शिक्षा के बहाने

इस अंक में ‘तहलका’ की कवर स्टोरी ‘एक और कश्मीर फाइल’, फ़िल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की तर्ज पर ही है, जो घाटी से कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार के बाद कश्मीरी हिन्दुओं के पलायन पर केंद्रित है। फ़िल्म में काल्पनिक कहानी अनकही कहानियों को सामने लाने के लिए अतीत की घटनाओं पर है, जबकि हमारे विशेष जाँच दल (एसआईटी) की इस बार की कवर स्टोरी यह बताती है कि कैसे एक छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत कश्मीरी छात्रों को अपने पेशेवर कॉलेजों में प्रवेश देने की पाकिस्तान की नीति का हुर्रियत नेता और उनके नज़दीकी शोषण के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। जिन छात्रों के माता-पिता या क़रीबी रिश्तेदार कश्मीर में सुरक्षा बलों के हाथों कथित तौर मारे गये हैं या भारतीय सुरक्षा बलों के हाथों कथित तौर पर पीडि़त हुए हैं, उन्हें एमबीबीएस और अन्य पाठ्यक्रमों के लिए छात्रवृत्ति कार्यक्रम के तहत सीटों में वरीयता दी जाती है। हाल में देखा गया है कि पाकिस्तान के कुछ मेडिकल कॉलेजों में दाख़िला लेने वाले कश्मीरी छात्रों में अधिकांश महिलाएँ हैं।

डॉक्टर बनने का सपना उन कश्मीरी छात्रों के लिए हमेशा से कठिन रहा है, जिन्होंने सीमा पर कथित उत्पीडऩ, उनकी विचारधारा पर सवाल खड़े करने और सुरक्षा एजेंसियों की तरफ़ से वापसी पर उनकी स्कैनिंग के मद्देनज़र पाकिस्तान के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की माँग की थी। हालाँकि उनके लिए इससे बड़ी मुसीबत क्या हो सकती है कि हाल में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् ने एक बयान जारी कर कहा है कि कोई भी भारतीय नागरिक पाकिस्तान में हासिल की गयी इस तरह की शैक्षिक योग्यता के आधार पर भारत में रोज़गार या उच्च अध्ययन में दाख़िले के लिए किसी भी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश लेने का इरादा रखता है, तो वह उसका पात्र नहीं होगा।’ यही नहीं, इससे पहले सन् 2017 में पीओके में कॉलेजों से प्राप्त डिग्री को भी एमसीआई ने अमान्य घोषित कर दिया था; क्योंकि भारत पीओके को पाकिस्तान के हिस्से के रूप में मान्यता नहीं देता है। अधिकारियों ने कहा कि इसका कारण यह था कि इन युवाओं का सीमा पार ब्रेनवॉश किया गया था और उनमें से कुछ को हथियारों का प्रशिक्षण दिया गया था या स्लीपर सेल में भर्ती किया गया था। ऐसे आरोप हैं कि एक मज़बूत अलगाववादी लॉबी हुर्रियत नेताओं से सिफ़ारिशी-पत्र और पाकिस्तान दूतावास से अन्य वैध यात्रा दस्तावेज़ों की व्यवस्था करती है, ताकि प्रवेश के लिए पाकिस्तान यात्रा की सुविधा मिल सके।

अब राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने भी ऐसी ही चेतावनी जारी की है कि कोई भी भारतीय छात्र, जो पाकिस्तान से एमबीबीएस, बीडीएस या किसी अन्य समकक्ष मेडिकल डिग्री करना चाहता है / करता है; वह पाकिस्तान के विश्वविद्यालयों से प्राप्त शैक्षिक योग्यता के आधार पर एफएमजीई में अपीयर होने या भारत में रोज़गार के लिए पात्र नहीं होगा। साथ ही यह भी आरोप लगाया गया है कि कुछ अलगाववादी नेता, विशेष रूप से छात्रों को सिफ़ारिशी-पत्र जारी करने से पहले उनसे पैसा लेते हैं। पुलिस के अनुसार, अलगाववादी इस तरह से अर्जित धन को कश्मीर में आतंकवाद में लगा रहे थे। राष्ट्रीय जाँच एजेंसी और राज्य जाँच एजेंसी की आतंकवाद और मनी लॉन्ड्रिंग में कश्मीरी छात्रों की भूमिका की जाँच कर रही है। एसआईए ने पाकिस्तान में कश्मीरी छात्रों को एमबीबीएस की सीटों को बेचने और आतंकवाद को समर्थन और फंड देने के लिए धन का उपयोग करने से सम्बन्धित आरोप-पत्र दायर किया है। काउंटर इंटेलिजेंस कश्मीर द्वारा विश्वसनीय स्रोतों के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने के बाद मामला दर्ज किया गया था कि कुछ अलगाववादियों सहित कई बेईमान लोग कुछ शैक्षिक सलाहकारों के साथ हाथ मिलाकर यह धंधा कर रहे थे। ऐसे आरोप हैं कि कुछ पुलिस अधिकारियों के बच्चों ने भी पाकिस्तान में चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए अलगाववादी नेताओं के अनुशंसा पत्रों का प्रबंधन किया है। निश्चित ही यह बेहद चिन्ताजनक बात है।