्रेस में कोई चिंता ही नहीं है. देश में आज भाजपा के प्रति एक लहर है और देश को आगे ले जाने वाले नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी को देखा जा रहा है. ऐसी कई बातों को ध्यान में रखकर मैंने फैसला किया.

राजद में रहते हुए आप तो भाजपा और नरेंद्र मोदी को सबसे ज्यादा निशाने पर लेने वाले नेता रहे हैं. अब क्या कहकर नरेंद्र मोदी के पक्ष में वोट मांगेंगे?    
कार्यकर्ताओं के सामने एक ही नारा लगेगा- ‘छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे, मिलकर नई कहानी’. कोर्ट ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दी है. आखिर ऐसे ही तो कोर्ट ने क्लीन चिट नहीं दी होगी. अब नया समय है, देश के सामने नई चुनौतियां हैं. इन सबसे निपटने के लिए नरेंद्र मोदी जैसे नेता की जरूरत आज देश को है.

तो क्या मोदी अब आपके लिए सांप्रदायिक नहीं रहे?
जो लोग नरेंद्र मोदी को जुबानी जमा खर्च कर सांप्रदायिक कहते रहते हैं, उन्हें यह भी देखना चाहिए कि मोदी जी के शासनकाल में मुसलमानों व अल्पसंख्यकों का कितना हित और विकास हुआ है. अगर वे सांप्रदायिक होते तो अल्पसंख्यकों का भला नहीं सोचते.

तो आगामी चुनाव में बिहार का परिदृश्य कैसा होगा? आपकी नई पार्टी का क्या होगा और पुरानी पार्टी का?
हमारी पुरानी पार्टी यानी लालू जी की पार्टी की स्थिति और बुरी होगी. उनकी सीटें और कम होंगी. यह वे खुद भी जानते हैं. भाजपा की लहर है बिहार में यह सिर्फ मेरे कहने से नहीं मानिए, खुद जाकर महसूस कीजिए.