शराब के भरोसे अर्थ-व्यवस्था?

कोरोना वायरस की रफ्तार को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन करके सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए तामाम कड़े फैसले लिए। इसमें सरकार ने अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ कारोबार को भी नहीं देखा। लेकिन अचानक ऐसा कौन-सा संकट सरकार के पास आ गया कि लॉकडाउन -3 के पहले ही दिन 4 मई को सरकार ने जो अन्य रियायतें दीं, उनमें शराब की दुकानों को खोलने में प्राथमिकता दिखा डाली। यह बात हर किसी को इतना ज़रूर सोचने को मजबूर कर रही है कि क्या हमारे देश की अर्थ-व्यवस्था शराब  के भरोसे है? तहलका संवाददाता ने शराब विक्रेताओं और शराब के शौकीनों से बात की, तो लोगों ने कहा कि शराब ही सब कुछ नहीं है; लेकिन सरकार ने ही शराब की दुकानें खोल दीं, तो पीने में कोई हर्ज भी नहीं है।

4 मई को 42 दिन के बाद शराब के की दुकानें खुलने बाद दिल्ली सहित देश के अन्य राज्यों में शराब की दुकानों पर जिस तरह लम्बी-लम्बी लाइनें लगीं और लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग के नियम तोड़े, उससे कोरोना का खतरा बढ़ा ही है। ऐसे में सरकार के उन तमाम प्रयासों को धक्का लगा, जो सरकार ने अभी तक किये हैं। शराब के ठेकों पर इस कदर भीड़ हो गयी कि कई जगह तो पुलिस को लाठी चार्ज तक करके दुकानें बन्द कराने को मजबूर होना पड़ा। कुल मिलाकर कोरोना का खतरा बढ़ा ही, क्योंकि पुलिस को लोगों को दुकान तक न आने देने के निर्देश न होने के चलते, लोग दुकान तक तो पहुँचे ही, शराब की तलब में सोशल डिस्टेंसिंग के नियम को तोडऩे से भी पीछे नहीं रहे। इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि शराब राजस्व का बड़ा और सरल ज़रिया है। लेकिन हमेशा देखा जाता है कि फायदे के लिए कायदे को दरकिनार कर दिया जाता है और वही शराब की दुकानें खुलने पर भी हुआ। वित्तीय संकट से उभरने के लिए सरकार ने शराब के कारोबार को इस प्राथमिकता के आधार पर बढ़ावा दिया कि लॉकडाउन के कारण जो अर्थ-व्यवस्था पटरी से उतरी है, उसे शराब के भरोसे पटरी पर लाया जा सकता है। हालाँकि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का ध्यान इस ओर नहीं गया कि शराब की दुकानों भीड़ उमड़ेगी, उसका क्या? सरकारों को इतना तो समझना ही चाहिए कि भीड़ जहाँ होगी, वहाँ नुकसान की सम्भावनाएँ ज़्यादा होती हैं। यह कितना बड़ा जोखिम है। यह बात तो इसी से समझी जा सकती है कि इस समय देश भर में कोरोना वायरस के पॉजिटिव मामलों में लगातार इज़ाफा हो रहा है। सरकार खुद इस बात को भली-भाँति जानती है और प्रचार भी करती है कि कोरोना नामक महामारी से बचने का सबसे बड़ा औज़ार केवल सोशल डिस्टेंसिंग है। लेकिन राजस्व और उत्पाद शुल्क के कारण उसने भी इस सबको नज़रअंदाज़ कर दिया।

कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे प्रदेशों में उत्पाद शुल्क के रूप में कुल राजस्व का 15 से 21 फीसदी हिस्सा शराब से ही आता है। 4 मई को शराब की दुकानें खुलने से अकेले उत्तर प्रदेश में 100 करोड़ रुपये से अधिक की शराब की बिक्री हुई। इस रिकॉर्ड बिक्री से आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों ने 42 दिनों में कितना नुकसान उठाया है।

मजे की बात यह है कि शराब की दुकानों के आगे लाइन में लगे लोगों पर शराब पीने का जुनून इस कदर तारी था कि उनके मन से कोरोना वायरस के संक्रमण का खौफ तक दिखायी नहीं दे रहा था। एक शराब की दुकान के बाहर लाइन में लगे विमल कुमार ने गाते-गाते कहा कि मुझे पीने का शौक नहीं पीता हूँ, कोरोना को हराने को। दुकानों के बाहर लम्बी लाइनों में लगे शराब के कई शौकीनों ने कहा कि वे मानते हैं कि शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, पर गम में और मस्ती में शराब का कोई सानी नहीं है। शराब के शौकीनों ने बताया कि 24 मार्च से कोरोना वायरस के कहर के कारण देशव्यापी लॉकडाउन होने की वजह से और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे थे। वहीं पुलिस ने कहा कि सरकार को देश चलाना है और पुलिस को नौकरी करनी है। ऐसे में शराब की दुकानों में कोई अप्रिय घटना न घटे इसलिए वे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवा रहे हैं।

 शराब की दुकानों में मची हुड़दंगलीला और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ाये जाने के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा था कि अगर शराब की दुकानों में कोई हंगामा होता है, तो दुकानें बन्द कराने के साथ-साथ वे लॉकडाउन बढ़ाने को मजबूर हो सकते हैं।

गाँधीवादी व सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार का कहना है कि माना कि शराब से सरकार को अन्य विभागों की तुलना में राजस्व अधिक आता है; लेकिन सरकार यह भी भूल गयी कि गुजरात में विकास हो रहा है। जहाँ शराब पूर्ण बन्दी है। महात्मा गाँधी के गुजरात में शुरू से ही शराबबन्दी है और गुजरात के लोग शराबबन्दी के पक्ष में भी रहे हैं। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि जिस राज्य में शराब के व्यापार से राजस्व नहीं आता है, वहाँ पर विकास कम होता है।

बिहार निवासी शराब विरोधी अभियान से जुड़े प्रियरंजन का कहना है कि बिहार की महिलाओं ने शराब के विरोध में प्रदर्शन किये और 2015 में बिहार के चुनाव में नीतीश कुमार ने वादा किया था कि बिहार में शराबबन्दी की जाएगी, तबसे अब तक वहाँ पर शराबबन्दी है और विकास भी अपनी गति पर है।

शराब की दुकान में काम करने वाले जागेश्वर प्रसाद ने कहा कि भले ही सियायत जात-पात में फँसी हो, पर मधुशाला में जो भाईचारा देखने को मिलता है, वह अतुलनीय है। सभी धर्म के लोग बड़े ही स्नेह के साथ शराब का आनन्द लेते हैं। ऐसा और कहाँ देखने को मिलता है। इसलिए तो किसी कवि ने कहा है कि बैर बढ़ाते मन्दिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला!