विश्व दूरसंचार दिवस

चुनौतियों के बीच तरक़्क़ी की कोशिश

मोबाइल की दुनिया में हिन्दुस्तान 5जी की तरफ़ पहुँच रहा है। अभी जब दुनिया 53वाँ दूरसंचार दिवस मना रही है, तब पूरी दुनिया दूरसंचार के नेटवर्क जाल में क़ैद है। यानी दूरसंचार के बिना जीवन का संचार अब नहीं हो सकता, ऐसा माना जाता है। एक समय था, जब दुनिया में चीज़ों और बातों के आदान-प्रदान के लिए पत्र और यात्रा होती थी, जिसमें चिट्ठी, बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी, पैदल से लेकर जहाज़, मोटर, रेल आदि तक इंसान को पहुँचने में सदियाँ लग गयीं। टेलीफोन और रेडियो से संचार क्रान्ति का जन्म हुआ। लेकिन यहाँ से मोबाइल, सेटेलाइट, ड्रोन और रोबोट तक पहुँचने में वैज्ञानिकों ने एक सदी का भी समय नहीं लगाया। आज यही चीज़ें हर एक संचार का ज़रिया हैं।

इन दिनों संचार माध्यम इतनी तेज़ी से बदल रहे हैं, जिसकी आज से 50 साल पहले किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। आज इंसान दुनिया के चाहे किसी भी कोने में रहता हो, उसे अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने में एक सेकेंड का समय भी नहीं लगता, यदि उसके पास इंटरनेट और मोबाइल है, तो। मोबाइल और इंटरनेट तकनीक से सूचना का आदान-प्रदान इतनी तेज़ी से हुआ है कि अनपढ़ इंसान भी इसका फ़ायदा उठा रहा है। वैज्ञानिक इस दूरसंचार तकनीक को और अधिक सुविधाजनक बनाने की कोशिश में लगे हैं, जिसे प्रोत्साहित करने के लिए हर साल विश्व दूरसंचार दिवस मनाया जाता है।

बता दें कि पहला विश्व दूरसंचार दिवस 17 मई, 1969 को मनाया गया। लेकिन इसे उतना महत्त्व नहीं मिला। अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (आईटीयू) की स्थापना और सन् 1865 में पहले अंतरराष्ट्रीय टेलीग्राफ कन्वेंशन पर कई देशों के हस्ताक्षर करने के लिए सन् 1973 में  मलागा-टोरेमोलिनोस में प्लाइनापोटेंसिएरी सम्मेलन हुआ। यहीं पर साल 17 मई, 1973 को अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ की स्थापना हुई थी। दूरसंचार में बड़ी क्रान्ति आने के अवसर पर सूचना समाज पर सन् 2005 में विश्व शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें संयुक्त राष्ट्र महासभा से आग्रह किया गया कि वह 17 मई विश्व सूचना समाज दिवस के रूप में मनाये।

महासभा ने इसे स्वीकार किया और सन् 2006 से विश्व दूरसंचार दिवस के साथ विश्व सूचना समाज दिवस भी मनाया जाने लगा। आज करोड़ों लोगों के हाथ में मोबाइल फोन है। लाखों लोग इससे रोज़गार पा रहे हैं और दुनिया की कई बड़ी कम्पनियाँ इस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य जमाने की कोशिश में लगी हैं। कई देश दूरसंचार में 8जी और 9जी जैसी तकनीक का इस्तेमाल कर कर रहे हैं, जबकि हिन्दुस्तान में अभी 4जी का ज़माना चल रहा है, जबकि 5जी के लाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए रिलायंस कम्पनी बड़े पैमाने पर 5जी टॉवरों को लगाने और हिन्द महासागर में इंटरनेट नेटवर्क की तारें बिछाने के काम में लगी है।

दूरसंचार का महत्त्व

आज के आधुनिक दौर में टेलीविजन, रेडियो, मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया आदि सब कुछ है। इनमें से मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया को दूरसंचार की बेसिक ज़रूरतों में माना जाता है। इनके बिना जीवन की कल्पना अब नामुमकिन-सी लगती है। ये चीज़ें दूरसंचार की एक ऐसी क्रान्ति हैं, जिनका इस्तेमाल अब बच्चे भी करना जानते हैं और शिक्षा से लेकर करियर तक इनके बग़ैर उन्हें आगे बढ़ाना मुश्किल है। इससे पहले टेलिफोन को दूरसंचार का सबसे बेहतर माध्यम माना जाता था और उससे पहले चिट्ठी को। टेलिफोन सन् 1880 में ही शुरू हो गया था।

सन् 1881 में हिन्दुस्तान में औपचारिक टेलिफोन सेवा की स्थापना हो चुकी थी। उन दिनों यह बड़े लोगों के इस्तेमाल तक ही सीमित था, जिससे दुनिया के हर कोने में बात करना सम्भव नहीं था। धीरे-धीरे इसमें सुधार होता गया और क़रीब आधी सदी बीतते-बीतते नौकरशाहों के घरों तक टेलीफोन पहुँच गया और 100 साल बीतते-बीतते हर शहर में जगह-जगह टेलिफोन लगे पीसीओ खुलने लगे। इसके क़रीब 20 साल बीतने से पहले ही मोबाइल ने एंट्री ली और आज मोबाइल एक मिनी कम्प्यूटर की तरह इस्तेमाल में है। क़रीब 30 वर्षों से हर साल विश्व दूरसंचार दिवस दूरसंचार से सम्बन्धित नये-नये विषयों पर चर्चा होती है।

दूरसंचार के फ़ायदे

दूरसंचार के अनेक फ़ायदे हैं, जिन्हें हर कोई उठाना चाहता है। यह एक त्वरित और सुलभ संचार सुविधा है, जिससे सेकेंड से पहले दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाले से बात हो सकती है और कोई इंसान सेकेंडों में अपना सन्देश भेज सकता है। साथ ही कोई इंसान आसानी से अपनी बात करोड़ों लोगों तक भी पहुँच सकता है। इससे समय और ख़र्च की बड़ी बचत होती है। दूरसंचार के माध्यम से एक साथ दो से अधिक लोग भी अलग-अलग बैठकर बात कर सकते हैं।

मोबाइल और इंटरनेट उपभोक्ताओं की ज़रूरी चीज़ें आज के आधुनिक दूरसंचार के ज़रिये सेव रह सकती हैं। दूरसंचार के चलते व्यापार और आयात-निर्यात भी आसान हुआ है। आज दूरसंचार के माध्यम से लाखों लोग एक जगह बैठे-बैठे कुछ भी ख़रीद और बेच सकते हैं। इससे समय और पैसे दोनों की बचत सम्भव हो सकी है।

दूरसंचार के नुक़सान

दूरसंचार का सबसे बड़ा और ज़रूरी माध्यम बन चुका मोबाइल आज भले ही लोगों की जीवन से अलग न हो पाने वाली ज़रूरत बन गया है; लेकिन इसके अनेक नुक़सान भी इंसानों समेत दूसरे सभी जीवों को हो रहे हैं। इंटरनेट और मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली किरणों के चलते आज कई तरह की बीमारियाँ पनप चुकी हैं, जिनके कारण हर साल लाखों मौतें हो रही हैं। जब भी संचार की उच्च क्षमता वाले नेटवर्क का परीक्षण होता है, लाखों जीव जान गँवा देते हैं। लेकिन दुनिया भर के देशों में बैठी सरकारें और दूरसंचार के माध्यम से मुनाफ़ा कमाने वाली कम्पनियाँ इसे लगातार नज़रअंदाज़ करती रही हैं। हाल ही में हिन्दुस्तान में 5जी के परीक्षण के दौरान पक्षियों और लोगों के मरने की ख़बरें भी मीडिया के माध्यम से सामने आयीं; लेकिन इस परीक्षण पर पाबंदी नहीं लगी। इससे पहले 4जी के परीक्षण के दौरान बहुत पक्षियों की मौत हुई थी।

प्राकृतिक आपदा के समय इंटरनेट काम नहीं करता, जिसके बात मोबाइल एक डब्बा ही रह जाता है। यदि कोई सरकार चाहे, तो इंटरनेट सेवाओं को बन्द करा सकती है, जिसके बाद इसका किसी भी आम नागरिक को कोई फ़ायदा नहीं मिलता। इसके अलावा सोशल मीडिया के माध्यम से कई बार साम्प्रदायिकता फैलाकर लोगों को भड़काया भी जा चुका है, जो कि दंगों का कारण बन चुकी है।

आज दुनिया का हर देश समुद्रों में इंटरनेट के तारों का जाल बिछाने में लगा है, जिससे लाखों जलीय जीव प्रभावित हो रहे हैं। मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली विकिरणों से आसपास के लोगों पर बुरा असर पड़ रहा है। मोबाइल फोन से निकलने वाली विकिरणों से बच्चों और बड़ों दोनों में कई बीमारियाँ पैदा हो रही हैं, जिनमें नपुंसकता, दृष्टि दोष, उच्च रक्तचाप, कैंसर, धीमा बुद्धि विकास, शारीरिक कमज़ोरी, तनाव, ग़ुस्सा, चिड़चिड़ापन, सिर दर्द, भावनाओं की कमी आदि मुख्य हैं। डॉक्टर सलाह देते हैं कि मोबाइल का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।