विश्व अशान्ति के बीच डब्ल्यूएफपी को शान्ति का नोबेल के मायने

यह बड़ी बात है कि इस बार किसी संगठन को साल 2020 के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। कोरोना वायरस के बीच अनेक देशों की आर्थिक दशा खराब हुई है, जिससे बेरोज़गारी और भुखमरी बढ़ी है। ऐसे में लॉकडाउन के दौरान अनेक देशों में भूखे लोगों के भोजन की व्यवस्था कराने का विश्व खाद्य कार्यक्रम (वल्र्ड फूड प्रोग्राम यानी डब्ल्यूएफपी) ने की। इसी के चलते डब्ल्यूएफपी को साल 2020 के नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा, जिसकी आधिकारिक घोषणा की जा चुकी है। इसके अलावा 11 अन्य हस्तियों को भी नोबेल देने की घोषणा की गयी है। नोबेल पुरस्कारों की घोषणा नोबेल पुरस्कार समिति ने की है। दुनिया भर में कोरोना वायरस से फैली महामारी के बीच इस साल का नोबेल शान्ति पुरस्कार विश्व खाद्य कार्यक्रम को दिये जाने के मायने तब और बढ़ गये हैं, जब विश्व शान्ति की मुहिम में लगे कई लोगों को पछाड़ते हुए यह पुरस्कार एक संगठन ने प्राप्त किया है। आज कई देश दुनिया भर में तबाही और आतंक मचाने की जुगत में लगे हैं और तमाम साज़िशें रच रहे हैं, दूसरे देशों की सीमा में अतिक्रमण की कोशिशें कर रहे हैं; जिसका एक मुख्य उदाहरण चीन है। बहुत से व्यापारी, कम्पनियाँ और संगठन महामारी का फायदा उठाकर दवाओं और दूसरे तरीकों से लोगों से पैसा कमाने में लगे रहे और लोग अपने घरों से निकलने से कतराते रहे; ऐसे में दुनिया में भूखे लोगों को खाना खिलाना अपने आपमें एक बड़ी बात है। हालाँकि डब्ल्यूएफपी को यह पुरस्कार मिलने पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसे सही नहीं बताया है। उन्होंने प्रतिक्रिया की है कि नोबेल शान्ति पुरस्कार के वह सच्चे हकदार थे। ट्रंप ने खुला दावा किया है कि इस पुरस्कार पर तो उनका हक था; लेकिन उनके नामांकन को दरकिनार करके गलत किया गया है। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके कई काम ऐसे हैं, जिन पर उन्हें कई सम्मान मिल सकते हैं।

इधर नोबेल समिति का कहना है कि भूख से निपटने और संघर्ष वाले इलाकों में शान्ति की स्थिति में सुधार की कोशिशों के लिए विश्व खाद्य संगठन को इस साल का नोबेल शान्ति पुरस्कार दिया जा रहा है। बता दें कि इस बार नोबेल शान्ति पुरस्कारों की दौड़ में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), पर्यावरण के मुद्दों पर मुखर कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग और प्रेस की आज़ादी का समर्थन करने वाले समूहों की भी दावेदारी थी। लेकिन आखिर में विश्व खाद्य कार्यक्रम को इसके लिए चुना गया।

बता दें कि इस साल नोबेल शान्ति पुरस्कार का सम्मान पाने के लिए 318 व्यक्तियों और संस्थाओं को नामांकित किया गया था। नोबेल के लिए अब तक हुए नामांकनों में चौथी बार इतनी बड़ी संख्या में नामांकन हुआ है। लेकिन कुछ का पता तो चल जाता है, बाकी नामांकन में शामिल किये जाने वाले नामों का खुलासा नहीं किया जाता। बता दें कि दुनिया के इस सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार के लिए कोई भी नामांकन कर सकता है। नोबेल पुरस्कार समिति इसके लिए कोई औपचारिक सूची जारी नहीं करती है और सभी नामों पर चर्चा के बाद समिति विजेता का चुनाव करती है। सन् 2019 का नोबेल शान्ति पुरस्कार इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद अली को दिया गया था। उन्हें यह पुरस्कार उनके देश के चिर शत्रु इरिट्रिया के साथ संघर्ष को सुलझाने के लिए दिया गया था।

