संकट में टूट रहीं मज़हबी दीवारें

अगर देखा जाए, तो हर इंसान हमेशा यही मानता है कि वह वास्तव में धर्म और सत्य के मार्ग पर है। फिर वह चाहे जिस भी प्रवृत्ति और चरित्र का क्यों न हो। कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि दुनिया में बुरे-से-बुरा इंसान भी खुद को हमेशा सही मानता है, फिर चाहे वह कितने ही गलत रास्ते पर ही क्यों न हो। बहुत कम लोग हैं, जो खुद की भूलों या गलतियों को स्वीकार करते हैं और उनमें सुधार करते हैं।

एक सच यह भी है कि दुनिया में अधिकतर लोग सत्य, धर्म और ईश्वर की तलाश में रहते हैं। लेकिन फिर भी ऐसे लोगों में अधिकतर यह मानते हैं कि सत्य, धर्म और ईश्वर के बारे में उनका ही मत सर्वोपरि और सत्य है। कहने का मतलब यह है कि हर आदमी खुद को धर्म के रास्ते पर मानता है और धर्म क्या है? इस सवाल की उम्र भर खोज करते हुए भी खुद को हमेशा धर्म का सबसे बेहतरीन अनुयायी और पालनकर्ता मानता है। दूसरा सच यह भी है कि दुनिया के अधिकतर लोग पुराने समय में लिखी चन्द किताबों को ही धर्म-ग्रन्थ स्वीकार करते हैं और उनमें बतायी गयी बातों को धर्म का सही और एक मात्र रास्ता मानते हैं।

हालाँकि सत्य यह भी है कि धर्म की परिभाषा समय-काल, स्थिति-परिस्थिति और इंसान की मंशा व कर्म के आधार पर बदलती रहती है। फिर भी अगर मान भी लिया जाए कि निर्धारित किताबें ही धर्म का एकमात्र स्रोत हैं, तो भी कितने लोग हैं, जो इन धर्म-ग्रन्थों में दी गयी शिक्षाओं का पालन करते हैं? शायद बहुत-ही कम। यही वजह है कि अब लोग धर्म से विलग होकर चलने लगे हैं। इस बात का दु:ख होता है कि इन किताबों को धर्म का स्रोत मानने वालों में अधिकतर लोग इनकी शिक्षाओं पर अमल नहीं करते। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इन धर्म की किताबों से अनभिज्ञ होते हुए भी इंसान के असली धर्म यानी मानवता की मिसाल बनते हैं।

इन दिनों कोरोना वायरस जैसी महामारी और इसके चलते हुए लम्बी तालाबन्दी के समय में ऐसी सैकड़ों मिसालें सामने आ रही हैं, जिनमें मानवता कूट-कूटकर भरी हुई है। इन देशहित और जनहित की घटनाओं को भले ही घृणा फैलाने वाले कुछ टी.वी. चैनल न दिखा रहे हों, लेकिन सोशल मीडिया, यूट्यूब चैनल और कुछ टी.वी चैनल ज़रूर दिखा रहे हैं। ये ऐसी घटनाएँ हैं, जो साफ संदेश देती हैं कि भले ही मानवता के दुश्मन इस संकटकाल में भी मज़हबी दीवारें खड़ी करने की लाख कोशिश करें; लोगों को आपस में लड़ाने की कोशिश करें; इंसान को इंसान से दूर करने की कोशिश करें; लेकिन इन मज़हबी दीवारों को गिराकर ईश्वर के सच्चे भक्त और धर्म के सच्चे अनुगामी आपसी प्रेम और भाईचारे को मिटने नहीं देंगे। चाहे जितना भी बड़ा संकट आ जाए, वे मानव सेवा को ही अपना पहला फर्ज़ समझेंगे और दूसरों का भला करते रहेंगे। आज जब अनेक सरकारों ने परेशानी में फँसे लोगों की मदद करने से हाथ खड़े कर दिये हैं, तब ऐसे अनेक दयालु लोग पीडि़तों की मदद के लिए आगे आ गये हैं। इनमें कई ऐसे भी हैं, जिनके पास खुद अपनी आजीविका के बेहतर संसाधन नहीं हैं, मगर वे जन सेवा का पुनीत कार्य कर रहे हैं। काश! यही भावना देश के सभी धनाड्यों में होती। मगर लूटने की चाह रखने वालों के मन में दयाभाव नहीं रहता। अर्थात् जिन लोगों को सिर्फ और सिर्फ अपना हित दिखता हो; जो दिन-रात पैसे के अलावा किसी को बड़ा न मानते हों; जिनके लिए पैसा ईश्वर से भी कहीं बड़ा हो गया हो; वे लोग किसी की पीड़ा क्या समझेंगे? और क्या किसी की मदद करेंगे? संतों ने ऐसे लोगों को मरा हुआ तक कहा है। रहीमदास जी कहते हैं-

‘रहिमन वे नर मर चुके जे कहुँ माँगन जाँहि

उनते पहले वे मुए जिन मुख निकसत नाँहि’

अर्थात् हे रहीम! ऐसे लोग मर चुके जो आजीविका के लिए कहीं माँगने जाते हैं और उनसे पहले वे लोग मरे हुए हैं, जो माँगने पर भी नहीं देते।

मेरा मानना है-

‘ऐसो धन किस काम को, जा ते नङ्क्षह उपकार

कृपण मरिहे भूख ते, निर्धन मरि लाचार’

अर्थात् ऐसा धन किस काम का है, जिससे उपकार नहीं किया जा सके यानी जीवन भी नहीं बचाया जा सके। ऐसा धन ठीक उसी प्रकार है, जिसके होते हुए कंजूस भूख से मर जाए और  गरीब आदमी लाचारी में।

आज अनेक लोग हैं, जिनके पास अथाह दौलत है। यह अलग बात है कि वे खुद कभी भूखों नहीं रहते। यानी कम-से-कम अपने मामले में कंजूस नहीं होते। लेकिन दूसरों के लिए कभी एक फूटी कौड़ी भी देना उनके ईमान में नहीं है। वास्तव में ये वो लोग हैं, जो चाहते हैं कि गरीब लोग हमेशा ही गरीब रहें और हमेशा धर्म में उलझे रहें, ताकि वे गुलाम-मानसिकता से बाहर न निकल सकें और ऐसे लोगों का काला मन किसी लोगों का शोषण करने और उनका हक मारने में कभी कोताही नहीं करते।

ऐसे स्वार्थी लोग ही समाज में नफरत और ङ्क्षहसा फैलाते हैं। ऐसे लोगों का इसके पीछे का मकसद किसी भी कीमत पर सिर्फ और सिर्फ अपना सुख और अपनी ताकत बढ़ाना होता है; चाहे शेष लोग मरें या जीएँ। लेकिन आज जिन लोगों को यह लगता है कि वे इंसानों-इंसानों में धर्म की आड़ लेकर नफरत, भेदभाव फैला देंगे और झगड़े कराते रहेंगे, तो यह उनकी बड़ी भूल ही होगी। ऐसे लोगों को भी चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं, जो नफरत की आहट मात्र से डरे-सहमे हुए हैं और मानवता के खतरे की दुहाई देते हैं। मेरे खयाल से ऐसे लोगों को भी खतरे और अमानवीय घटनाओं की दुहाई देने की बजाय मानवता को बचाने के लिए आगे आना चाहिए, ताकि हमारे साथ-साथ आने वाली पीढिय़ाँ भी सुरक्षित और खुशहाल रह सकें।