शहादत की ज्योति

अमर जवान ज्योति के राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में अमर ज्योति के साथ विलय को लेकर बेवजह राजनीतिक विवाद छिड़ गया है। निश्चय ही इंडिया गेट की ज्योति हमारे मानस का हिस्सा बन चुकी थी और वो पीढिय़ाँ इसकी गवाह हैं, जो शूरवीरों को प्रणाम करते हुए बड़ी हुई हैं। इस अमर जवान ज्योति को कभी बुझने नहीं दिया गया। एकीकृत रक्षा स्टाफ प्रमुख एयर मार्शल बलभद्र राधा कृष्ण की अध्यक्षता में एक समारोह में इसे राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में नया स्थान मिला। कुछ समय पहले तक हमारे पास नई दिल्ली में इंडिया गेट के पास एक राष्ट्रीय युद्ध स्मारक और स्मारक की कमी थी। यह हमारे उन सैनिकों के लिए एक श्रद्धांजलि है, जिन्होंने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी और शान्ति मिशनों और आतंकवाद विरोधी अभियानों में सर्वोच्च बलिदान दिया। यह शहीदों के प्रति कृतज्ञ राष्ट्र की सामूहिक आकांक्षा की परिणति का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमारे बहादुरों को श्रद्धांजलि देने के लिए राष्ट्र का प्रतीक है और इसमें हर एक सैनिक का नाम है, जो राष्ट्र की सेवा में शहीद हुए हैं और ज्योति उन सभी वीरों का प्रतिनिधित्व करती है।

इंडिया गेट पर ब्रिटिश-युग का स्मारक सन् 1921 में प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे एंग्लो-अफ़ग़ान युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की याद में बनाया गया था। जबकि अमर जवान ज्योति 26 जनवरी, 1972 से जल रही है। सन् 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को सम्मानित करने के लिए इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा जलायी गयी यह ज्योति उस दिन के युद्ध की ऐतिहासिकता की भी याद दिला रही थी, जो बांग्लादेश के निर्माण के साथ समाप्त हुआ। हालाँकि इंडिया गेट स्मारक पर केवल ब्रिटिश सैनिकों और अधिकारियों सहित 13,218 सैनिकों के नाम अंकित हैं। बेशक इन सैनिकों ने सर्वोच्च बलिदान दिया; लेकिन कर्तव्य की पंक्ति में देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिक बाद में गुमनाम रहे।

इंडिया गेट क्षेत्र में मण्डप के नीचे नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा स्थापित करने के निर्णय की सराहना की जानी चाहिए। क्योंकि इससे नेताजी और भारतीय राष्ट्रीय सेना की विरासत को उसका सही स्थान मिला है। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के होलोग्राम का अनावरण किया, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के महान् नायक को गाँधी, नेहरू, पटेल और अंबेडकर के समान आसन पर बैठाया गया, तो यह गर्व का क्षण था। नेताजी के होलोग्राम को जल्द ही तराशे पत्थर में बदल दिया जाएगा और यह कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा स्वतंत्रता के नायक को श्रद्धांजलि होगी। यह हमारी संस्थाओं और आने वाली पीढिय़ों को राष्ट्रीय कर्तव्य का पाठ याद दिलाता रहेगा।

प्रधानमंत्री ने उचित अवलोकन किया कि नेताजी जिस मान्यता के हक़दार थे, जिससे उन्हें अन्य कई महान् हस्तियों के योगदान की तरह ही वंचित कर दिया गया था और उन्हें मिटाने की कोशिश की गयी थी; उन्हें मिलना चाहिए। अब इन ग़लतियों को ठीक किया जा रहा है। विपक्ष ने शाश्वत् ज्योति को स्थानांतरित करने के निर्णय को इतिहास मिटाने जैसा बताया, जबकि केंद्र ने अपने जवाबी हमले में विपक्ष पर दशकों तक सत्ता में रहने के बावजूद राष्ट्रीय युद्ध स्मारक नहीं बनाने का आरोप लगाया। लेकिन इस तरह के समावेशी मुद्दे पर राजनीति करने के बजाय हमें अपने सशस्त्र बलों को सलाम करना चाहिए और अनन्त लौ को जलने देना चाहिए।

चरणजीत आहुजा