शून्य से सत्ता में वापसी की क़वायद हरियाणा में फिर से ओमप्रकाश चौटाला के सक्रिय होने से बदल सकते हैं राज्य के राजनीतिक समीकरण

इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला के जेल से आने के बाद पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में नया जोश पैदा हो गया है। उन्हें लगता है कि बदली परिस्थिति में हरियाणा में इनेलो का युग फिर से लौट आएगा और यह सब चौटाला की वजह से सम्भव हो सकेगा। उम्र के इस दौर में उनसे इतनी ज़्यादा उम्मीदें लगाना बेमानी-सा लगता है; लेकिन उनकी सक्रियता को देखते हुए पार्टी के पहले से बेहतर स्थिति में आने की आशा है। उन्हें कुशल संगठनकर्ता और वक्ता के तौर पर आँका जाता है और कई बार वह इसे साबित भी कर चुके हैं।
दिल्ली-ग़ाज़ीपुर सीमा पर जाकर वह किसानों को खुला समर्थन दे चुके हैं। पार्टी पहले से ही किसान आन्दोलन की हिमायती रही है। राज्य के ऐलनाबाद से एकमात्र विधायक अभय चौटाला उनके समर्थन में अपनी सीट से इस्तीफ़ा दे चुके हैं। यहाँ उपचुनाव होना है; लेकिन अभी इसकी घोषणा नहीं हुई है। अभय घोषणा कर चुके हैं कि अगर चुनाव आयोग से हरी झंडी मिलती है, तो उनके पिता (ओम प्रकाश चौटाला) ही मैदान में उतरेंगे। ऐलनाबाद इनेलो का गढ़ रहा है। लिहाज़ा इसमें कोई संशय नहीं कि पार्टी मुक़ाबले में सबसे आगे रहेगी। उपचुनाव में हार-जीत से ज़्यादा फ़र्क़ पडऩे वाला नहीं है; क्योंकि जो सीट पहले उसके पास थी, फिर से चली गयी और राज्य में पार्टी का फिर से प्रतिनिधित्व हो गया।
वैसे एक दौर में राज्य की प्रमुख पार्टी रही इनेलो अभी हाशिये पर ही है। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने राज्य की 90 में से 81 सीटों पर प्रत्याशी उतारे केवल ऐलनाबाद से अभय चौटाला को ही जीत मिली। पार्टी प्रत्याशी बहुसंख्यक सीटों पर कहीं मुक़ाबले में नहीं रहे और मतों का फ़ीसद 2.44 रहा। इसके मुक़ाबले में इनेलो से अलग हुई जननायक जनता पार्टी (जजपा) को 10 सीटों पर जीत मिली और उसे 14.80 फ़ीसदी मत मिले। मौक़े की नज़ाकत को देखते हुए जजपा ने भाजपा को समर्थन दिया और सरकार में शामिल हुई। पार्टी नेता दुष्यंत चौटाला राज्य के उप मुख्यमंत्री के तौर पर क़ाबिज़ हुए। कहा जा सकता है कि इनेलो का परम्परागत मत जजपा के हिस्से में आया।
इनेलो अब न केवल जजपा के वोट बैंक, बल्कि सत्ता में आने के लिए मतों की प्रतिशतता बढ़ाने की क़वायद में लगेगी। लोगों के समर्थन से इनेलो प्रमुख व राज्य पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला का जोश दोगुना हो जाता है। वह लोगों से कहते हैं कि इस बार राज बणा द्यो, सारी क़सर काढ़ द्यँगा (एक बार इनेलो की सरकार बना दो, फिर तुम्हारी सारी क़सर पूरी कर दूँगा)।
ओमप्रकाश चौटाला पिता (पूर्व प्रधानमंत्री ताऊ देवीलाल) के भरोसेमंद रहे हैं और उनके दौर में पार्टी के संगठन का काम वही देखते थे। उन्हें कुशल संगठनकर्ता के तौर पर आँका जाता है। राज्य में ग्रीन ब्रिगेड उनके ही दिमाग़ की उपज थी। इस बिग्रेड का अपने दौर में अलग ही दबदबा रहा है। लेकिन अब सब कुछ छिन्न-भिन्न हो चुका है। शिक्षक भर्ती घोटाले में उन्हें 10 साल की सज़ा होने के बाद इनेलो में नेतृत्व को लेकर कलह शुरू हो गया। इनेलो में फूट न पड़े, इसके लिए चौटाला ने साम, दाम दण्ड, भेद की नीति भी अपनायी; लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। आख़िरकार उन्हें कठोर क़दम उठाते हुए बड़े बेटे अजय चौटाला को पार्टी से निष्कासित करना पड़ा। बता दें कि अजय भी शिक्षक भर्ती घोटाले में पिता के साथ ही जेल में सज़ा काट रहे थे। पिता की राजनीतिक विरासत को लेकर चौटाला परिवार में पहले भी कलह होता रहा है। देवीलाल की राजनीतिक विरासत पर किसका हक़ है? इसे लेकर काफ़ी कुछ हो चुका है। आख़िर यह ओमप्रकाश चौटाला के हिस्से में ही आयी। अब उनकी राजनीतिक विरासत और पार्टी के नेतृत्व पर बड़े बेटे अजय चौटाला और छोटे अभय चौटाला में मतभेद पैदा हो गये। अजय चौटाला ने निष्कासन के बाद जननायक जनता पार्टी (जजपा) बना ली। इसके बाद से इनेलो का पतन शुरू हुआ और जजपा का प्रभाव बढऩे लगा। दो दल बन गये; लेकिन आज भी देवीलाल की राजनीतिक विरासत सँभालने का दावा अलग-अलग किया जा रहा है।


ओमप्रकाश चौटाला के सामने सबसे बड़़ी चुनौती अब भी इनेलो के वोट बैंक को फिर से हासिल करने की रहेगी; लेकिन यह इतना आसान काम नहीं है। किसान आन्दोलन में जजपा पर सरकार से अलग होकर उनके समर्थन में आने के बहुत-से प्रयास हुए; लेकिन सफल नहीं हो सके। चूँकि पार्टी सरकार में भागीदार है, लिहाज़ा भाजपा के साथ जजपा नेताओं का भी विरोध हो रहा है। विधायक घरों में कैद होकर रह गये हैं।
जेल से रिहा होने के बाद ओमप्रकाश चौटाला ने सबसे पहले किसान आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की थी। इनेलो का वोट बैंक ही किसान है, इसलिए चौटाला इससे अलग जाने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। किसानों का समर्थन हासिल करने के बाद चौटाला पार्टी की मज़बूती के लिए प्रयासरत हैं। इनेलो से जजपा और अन्य दलों में गये पुराने नेताओं और कार्यकर्ताओं को वापस लाना उनकी प्राथमिकता में है। अपने दौर में ओमप्रकाश चौटाला ने संगठन को मज़बूत किया, जिसकी वजह से वह कांग्रेस को टक्कर दे सकी। चौटाला पर संगठन को फिर से पहले जैसा रूप देने की ज़िम्मेदारी है; लेकिन उम्र के इस पड़ाव में क्या वह इतना बड़ा काम करने में सक्षम होंगे?
इनेलो महासचिव और पूर्व विधायक अभय चौटाला मानते हैं कि इनेलो को प्रमुख के नेतृत्व की ज़रूरत थी, जो अब पूरी हो गयी है। उन्होंने अपने तौर पर पार्टी को बचाने का प्रयास किया; लेकिन राजनीतिक स्वार्थ इसमें आड़े आ रहे थे। इनेलो चौधरी देवीलाल की विरासत को सँभाले हुए हैं और आगे भी यही सिलसिला जारी रहेगा। पार्टी का संगठन पहले से बेहतर हुआ है। पुराने नेता और कार्यकर्ताओं के फिर से अपने घर लौटने का चलन शुरू हो गया है। लोगों का
समर्थन मिल रहा है। पार्टी मज़बूत हो रही है। इनेलो सत्ता में आती है, तो ओमप्रकाश चौटाला ही मुख्यमंत्री बनेंगे। विधानसभा चुनाव अभी काफ़ी दूर है और उनके पास समय काफ़ी है। किसान आन्दोलन के चलते भाजपा और जजपा का राज्य में विरोध हो रहा है। आन्दोलन का नतीजा क्या होता है? इस पर काफ़ी कुछ निर्भर करता है; लेकिन इनेलो को लगभग शून्य से ही शुरुआत करनी है। देखना यह है कि ओमप्रकाश चौटाला फिर से अपने को कुशल नेतृत्व से अलग-थलग पड़ी इनेलो को टक्कर देने वाली पार्टी बना पाते हैं या नहीं? उम्र के इस पड़ाव में उन्होंने चुनौती तो स्वीकार कर ली है; लेकिन सफलता कहाँ तक मिलती है? यह तो समय ही बताएगा। यह भी सच है कि हरियाणा की वर्तमान सरकार इन दिनों कई विवादों को लेकर फँसी हुई है। अव्वल तो उसे किसान ही घेरे हुए हैं। इसके इतर कई मद्दे ऐसे हैं, जिसके चलते उसे अगली बार मौक़ा मिलेगा या नहीं? यह उसे भी पता है।

 

फ़रीदाबाद के खोरी गाँव में हज़ारों लोग बेघर

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद फ़रीदाबाद ज़िले के खोरी गाँव के हज़ारों लोग बेघर हो गये हैं। सरकारी कार्रवाई का शुरुआत में कुछ विरोध हुआ; लेकिन भारी पुलिस बल ने कोई बाधा नहीं आने दी। अरावली वन क्षेत्र में किसी तरह का निर्माण अवैध है और यह गाँव उसी के तहत आता है। सरकार को न्यायालय के आदेश की पालना हर हालत में करनी थी। लिहाज़ा तय अवधि के बाद उसने कार्रवाई कर इसे अंजाम देना शुरू कर दिया है।
प्रतिबन्धित क्षेत्र में निर्माण कुछ महीनों में नहीं हो गया था। लोग 15-20 साल से यहाँ रह रहे थे। गाँव में बिजली और पानी तक की सुविधा सरकार ने मुहैया करा रखी है। अगर वन क्षेत्र में निर्माण हुआ, तो उसकी ज़िम्मेदारी किसकी है? उसी सरकार की, जो अब न्यायालय के आदेश की पालन कर उन्हें उजाड़ रही है। हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण और फ़रीदाबाद नगर निगम के अधिकारियों की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। ऐसी कॉलोनियाँ बनती ही आपसी मिलीभगत से हैं।
लोगों का आरोप है कि सरकारी आदमी पैसा लेकर सब काम करते रहे। शुरू में ही जब निर्माण काम शुरू हुआ, तभी रोक दिया जाता, तो आज उनकी मेहनत की कमायी पर पानी नहीं फिरता। हम लोगों ने मकान सरकार का विरोध करके नहीं बनाये, बल्कि उनकी मौन रज़ामंदी के चलते बनाये। जब सरकार सभी सुविधाएँ हमें मुहैया करा रही है, तो फिर हमें उजाड़ क्यों रही है? उन लोगों पर भी कार्रवाई का जाए, जिन्होंने हमें मंज़ूरी दिलाने के झूठे झाँसे देकर प्लॉट बेचे। हम लोग यहाँ कोई दो-चार साल से नहीं, बल्कि 10-15 साल से रह रहे हैं। हमारे मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड तक बने हुए हैं, जिसमें खोरी गाँव का ही पता लिखा हुआ है।
सरकार ने मकान गिराने के अभियान के बाद पात्र लोगों को फ्लैट देने की घोषणा की है; लेकिन इसमें शर्ते इतनी रखी गयी है कि ज़्यादातर लोग इसके दायरे में नहीं आएँगे। ऐसे लोग आख़िर कहाँ जाएँगे। सरकार ने योजना के तहत वर्ष 2003 से पहले रहने वालों, परिवार की तीन लाख रुपये वार्षिक आय से ज़्यादा न होने और परिवार प्रमुख का नाम बडख़ल विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची में होना अनिवार्य बनाया है। इससे तो कुछ प्रतिशत लोग ही सरकारी योजना का लाभ उठा सकेंगे। जिस सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सरकार ने गाँव पर कर्रवाई की है, अब उसी न्यायालय ने सभी लोगों को फ्लैट योजना के दायरे में लाने को कहा है। खोरी गाँव में ज़्यादातर मकान सन् 2010 के बाद ही बने हैं; लिहाज़ा प्रभावितों की संख्या काफ़ी है।