सवालों के घेरे में रेलवे

भारतीय रेलवे के आंतरिक राजस्व का 90 फ़ीसदी से अधिक माल और यात्री सेवाओं के अपने मुख्य व्यवसाय से आता है। हालाँकि रेलवे की माल ढुलाई सेवा जाँच के दायरे में आ गयी है। ‘तहलका’ के इस अंक में हमारी कवर स्टोरी ‘चलती रेल के डिब्बे ग़ायब’ यह उजागर करती है कि कैसे वर्षों से खाद्यान्न और चीनी ले जाने वाली मालगाडिय़ों के डिब्बे बीच सफ़र में ही अचानक ग़ायब हो रहे हैं; जबकि अधिकारी इसका जवाब आज भी खोज रहे हैं। ‘तहलका’ एसआईटी द्वारा कई आरटीआई के माध्यम से जुटायी जानकारी के आधार पर जाँच रिपोर्ट में पाया गया कि भारतीय खाद्य निगम से सम्बन्धित गेहूँ और चावल ले जाने वाली मालगाडिय़ाँ पटरियों पर तेज़ गति से चलती हैं। हालाँकि कई मौक़ों पर पता चलता है कि जब ये मालगाडिय़ाँ अपने गंतव्य तक पहुँचती हैं, तो गेहूँ, चावल और चीनी की खेप सहित कई डिब्बे रहस्यमय तरीक़े से ग़ायब होते हैं।

अपनी तरह के इस पहले ख़ुलासे में पाया गया कि कुछ मामलों में इन मालगाडिय़ों के 42 से 58 डिब्बों में से 40 रास्ते में ही ग़ायब हो गये। ध्यान रहे एक डिब्बे (बोगी) में 60 टन अनाज होता है, जिसकी क़ीमत 15 लाख रुपये से 20 लाख रुपये के बीच होती है। यह संदिग्ध मामला बिना किसी समाधान के एफसीआई और भारतीय रेलवे के बीच लटका है; जबकि कुछ मामले तो तीन दशक से भी अधिक पुराने हैं। यहाँ तक कि डिब्बों के गुम होने के कुछ मामले सीबीआई जाँच के दायरे में भी हैं। दरअसल 14 जून, 2022 को एक आरटीआई दायर की गयी थी और इसके जवाब में दी गयी जानकारी में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एक साल में उत्तर पूर्व क्षेत्र में पहुँची मालगाडिय़ों के 143 डिब्बे ग़ायब पाये गये। इनमें से 132 डिब्बों में चावल, जबकि 11 में गेहूँ की बोरियाँ लदी थीं। हैरानी की बात यह है कि इन खोये हुए डिब्बों का कोई सुराग़ नहीं मिला, जबकि यह लोहे के विशाल रेल डिब्बे थे, जिन्हें आसानी से कहीं ले जाया या छिपाया भी नहीं जा सकता है। सवाल यह है कि चलती ट्रेन से डिब्बे कैसे ग़ायब होते हैं?

‘तहलका’ की कवर स्टोरी की जाँच सन् 1987 से आज तक की अवधि के दौरान मालगाडिय़ों से लापता 500 से अधिक डिब्बों के बारे में वर्षवार विवरण देती है। आरटीआई से डिब्बों के रहस्यमय ढंग से लापता होने की पुष्टि होती है, तो वहीं क़र्ज़ के जाल में फँसने वाले रेलवे के लिए भी यह गहरी चिन्ता का विषय है। भारतीय रेल वित्त निगम (आईआरएफसी) ने 2021-22 के दौरान 38,917 करोड़ रुपये जुटाये। इसके साथ आईआरएफसी की कुल उधारी 3,42,697 करोड़ रुपये हो गयी है, जो सितंबर, 2020 की इसी अवधि की उधारी 2,45,349.32 करोड़ से 40 फ़ीसदी ज़्यादा है।

पिछले सात साल के दौरान रेल मंत्रालय द्वारा जुटाये गये उधार और ऋण लगभग 7,00,000 करोड़ रुपये हैं। इनमें आईआरएफसी द्वारा जुटाये गये 3,42,697 करोड़ रुपये, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) से 1,50,000 करोड़ रुपये का क़र्ज़, हाई स्पीड मुम्बई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन के लिए जापान से 1,00,000 करोड़ रुपये और बाक़ी विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक से। साथ ही रेलवे की परिचालन लागत भी बहुत अधिक है, क्योंकि एक रुपया कमाने के लिए उसे 96.2 पैसे ख़र्च करने पड़ते हैं; जिसका अर्थ है कि जो अधिशेष वह कमाता है, वह उसके रखरखाव और वृद्धि के लिए बहुत कम है। इस सबसे ज़ाहिर होता है कि भारतीय रेलवे में कुछ गम्भीर गड़बड़ी है।