शाह और शेरनी का मुकाबला

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मज़बूत टीएमसी को हराने की कोशिश में भाजपा

दिसंबर के दूसरे पखवाड़े की बात है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बड़े नेता शुवेंदु अधिकारी गृह मंत्री अमित शाह की जनसभा में भाजपा में शामिल हो गये। शाह ने इसे पश्चिम बंगाल में भाजपा की लहर का संकेत बताया। इसके दो दिन बाद ही भाजपा ने 2016 में अपने यूट्यूब चैनल और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉम्र्स पर अपलोड किया एक वीडियो डिलीट कर दिया, जिसमें अन्य के अलावा शुवेंदु भी थे; क्योंकि यह वीडियो अब फिर वायरल हो रहा था। एक स्टिंग वाला यह वीडियो भाजपा ने अपने यूट्यूब चैनल पर चार साल पहले इसलिए अपलोड किया था, ताकि वह टीएमसी पर भ्रष्टाचार को लेकर हमला कर सके। क्योंकि इसमें शुवेंदु अन्य नेताओं के साथ पैसे लेते दिख रहे थे; जो उस समय टीएमसी में थे। एक दिन बाद ही भाजपा ने शुवेंदु को जेड कैटेगरी की सुरक्षा प्रदान करते हुए बुलेट प्रूफ गाड़ी भी उपलब्ध करवा दी। इसी वीडियो में दिखने वाले दो नेता भाजपा में शामिल हो गये; जबकि मुकुल रॉय पहले ही पार्टी में जा चुके थे। इसके बाद टीएमसी के एक नेता ने टिप्पणी की- ‘भाजपा के लिए अब शुवेंदु दूध के धुले हो गये। इससे उसके दोगलेपन का पता चलता है।’ पश्चिम बंगाल में इस साल विधानसभा चुनाव हैं; लेकिन वहाँ अभी से चुनावी सरगर्मी दिखने लगी है। पश्चिम बंगाल की शेरनी के नाम से जाने जाने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को टक्कर देने के लिए भाजपा ने पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह को मैदान में उतारा है। ज़मीन पर बहुत मज़बूत ममता को शाह कैसे टक्कर दे पाते हैं? यह देखना दिलचस्प होगा।

भाजपा को पश्चिम बंगाल में जो उम्मीद दिख रही है, उसके पीछे 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे हैं, जिनमें भाजपा ने 42 में 18 सीटें जीती थीं। हालाँकि टीएमसी को 22 सीटें, जो सबसे ज़्यादा हैं; मिली थीं। लेकिन यह माना गया कि भाजपा टीएमसी की टक्कर में है। मगर, यह लोकसभा के नहीं, विधानसभा के चुनाव हैं। राजनीति के जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव में बहुत फर्क है। लोकसभा में नरेंद्र मोदी के लिए वोट पड़े थे; क्योंकि विपक्ष के पास कोई राष्ट्रीय विकल्प नहीं था। विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने ममता बनर्जी जैसी ताकतवर नेता हैं, जिनका दामन बेदाग रहा है और पिछले 10 साल में उनकी सरकार के काम पर कोई एंटी इंकम्बेंसी नहीं दिखती। राज्य में उनके राज में दंगे नहीं हुए हैं। दूसरे ममता की जनता पर पकड़ किसी भी अन्य नेताओं के मुकाबले बहुत ज़्यादा है।

देखा जाए तो भाजपा टीएमसी और अन्य दलों के नेताओं को दल-बदल करवाकर अपने साथ जोडऩे के अलावा साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण पर ज़्यादा निर्भर है। भाजपा के पास पश्चिम बंगाल में कोई मज़बूत संगठन नहीं है और न ही कोई कद्दावर नेता, जो ममता बनर्जी जैसी ताकतवर नेता को टक्कर देने की क्षमता रखता हो। यहाँ तक कि टीएमसी से दल-बदल करके जो नेता भाजपा में आये हैं, उनमें से अधिकतर ऐसे हैं, जो चुनाव जीतने के लिए ममता बनर्जी पर निर्भर रहे हैं। ऐसे में वे कैसे भाजपा को फायदा पहुँचा पाएँगे? यह भविष्य ही बतायेगा।

