व्यापार की राजनीति

2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान बड़े सौदे किये जाने की उम्मीदें की जा रही थीं, जो लगातार टाल दी जाती रही हैं। इस बार भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे में कोई बहुत बड़ा सौदा नहीं हुआ। इस पर ट्रंप ने कहा भी कि बड़ा सौदा अमेरिका के चुनाव से पहले हो सकता है। उन्होंने मीडिया से भी कहा कि हम भारत के साथ एक व्यापार सौदा कर सकते हैं, लेकिन बड़ी डील को अभी बचा रहा हूँ, जिसको चुनाव से पहले कर सकते हैं। इतना ही नहीं, ट्रंप ने कथित तौर पर भारत को दुनिया का टैरिफ-किंग करार दिये जाने का आरोप लगाया। हार्ले डेविडसन मोटरबाइक प्रकरण को ट्रंप पहले ही सामने रख चुके हैं। भारत के साथ व्यापार घाटा 25.2 अरब डॉलर था, जिसमें से 2018 में माल व्यापार घाटा 20.8 अरब डॉलर था। ट्रंप ने अपनी अमेरिका फस्र्ट नीति के तहत कहा कि भारत ने हमारे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया, लेकिन मोदी हमारे अच्छे दोस्त हैं।

व्यापारिक रिश्ते पहले से ही अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं। वाशिंगटन ने भारत को विकासशील देशों की सूची से हटा दिया है, जबकि वह व्यापारिक नियमों की बात करता है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, हाल के दिनों में अमेरिकी व्यापार वार्ताकार भारतीय बाज़ार में पहुँच के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। क्रैनबेरी और पेकान नट्स भी इसमें शामिल हैं, जिनका अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान है। विशेषज्ञ कहते हैं कि द्विपक्षीय सम्बन्धों में दोहरी चुनौतियाँ लागू होती हैं। पहली, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि के हाथों में ज़्यादा शक्ति का होना, जिसे व्यापार हाक कहा जाता है; और दूसरी, व्यापार ने वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच द्विपक्षीय सम्बन्धों के लिए एक अलग मध्यस्थ की भूमिका अदा की है।

व्यापार के आँकड़ों पर नज़र डालें, तो 1999 से 2018 तक दोनों देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार 16 अरब से बढक़र 142 अरब डॉलर हो गया। भारत वस्तुओं और सेवाओं में अमेरिका के आठवें सबसे बड़े व्यापारिक भागीदार के रूप में उभरा है। निस्संदेह, व्यापार बढऩे के साथ ही कई तरह की दिक्कतें भी सामने आने लगती हैं। हालाँकि किसी भी बड़े व्यापार को अपनी शर्तों पर धकेलने के सख्त अमेरिकी रुख के मद्देनज़र, भारतीय अधिकारी इस इस कूटनीति में कामयाब नहीं हुए, जिससे यह बताया जा सके कि भारत किसी भी सौदे के लिए किसी भी तरह की जल्दबाज़ी में नहीं है।

िफलहाल दोनों ओर से कई तरह की खामियों के बावजूद वर्तमान यात्रा में किसी बड़े सौदे की उम्मीद पहले से ही नहीं थी। निस्संदेह, भारत का अमेरिकी पक्षपात की सामान्य योजना (जीएसपी) विशेषाधिकारों के अमेरिकी निरस्तीकरण, ट्रंप प्रशासन के दृष्टिकोण को अमेरिका फस्र्ट के संचालित करने और अमेरिकी व्यापार अधिकारियों के आग्रह को बनाये रखने के लिए भारतीय पक्ष दबाव में है। फिर भी भारत-अमेरिका व्यापार चर्चा भारत के लिए इसलिए भी महत्त्वपूर्ण रही; क्योंकि जो आर्थिक संकट की स्थिति है, उससे अर्थ-व्यवस्था के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली आर्थिक मंदी पिदले 11 साल के निचले स्तर पर है। इसलिए इसमें बेहतर किये जाने की उम्मीद है।

भारतीय पक्ष ने ट्रंप प्रशासन के लिए विस्तारित ‘अभूतपूर्व’ समर्थन को 2019 में पाकिस्तान द्वारा जैश-ए-मोहम्मद के पुलवामा आतंकी हमले और पाकिस्तान से बाहर चल रहे आतंकवादियों के संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की ओर सहयोग किये जाने को स्वीकारा है। इसलिए भारत को उम्मीद है कि ट्रम्प की वर्तमान यात्रा के दौरान इस सहयोग को और मज़बूत किया जा सकता है, कुछ हद तक इसे आगे बढऩे का रास्ता मान सकते हैं। अमेरिका अफगानिस्तान के साथ शान्ति वार्ता में भारत को शामिल करना चाहता है और कहा कि इससे भारत भी खुश होगा।

आगे का रास्ता

राष्ट्रपति ट्रंप और पीएम मोदी आमतौर पर इस बात एक से नज़र आते हैं कि दोनों मीडिया को अहमियत नहीं देते। इस मामले में दोनों ट्विटर पर भरोसा करते हैं। एक आलोचक की नजर से देखा जाए, तो अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ नामक मेगा शो में ट्रंप का ओवर-द-टॉप टेस्ट, उनके मेजबान पीएम मोदी के साथ बिल्कुल फिट बैठता है, जैसा कि अमेरिका के ह्यूस्टन में हाउडी मोदी इवेंट का आयोजन किया गया था। इसमें ट्रंप ने हिस्सा भी लिया और स्टेडियम में अच्छी-खासी भीड़ भी जमा थी। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से पहले कोई बड़ी डील और द्विपक्षीय व्यापार सौदे में दोनों देश ऐतिहासिक करार भी कर सकते हैं।