समय से पहले सयाने हो रहे बच्चे

एक समय था, जब बच्चों को सबसे पहले घर में रिश्तों की पहचान बतायी जाती थी; हाथ जोड़कर नमस्ते, प्रणाम और चरण स्पर्श की तहज़ीब सिखायी जाती थी। स्कूल जाते-जाते बच्चा इतना जान जाता था कि बड़ों के सामने किसी भी तरह की गलती नहीं होनी चाहिए और एक डर रहता था उनके अन्दर कि कोई डाँट न दे; कोई मार न दे। अब ज़माना बदल गया है। अब बच्चा एक साल का भी नहीं हो पाता उसे हम हाय-हेलो सिखाते हैं। रिश्तों के नाम पर घर के चन्द लोगों का ही उससे परिचय कराते हैं और पैर छूना, नमस्ते, प्रणाम तो जैसे बच्चों के लिए हम छूत की बीमारी समझते हैं। बच्चा तीन साल का भी नहीं होता, उसे किड्स स्कूल में भेज देते हैं। फिर नर्सरी में, उसके बाद केजी में और जब तक वह पढऩे लायक हो पाता है, उसके कन्धों पर तीन-चार किलो का बस्ता लाद देते हैं। हम बच्चे को माँ को मॉम या मामा सिखाने लगे हैं और पिता को डैड, वह भी बिना यह सोचे कि इन शब्दों का अर्थ क्या है? इससे इतर भी एक दुर्भाग्य की बात यह है कि उसे हम एक साल का होते-होते मोबाइल से भी परिचित कराने लगते हैं। टीवी है ही, फ्रिज भी है ही, बच्चों को नुकसान पहुँचाने के लिए। हम यह नहीं कह रहे कि बच्चे इस आधुनिक युग में पिछड़े रहें, लेकिन उन्हें इन उपकरणों से होने वाली हानियों से तो बचा सकते हैं। हालाँकि, आजकल के अत्याधुनिक उपकरणों से बच्चे काफी कुछ सीख भी रहे हैं, जो ज़रूरी है। हम यह भी कह सकते हैं कि आजकल के बच्चे उम्र से पहले ही सयाने हो रहे हैं। तो क्या हम यह मान लें कि अगर बच्चों को जन्म के कुछ ही समय बाद से इन उपकरणों से परिचित नहीं कराएँगे, तो वे होशियार नहीं होंगे। नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है।

पढ़ाई के बोझ के साथ बढ़ रहा तनाव

आजकल के बच्चों में न केवल पढ़ाई का बोझ बढ़ रहा है, बल्कि बस्ते के बढ़ते बोझ के साथ तनाव भी बढ़ रहा है। ऊपर से आजकल 100 प्रतिशत नम्बर लाने का तनाव भी बच्चों पर हावी होता जा रहा है। लेकिन इससे क्या हासिल हो रहा है? क्या आज के बच्चे स्वस्थ भी रह पा रहे हैं? क्या ऐसे में उनकी शारीरिक ग्रोथ ठीक से हो पा रही है? यहाँ तक कि अनेक बच्चों की तो बचपन से ही आँखें कमज़ोर होती हैं। उन्हें खेलने की उम्र में ही बस्ते का बोझ और पढ़ाई का तनाव एक तरह से खोखला करने लगता है। भारत में बच्चों को इस बोझ और तनाव से बचाना आज बहुत ज़रूरी है, अन्यथा यह भविष्य की पीढिय़ों के लिए ठीक नहीं रहेगा।