हाँ, एक बात सच है कि विधानसभा का अगला चुनावी मुकाबला पश्चिम बंगाल में टीएमसी और भाजपा के बीच ही होगा। पश्चिम बंगाल में वाम दल और कांग्रेस शून्य जैसी स्थिति में हैं; लोकसभा चुनाव के नतीजों में भी यह दिखा था। वामदल तो एक भी सीट नहीं जीत पाये थे, जबकि कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। लोकसभा चुनाव में भी अमित शाह ने ही भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल का मैदान सँभाला था, तब वह भाजपा अध्यक्ष भी थे। इस बार भी शाह ममता को चुनौती देने निकले हैं। हालाँकि ‘बाहरी’ बनाम ‘धरती पुत्री’ का नारा उनके रास्ते का रोड़ा बन सकता है।

पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा हमेशा होती रही है। इस बार भी चुनाव से पाँच महीने पहले ही हिंसा की घटनाएँ शुरू हो गयी हैं। भाजपा टीएमसी पर हिंसा करने और उसके कार्यकर्ताओं की हत्याओं का आरोप लगा रही है; लेकिन एक मामले में तो आत्महत्या को भी हत्या बता देने से भाजपा को काफी किरकिरी झेलनी पड़ी। कई जगह भाजपा पर हिंसा के आरोप भी लग चुके हैं। टीएमसी किसी भी तरह की हिंसा से साफ इन्कार कर चुकी है। दरअसल भाजपा को पूरी तरह साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश में दिख रही है, भले वो इससे लाख इन्कार करे। शाह सीधे ममता बनर्जी पर हमला कर रहे हैं। हालाँकि टीएमसी के नेता मान कर चल रहे हैं कि इससे भाजपा का ही नुकसान होगा; क्योंकि दीदी की छवि जनता में बहुत अच्छी है।

पश्चिम बंगाल की राजनीति को गहरे से समझने वाले कोलकाता में वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी से ‘तहलका’ ने बातचीत की, तो उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा दािगयों के सहारे चुनाव जीतने की कल्पना कर रही है। शाह के दौरे के समय भगवा झण्डा थामने वाले शुवेंदु अधिकारी हों या फिर दो साल पहले टीएमसी से नाता तोड़कर भाजपा के पाले में जाने वाले मुकुल रॉय; किसी का दामन उजला नहीं है। अगले चुनाव में दो-तिहाई बहुमत से सत्ता में आने का दावा करने वाली भाजपा ऐसे दागी नेताओं की बैशाखी पर चलने का फैसला कर चुकी है, जो पहले से ही भ्रष्ट्राचार और हत्या तक के आरोपों से जूझ रहे हैं, ऐसे में उसका रास्ता मुझे मुश्किल दिखता है। ज़मीन पर ममता बनर्जी को टक्कर देने के लिए उसे इसके अलावा और कुछ ठोस करना होगा।

दरअसल जिन नेताओं को भाजपा ममता बनर्जी से मुकाबला करने के लिए साथ ले रही है और अपना ट्रंप कार्ड बता रही है, उनमें से ज़्यादातर पर गम्भीर आरोप हैं। सारदा चिटफंड घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझने वाले इन नेताओं में से मुकुल रॉय पर तो तृणमूल कांग्रेस विधायक सत्यजीत विश्वास की हत्या तक का आरोप है। हत्या की जाँच करने वाली सीआईडी की टीम ने दिसंबर के शुरू में अदालत में पूरक आरोप-पत्र दायर किया है और उसमें राज्य का नाम शामिल है। सारदा चिटफंड के मालिक सुदीप्त सेन ने जेल से सीबीआई को जो पत्र भेजा था, उसमें जिन पाँच नेताओं का ज़िक्र है, जिनमें मुकुल रॉय और शुवेंदु अधिकारी शामिल हैं। कड़वा सच यह है कि खुद के पाक-साफ होने का दावा करने वाली भाजपा अन्य से अलग नहीं है। भाजपा के लिए यह स्थिति तब और भी हास्यास्पद हो जाती है, जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह टीएमसी के भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा बनाने की बात करते हैं।

