संथाल के विकास पर सियासी घमासान

देश के सबसे पिछड़े इलाक़ों में शुमार झारखण्ड का संथाल परगना इलाक़ा है। आदिवासी बहुल यह इलाक़ा हमेशा राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण रहा है। राज्य गठन के बाद अब तक छ: मुख्यमंत्री बने हैं। इनमें से मौज़ूदा मुख्यमंत्री समेत तीन मुख्यमंत्री संथाल ने ही दिये हैं। यह क्षेत्र राज्य के गठन के पहले से लेकर अब तक सियासत का गढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों से यह विकास का भी गढ़ बन रहा है। इस पर अब राज्य की नहीं, पूरे देश की भी नज़र पड़ रही है। पिछले एक दशक में संथाल परगना के विकास की जो योजनाएँ बनायी गयीं, एक-एक कर धरातल पर उतर रही हैं। चाहे वो केंद्र सरकार की देन हों या फिर राज्य सरकार की।
विकास ने संथाल परगना के लोगों को नयी पहचान दी है। लेकिन विडम्बना यह है कि झारखण्ड जैसे पिछड़े राज्य में विकास पर भी राजनीति हो रही है। दरअसल संथाल परगना का राजनीतिक परिदृश्य ही कुछ इस तरह का है। सियासत के तीनों प्रमुख खिलाडिय़ों (भाजपा, कांग्रेस और झामुमो) में योजनाओं का श्रेय लेने की होड़ और आपसी खींचतान ने राष्ट्रीय स्तर पर राज्य को हास्य का पात्र भी बनाया। साथ ही विकास योजना को बढ़ाने में कई अवरोध भी आये। अब एक बार फिर संथाल परगना का उदय राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय फलक पर होने वाला है। यहाँ हवाई अड्डा बनकर तैयार है। इस महीने हवाई सेवा शुरू होने वाली है। क्षेत्र की जनता यह उम्मीद तो रखती ही है कि अब कम-से-कम विकास को लेकर सियासत नहीं हो, जिससे विकास की बात दब जाए और सियासत की बात उभरकर सामने आये, देश-दुनिया में झारखण्ड परिहास का पात्र बने।

सौग़ातों पर लगा दाग़
संथाल परगना पर हर दल का फोकस रहा है। भाजपा, कांग्रेस या झामुमो या फिर कोई अन्य दल संथाल परगना क्षेत्र को नकार नहीं सकता है। इस क्षेत्र को झामुमो का गढ़ भी माना जाता है। झामुमो गढ़ बचाने, तो भाजपा उसका किला ढहाने की फ़िराक़ में लगी रहती है। इसके लिए हर तरह के प्रयास होते हैं। इस बात में कोई सन्देह नहीं कि झारखण्ड की पूर्ववर्ती रघुवर सरकार ने संथाल के विकास की नयी कहानी लिखी। अपने कार्यकाल में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने संथाल परगना का 135 बार दौरा किया, जो राज्य के किसी दूसरे इलाक़े से कई गुणा अधिक था। दूसरी तरफ़ सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी क्षेत्र पर फोकस कर रखा है। यही कारण है, पिछले चंद वर्षों में संथाल परगना क्षेत्र को कई सौग़ातें मिलीं। देवघर में एम्स की स्थापना हुई। ओपीडी शुरू हो गया है। जल्द ही अस्पताल भी पूरी तरह चालू होगा।

आज़ादी के 70 साल बाद गोड्डा क्षेत्र तक रेलवे लाइन पहुँची और गोड्डा से दिल्ली रेल सेवा शुरू हुई। साहिबगंज में बंदरगाह का निर्माण हुआ। इन सब विकास योजनाओं के साथ सियासी घमासान भी हुआ। गोड्डा से रेल सेवा शुरू करने के मौक़े पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव आपस में भिड़ गये। हाथापाई तक की नौबत आयी। एम्स के उद्घाटन के मौक़े पर भी केंद्र और राज्य के बीच खींचतान चर्चा में रही। नतीजा यह हुआ कि विकास योजना में देर हुई और $खुशी पर सियासत भारी पड़ गयी। हुआ यह कि राष्ट्रीय स्तर तक विकास के बढ़ते क़दम की बात कम और सियासत की बात अधिक चर्चा में रही, जो जनता का मन खट्टा कर गयी।
उड़ान की तैयारी संथाल परगना जैसा पिछड़ा क्षेत्र अब आसमाँ में उड़ान भरने की तैयारी में है। बाबा नगरी देवघर से जुलाई महीने में हवाई सेवा शुरू हो रही है। झारखण्ड की रांची के बाद दूसरा देवघर हवाई अड्डा बन कर तैयार है। उम्मीद है कि श्रावणी मेले में देवघर आने वाले शिव भक्त नयी हवाई सेवा का आनंद उठा सकेंगे। देवघर हवाई अड्डा पर 8 जून, 2022 को विमान के टेक ऑफ और लैंडिंग की ट्रायल हुई। इंडिगो की पहली फ्लाइट कोलकाता से उड़ान भरकर देवघर हवाई अड्डा पहुँची। इंडिगो की 180 सीटों वाली 320-ए फ्लाइट ने तीन बार टेक ऑफ और लैंडिंग की। सवा घंटे तक ट्रायल के दौरान दिल्ली, कोलकाता और रांची के कई विमानन अफ़सर मुस्तैद रहे। अफ़सरों ने ई-कैटेगरी समेत 320 फैमिली और 737 बोइंग विमान के सभी कैटेगरी से सम्बन्धित सभी पहलुओं का ट्रायल किया। देवघर एटीसी से एक साथ दिल्ली, मुम्बई और बेंगलूरु को कनेक्ट कर दिया गया। इसके बाद रनवे पर लैंडिंग और टेक ऑफ की हरी झंडी मिल गयी। हवाई अड्डा अथॉरिटी ने हवाई अड्डे को अपने अधीन ले लिया है। एयर ट्रैफिक कंट्रोल, रनवे और ऑपरेशन से जुड़ी सारी तैयारियाँ हो चुकी हैं। बाबा धाम का श्रावणी मेला 14 जुलाई से शुरू हो रहा, जो 12 अगस्त तक चलेगा। उम्मीद है कि इससे पहले हवाई अड्डा का उद्घाटन हो जाएगा। यहाँ 180 यात्री वाली एयरलाइंस का आना शुरू हो जाएगा।

