सडक़ों पर आवारगी

इसी साल सितंबर महीने में कस्बा फतेहगंज के एक मोहल्ले की चार नंबर गली में अपने दरवाज़े पर बैठे एक बच्चे पर एक लडक़े ने बाइक चढ़ा दी। बाइक इतनी तेज़ थी कि अगर बच्चा पूरी तरह उसकी चपेट में आ जाता, तो उसकी मौत हो सकती थी। यह बाइकर्स एक 14-15 साल का किशोर था। बाइक दरवाज़े से लगकर दीवार से जा टकरायी, जिससे अपने दरवाज़े के आगे बैठे पाँच-छ: वर्षीय बालक के साथ-साथ बाइकर्स को भी गहरी चोट आयी। हम अक्सर शहरों की गलियों में कुछ नौसिखिये युवकों को बहुत तेज़ी से बाइक लेकर गुज़रते देखते हैं। हैरत की बात यह है कि इनमें से अधिकतर की उम्र कम ही होती है और उनके पास लाइसेंस के नाम पर कुछ भी नहीं होता, न ही ऐसे बच्चों को बाइक चलाने की घर के बड़ों द्वारा ठीक से ट्रेनिंग दी जाती है और न ही उन्हें बाइक चलाने की लिमिट आदि के बारे में बताया जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन किशोरों को वाहन चलाने की अनुमति नहीं होती, फिर भी घर वाले इनके हाथ में बाइक, स्कूटी या कार आदि पकड़ा देते हैं। ऐसे अधिकतर बच्चे बाइक चलाने के शौक में सडक़ों पर दौड़ते फिरते हैं।

ऐसे लोग यह नहीं समझते कि उनके ये अनट्रेंड बच्चे खुद की जान हथेली पर लेकर वाहनों को दौड़ाते हैं और दूसरों के लिए भी खतरा बने रहते हैं। इस बारे में कई लोगों ने एक ही बात कही कि उन्होंने कई बार गली-मोहल्ले में पैदल चलते समय पीछे से तेज़ी से आते-जाते वाहनों से एक खौफ महसूस किया है। ये अनट्रेंड और नौसिखिये बाइकर्स भीड़भाड़ वाली जगहों पर भी इतनी तेज़ी से गुज़रते हैं कि चलने वाला खौफ से ही साइड हो जाता है। अभी तीन महीने पहले एक बाइक पर दो नवयुवक इसी तरह पतली सडक़ पर तेज़ी से जा रहे थे, अचानक सामने से कुत्ता आ गया और उससे बचने के चक्कर में बाइक फिसल गयी, जिससे एक युवक का हाथ टूट गया और दोनों को बुरी तरह चोटें आयीं। किसका नुकसान हुआ? किसे परेशानी हुई? इस हादसे में बाइक फिसलकर इतनी दूर गिरी कि अगर कोई और वहाँ होता, तो उसे भी काफी चोट लगती। इतना ही नहीं, बाइक सवारों की जान भी जा सकती थी। क्या यह बात ऐसे आवारा युवकों के माँ-बाप, सगे-सम्बन्धी नहीं समझते। आखिर अपने वे लाड-प्यार के चक्कर में अपने लाडलों के साथ-साथ दूसरों की जान जोखिम में क्यों डालते हैं।

अक्सर देखा गया है कि जो नौसिखिये बाइकर्स इस तरह से अनाप-शनाप बाइक दौड़ाते हैं, उनमें अधिकतर 13 से 19 साल के युवा होते हैं। अगर पूरे देश की बात करें, तो इसके ठीक-ठीक आँकड़े तो नहीं हैं; लेकिन इतना ज़रूर है कि बाइक पर स्टंट करने, अनाप-शनाप वाहन दौड़ाने और बिना सीखे तेज़ी से वाहन चलाने के चलते हर साल हज़ारों युवा दुर्घटना का शिकार होते होंगे। इसके लिए हड्डियों के अस्पताल कुमार हॉस्पिटल में बात करने पर पता चला कि हड्डी के 60 फीसदी मामले सडक़ दुर्घटनाओं से जुड़े आते हैं, जिनमें 12-13 फीसदी वे बच्चे या युवा होते हैं, जो या तो खुद वाहन चला रहे थे, या दूसरे किसी के वाहन की चपेट में आ गये। वाहन चालकों में अधिकतर दुर्घटनाएँ बाइक या स्कूटी से होती हैं। इस मामले की रिपोर्ट थानों में भी कम ही लिखायी जाती हैं। क्योंकि जो लोग वाहन से टकराते हैं, उनमें कई की खुद की गलती होती है और वह पुलिस से बचने की हर सम्भव कोशिश करते हैं। हैरत की बात यह है कि नयी उम्र के बाइकर्स, जिनमें कई की तो उम्र ही नहीं, होती वाहन चलाने की, गलियों या मोहल्ले की और आसपास की सडक़ों पर ही आवारगी करते नहीं घूमते; बल्कि बड़ी सडक़ों पर भी दौड़ जाते हैं। ऐसे बाइकर्स में अधिकतर तो हैल्मेट तक नहीं लगाते। ऐसे युवकों के मुँह अधिकतर कपड़े से बँधे (छिपे) होते हैं।

