साइबर क्राइम से निपटना एक बड़ी चुनौती

सूचना प्रौद्योगिकी के विस्फोट और पैसों के लेनदेन से जुड़े काम हाईटेक होने के साथ ही इन पर साइबर अपराध के खतरे बढ़ गये हैं और यह कई रूपों में है, जिसका समाज पर व्यापक प्रभाव है। साइबर अपराध से निपटना और कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ ही पुलिस के लिए यह बड़ी चुनौतियों की तरह है। हालाँकि केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) 30 अगस्त, 2019 को लॉन्च किया। इसमें 30 जनवरी, 2020 तक 33,152 साइबर क्राइम के मामले दर्ज किये जा चुके हैं। साइबर अपराध से जुड़े मामलों की 790 एफआईआर भी दर्ज की गयी हैं। इन शिकायतों को कानून लागू करने वाली एजेंसियाँ निपटारा करती हैं।

देश में बढ़ते साइबर अपराध से निपटने के लिए एमएचए ने भारतीय साइबर क्राइम समन्वय केंद्र की स्थापना की है, जिसमें सात सेगमेंट हैं। ये हैं- नेशनल साइबर क्राइम थ्रेट एनालिटिक्स यूनिट, नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल, संयुक्त साइबर अपराध जाँच दल के लिए प्लेटफॉर्म, नेशनल साइबर क्राइम फॉरेंसिक लेबोरेटरी इको सिस्टम, नेशनल साइबर क्राइम ट्रेनिंग सेंटर, नेशनल साइबर क्राइम इको सिस्टम मैनेजमेंट यूनिट और नेशनल साइबर क्राइम रिसर्च एंड इनोवेशन सेंटर।

अब तक 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र की तर्ज पर क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित किया है। ये हैं- आंध्र प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दिल्ली, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तराखंड। बाकी राज्य क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित करने की प्रक्रिया में हैं।

इस बीच एमएचए अपने सोशल मीडिया हैंडल और अन्य मल्टीमीडिया प्लेटफॉर्म पर लोगों के बीच जागरूकता अभियान चला रहा है। इससे जुड़ी कोई भी शिकायत राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर दर्ज करायी जा सकती है। इसमें साइबर क्राइम की सुरक्षा से जुड़े उपाय अपनाये जाने के तरीके भी बताये जा रहे हैं। लोगों से साइबर क्राइम और ऑनलाइन धोखाधड़ी के विभिन्न रूपों से बचाव की अपील के साथ कैसे बचें, यह भी बताया जाता है। इसके साथ ही लोगों को यह भी बताया गया है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी या बलात्कार, सामूहिक बलात्कार की सामग्री को ऑनलाइन पोस्ट करना एक दंडनीय अपराध है।

देश भर की पुलिस को साइबर क्राइम को लेकर और इससे जुड़े मामलों के विकल्पों व उनसे निपटने के तरीकों के साथ ही साइबर क्राइम का मुकाबला करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ी धोखाधड़ी के मामलों में ई-वॉलेट का इस्तेमाल खूब होता है, इससे सोशल मीडिया पर फर्ज़ी प्रोफाइल बनाकर चोरी करने वालों पर बारीकी से नज़र रखी जा रही है। साइबर अपराध जाँच के प्रशिक्षण में बुनियादी जानकारी के अलावा उपकरण, तकनीक, नये-नये ईजाद होने वाले तरीके, कानूनी ढाँचे और आईटी अधिनियम-2000 के ज़रिये निपटने के उपाय बताये जाते हैं। इसके अलावा महिलाओं, बच्चों से जुड़े साइबर अपराध में जाँच के तरीके डिजिटल फोरेंसिक, बैंकिंग और वित्तीय धोखाधड़ी आदि को प्रशिक्षण में शामिल किया गया है।

धोखाधड़ी की जाँच में साइबर अपराधी के दिमाग को डीकोड करना, आईपी पते, डीएचसीपी सर्वर, मैक एड्रेस, डोमेन नाम प्रणाली, वेब सर्वर, यूआरएल, प्रॉक्सी सर्वर, अनाम सर्फिंग, ईमेल से ज़रिये खेल और नेटवर्किंग अन्य पहलू हैं। प्रशिक्षण में वित्तीय धोखाधड़ी, सोशल मीडिया धोखाधड़ी, वायरल वीडियो जाँच, एटीएम/कार्ड क्लोनिंग मामले, एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन को डीकोड करने जैसे क्षेत्र शामिल हैं।

जो भी हो, साइबर अपराधों से निपटने में कई तरह की समस्याएँ हैं, जिससे यह चुनौवी ज़्यादा बड़ी हो जाती है। इसमें सोशल मीडिया से लेकर तमाम इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाले विदेश सर्वर के लिए कानून लागू करने में भी पेच फँसता है। हालाँकि केंद्र सरकार समय-समय पर इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के लिए कानून लागू किये जाने को तलब करती है। केंद्र और राज्य सरकारों का अधिकार क्षेत्र इंटरनेट सेवा प्रदाताओं पर नहीं चलता है; क्योंकि उनके सर्वर विदेशों में स्थापित हैं। सरकार केवल अपने परिचालन को बन्द या प्रतिबन्धित कर सकती है। इसके आगे कुछ नहीं किया जा सकता है।