सबूतों के आधार पर होगा फैसला : सुप्रीम कोर्ट

भीमा-कोरेगांव हिंसा मामला : पांचों कार्यकर्ताओं की नजरबंदी १९ तक बढ़ी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में सबूतों के आधार पर फैसला  होगा। सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार को भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में पांच वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने बहस के बाद पांचों कार्यकर्ताओं की नजरबंदी की तारीख १९ सितंबर तक बढ़ा दी है।

गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य लोगों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार ने  अदालत में कहा कि इनसे आरोपियों) देश में शांति भंग का खतरा है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पांचों आरोपियों के खिलाफ पुणे पुलिस की ओर से जुटाई सामग्री की जांच की बात कही।

महाराष्ट्र सरकार ने कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि जिनके आधार पर गिरफ्तारी की गयी है, उसके पास उससे जुड़े पुख्ता सबूत हैं। बहस के बाद  कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए १९ सितम्बर की तारीख तये की और कहा कि उसमें सरकार अपना पक्ष रखे जिसके लिए उसे २० मिनट का वक्त मिलेगा। कोर्ट ने पीड़ितों के लिए भी १० मिनट का समय निर्धारित किया।

नजरबंदी वाले मामले में कोर्ट ने फैसला नहीं सुनाया और माना जा रहा है कि बुधवार तक सभी कार्यकर्ताओं को हाउस अरेस्ट ही रहना होगा। मुख्य न्यायाधीश की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। मुख्य न्यायाधीश  ने कहा है कि हम सभी सबूतों को देखेंगे और फैसला लेंगे। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह सबूतों की जांच करेगा और अगर वे पुख्ता साबित नहीं हुए तो इस मामले को रद्द कर दिया जाएगा।

गौरतलब है कि इतिहासकार थापर ने महाराष्ट्र पुलिस की इन पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुनवाई में इस याचिका का विरोध करते हुए केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि हर मामले पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाना गलत प्रक्रिया है और इस मामले में भी याचिकाकर्ताओं को पहले निचली अदालत में जाना चाहिए था।

इस पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि अदालत स्वतंत्रता के बुनियादी अधिकार को कायम रखने के लिए इस याचिका पर विचार कर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक याचिकार्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि भीमा-कोरोगांव हिंसा से पहले आयोजित यलगार परिषद की बैठक में इन सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हिस्सा नहीं लिया था। कहा कि वे इस मामले की निष्पक्ष जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में आए हैं।

अदालत में महाराष्ट्र सरकार के वकील तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि पांचों सामाजिक कार्यकर्ताओं को केवल भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में गिरफ्तार नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र पुलिस को जांच के दौरान इन लोगों के खिलाफ देश की शांति भंग करने की साजिश में शामिल होने के सबूत भी मिले हैं।