नहीं कसी जा सकी लगाम

फरवरी, 2018 में राजधानी दिल्ली में एक कार सवार ने लालबत्ती तोड़ते हुए सडक़ पार कर रहे एक युवक को टक्कर मार दी थी, जिससे उसकी दो घंटे के अन्दर ही अस्पताल ले जाते हुए मौत हो गयी। यह कार एक नाबालिग चला रहा था। कार की रफ्तार इतनी अधिक थी कि लालबत्ती के दौरान सडक़ पार कर रहा युवक काफी दूर जाकर गिरा और उसका सिर फट गया। इस घटना के बाद लोगों ने एक बार फिर आवाज़ उठायी थी कि नाबालिग चालकों के घर वालों पर भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि वे अपने नाबालिग बच्चों के हाथ में वाहन न दें। लेकिन समय बीतने पर जैसे-जैसे मामला ठंडा हुआ, लोग भी खामोश होते गये। आज सब कुछ वैसा का वैसा ही है, लोग बाइकर्स से कुछ कहना पसंद नहीं करते, जो लोग उन्हें इसके लिए कुछ कहना चाहते हैं, उनके कहे को सुनने का बाइकर्स के पास वक्त ही कहाँ होता है, वे तो सेकेंडों में फुर्र हो जाते हैं। यही वजह है, इन नौसिखिये बाइकर्स पर लगाम नहीं लग सकी है। वैसे तो ऐसे मामलों में नाबालिग चालकों की गिरफ्तारियाँ भी हुई हैं और उन्हें बाल सुधार गृह भी भेजा जाता रहा है; लेकिन ऐसे मामलों में अधिकतर किशोरों के परिजनों की कोशिश रही है कि वे जल्द-से-जल्द अपने लाडले की जमानत करा लें, और सम्भव है कि कई मामलों में जमानतें हुई भी होंगी।

रईसज़ादों से नहीं बोलता कोई

वैसे इस मामले में कानून है कि अगर किसी नाबालिग को ट्रैफिक पुलिस वाहन चलाते देखे, तो उस पर अंकुश लगाये। लेकिन वाहनों, खासकर कारों को लेकर सडक़ों पर दौडऩे वाले अधिकतर रईसज़ादे होते हैं, इसलिए पुलिस वाले भी उनसे कुछ नहीं कहते। अगर गलती से कहीं कोई पुलिसकर्मी किसी नाबालिग वाहनचालक या किसी स्टंटबाज़ को पकड़ भी लेता है, तो उसे हिदायत देकर या बहुत हुआ, तो वाहन का चालान काटकर छोड़ देते हैं। इससे नाबालिग वाहन चालकों और स्टंटबाज़ों में पुलिस का खौफ नहीं रहता। वहीं गली-मोहल्लों में तो पुलिस वाले वैसे भी किसी से कुछ नहीं कहते। लोग भी रईसज़ादों को हिदायत देने से बचते हैं।

माँ-बाप की भी नहीं सुनते कुछ बच्चे

ऊपर जिस ज़िक्र की गयी घटना में जिस किशोर ने बच्चे को उसके दरवाज़े पर टक्कर मारी, उसके माँ-बाप से लोगों ने हर्ज़ाना देने की बात कही, तो किशोर की माँ रोने लगी। उसने बताया कि उनका लडक़ा उनकी सुनता ही नहीं है। जब-तब बाइक लेकर निकल पड़ता है। किशोर की माँ ने बताया कि घर में अगर कोई पड़ोस की दुकान से भी उसे कुछ लाने को कह दे, तो भी वह बाइक लेकर जाने की ज़िद करता है। ऐसे कई बच्चे हैं, जो बहुत अच्छे परिवार से नहीं है, पर जैसे ही घर में बाइक या स्कूटी आती है, उनके किशोर और युवा बच्चे दिन-रात उसी पर घूमना पसंद करते हैं।

