शराब की बिक्री से खतरे को बढ़ावा

4 मई को मुल्क में कोरोना वायरस सम्बन्धी 40 दिन की तालाबन्दी के बाद सरकार के द्वारा मंज़ूरी मिलने पर मुल्क के कई इलाकों में मदिरा बिक्री की दुकानों के ताले खोल दिये गये। सोमवार को ताले खुलने से पहले ही दिल्ली, मुम्बई, लखनऊ, वाराणसी, चेन्नई व अन्य कई शहरों में लोगों की लम्बी-लम्बी कतारे लग गयीं और सोशल डिस्टेंसिंग की बुरी तरह से धज्जियाँ उड़ गयीं। सरकारी कायदे नियम बनाने वालों व उस पर अम्ल कराने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि शराब की दो घूँट तो दूरियाँ मिटाने के लिए, यारों के गले लगाने के लिए पी जाती है, तो ऐसे में दो गज़ दूरी बनाने की बात कौन सुनेगा। ये कतारें टीवी चैनलों की सारे दिन की खुराक साबित हुईं और उधर इन कतारों ने बता दिया कि वहाँ शराब के ठेकों के सामने गर्मी में सीधे तौर पर खड़े और घरों में बैठी जनता का गला दारू के बिना कितना सूख गया है। उनके बदन की नस भले ही चल रही हो, मगर दारू के बिना वह ज़िन्दा नहीं रह सकते। सोमवार यानी भगवान शिव के दिन सरकार ने उनके अन्दर जान फूँकने के लिए मदिरा के द्वार खोल दिये। वैसे देखा जाए तो लोगों का मदिरा के प्रति यह लगाव एक तरफा नहीं है, बल्कि सरकार को भी इसे बेचने का नशा है। यानी लॉकडाउन के समय में भी इस नशे के कारोबार की वजह राज्य सरकारों को मिलने वाला राजस्व है।

शराब की खपत के आँकड़े

तभी तो लॉकडाउन के तीसरे चरण के शुरू होते ही 4 मई को कई स्थलों पर मिलने वाली रियायतों में शराब बिक्री को भी प्रमुखता से शमिल किया गया। भारत में शराब बिक्री के लिए सरकार लाइसेंस देती है, देश भर में करीब ऐसे 70,000 आउटलेट हैं। शराब की 70 फीसदी बिक्री इन्हीं आउटलेट से होती है। बाकी 30 फीसदी बार, पब, होटल, रेस्त्रां आदि से होती है। लैंसेट स्टडी के अनुसार, भारत में 2010 से 2017 के दरमियान शराब की खपत में 38 फीसदी की वृद्धि पायी गयी। यह प्रति वर्ष प्रति वयस्क 4.3 से बढक़र 5.9 लीटर तक पहुँच गयी। ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइसेज (एम्स) का 2019 का एक अध्ययन बताता है कि करीब 5.7 करोड़ भारतीयों को शराब का नशा है।

भारत में 21 साल की उम्र से पहले शराब पीना कानूनन जुर्म है लेकिन देश के कई शहरों में युवाओं के बीच इस बिन्दु पर कराया गया एक सर्वे दूसरी ही तस्वीर से रू-ब-रू कराता है। सर्वे में हिस्सा लेने वाले युवाओं में से 75 फीसदी ने माना कि उन्होंने शराब का सेवन 21 साल से पहले ही शुरू कर दिया था। फरवरी, 2019 में कराये गये एक सरकारी सर्वे के अनुसार भारत में 10 से 75 आयुवर्ग के करीब 16 करोड़ लोग शराब का सेवन करते हैं। इस सर्वे से यह भी सामने आया कि त्रिपुरा, पंजाब, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश तथा गोवा आदि राज्यों में शराब की खपत में आगे हैं। अब बहुत हद तक साफ हो गया होगा कि सरकार को भी दारू का नशा क्यों है? दरअसल शराब, जिसमें एल्कोहॉल होता है; लोगों का ही गला तर नहीं करती, बल्कि सरकार को भी तर करती है। सरकारी खजाने भरने में शराब की चाल, उसका नशा देखना हो तो आँकड़े इसे बखूबी बयाँ करते हैं। शराब की बिक्री राज्य सरकारों के राजस्व स्रोत का एक प्रमुख हिस्सा है। कई राज्य तो रोज़ाना शराब बिक्री से करीब 700 करोड़ रुपये रोज़ कमाते हैं। पंजाब, छत्तीसगढ़, तेलगांना, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश का 15-20 फीसदी राजस्व शराब की बिक्री से आता है। उत्तराखंड, कर्नाटक का 20 फीसदी राजस्व शराब की बिक्री से ही आता है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल को शराब की बिक्री से 10 फीसदी के आस-पास ही राजस्व मिलता है। गुजरात व बिहार में पूर्ण शराबबन्दी लागू है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2018-19के दौरान दिल्ली और पुदुचेरी सहित देश के 29 राज्यों ने शराब पर उत्पाद शुल्क से संयुक्त रूप से एक लाख 50 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा की कमायी की। 2019-20 के दरमियान इस कमाई में 16 फीसदी का इज़ाफा हुआ और यह आँकड़ा एक लाख 75 हज़ार करोड़ रुपये को पार कर गया। शराब राज्य सरकारों के लिए मुद्रा छापने वाली टकसाल की मानिंद है।

