वैश्विक खाद्य संकट का ज़िम्मेदार अमेरिका

कारण है पशु चारा, इथेनॉल, कृषि-ईंधन के लिए उपयोग होने वाला भोजन

संयुक्त राज्य अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भारत को गेहूँ का निर्यात निलंबित करने के अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कह रहे हैं। अध्ययन करने से जो आँकड़े सामने आते हैं, उनसे ज़ाहिर होता है कि आसन्न खाद्य संकट के लिए भारत नहीं, बल्कि अमेरिका को दोषी ठहराया जाना चाहिए। अनाज मनुष्यों के इस्तेमाल होने की चीज है; लेकिन अमेरिकी सरकार के वित्त पोषित इथेनॉल उद्योग 473 मिलियन टन अनाज के वैश्विक विश्व व्यापार के 35 फ़ीसदी के बराबर का उपयोग करता है। भूख को रोकने के लिए निर्धारित भारतीय निर्यात प्रतिबंध इस राशि के दो फ़ीसदी से भी कम को प्रभावित करेगा।

इस मामले में वास्तविक दोषी पशु आहार के साथ-साथ अन्य ग़ैर-खाद्य उपयोगों, मुख्य रूप से कृषि-ईंधन के लिए भोजन का उपयोग होना है। विडंबना यह है कि अमेरिकी सरकार और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भारत से गेहूँ निर्यात को निलंबित करने के अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कह रहे हैं। उनकी चिन्ता यह है कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बीच निर्यात प्रतिबंध भोजन की कमी को बढ़ा देंगे। लेकिन तर्क तकनीकी या नैतिक रूप से ज़मीन पर नहीं टिकता।

विदेश व्यापार के महानिदेशक, संतोष कुमार सारंगी कहते हैं कि गेहूँ की क़ीमतों में वैश्विक स्तर पर अचानक तेज़ी आयी है, जिसके परिणामस्वरूप भारत और पड़ोसी देशों की खाद्य सुरक्षा ख़तरे में है। नतीजतन सरकार ने अपनी निर्यात नीति में कुछ संशोधन किये। हालाँकि सरकार ने गेहूँ निर्यात को प्रतिबंधित करने पर विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी), वाणिज्य विभाग की तरफ़ से जारी 13 मई के अपने आदेश में कुछ छूट की घोषणा की। यह निर्णय किया गया कि जहाँ कहीं भी गेहूँ की खेप जाँच के लिए सीमा शुल्क विभाग को सौंपी गयी है और 13 मई को या उससे पहले उनकी व्यवस्था में पंजीकृत की गयी है, ऐसी खेपों को निर्यात करने की अनुमति दी जाएगी।

सरकार ने मिस्र के लिए एक गेहूँ शिपमेंट की भी अनुमति दी, जो पहले से ही कांडला बंदरगाह पर लोड हो रहा था। इसके बाद मिस्र सरकार ने कांडला बंदरगाह पर लदान किये जा रहे गेहूँ के माल की अनुमति देने का अनुरोध किया। मिस्र को गेहूँ के निर्यात का ज़िम्मा उठा रही कम्पनी मीरा इंटरनेशनल इंडिया ने भी 61,500 मीट्रिक टन गेहूँ की लोडिंग पूरी करने के लिए एक प्रेसेंटेशन दी थी, जिसमें से 44,340 मीट्रिक टन गेहूँ पहले ही लोड किया जा चुका था और केवल 17,160 मीट्रिक टन लदान किया जाना बाक़ी था। सरकार ने 61,500 मीट्रिक टन की पूरी खेप की अनुमति देने का निर्णय किया और इसे कांडला से मिस्र जाने की अनुमति दी।