ऐसा ही एक मामला दीपांशु नाम के किशोर का है। उसके पिता किसी होटल में नौकरी करते हैं और उन्होंने अपने लिए एक सेकेंड हैंड बाइक 2017 में ली थी। उनका किशोर लडक़ा दीपांशु सुबह-शाम बाइक लेकर निकल जाता था। एक दिन वह अपने किसी दोस्त के साथ लंगड़ाता हुआ, पैदल-पैदल बाइक लाया। घर वालों के पूछने पर उसने बताया कि एक दूसरे बाइक वाले ने उसे उसकी साइड में आकर ठोक दिया। इस पर उसके माँ-बाप ने उसे न तो डाँटा और न यह समझाया कि अभी तुम्हारी उम्र बाइक बाहर लेकर जाने की नहीं है। मुझे लगता है कि यही लाड-प्यार और शह बच्चों को बिगाड़ती है, ज़िद्दी बनाती है और वे वाहन लेकर घरों से बाहर निकल जाते हैं, जिससे उनके साथ-साथ दूसरों की जान का खतरा पैदा होता है।

लड़कियाँ अमूमन नहीं चलातीं तेज़ वाहन

आपने देखा होगा कि अधिकतर लड़कियाँ वाहनों को सामान्य रफ्तार से चलाती हैं। लड़कियों को जब तक वाहन चलाना नहीं आ जाता, वे सीखने में भी रुचि रखती हैं और अकेले वाहन चलाने से डरती भी हैं। इसके अलावा बिना काम के भी लड़कियाँ वाहन लेकर बाहर नहीं निकलतीं। हालाँकि 100 फीसदी लड़कियाँ तेज़ वाहन नहीं चलातीं, ऐसा कहना भी शायद ठीक नहीं है। लेकिन अधिकतर लड़कियाँ तेज़ वाहन चलाने से बचती हैं।

जागरूकता की कमी, कार्रवाई में ढील

हमारे देश में हर अपराध या गलती को रोकने के लिए कानून तो हैं; लेकिन कानून का खौफ बहुत-से लोगों में नहीं होता। इसके कई कारण हैं, जैसे पुलिसकर्मी कानून तोडऩे वालों पर तभी सख्ती से पेश आते हैं, जब वो पैसे या वर्ग से कमज़ोर हों। इसके अलावा लोगों में जागरूकता की कमी है। अगर लोगों में भरपूर जागरूकता हो और गलती या अपराध करने वाले को पुलिस तथा कानून का खौफ हो, तो कोई भी गलती करने से पहले डरेगा। कार्रवाई में ढील से लोगों में डर नहीं रहता।

आवारा बाइकर्स से सख्ती से निपटने की ज़रूरत

गलियों, सडक़ों पर अनाप-शनाप वाहन चलाने के चलते होने वाली दुर्घटनाओं को कम करने का एक ही सही तरीका है कि ऐसे बाइकर्स के खिलाफ कठोर-से-कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए। अगर ऐसे युवकों और किशोरों के ऐसा करने के पीछे उनके परिजनों की ढील या शह है, तो उन्हें भी इसकी सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए। क्योंकि बिना लाइसेंस के तो वाहन चलाना जुर्म है ही, लाइसेंस मिलने पर भी गलत तरीके से वाहन चलाने, उससे स्टंट करने और तेज़ गति से वाहन चलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए कानून है। मोटरयान अधिनियम की धारा-180 के तहत नाबालिग बच्चों को सार्वजनिक जगहों पर वाहन चलाने देना भी जुर्म है। ऐसे अभिभावकों को तीन माह की सज़ा का प्रावधान है। इसके अलावा नाबालिग बच्चों के वाहन चलाते पकड़े जाने पर उनके पिता का ड्राइविंग लाइसेंस भी ज़ब्त हो सकता है। आईपीसी की धारा-88, 89 और 109 सहित कई ऐसी धाराएँ हैं, जो अपराध के लिए प्रेरित करने वालों पर लागू होती हैं। वहीं तेज़ गति से वाहन चलाने पर ज़ुर्माने या सज़ा या दोनों का ही प्रावधान है। लेकिन ट्रैफिक पुलिस की ढिलाई या विनम्रता के चलते अधिकतर लोग, खासतौर से नाबालिग बच्चे और नौसिखिये इससे बचे रहते हैं; इसलिए वे बार-बार जानलेवा गलतियाँ करते हैं।