शादी इंसानों की है, मज़हबों की नहीं

रजत अपने गृह राज्य बिहार से जब दिल्ली निकला था, तब उसने यह नहीं सोचा था कि उसकी िकस्मत उसे कहाँ से कहाँ ले जाएगी। उसने सिर्फ इतना ही सोचा था कि किसी कम्पनी में नौकरी करेगा और आराम से ज़िन्दगी जियेगा। इसका एक कारण यह भी था कि अंग्रेज़ी बिल्कुल भी नहीं जानता था। उसे इस बात का शुरू में तो कोई आभास नहीं था कि अंग्रेज़ी आज के दौर में कितनी ज़रूरी है, लेकिन जब वह दिल्ली आया और उसे एक छोटी कम्पनी में नौकरी मिली, तो उसे एक झटका-सा लगा। वहाँ दूसरों की अपेक्षा उसकी अंग्रेज़ी बहुत कमज़ोर थी, अंग्रेज़ी ही क्या, हिन्दी भी कमज़ोर थी।

लेकिन कहते हैं कि अगर िकस्मत इंसान को राजा बनाना चाहे, तो वह राजा भी बन जाता है। रजत को इस बात का अफसोस था कि उसकी अंग्रेज़ी इतनी खराब क्यों है? उसने ज़िद ठान ली कि अंग्रेज़ी सीखकर ही दम लेगा और वह इस दिशा में जी-जान से लग गया। एक साल के अंदर ही उसकी अंग्रेज़ी इतनी अच्छी हो गयी कि सभी हैरत में रहने लगे। यहाँ तक कि कम्पनी में उसका स्तर और इज़्ज़त दोनों ही बढ़ गये। और एक दिन उसकी िकस्मत ने ऐसा ज़ोर लगाया कि उसे भी आश्चर्य हुआ। कम्पनी ने रजत को विदेश भेजने का प्रस्ताव दिया और वह तैयार हो गया। महीने भर के अंदर दो साल का कम्पनी ने रजत का वीजा कराया  और लंदन भेज दिया। 2013 में रजत जो गया, तो उसे क्या पता था कि वह ज़िन्दगी भर के लिए वहीं बस जाएगा। एक साल के अन्दर ही उसे उसी के साथ काम करने वाली अपनी वरिष्ठ कर्मी तनीशा जैकसन से प्यार हो गया। तनीशा भारतीय मूल की युवती थी; लेकिन उसका जन्म लंदन में ही हुआ था। रजत की समस्या यह थी कि वह पूरी तरह से भारतीय था और हिन्दू रीति-रिवाज़ों से बँधा था। तनीशा को जिस दिन यह लगा कि रजत उसकी ओर आकॢषत है, उसे रजत की ओर चाहे-अनचाहे एक खिंचाव-सा महसूस होने लगा। धीरे-धीरे दोनों में अच्छी दोस्ती हो गयी और फिर प्यार। यह वह साल था, जब रजत के भारत लौटने में केवल आठ माह बचे थे। रजत इसी अफसोस में घुला जा रहा था कि पता नहीं, वह जिस लडक़ी को चाहने लगा है, वह उसकी जीवन-साथी बन भी सकेगी या नहीं! वह तनीशा से भी यह कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था कि वह उससे शादी की बात खुलकर कह सके। इधर, तनीशा इस इंतज़ार में थी कि रजत उससे खुद कहे कि वह उससे शादी करना चाहता है। इसी कशमकश में दोनों तीन महीने तक एक-दूसरे की ओर से पहल करने की उम्मीद में रहे। एक दिन तनीशा को पता चला कि रजत पाँच महीने बाद भारत लौट जाएगा, रुक न सकी और रजत से बात की। जैसे ही रजत ने अपनी मजबूरी बतायी, तनीशा ने रजत को लंदन में रोकने की कोशिशें शुरू कर दीं और अपने परिवार से भी उसे मिलाया। परिवार वालों को रजत और तनीशा के रिश्ते से कोई आपत्ति तो नहीं थी, मगर रजत का ईसाई न होना कुछ अखर रहा था। उन्होंने रजत से कहा भी कि वह ईसाई बन जाए, तो उन्हें बहुत खुशी होगी। लेकिन रजत ने उन्हें ऐसा जवाब दिया कि वे आगे कुछ बोल न सके। रजत का जवाब था कि शादी दो इंसानों की हो रही है, दो मज़हबों की नहीं। खैर, तनीशा के पिता को यही खुशी थी कि उन्हें एक भारतीय दामाद मिल रहा है, जो कुछ भी हो, पर ईमान का पक्का है।

इधर, रजत ने अपने ग्रामीण और गैर पढ़े-लिखे माँ-बाप को जब यह बताया कि वह लंदन की गोरी से शादी करने की सोच रहा है, तो उसके घर में खुशी और रंज दोनों ही थे। एक तरफ जहाँ उसके माँ-बाप बहुत खुश थे, तो वहीं रजत के पड़ोसी और रिश्तेदार उसके माँ-बाप को डराने लगे कि ‘लइका तुम्हार नहीं रहला, ऊ तौ गोरी मैम का होइला।’ रजत के माँ-बाप जब यह सुनते तो काफी दु:खी होते और कई बार तो रोने भी लगते।

इधर रजत और तनीशा शादी की तैयारियों में लगे थे। हर रोज़ दफ्तर से निकलकर खरीदारी करते, तो कभी-कभी घूमने निकल जाते। साप्ताहिक अवकाश पर दोनों दिन भर एक-दूसरे के साथ िफल्म देखते और मस्ती करते। …और रजत के वीजा की अवधि समाप्त होने से पहले उसकी तनीशा से शादी हो गयी। शादी होने के बाद वह अब स्थायी रूप से लंदन में रहने के लायक था। हालाँकि, इसके लिए अनेक कागजी प्रक्रियाओं से भी गुज़रना था। लेकिन यह नामुमकिन जैसा कुछ नहीं था; क्योंकि अब वह लंदन निवासी तनीशा का पति था। तनीशा के कहने पर उसने पुरानी कम्पनी की नौकरी छोड़ दी और दूसरी कम्पनी में नौकरी के लिए आवेदन करके नौकरी भी कर ली।

शादी के करीब डेढ़ साल बाद रजत और तनीशा भारत आये। जैसे ही रजत अपने घर पहुँचा, उसके माँ-बाप की खुशी का ठिकाना नहीं था। जो पड़ोसी और रिश्तेदार उन्हें ताने मारते थे, वे अब भौंचक होकर रजत और तनीशा को देखते थे; बल्कि रजत से ज़्यादा लोग तनीशा को देखते थे। उसकी चर्चा करते। लेकिन चर्चा में बार-बार यह कहना नहीं भूलते कि रजत गोरी मैम ले आया, यहाँ लड़कियों की क्या कमी थी। एक से एक पढ़ी-लिखी मिलती। विदेसन में भला क्या मिला? न अपनी जात की, न धरम की। इस पर रजत चिढक़र कहता- तुम लोग इसीलिए दु:खी रहते हो, कोई भी मज़हब और जाति से बाहर नहीं निकलता। शादी दो इंसानों की होती है, दो मज़हबों की नहीं। इस पर सब खामोश हो जाते।

इसी तरह करीब डेढ़ माह रजत और तनीशा वहीं रहे और अब उन्हें लंदन वापस जाना था। घर में खुशी के डेढ़ माह के बाद एक बार फिर खामोशी और बिछडऩे की पीड़ा थी। दिल्ली से फ्लाइट पकडऩे से तीन दिन पहले दोनों ने माँ-बाप और बड़ों का आशीर्वाद लिया और घर से रवाना हो गये। जाने से पहले रजत ने अपने माँ-बाप का बैंक अकाउंट खुलवाया, उसमें साल भर के खर्च के लिए पैसे डाले और घर में ज़रूरत का बहुत सारा सामान खरीदकर रखा।