यहाँ इस बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि जब जीएसटी में शमिल होने वाली वस्तुओं की फेहरिस्त में शराब को भी शमिल किया गया, तो अधिकतर राज्य सरकारों ने इसका विरोध किया और केंद्र सरकार को साफ कर दिया कि शराब को जीएसटी के दायरे से बाहर रखने पर ही बात आगे बढ़ सकती है। यानी हमारा समर्थन चाहते हो, तो हमारी यह माँग स्वीकार करनी होगी। राज्य सरकारों का यह दबाव रंग लाया और केंद्र सरकार ने शराब को जीएसटी से बाहर रखने का फैसला लिया। वित्त वर्ष 2018-19 में सभी राज्यों ने संयुक्त रूप से हर महीने औसतन करीब 13 हज़ार करोड़ रुपये शराब से कमाये। जबकि 2019-20 में यह आँकड़ा 15 हज़ार करोड़ रुपये प्रति माह पहुँच गया। लॉकडाउन के कारण 40 दिन शराब की बिक्री नहीं हुई और ऐसा अनुमान है कि इस कारण इस दौरान करीब 30,000 करोड़ रुपये का नुकसान राज्य सरकारों को हुआ है। कोविड-19 महामारी को फैलने से रोकने के लिए देश में 25 मार्च से लागू तालाबन्दी अब अपने तीसरे चरण से गुज़र रही है। तीसरा चरण 17 मई को पूरा होगा, उसके बाद सरकार क्या ऐलान करती है, पूरे देश को इसका इंतज़ार है। प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरा है। बहरहाल राज्य सरकारों के समक्ष इस समय एक तरफ चुनौती अपने-अपने यहाँ कोविड-19 के संक्रमित मामलों और मृत्यु दर में कमी लाना है, तो उसके समानांतर ही राज्य मशीनरी को चलाने के लिए राजस्व को इकट्ठा करना भी है। राज्य सरकारों के टैक्स कलेक्शन में 90 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गयी है।

ऐसे हालात में तेज़ी से राजस्व इकट्ठा करने के लिए शराब की बिक्री पर सरकारों की पैनी नज़र थी और 4 मई को ही कलेक्शन ने अपनी औकात फिर से दिखा दी। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 4 मई यानी पहले ही दिन 100 करोड़ की शराब बेची। अभी तक तो किसी फिल्म के रिलीज होने के अगले दिन उसकी आमदनी का आँकड़ा चर्चा का विषय बनता रहा है, लेकिन कोरोना लॉकडाउन ने शराब की बिक्री के आँकड़ों को चर्चा के केंद्र में ला खड़ा कर दिया। कर्नाटक राज्य के एक्साइज डिपार्टमेंट ने बकायदा 4 मई की शाम एक बयान जारी किया, जिसमें बताया गया कि 4 मई को राज्य में 3.9 लाख लीटर बियर व 8.5 लीटर इंडिया मेड लिक्र की बिक्री हुई, जिसकी कीमत 45 करोड़ है। महाराष्ट्र, जहाँ देश में सबसे अधिक कोरोना संक्रमित हैं और मरने वालों की संख्या भी सबसे अधिक है; में 4 मई को पहले दिन 11 करोड़ की, तो दूसरे दिन 62.55 करोड़ की शराब बिकी। शराब से होने वाली आमदनी के आगे राज्य सरकारें भी नतमस्तक दिख रही हैं। शराब से मिलने वाले रुपये के सामने कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए की गयी कोशिशें मसलन देह से दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग का दम फूलता दिखायी दिया।

विपक्षी नेताओं की नसीहत

सरकारो को इस मुद्दे पर घेरा भी गया। दिलचस्प यह है कि महाराष्ट्र में शिवसेना नीत गठबन्धन वाली सरकार है, जिसके मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे हैं और उसी शिवसेना के मराठी दैनिक समाचार-पत्र सामना में 7 मई को छपे सम्पादकीय में कहा गया कि लोगों ने शराब की दुकानों पर सोशल डिस्टेंसिंग नियम का पालन नहीं किया। लोगों को समझना चाहिए कि शराब कोविड-19 का टीका नहीं है। और सरकार को नसीहत भी दे डाली कि शराब बिक्री से 65 करोड़ रुपये राजस्व के रूप में कमाने के लिए 65,000 कोविड-19 के नये संक्रमित मामलों को बुलावा देना समझदारी नहीं है। जब राज्य सरकारों को लगा कि शराब बेचना भी ज़रूरी है और शराब की दुकानों के बाहर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन होता भी नज़र आये तो उन्होंने होम डिलीवरी, ई-टोकन सरीखे उपाय अपनाने शुरू कर दिये हैं। छत्तीसगढ़ ने तो सम्भवत: सबसे पहले ही एप के ज़रिये शराब की होम डिलीवरी वाला कदम उठाने का ऐलान कर दिया था। पंजाब और पश्चिम बंगाल सरकारों ने भी शराब के लिए होम डिलीवरी शुरू कर दी है।

दिल्ली सरकार ने शराब लेने वालों के लिए ई-टोकन की सुविधा शुरू कर दी है। मगर यहाँ भी ई-टोकन लेने वालों को करीब दो-तीन दिन के बाद की तारीख मिल रही है। दरअसल, जिन्हें शराब पीने की लत है और उनकी जेब में पैसा है, तो उन्होंने लॉकडाउन के पहले व दूसरे चरण में भी शराब खरीदी। शराब की दुकानों से शराब की चोरी हुई और उसने अपनी जगह कालाबाज़ारी में बना ली। कालाबाज़ारी के बारे में दिल्ली के दल्लूपुरा गाँव में रहने वाले मंगल (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि जिनके पास नोट हैं, उनके लिए लॉकडाउन कोई मतलब नहीं रखता। 500 रुपये वाली बोतल 3,500 रुपये में खूब बिकी और लोगों ने यह मत चुकाकर सरकार की इस अपील को कि जो जहाँ है, वहीं रहे; को ठेंगा दिखा दिया। क्योंकि शराब की बोतलें शराब की दुकानों से चलकर उनके गले, उनकी तबीयत को तरोताज़ा कर रही थीं और अब बिक्री में छूट मिलने के बाद भी उनके दलाल लाइन में लगकर या दूसरी तरह से बन्दोबस्त करने में जुटे हुए हैं। मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि लॉकडाउन के चलते नशा नहीं मिलने से शराब पीने के अभ्यस्त लोगों के व्यवहार में बदलाव देखा गया है। लॉकडाउन लागू होने के बाद 30 मार्च को इंडियन एसोसिएशन ऑफ क्लीनिकल साइकॅालजिस्ट ने अपनी अधिकृत वेबसाइट पर पंजीकृत साइकॉलजिस्ट की एक सूची जारी की थी। कई का मानना है कि नशा नहीं मिलने से कई लोगों के व्यवहार में आक्रोश अधिक पाया गया। यह चिन्ता की बात है। क्योंकि इससे केवल वही व्यक्ति ही प्रभावित नहीं होता, बल्कि पत्नी, बच्चों और घर परिवार के अन्य सदस्यों पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है, जिसके कई तात्कालिक व दूरगामी प्रभाव होते हैं। कोरोना वायरस ने यूँ तो लोगों की ज़िन्दगी के सामाजिक-आॢथक पक्षों को कई तरह से प्रभावित किया है, लेकिन एक सम्भावना शराब की बिक्री के तरीके में बदलाव को लेकर भी जतायी जा रही है। वैसे इस संकट में सोशल डिस्टेंसिंग वाले अहम नियम के पालन के मद्देनज़र कई राज्य सरकारों ने शराब की होम डिलीवरी जैसे कदम उठाये हैं। हालाँकि अभी साफ नहीं हुआ है कि मौज़ूदा संकट के खत्म होने के बाद भी यह व्यवस्था चालू रहेगी या नहीं। एक सवाल और कि क्या रिटेल दुकानदार इस व्यवस्था को हमेशा के लिए लागू करने में सरकार के साथ होंगे या विरोध में। ऐसी व्यवस्था शराब पीने वालों को कितनी सूट करती है और सरकारी खजाने में अधिक-से-अधिक राजस्व भरने वाली उम्मीदों पर कितना खरा उतरती है, इस बाबद इंतज़ार करना होगा। वैसे अंतर्राष्ट्रीय समाचार एंजेसी रायटर ने खबर दी थी कि भारत में ऑनलाइन फूड डिलीवर करने वाली कम्पनी जोमाटो ने अप्रैल के मध्य में ही इंडस्ट्री बॉडी इंटरनेशनल स्पिरटस एंड वाइन एसोसिएशन ऑफ इंडिया को एक बिजनेस प्रस्ताव भेजकर ऑनलाइन शराब होम डिलीवरी की अपनी मंशा ज़ाहिर की थी। दरअसल जोमाटो भारत में मौज़ूदा लॉकडाउन के हालात का और उन हालात से आने वाले वक्त में होने वाले बदलावों को अपने पक्ष में बिजनेस की दृष्टि से भुनाना चाहती है। इस कम्पनी का कहना है कि हमारा मानना है कि तकनीक आधारित होम डिलीवरी वाला समाधान मदिरा के ज़िम्मेदाराना व्यवहार को बढ़ावा देगा। रायटर ने साफ कर दिया है कि इस बाबद दस्तावेज़ उसके पास हैं, लेकिन जोमाटो ने अभी तक कोई बयान जारी नहीं किया है।