तनाव से घट रही उम्र 

बुजुर्ग बताते हैं कि उनके ज़माने में बच्चा जब 8-10 साल के हो जाता था, तब वह पहली कक्षा में पढऩे जाता था। यह बात आज भी जापान में लागू होती है। वहाँ 8 साल से पहले किसी बच्चे को स्कूल नहीं भेजा जाता। यही कारण है कि वहाँ बुढ़ापे की मृत्यु दर औततन 95 साल है। वहीं, भारत में बुढ़ापे की मृत्यु दर 65 से 70 साल है। आपने कई बार सुना होगा कि पहले के हमारे बुजुर्ग 100 साल से भी अधिक उम्र तक जीते थे। तो क्या यह मान लिया जाए कि आठ साल के बाद पढ़ाई का बोझ बच्चों पर डालने से ज़िन्दगी लम्बी होगी? यह बात अभी तक किसी भी वैज्ञानिक या मनोचिकित्सक ने दावे से तो नहीं कही है, लेकिन यह ज़रूर कहा है कि कम उम्र में दिमाग पर ज़ोर पडऩे से अनेक रोग होने के साथ-साथ शारीरिक विकास में अवरोध पैदा होता है।

कम उम्र के जीनियस बच्चे

आपने हरियाणा के झज्जर ज़िले के कौटिल्य बच्चे का नाम तो सुना ही होगा। यह बच्चे का दिमाग छ: साल में ही इतना तेज़ था कि यह गूगल से पहले हर सवाल का जवाब देने में सक्षम पाया गया। इसी तरह बिहार का एक बच्चा और एक बच्ची पिछले साल सुॢखयों में आये। इन बच्चों को भी अनेक सवालों के जवाब ऐसे रटे हुए हैं, जैसे कोई आईएएस की तैयारी करने वाले किसी विद्यार्थी को रटे होते हैं। सोशल मीडिया पर आये दिन ऐसे अनेक बच्चों के वीडियो आ रहे हैं, जो किसी को भी हैरत में डाल सकते हैं। दरअसल, एक तरफ जो सॉफ्टवेयर और एप नुकसानदायक साबित हो सकते हैं, वहीं दूसरी तरफ इन सॉफ्टवेयर और एप से बहुत कुछ सीखा भी जा सकता है। इसके लिए हमें बच्चों की मदद करनी होगी। तब बच्चे न केवल काफी ज्ञान वाले और क्षमता से अधिक योग्य हो सकते हैं। इसे हम कह सकते हैं कि उम्र से पहले सयाने हो सकते हैं। बड़ी परीक्षा पास कर सकते हैं। किसी की मदद कर सकते हैं। किसी को रास्ता दिखा सकते हैं। यहाँ तक कि बड़ों से भी बेहतर मशविरे दे सकते हैं। हाल ही में अमेरिका में एक 9 साल के बच्चे ने अपने से छ: साल छोटे अपने चचेरे भाई की जान बचाकर सबको अचम्भित कर दिया। इस बच्चे ने यूट्यूब से जान बचाने की तकनीक सीखी थी। इसी तरह वैंकुवर के फ्रैंकलिन एलीमेंट्री स्कूल में पढ़ रहा दूसरी कक्षा का बाल छात्र केओनी चिंग अपने दोस्तों के लन्च का खर्च उठाता है। आठ साल के इस बच्चे की पूरी दुनिया में तारीफ हो रही है।

बच्चों पर स्मार्टफोन और टैबलेट

मीडिया रेगुलेटर ऑफकॉम ने अपनी सालाना रिपोर्ट ‘द एज ऑफ डिजिटल इंडिपेंडेंस’ में बताया है कि ब्रिटेन में साल 2019 में 9 से 10 साल के अपना स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले बच्चों की संख्या दोगुनी हो गयी है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वहाँ 10 साल की उम्र के 50 फीसदी बच्चे स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। इतना ही नहीं, ब्रिटेन में महज़ तीन से चार साल के 24 फीसदी बच्चों के पास टैबलेट हैं। इनमें से 15 फीसदी बच्चे टैबलेट को बिस्तर पर इस्तेमाल करते-करते सोते हैं। यह बच्चे देर रात तक जागने के आदी होते जा रहे हैं। भारत की बात करें, तो यहाँ 12 साल से कम उम्र के 16 फीसदी बच्चों के पास फोन हैं, जिनमें तकरीबन 11 फीसदी के पास स्मार्ट फोन हैं। वहीं तकरीबन 70 फीसदी बच्चे अपने अभिभावकों का फोन इस्तेमाल करने की कोशिश में रहते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 10 साल से अधिक उम्र के अधिकतर बच्चे स्मार्ट फोन का इस्तेमाल सोशल मीडिया के लिए करते हैं। जबकि 18 फीसदी बच्चे सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं।