सरकार ने पहले भारत में समग्र खाद्य सुरक्षा स्थिति का प्रबंधन करने के लिए और पड़ोसी और कमज़ोर देशों की ज़रूरतों का समर्थन करने के लिए गेहूँ के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया था, जो गेहूँ के लिए वैश्विक बाज़ार में अचानक बदलाव से प्रतिकूल रूप से प्रभावित हैं और पर्याप्त गेहूँ की आपूर्ति तक पहुँचने में असमर्थ हैं। इस आदेश के अनुसार, यह प्रतिबंध उन मामलों में लागू नहीं होगा, जहाँ निजी व्यापार द्वारा लेटर ऑफ क्रेडिट के माध्यम से पूर्व प्रतिबद्धताओं के साथ-साथ उन स्थितियों, जहाँ भारत सरकार द्वारा अन्य देशों को उनकी खाद्य सुरक्षा ज़रूरतों को पूरा करने की अनुमति दी जाती है, जब उनकी सरकारों का अनुरोध होता है।

आदेश ने तीन मुख्य उद्देश्यों को पूरा किया- भारत की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना और मुद्रास्फीति की जाँच करना। यह अन्य देशों को खाद्य घाटे का सामना करने में मदद करता है और यह एक आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की विश्वसनीयता बनाये रखता है। आदेश का उद्देश्य गेहूँ की आपूर्ति की जमाख़ोरी को रोकने के लिए गेहूँ बाज़ार को एक स्पष्ट दिशा प्रदान करना भी है। दिलचस्प बात यह है कि द ऑकलैंड इंस्टीट्यूट, सैन फ्रांसिस्को के नीति निदेशक फ्रेडरिक मूसो ने संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की 6 मई, 2022 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि दुनिया अनाज की अपेक्षाकृत आरामदायक आपूर्ति स्तर का लाभ उठाती है।

विश्व बैंक ने भी इसकी पुष्टि की है, जिसने पाया कि अनाज का वैश्विक स्टॉक ऐतिहासिक रूप से उच्च स्तर पर है और युद्ध शुरू होने से पहले ही रूसी और यूक्रेनी गेहूँ का लगभग तीन-चौथाई निर्यात किया जा चुका था। इन सबका मतलब है कि वास्तव में भोजन की कोई कमी नहीं है। ये संख्या यूक्रेन के कृषि मंत्रालय के आँकड़ों के अनुरूप हैं, जिसने 19 मई को रिपोर्ट किया था कि देश ने 2021-22 के सीजन में 46.51 मिलियन टन अनाज का निर्यात किया था, जो पिछले वर्ष 40.85 मिलियन था।
इसके अलावा खाद्य संकट अटकलों के कारण भी हो सकता है, क्योंकि सट्टेबाज़ों ने बढ़ती क़ीमतों से लाभ कमाने के प्रयास में कमोडिटी बाज़ारों में तेज़ी ला दी है। एक बेहतर उदाहरण दो शीर्ष कमोडिटी-लिंक्ड ‘एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्सÓ (ईटीएफ) हैं, जिन्होंने यूएस 1.2 बिलियन डॉलर का निवेश हासिल किया है, जबकि पूरे 2021 के साल में यह 197 मिलियन डॉलर था। अर्थात् 600 फ़ीसदी की वृद्धि। रिपोर्ट बताती हैं कि अप्रैल में पेरिस गेहूँ बाज़ार में 72 फ़ीसदी ख़रीद गतिविधि के लिए सट्टेबाज़ ज़िम्मेदार थे, जो महामारी से पहले 25 फ़ीसदी से ऊपर था और इसका मक़सद स्व-निर्मित कमी से पैसा बनाना था