महँगी हुई शराब

लॉकडाउन में 4 मई को जैसे ही शराब के ठेके खोले गये, शराब पर राज्य सरकारों ने अलग से टैक्स लगाना शुरू कर दिया। दिल्ली सरकार ने शराब पर 70 फीसदी कोरोना स्पेशल टैक्स लगा दिया है। वहीं, आंध्र प्रदेश ने सीधे से 50 फीसदी दाम बढ़ाकर ऊपर से 25 फीसदी टैक्स भी लगा दिया। इसी तरह पंश्चिम बंगाल सरकार ने 30 फीसदी, राजस्थान सरकार ने 35 फीसदी, कर्नाटक सरकार ने 17 फीसदी एक्साइज ड्यूटी शराब पर लगा दी है। वहीं, तमिलनाडु सरकार ने 15 फीसदी, असम और मेघालय ने 25 फीसदी एक्साइज ड्यूटी विदेशी शराब पर लगा दी है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों ने 2 रुपये से 50 रुपये तक ब्रांड के हिसाब से प्रति बोतल पर दाम बढ़ाये हैं।

कानून की दरकार

भारत में अभी तक शराब की होम डिलीवरी बाबत कोई कानून नहीं है, मगर इसकी मंज़ूरी के लिए माहौल बनाने की दिशा में लामबन्दी शुरू हो गयी है। सर्वोच्च अदालत ने 9 मई को एक याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि सरकार लॉकडाउन को देखते हुए शराब की ऑनलाइन बिक्री के उपायों पर विचार करे। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि जब तक भारत कोरोना मुक्त न हो जाए, दुकानों से शराब की बिक्री रोकी जाए। यचिकाकर्ता ने 4 मई से खुली दुकानों पर लगी भीड़ और सोशल डिस्टेंसिंग नियम का पालन नहीं होने का ज़िक्र अपनी याचिका में किया था। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट कहा कि हम याचिका पर कोई आदेश पारित नहीं करेंगे। इसके साथ ही टिप्पणी कि राज्य सरकारें सामाजिक दूरी को बनाये रखते हुए शराब की होम डिलीवरी या अप्रत्यक्ष बिक्री करने पर विचार करे। अदालत ने यह मौखिक टिप्पणी करते हुए याचिका का निपटारा कर दिया।