इंटरनेट के नुकसान और फायदे

यह बात कई बार उठायी जा चुकी है कि बच्चों के द्वारा इंटरनेट के इस्तेमाल पर तब तक प्रतिबन्ध होना चाहिए, जब तक कि उन्हें इसके इस्तेमाल की समझ नहीं आ जाती। लेकिन यह बात सिर्फ कही जाती रही है, इसके लिए उपाय न तो अभी तक भारत सरकार ने किये हैं और न ही यहाँ की किसी राज्य सरकार ने। लेकिन जितनी जल्दी हो सके, इस तरह का कोई कानून बनना चाहिए। हाल ही में संसद में बच्चों को पोर्नोग्राफी से दूर रखने की बात उठी। इसके लिए कई सुझाव भी दिये गये, लेकिन अभी तक अश्लील सामग्री बच्चों की पहुँच से दूर नहीं की गयी है। भले ही इंटरनेट पर बहुत कुछ ऐसा है, जो आपको बच्चों को दुनिया का जीनियस बच्चा बना सकता है, लेकिन इसके इतर बहुत कुछ ऐसा भी है, जो बच्चों का भविष्य बर्बाद भी कर सकता है।

जैसा कि सभी जानते हैं कि आजकल के माता-पिता बच्चों को न तो बहुत समय दे पाते हैं और न ही उन पर ठीक से नज़र रख पाते हैं। ऐसे में मुमकिन है कि आपका बच्चा बिगड़ रहा हो! क्योंकि बचपन में गलत चीज़ें बहुत जल्दी असर करती हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि सरकार के अलावा लोगों को भी अपने-अपने बच्चों की पहुँच से अश्लील सामग्री को दूर रखने की कोशिश करनी होगी, ताकि वे उम्र से पहले गलत तरीके से सयाने न हों। अगर माँ-बाप, अध्यापक और दूसरे बड़े लोग बच्चों को इंटरनेट का सही इस्तेमाल करना सिखाएँ, तो बच्चे इंटरनेट से घर बैठे अपने ज्ञान को बढ़ाकर दुनिया भर में प्रसिद्धि पाने के साथ-साथ पैसा भी कमा सकते हैं। लेकिन इसके लिए हमें बच्चों को इंटरनेट के सही इस्तेमाल की सीख देनी होगी।

बच्चों की रुचि

इंटरनेट पर किस काम में कितने बच्चों की रहती है रुचि? इस बात का खुलासा 2019 में हुई एक सर्वे रिपोर्ट में हुआ है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में 80 फीसदी बच्चे वीडियो ऑन डिमांड देखने में रुचि रखने लगे हैं। रिपोर्ट में इसे बच्चों के लिए खतरनाक भी बताया गया है। वहीं, व्हाट्सअप में रुचि रखने वाले बच्चों की संख्या 62 फीसदी है, जो हमें चौंकाने के लिए काफी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 5 से 15 साल की उम्र की 48 फीसदी लड़कियाँ और इसी उम्र के 71 फीसदी लड़के ऑनलाइन गेम (खेल) खेलने में रुचि ले रहे हैं। इसमें कई खेल ऐसे हैं, जो इन बच्चों को न केवल तनाव की ओर धकेल रहे हैं, बल्कि कई बच्चे तो आत्महत्या तक कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 5 से 15 साल के बीच के 99 फीसदी बच्चे टीवी देखने में भी रुचि रखते हैं। जबकि 27 फीसदी बच्चे इंटरनेट के ज़रिये पढ़ाई करते हैं। वहीं, इसी उम्र के 27 फीसदी बच्चे स्मार्ट स्पीकर और 22 फीसदी बच्चे रेडियो सुनते हैं। हालाँकि इसमें कुछ फीसदी बच्चे मिले-जुले रूप से कई-कई चीज़ों में रुचि रखते हैं।