प्रधानमंत्री मोदी करेंगे उद्घाटन
देवघर हवाई अड्डा का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मई, 2018 को ऑनलाइन किया था। इस हवाई अड्डा की लम्बाई 2.5 किलोमीटर है। रनवे की चौड़ाई 45 मीटर है। इसके बाद प्लैंक एरिया है। हवाई अड्डा 653.75 एकड़ में फैला है। टर्मिनल बिल्डिंग 4,000 वर्ग मीटर में फैला है, जहाँ 180 यात्रियों के बैठने की व्यवस्था है। इसके निर्माण पर 401.34 करोड़ रुपये $खर्च किये गये हैं।

टर्मिनल पर बाबा बैद्यनाथ मन्दिर के गुम्बद की आकृति उकेरी गयी है। यहाँ आने वाले यात्रियों को बाबा मन्दिर के स्वरूप का दर्शन हवाई अड्डा पर ही हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देवघर हवाई अड्डे का उद्घाटन 7 जुलाई को करेंगे। हालाँकि इसकी अभी आधिकारिक घोषणा नहीं की गयी है; लेकिन हर स्तर पर इसकी तैयारियाँ चल रही हैं। हवाई अड्डा पर विमानों का परिचालन शुरू होने के साथ देवघर शहर देश के कई प्रमुख शहरों से सीधे जुड़ जाएगा। यहाँ से दिल्ली, मुम्बई, बेंगलूरु और रांची के लिए विमान सेवा शुरू होगी।

अब न हो कोई विवाद
देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में केंद्र और राज्य का रिश्ता अत्यधिक संवेदनशील होता है। झारखण्ड जैसे छोटे राज्यों के लिए तो और भी जटिलताएँ सामने आती रहती हैं। क्योंकि बड़ी योजनाओं के लिए हमेशा केंद्र का मुँह देखना होता है। केंद्र सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह पूर्वाग्रह और निजी तल्ख़ी को त्याग कर संरक्षक की भूमिका निभाएगी।

वहीं, राज्य सरकार से उम्मीद रहती है कि वह केंद्र सरकार को स्थानीय स्तर पर मदद पहुँचाएगी, जिसमें किसी तरह की राजनीति नहीं हो। इस सामंजस्य को बनाने में क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की भूमिका अहम होती है। झारखण्ड में अन्य विकास कार्यों में विवाद की तरह देवघर हवाई अड्डा निर्माण भी विवाद से अछूता नहीं रहा है। जिस वजह से निर्धारित समय से योजना देर से चल रही। लगभग छ: महीने से सब हो जाने के बाद भी विमान सेवा शुरू नहीं हो पायी। भूमि अधिग्रहण, एप्रोच रोड आदि के निर्माण में विवाद सामने आ चुका है। यहाँ तक कि एप्रोच रोड निर्माण को लेकर न्यायालय का हस्तक्षेप भी हो चुका है।
जनता उम्मीद रखती है कि अब उद्घाटन को लेकर कोई विवाद नहीं हो, जिससे उनकी $खुशी की गूँज राष्ट्रीय स्तर तक जाए। क्योंकि पूर्व में देवघर एम्स और गोड्डा रेल सेवा के उद्घाटन मौक़े पर जो हुआ, वह जगव्यापी है। साथ ही जनता की नज़र संथाल की एक और बड़ी योजना पर है। संथाल के साहिबगंज और बिहार के मनिहारी के बीच गंगा नदी पर पुल बन रहा है। इस पुल के निर्माण से संथाल ही नहीं, पूरे झारखण्ड का परिदृश्य बदल जाएगा। झारखण्ड पूर्वोत्तर से सीधे जुड़ जाएगा। नेपाल की दूरी कम हो जाएगी। असम, बांग्लादेश, बिहार, नेपाल से झारखण्ड की दूरी कम हो जाएगी। व्यापार और रोज़गार के मार्ग खुलेंगे। पुल का निर्माण कार्य पहले से ही तय समय से देर से चल रहा है। अब इसमें देर न हो और योजना धरातल पर उतरे, यह चाहत तो है ही।