पश्चिम बंगाल में भाजपा संगठन के तौर पर कितनी कमज़ोर है? यह अमित शाह की मेदिनीपुर की जनसभा में कही बात से ज़ाहिर हो जाता है, जब उन्होंने कहा- ‘शुवेंदु अधिकारी समेत 10 विधायकों का पार्टी में शामिल होना तो एक शुरुआत है। चुनाव आते-आते दीदी आप अकेली रह जाओगी।’ ज़ाहिर है भाजपा और शाह दूसरे दलों से भाजपा में आने वाले नेताओं के सहारे ही हैं, जब वे कहते हैं- ‘ममता ने पश्चिम बंगाल में भाजपा की सुनामी की कल्पना तक नहीं की होगी। अगले चुनाव में पार्टी 200 से ज़्यादा सीटें जीतेगी। पूरा पश्चिम बंगाल दीदी के खिलाफ है। भाजपा को सत्ता में आते ही राज्य को सोनार बांग्ला बना देगी।’

इसमें कोई दो-राय नहीं कि मुस्लिम वर्ग का ममता और टीएमसी को मज़बूत समर्थन रहा है। ऐसे में भाजपा पर टीएमसी आरोप लगा रही है कि वो बिहार की तरह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को पैसे देकर पश्चिम बंगाल में वोट कटवा पार्टी के रूप में लाने की तैयारी कर रही है। ओवैसी इस आरोप को गलत बता रहे हैं; लेकिन भाजपा ओवैसी के चुनाव में उतरने को अपने लिए फायदे की बात मानती है। इसके बावजूद मुस्लिम पश्चिम बंगाल में ममता से छिटककर ओवैसी की पार्टी को वोट देंगे, इसकी सम्भावना बहुत नहीं दिखती।

ममता की तैयारी और चुनौतियाँ

हाल की अपनी बैठकों में ममता ने तमाम टीएमसी नेताओं को सरकार के 10 साल के कामकाज के साथ आम लोगों के बीच जाने का निर्देश दिया है। पार्टी के नेता जनता को यही बताएँगे कि अपने पैरों तले ज़मीन कमज़ोर होने की वजह से भाजपा कैसे तृणमूल को तोडऩे का प्रयास कर रही है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि पिछले दो विधानसभा चुनावों के मुकाबले इस बार टीएमसी का मुकाबला नये विरोधी से है। लोकसभा में स्थिति भिन्न थी। विधानसभा चुनाव में टीएमसी पर अपनी सत्ता बचाने का दबाव है। पिछले चुनावों में टीएमसी का मुकाबला बेहतर संगठन वाली माकपा से था; जो अलोकप्रिय हो गयी थी। लेकिन इस बार उसका मुकाबला संगठन में कमज़ोर, मगर लोकप्रिय नेता नरेंद्र मोदी वाली भाजपा से है। ऐसे में उसे अपनी पूरी ताकत झोंकनी होगी।

राजनीतिक संघर्ष से निकलीं ममता बनर्जी के सामने इस बार पार्टी की बगावत चिन्ता का विषय है; भले यह बहुत गम्भीर स्तर की बात न हो। ममता जानती हैं कि पैसे के मामले में वह भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकतीं। लेकिन यह भी सच है कि जिस कद की नेता ममता हैं, भाजपा उस कद को पैसे के बूते हासिल नहीं कर सकती। हाल के महीनों तक ममता की बात पार्टी के नेताओं के लिए पत्थर की लकीर होते थी; लेकिन माना जाता है कि टीएमसी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के कुछ फैसलों से कई नेता असहमत रहे हैं। इसके अलावा ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी के काम करने के तरीके को लेकर भी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में मतभेद रहा है।

भाजपा को जबाव देने के लिए ममता बनर्जी ने रोड शो के साथ-साथ प्रेस वार्ता करके भी अपनी सरकार की उपलब्धियाँ जनता के सामने रखी हैं। वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मणि तिवारी कहते हैं- ‘ममता के खिलाफ जनता में कुछ है नहीं। सरकार के खिलाफ भी कोई विरोधी रुझान नहीं दिखता। उनका विकास के मामले में भी रिकॉर्ड बुरा नहीं है; लिहाज़ा भाजपा के पास जनता को ममता के खिलाफ करने के लिए कोई ठोस मुद्दा है नहीं।’

हाल में ममता सरकार ने ‘द्वारे सरकार’ नाम से बड़ी योजना शुरू की है। इसमें पंचायत, वार्ड स्तर पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसके अलावा राशन कार्ड, उससे जुड़े बदलाव को घर बैठे पूरा किया जा सकेगा। आदिवासी, तापिस समुदाय के बच्चों को 800 रुपये सालाना की स्कॉलरशिप मिलेगी। 60 साल से अधिक उम्र वाले लोगों, जिनके पास कमाई का कोई साधन नहीं है; को सरकार घर बैठे 1000 रुपये प्रति महीना दे रही है। इसके अलावा सरकार राज्य में 8,000 से अधिक हिन्दू पुजारियों के लिए 1,000 मासिक वित्तीय सहायता और मुफ्त आवास और सनातन ब्राह्मण सम्प्रदाय को कोलाघाट में एक अकादमी तैयार करने के लिए ज़मीन दे चुकी है। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार ‘कर्म साथी’ योजना में दो लाख युवाओं को मोटरसाइकिल बाँटने की योजना चला रही है। केंद्र की ‘आयुष्मान भारत योजना’ के मुकाबले ममता राज्य में सरकारी अस्पतालों में फ्री उपचार और दवाए मुहैया करवा रही हैं। राज्य की स्वास्थ्य साथी योजना के तहत 7.5 करोड़ आबादी को कवर किया गया है।

भाजपा की रणनीति

भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा पश्चिम बंगाल का दौरा कर चुके हैं। अमित शाह तो लगातार सक्रिय हैं ही। भाजपा आर नोई अन्याय (अब और अन्याय नहीं) के तहत टीएमसी को खलनायक की तरह पेश करने की कोशिश कर रही है और आरोप लगा रही है कि उसके कार्यकर्ताओं की हत्या की जा रही है। भाजपा हिन्दुत्व के एजेंडा भी साथ में चला रही है। यही नहीं, भाजपा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के गृह क्षेत्र भवानीपुर और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के डायमंड हार्बर में चुनाव तक अभियान चलाने की योजना बनायी है। हालाँकि टीएमसी सांसद सौगत रॉय कहते हैं कि इसका कोई फर्क नहीं पड़ेगा। रॉय कहते हैं कि जे.पी. नड्डा को यहाँ लोग जानते तक नहीं। वे हिमाचल से हैं और यहाँ की राजनीति को समझते नहीं हैं।

भाजपा प्रशासनिक मोर्चे पर भी ममता पर हमले कर रही है। दिसंबर में भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के काफिले पर हमले के बाद केंद्र ने जहाँ ममता सरकार से रिपोर्ट तलब की, वहीं उनके मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को दिल्ली तलब किया। भले केंद्र के दबाव के सामने झुकने से इन्कार करते हुए ममता ने इन अधिकारियों को दिल्ली नहीं भेजा, लेकिन इसके बाद केंद्र ने तीन वरिष्ठ आईपीएस अफसरों को जबरन केंद्रीय डेपुटेशन पर जाने का निर्देश दे दिया। इसके अलावा पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी अन्य राज्यपालों के मुकाबले ज़्यादा सक्रिय दिखते हैं और ममता सरकार को कटघरे में खड़ा करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते। टीएमसी मानती है कि यह सब केंद्र के इशारे पर उन्हें परेशान करने के लिए है।

भाजपा दक्षिण और उत्तर 24 परगना ज़िलों में ज़्यादा ताकत झोंक रही है। टीएमसी से भाजपा में आये मुकुल रॉय इसी क्षेत्र से हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस क्षेत्र में बैरकपुर और बनबांव की सीटें जीती थीं। मतुआ समुदाय का यहाँ ज़ोर रहा है। शुवेंदु अधिकारी भी भाजपा में जा चुके हैं, जो दक्षिण पश्चिम बंगाल के पूर्वी मिदनापुर से हैं। वैसे वह यहाँ एक बार हार चुके हैं। लेकिन सच है कि इससे भाजपा को इलाके में घुसने का अवसर मिल गया है। नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण विरोधी आन्दोलन ने जब ममता नारजी को जबरदस्त राजनीतिक लाभ दिया था, तब शुवेंदु ही यहाँ विधायक थे।