भोजन की कमी के बजाय वास्तविकता यह है कि जितना हम खाते हैं, दुनिया उससे कहीं अधिक अन्न का उत्पादन करती है। विश्व स्तर पर उत्पादित अन्न का 33 फ़ीसदी से अधिक पशु आहार के साथ-साथ अन्य ग़ैर-खाद्य उपयोगों के लिए उपयोग किया जाता है, मुख्य रूप से कृषि-ईंधन। क़रीब 400 मिलियन टन मकई का 40 फ़ीसदी (160 मिलियन टन) से अधिक इथेनॉल उत्पादन में जाता है। अन्य 40 फ़ीसदी पशु आहार में जाता है। केवल 10 फ़ीसदी का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है, जबकि बाक़ी 10 फ़ीसदी का निर्यात किया जाता है। साल 2022-2023 में भारत से 10 मिलियन टन से अधिक गेहूँ निर्यात करने की सम्भावना नहीं थी, जो कि अमेरिकी संख्या की तुलना में नगण्य है। वास्तव में कृषि-ईंधन के उत्पादन के लिए भोजन की बढ़ती मात्रा-वैश्विक अनाज बाज़ारों में तनाव पैदा करने वाला एक प्रमुख कारक है।

अमेरिका में इथेनॉल उत्पादन 2001 में 3.6 मिलियन बैरल से बढ़कर अब 102 मिलियन बैरल से अधिक हो गया था। यह इस तथ्य के बावजूद है कि इथेनॉल गैसोलीन की तुलना में कम-से-कम 24 फ़ीसदी अधिक कार्बन गहन है। यह किसी पाखण्ड से कम नहीं है कि विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व खाद्य कार्यक्रम और विश्व व्यापार संगठन, सभी देशों से व्यापार को खुला रखने और खाद्य या उर्वरक पर निर्यात प्रतिबंध जैसे प्रतिबंधात्मक उपायों से बचने का आग्रह कर रहे हैं, जिससे सबसे कमज़ोर लोगों की पीड़ा ही बढ़ेगी। लेकिन अगर सरकारें और अंतरराष्ट्रीय संस्थान उच्च खाद्य क़ीमतों के कारण मानव पीड़ा को ख़त्म करने के लिए गम्भीर हैं, तो उन्हें उन देशों पर दबाव डालने से बचना चाहिए, जो खाद्य आपूर्ति को उस स्तर पर बनाये रखने की कोशिश कर रहे हैं, जो राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। यह ज़रूरी है कि वे सभी राष्ट्रों की खाद्य सम्प्रभुता को पहचानें और उनका सम्मान करें।

विश्व बाज़ार पर दबाव ख़त्म करने के लिए देशों को तत्काल अहम उपाय करने चाहिए। यह हैं- ईंधन के रूप में उपयोग किये जाने वाले भोजन की मात्रा को कम करना, खाद्य उत्पादों पर अटकलों पर अंकुश लगाना, ख़ासकर कथित भविष्य के कमोडिटी बाज़ारों को प्रतिबंधित करना जहाँ सट्टेबाज़ भविष्य की क़ीमतों पर दाँव लगाते हैं। उनके लिए एकमात्र उचित निर्णय यह होगा कि वे उच्च खाद्य क़ीमतों के व्यापक कारणों पर निर्णायक कार्रवाई करें और खाद्य वस्तुओं पर लगने लगने वाले अनुमानों पर अंकुश लगाएँ और ईंधन के उत्पादन के लिए भोजन का डायवर्जन करें। भारत अपनी ओर से व्यापार विनियमन उपायों के माध्यम से और बाज़ारों को विनियमित करके अपने किसानों का समर्थन करके घरेलू बाज़ारों में मूल्य संचरण को रोकने में सफल रहा है।

भारत की उपलब्धि ऐसे समय में आयी है, जब उसने तय समय से पाँच महीने पहले पेट्रोल का 10 फ़ीसदी एथेनॉल मिश्रण हासिल कर लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आध्यात्मिक नेता सद्गुरु की संचालित ईशा फाउंडेशन के आयोजित सेव सॉयल कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ख़ुद पुष्टि की कि इस उपलब्धि ने 27 लाख टन कार्बन उत्सर्जन को कम किया है, देश को बचाया है। विदेशी मुद्रा ख़र्च (तेल आयात पर) में 41,000 करोड़ रुपये और आठ वर्षों में किसानों की आय में 40,000 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई।