षड्यंत्र के ड्रोन

जम्मू क्षेत्र में ड्रोन हमला और उनकी निरंतर उपस्थिति सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा

जम्मू हवाई अड्डे के तकनीकी क्षेत्र में ड्रोन से हमला सुरक्षा की एक बड़ी चूक तो है ही, सुरक्षा एजेंसियों के लिए भी गम्भीर चिन्ता का विषय है। ‘तहलका’ की छानबीन बताती है कि जम्मू हवाई अड्डे के आसपास भवनों का जंगल सुरक्षा के लिहाज़ से बड़ा ख़तरा बन गया है। हवाई अड्डा नियमावली में जो नियम हैं, उन नियमों का पालन नहीं हुआ है, जिससे इन मकानों से कोई भी अवांछित गतिविधि कर सकता है। हवाई अड्डे से जितनी दूरी पर मकान का निर्माण होना चाहिए, उससे कम दूरी में ये मकान हैं। जानकारी के मुताबिक, जो सुरक्षा एजेंसियाँ छानबीन कर रही हैं, उसमें भी यह सामने आया है कि इन्हीं में से किसी मकान से ड्रोन की गतिविधि संचालित होने की इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता। सुरक्षा एजेंसियाँ ड्रोन से हमले को गम्भीर ख़तरा मान रही हैं और इससे निपटने की तैयारियाँ भी शुरू कर दी गयी हैं। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि कुछ महीने पहले पंजाब की अमरिंदर सिंह सरकार ने बाक़ायदा एक पत्र के ज़रिये केंद्र सरकार को ड्रोन गतिविधियों के प्रति सचेत किया था। इसके बावजूद इस ओर ध्यान नहीं दिया गया और आख़िरकार जम्मू हवाई अड्डे के तकनीकी क्षेत्र में ड्रोन से हमला हो गया। हालाँकि ड्रोन का इस्तेमाल करके आतंकी संगठनों के भारत को निशाना बनाने की कोशिशों का मसला भारत ने संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में भी उठाया है।
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, ड्रोन के रूप में भारत के सामने एक नया सुरक्षा ख़तरा पैदा हुआ है। उन्होंने चेताया है कि ड्रोन के ज़रिये सीमा पार बैठे आतंकवादी भारत में महत्त्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बना सकते हैं। यह पहली बार है, जब भारत में किसी सैन्य प्रतिष्ठान को निशाना बनाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है।
हालाँकि सच यह भी है कि जम्मू क्षेत्र में सीमा पास पहली बार ड्रोन 2013 में देखा गया था। तब वहाँ ड्रोन का मलवा पड़ा मिला था। जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) दिलबाग सिंह की इस सम्भावना से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि ड्रोन सीमापार से उड़कर यहाँ आये हों और अपना काम करने के बाद लौट गये हों। जम्मू हवाई अड्डे की घटना के बाद जाँच में यह भी सामने आ रहा है कि ड्रोन तवी नदी के ऊपर से उड़ान भरकर भेजे गये।
फॉरेंसिक एनालिसिस (न्यायिक जाँच) का यह आकलन है कि हमले में इस्तेमाल किया गया विस्फोटक आरडीएक्स था, जिससे हमले की गम्भीरता को समझा जा सकता है। जाँच में पाया गया है कि विस्फोटक भले एक सामान्य यंत्र (डिवाइस) लगता है, लेकिन ज़मीन के सम्पर्क में आते ही उसका असर काफ़ी
प्रभावी था।
वैसे जाँच एजेंसियाँ अभी तक इस बात को लेकर अँधेरे में हैं कि वास्तव में ड्रोन आया कहाँ से? एक अनुमान यह जताया गया है कि हवाई अड्डे के आसपास के घरों में से किसी घर से ड्रोन उड़ाया गया। ड्रोन हमला करके वापस कहाँ से गया, इसकी भी कोई ठोस जानकारी अभी तक नहीं है। सुरक्षा अधिकारियों के मुताबिक, पिछले कुछ मामलों की जाँच से यह सामने आया है कि हथियार गिराने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल सीमा पार से किया गया। इक्का-दुक्का मौक़ों पर ऐसे ड्रोन भारत ने मार गिराये हैं। यदि जम्मू हवाई अड्डे के आसपास के क्षेत्र का जायज़ा लिया जाए, तो ज़ाहिर होता है कि वहाँ सुरक्षा को ख़तरे में डालने की हद तक मकान नज़दीक हैं। पहले की कुछ जाँच रिपोट्र्स में इन मकानों को हवाई अड्डे, जहाज़ों और यात्रियों के अलावा सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिए ख़तरा बताया जा चुका है।
जानकारों के मुताबिक, इस ख़तरे को कम करने के लिए जो उपाय किये गये हैं, वो नाकाफ़ी हैं। इनमें ऐसे बहुत से मकान किराये पर रहते हैं। सभी पर तो शक नहीं जताया जा सकता; लेकिन वहाँ सुरक्षा के लिए ख़तरा तो है ही। पुलिस वहाँ किरायेदारों के सत्यापन के लिए किरायेदार जाँच-प्रपत्र मकान मालिकों को देती तो है, मगर इस पर बहुत नियमपूर्वक अमल नहीं होता। इस प्रपत्र में किरायेदार की फोटो सहित उसकी पूरी जानकारी सम्बन्धित पुलिस थाने में देनी ज़रूरी होती है। जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह कहते हैं कि मामले की जाँच अभी चल रही है। हमें जो जानकारी मिलती है, उसे अन्य सुरक्षा एजेंसियों से साझा करते हैं। पुलिस ने महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों को आतंकवादी संगठनों से नये ख़तरे के बारे में अवगत करा दिया है। सभी अहतियाती क़दम उठाये गये हैं। डीजीपी दिलबाग सिंह ने यह भी कहा कि जनता को जम्मू-कश्मीर में ड्रोनों का अनधिकृत इस्तेमाल नहीं करने के सम्बन्ध में आम चेतावनी जारी कर दी गयी है। ऐसा होने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
हालाँकि सच यह है कि सन् 2018 में ड्रोन को लेकर भारत में नये दिशा-निर्देश आये थे और बाद में भी इनमें कुछ संशोधन किये गये हैं। डीजीसीए के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, 250 ग्राम से ऊपर वज़न वाला ड्रोन रिहायशी इलाक़ों में बिना मंज़ूरी के नहीं उड़ाया जा सकता। हवाई अड्डे या हेलीपैड के पाँच किलोमीटर के दायरे में ड्रोन नहीं उड़ाया जा सकता। संवेदनशील क्षेत्र या उच्च स्तरीय सुरक्षा वाले क्षेत्र में ड्रोन उड़ाने की पाबंदी है। यहाँ तक कि सरकारी कार्यालयों, सैन्य क्षेत्र में ड्रोन उड़ाना वर्जित है।
हालाँकि ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, हाल के वर्षों में इनमें से कुछ नियमों को ताक पर रखकर ड्रोन उड़ाये जाते रहे हैं और भारत में ड्रोन के इस्तेमाल का प्रचलन बढ़ा है। भारत में कई स्टार्टअप कम्पनियाँ हैं, जो अपना काम ड्रोन की मदद से करती हैं। सच यह है कि ड्रोन बहुत तेज़ी से भारतीय अर्थ-व्यवस्था का हिस्सा बन रहे हैं। खेती से लेकर स्मार्ट सिटी के सर्वे तक में ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे ड्रोन, जिनका वज़न 250 ग्राम से दो किलो के बीच होता है और जिसमें कैमरा भी सक्रिय होता है। ऐसे ड्रोनों को उड़ाने के लिए पुलिस की मंज़ूरी आवश्यक होती है, जिनका वज़न दो किलो से ज़्यादा होता है या फिर जो 200 फिट से ज़्यादा ऊँचाई पर उड़ सकते हैं। ऐसे ड्रोन उड़ाने के लिए अनुज्ञा-पत्र (लाइसेंस), उड़ान योजना (फ्लाइट प्लान) के साथ-साथ पुलिस अनुमति (परमीशन) और कई मामलों में डीजीसीए की अनुमति लेनी ज़रूरी होती है। बिना डीजीसीए की अनुमति के 25 किलो से ऊपर के ड्रोन को उड़ाना ग़ैर-क़ानूनी है। ऐसे में सीमा के भीतर आकर (यदि ड्रोन पाकिस्तान की तरफ़ से भेजा गया) ड्रोन भारत के एक सैन्य क्षेत्र में आकर हमला कर जाए और किसी को ड्रोन की कोई ख़बर न मिले, यह भी अचम्भे वाली बात ही है। इस घटना से यह भी ज़ाहिर हुआ है कि इस तरह के हमले के तरीक़े के लिए भारत को तैयारी करनी होगी। वैसे तो हवाई अड्डा क्षेत्र में ऐसे सेंसर (जाँच यंत्र) और यंत्र हैं, जो तत्काल अवांछित गतिविधि की जानकारी दे देते हैं या अलर्ट कर देते हैं; लेकिन ड्रोन का पकड़ में न आना भी अपने आप में हैरानी की बात है।
भारत की बात करें, तो यह तथ्य सामने आया है कि ड्रोन का इस्तेमाल नक्सली भी कर रहे हैं। अब तक हथियारों, गोला-बारूद और मादक पदार्थों को लाने के लिए ही ड्रोन का इस्तेमाल होता था; लेकिन जम्मू हवाई अड्डे की घटना ज़ाहिर करती है कि इनका इस्तेमाल बम गिराने के लिए किया जाने लगा है, जो गम्भीर चिन्ता का विषय है। ज़ाहिर है देश की सुरक्षा और कड़ी करने के अलावा इसकी रणनीति में बदलाव की सख़्त ज़रूरत महसूस होने लगी है। सुरक्षा जानकारी यह भी बताती है कि भारत के ख़िलाफ़ जासूसी के लिए ड्रोन का इस्तेमाल पाकिस्तान सीमा से लेकर नेपाल और चीन की सीमा पर भी हो रहा है। हाल के महीनों में सुरक्षा एजेंसियों ने इसकी जानकारी साझा की है।
याद रहे जून के आख़िर में जम्मू में भारतीय वायु सेना के अड्डे पर रात के समय दो ड्रोन से विस्फोटक गिराये गये थे। इस घटना में दो जवान मामूली रूप से घायल हो गये थे। देश में किसी ऐसे महत्त्वपूर्ण स्टेशन पर ड्रोन से किया गया यह पहला हमला है। ड्रोन से गिराये गये विस्फोटक का पहला विस्फोट रात क़रीब 1:40 बजे के आसपास हुआ; जबकि दूसरा विस्फोट क़रीब छ: मिनट बाद हुआ।

ढाई साल में दिखे 314 ड्रोन


‘तहलका’ के जुटाये आँकड़ों के मुताबिक, भारत में ड्रोन से जासूसी की गतिविधियाँ पिछले क़रीब 23 महीनों में, जबसे जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 निरस्त को निरस्त किया गया है; काफ़ी बढ़ी हैं। हालाँकि भारत में पहली बार ड्रोन गतिविधि सन् 2013 में संज्ञान में आयी थी। जम्मू के अलावा पंजाब और गुजरात भी ड्रोन गतिविधियों का केंद्र रहा है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, जम्मू से लेकर गुजरात तक पिछले 12 महीनों में ही 103 बार (10 जुलाई, 2021 तक) संदिग्ध ड्रोन गतिविधि देखी गयी हैं। सुरक्षा संस्थाओं ने इस साल जुलाई तक ड्रोन गतिविधियों को लेकर जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके मुताबिक ख़ासतौर पर जम्मू और पंजाब की पश्चिमी सीमा पर 2019 में 167, पिछले साल 77 और इस साल अब तक क़रीब 70 दफ़ा ड्रोन देखे गये हैं। अब यह बड़ा सवाल है कि इतने बड़े पैमाने पर ड्रोन गतिविधि उजागर होने के बावजूद इसे रोकने या विफल करने के लिए क्या किया गया?

विदेशी हाथ!
अभी जाँच में यह साफ़ नहीं है कि ड्रोन के हमले में क्या हुआ? लेकिन यह संकेत मिल रहे हैं कि इसके पीछे पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई का हाथ है। अभी तक यह भी माना जा रहा था कि यह किसी आतंकी संगठन का काम है; लेकिन जाँच अधिकारी इस सम्भावना को नकार नहीं रहे कि इस घटना के पीछे सि$र्फ आईएसआई भी हो सकती है। इस हमले की जाँच केंद्रीय गृह मंत्रालय पहले ही एनआईए को सौंप चुका है और यह काफ़ी आगे बढ़ चुकी है। उधर इस घटना के आसपास बिहार-नेपाल सीमा पर आठ ड्रोन मिलने की घटना भी गम्भीर है। एसएसबी के जवानों ने पूर्वी चंपारण ज़िले में नेपाल सीमा पर एक कार से आठ ड्रोन और इतने ही कैमरे ज़ब्त किये थे। कार सवार तीन लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। एक और घटना में सेना के जवानों ने रत्नुचक-कालूचक स्टेशन के ऊपर उड़ रहे दो ड्रोन गोलीबारी करके नष्ट कर दिये। इसे भी सैन्य प्रतिष्ठान पर हमले की एक कोशिश बताया गया है। अब जम्मू-कश्मीर में ड्रोन हमलों की आशंका के बीच प्रमुख केंद्रों के आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गयी है।