राज्य में मुख्य रूप से गंगीय बंगाल, उत्तर बंगाल, राढ़ और दक्षिण बंगाल के चार क्षेत्र हैं। लोकसभा चुनाव में 2019 में भाजपा का उत्तर बंगाल और राढ़ क्षेत्र में प्रदर्शन बेहतर रहा था। गंगीय और दक्षिण बंगाल क्षेत्रों में टीएमसी हावी रही थी। भाजपा तो उम्मीद है कि उत्तर बंगाल में वह उलटफेर कर सकती है। कभी यह वामपंथ का मज़बूत गढ़ था। भाजपा को दक्षिण-पश्चिम बंगाल में टीएमसी को पछाड़े बगैर सफलता नहीं मिलेगी। यदि वह वाम जनाधार को अपने पक्ष में कर सके, तभी यह सम्भव है, और यह कोई मामूली चुनौती नहीं है। पेच एक ही है कि लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की जनता ने कहा था कि दिल्ली में मोदी और बंगाल में ममता। जनता की इस सोच को भाजपा बदल पायेगी या नहीं? यह बड़ा सवाल है।

कांग्रेस और वामपंथी

कांग्रेस और वामपंथी दलों का पश्चिम बंगाल में वोट बैंक होने के बावजूद इस बार दोनों दल बहुत ठण्डे दिख रहे हैं। वैसे 2011 में कांग्रेस ने टीएमसी के साथ गठबन्धन करके चुनाव लड़ा था, जबकि 2016 में वाम दलों के साथ। हो सकता है अन्तिम समय में टीएमसी भाजपा को पूरी तरह रोकने के लिए कांग्रेस का साथ ले। ममता बनर्जी हाल में एनसीपी नेता शरद पवार से भी बात कर चुकी हैं। लिहाज़ा फरवरी या मार्च तक ही ऐसे किसी गठबन्धन की तस्वीर साफ हो सकेगी। तब तक कांग्रेस में नया नेतृत्व होगा और देखना होगा, उसका क्या फैसला रहता है। आज की तारीख में तो कांग्रेस भाजपा की ही तरह टीएमसी की भी निन्दा ही करती है।

क्या सौरव गांगुली उतरेंगे मैदान में!

भाजपा की बंगाल में सबसे बड़ी कमज़ोरी ममता जैसी मज़बूत नेता का मुकाबला करने के लिए बड़ी कद-काठी का नेता न होना है। बंगाल टाइगर के नाम से मशहूर सौरव गांगुली जब बीसीसीआई के अध्यक्ष बने और जिस तरह अमित शाह के पुत्र जय शाह उनके साथ सचिव बने, तभी से यह कयास लगते रहे हैं कि भाजपा उनकी लोकप्रियता और कद को देखते हुए उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में आगे कर सकती है। फिलहाल तो सौरव राजनीति में जाने की बात पर न ही कहते हैं; लेकिन बहुत से जानकार मानते हैं कि भाजपा अन्तिम समय में तुरुप के पत्ते के रूप में उन्हें आगे कर सकती है।

हमारी ताकत आम लोग हैं, नेता नहीं। दल-बदलू नेताओं के पार्टी छोडऩे से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। ऐसे लोग पार्टी पर बोझ थे। आम लोग उन्हें विश्वासघात की सज़ा देंगे; क्योंकि पश्चिम बंगाल के लोग विश्वासघातियों को पसन्द नहीं करते।

ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री

ममता बनर्जी ने माँ, मानुष और माटी के नारे को भ्रष्ट्राचार, तोलाबाज़ी और भतीजावाद में बदल दिया है। जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आएँगे, तो भाजपा 200 से अधिक सीटों के साथ सरकार बनायेगी। पश्चिम बंगाल की जनता आपने पश्चिम बंगाल के तीन दशक कांग्रेस को दिये, 27 साल कम्यूनिस्टों को दिये, 10 साल ममता दीदी को दिये; अब आप पाँच साल भाजपा को दीजिए, हम आपके लिए सोनार बांग्ला बनाएँगे।

अमित शाह, गृहमंत्री