साक्षात्कार भाग-1 — नेशनल चैनल का बन्द होना दुर्भाग्यपूर्ण

आकाशवाणी के पूर्व उप महानिदेशक लक्ष्मीशंकर वाजपेयी देश के एक प्रतिष्ठित शायर, साहित्यकार हैं। कितने ही बड़े साहित्यकार, कलाकार, वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ उनके अनुभवों और कार्यों के साक्षी हैं। लक्ष्मीशंकर वाजपेयी का परिचय इतना ही काफी है कि वे एक सफल अधिकारी रहे और प्रसिद्ध कलमकार हैं।

आप आकाशवाणी में उप महा निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए। वर्षों आकाशवाणी में सेवाएँ दी हैं। पहले लोगों की रेडियो में जितनी दिलचस्पी थी, अब उतनी नहीं रह गयी है। ऐसा लगता है कि रेडियो पतन की ओर जा रहा है। क्या कारण हैं इसके?

देखो ऐसा है न! यह मामला थोड़ा पेंचीदा है। अब का तो मालूम नहीं, लेकिन मैं जब सेवानिवृत्त हुआ था- 2015 में, तो उस समय एफएम गोल्ड नंबर-1 पर था।  और लगातार 16 साल तक नंबर-1 पर रहा। कोई एकाध मामले को छोड़ दें तो। जैसे एक बार क्या हुआ हमारा ट्रांसमीटर जल गया, तो तीन महीने लगे और एफएम गोल्ड दूसरी पोजीशन पर पहुँच गया था। यह तो अलग बात है कि कभी कोई कमी-बेसी आती रहती है। असल में क्या है कि पहले ज़माने में लोग पूरी तरह से रेडियो से जुड़े हुए थे। क्योंकि और संसाधन नहीं थे, वो दौर चला गया।

पहले हवामहल चलता था, जिसके करोड़ों श्रोता थे। तो वह दौर तो चला गया अब देखिए; अभी का तो मुझे पता नहीं, लेकिन 2015 तक तो मुझे मालूम है, जब मैं वहाँ सेवा में था। रेडियो को करीब 50 करोड़ लोग सुनते थे। बल्कि अब तो मोबाइल आ गया; तो लोग उसके ज़रिये रेडियो सुनते हैं। कई एप आ गये हैं। मैं भी मोबाइल पर रेडियो सुनता हूँ। तो अगर हम सारे चैनलों को मिला लें, श्रोताओं की जनसंख्या ज़्यादा ही निकलेगी शायद। इसके कोई ठोस आँकड़े तो नहीं हैं मेरे पास; लेकिन अब कोई न कोई साधन तो है मनोरंजन का। अब क्या है, वह मुस्तकबिल तौर पर तो बैठकर कोई रेडियो कभी सुनता नहीं है; यूँ ही चलते-फिरते गाडिय़ों में लोग सुनते हैं; मोबाइल पर सुनते हैं। तो कहने का मतलब यह है कि श्रोता तो हैं, लेकिन अब वह फोकस नहीं है। एक ज़माना था कि मोनोपोली वैसी थी, इतने संसाधन भी नहीं थे; टेक्नोलॉजी इतनी ज़्यादा विकसित नहीं थी; क्योंकि आकाशवाणी ने भी अपने आपको समय के हिसाब से परिवर्तित किया है। बहुत सारे प्लेटफार्म पर, डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ग्लोबल तरीके से आकाशवाणी रेडियो प्रसारण कर रहा है। विदेशों में रहने वाले भारतवंशी लोग भी रेडियो सुन रहे होंगे। तो उसके कोई आँकड़े तो नहीं हैं हमारे पास। बाकी निर्भर करता है कि कौन-सा चैनल नंबर-1 पर है? कौन-से चैनल का ग्राफ नीचे है? यह तो सब चलता रहता है; बदलता रहता है।

अच्छा विविध भारती को भी लोगों ने काफी पसन्द किया और दूसरा यह जो हमारे मीडियम वेब वाले चैनल होते हैं, जैसे- इंद्रप्रस्थ चैनल; उसके स्रोता  महानगरों में बहुत कम हो गये हैं। अब लोग एफएम सुनते हैं। लेकिन कस्बों और छोटे शहरों में, जैसे- मेरठ में, और हापुड़ में या गाज़ियाबाद जैसे बड़े शहरों में भी हमारे कृषि कार्यक्रम लोग खूब सुनते थे। अब जैसे हम गाँव जाते थे, कार्यक्रम रिकॉर्ड करने के लिए, तो लोग उमड़ पड़ते थे; पूरा गाँव का गाँव टूट पड़ता था। अब इस बात पर भी निर्भर हो गया है कि कौन-सा चैनल बेहतर कर पा रहा है और कौन-सा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है। तो मेरे खयाल से, पक्के तौर पर तो नहीं कहा जा सकता कि रेडियो पतन की ओर जा रहा है; क्योंकि हमारे पास आँकड़े भी नहीं हैं इसके। लेकिन यह है कि रेडियो आज भी चल रहा है और चलता रहेगा।

सुनने में आया है कि इस सरकार ने बाहरी कलाकारों या कहें फ्रीलांसरों के प्रोग्राम कम करने को कहा है। किसी ने बताया कि सरकारी कर्मचारियों से कहा गया है कि खुद अधिक-से-अधिक कार्यक्रम करें। यह भी कहा जा रहा है कि पहले से कम कार्यक्रम कराये जा रहे हैं आकाशवाणी में?

नहीं; देखिए इस समय तो हम कह नहीं सकते कि आकाशवाणी में क्या चल रहा है? क्योंकि 2015 में ही मैं सेवानिवृत्त हो चुका था। यह तो मैं आपके मुँह से सुन रहा हूँ कि वहाँ ऐसा कुछ है। मैं इस बारे में कुछ कह नहीं सकता। मुझे तो जब कभी बुलाते हैं, तो मैं चला जाता हूँ। अभी 26 जनवरी को कमेंट्री के लिए बुलाया था, तो चला गया था। बाकी तो मुझे कुछ ज़्यादा मालूम नहीं है।

शेष अगले अंक में…