क्या है विश्व खाद्य कार्यक्रम

दुनिया भर से भुखमरी मिटाने और खाद्य सुरक्षा के लिए विश्व खाद्य कार्यक्रम की स्थापना संयुक्त राष्ट्र ने की थी, जो कि एक संगठन है। इस खाद्य कार्यक्रम के ज़रिये यह संगठन दुनिया भर के ज़रूरतमंदों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराता है। प्राकृतिक आपदाओं और गृह युद्ध की स्थिति में इसकी सक्रिया काफी रहती है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य भूखे लोगों को भोजन उपलब्ध कराना है। विश्व शान्ति कायम रखने में भी इसकी भूमिका रहती है। कोरोना-काल में जब यह महामारी चरम पर थी, विश्व खाद्य संगठन ने कई देशों में खाद्य सामग्री पहुँचाने का काम किया। बता दें कि इसे स्थापित करने वाले संयुक्त राष्ट्र का गठन भी विश्व शान्ति के लिए ही हुआ था। विदित हो कि संयुक्त राष्ट्र का गठन 24 अक्टूबर, 1945 को 50 देशों ने संयुक्त राष्ट्र अधिकार पत्र पर हस्ताक्षर करके किया था। वर्तमान में इसके सदस्य देशों की संख्या 193 है। यह सभी देश अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हैं, जिनमें भारत भी शामिल है। हालाँकि प्रथम विश्व युद्ध के बाद ही सन् 1929 में दूसरे सम्भावित युद्धों को रोकने के उद्देश्य से विश्व शान्ति और सुरक्षा बनाये रखने के उद्देश्य से राष्ट्र संघ (लीग ऑफ नेशंस) का गठन कर दिया गया था; लेकिन 1930 के दशक में दुनिया के द्वितीय विश्व युद्ध को रोकने में राष्ट्र संघ नाकाम रहा, जिसके चलते द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विजेता देशों ने ही मिलकर एक ऐसा संगठन बनाने का प्रस्ताव रखा, जो विश्व भर में शान्ति कायम रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सके। विजेता देशों के इसी प्रस्ताव के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया। विश्व शान्ति की सही शुरुआत संयुक्त राष्ट्र ने सन्

1981 में की। इस साल संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया भर में शान्ति का संदेश फैलाने के लिए साहित्य, कला, संगीत, सिनेमा और खेल जगत जैसे कई क्षेत्रों से भी प्रसिद्ध हस्तियों को शान्तिदूत बनाया।

युद्ध के खतरों के बीच शान्ति को बढ़ावा बड़ी बात

आजकल फिर से ऐसी स्थितियाँ बनती नज़र आ रही हैं कि कई देश एक-दूसरे के दुश्मन बन गये हैं। कई बार तो सम्भावना जतायी गयी है कि तृतीय विश्व युद्ध हो सकता है। हाल ही में कोरोना-काल में इसकी प्रबल सम्भावना जतायी गयी थी। ट्रंप ने तो यहाँ तक दावा किया है कि उन्होंने एक बड़ा युद्ध टालने में अहम भूमिका निभायी है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि अगर भारत भी चीन की तरह हरकतें करता या उस पर प्रबल प्रतिक्रिया करता, तो कम-से-कम भारत और चीन में अब तक युद्ध छिड़ सकता था। लेकिन भारत की सहनशीलता और उदारता के चलते ऐसा नहीं हो सका; जबकि चीन अब भी खुराफात करने में लगा है और लगातार भारतीय सीमा में घुसपैठ की कई कोशिशें कर चुका है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह चीन पर दबाव बनाये कि वह अपनी हरकतों से बाज़ आये। वैसे विश्व शान्ति दिवस पर ऐसी स्थितियों पर लगाम लगाने का संदेश दिया जाता है और सफेद कबूतरों को उड़ाकर विश्व भर में शान्ति संदेश दिया जाता है; लेकिन कुछ देश इतने पर भी अपनी सीमाएँ लाँघकर युद्ध स्थितियाँ पैदा करने में लगे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना को तब ही सफल माना जाएगा, जब अब कभी भी विश्व युद्ध ही नहीं, बल्कि दो देशों के बीच भी कोई युद्ध न हो। विजयलक्ष्मी पंडित (भारत) को सन् 1953 में 8वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रथम महिला अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय कुल चार भाषाओं (अंग्रेजी, फ्रांसीसी, चाइनीज और रशियन) को राजभाषा के रूप में स्वीकृत किया गया था। इसके बाद सन् 1973 में अरबी तथा स्पेनिश इसमें शामिल कर लिया गया। यानी अब संयुक्त राष्ट्र की राजभाषा के रूप में कुल छ: भाषाएँ हैं। लेकिन आज भी संयुक्त राष्ट्र का संचालन अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी में अधिक होता है। हालाँकि लम्बे समय से भारत हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में सम्मिलित कराने की कोशिश में लगा है। सबसे पहले सन् 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा को हिन्दी में सम्बोधित किया था। इसके बाद सितंबर, 2014 में संयुक्त राष्ट्र की 69वीं महासभा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हिन्दी में सम्बोधित किया। अक्टूबर, 2015 में संयुक्त राष्ट्र की 70वीं तथा सितंबर, 2016 में 71वीं महासभा को तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी हिन्दी में ही सम्बोधित किया।

और किस-किसको नोबेल पुरस्कार?

विश्व खाद्य कार्यक्रम के अलावा 11 अन्य हस्तियों को नोबेल पुरस्कार से नवाज़ा जाएगा। इन हस्तियों में कला, विज्ञान, स्वास्थ्य, अर्थ और अन्य क्षेत्र के लोगों को अपने-अपने क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए चुना गया है। जानिए, कौन-कौन सी हस्तियाँ हैं ये :-

साहित्य के लिए : साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार अमेरिकी साहित्यकार ग्लिक को दिया गया है। ग्लिक इन दिनों येल विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं। उनका जन्म सन् 1943 में न्यूयॉर्क में हुआ था। सन् 2010 से लेकर अब तक वह चौथी महिला हैं, जिन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला है; जबकि महिलाओं के लिहाज़ से वह इस पुरस्कार की शुरुआत से 16वीं महिला हैं, जिन्हें नोबेल मिला है। नोबेल सम्मान देने वाली स्वीडिश अकादमी ने कहा कि ग्लिक की कविताओं की आवाज़ ऐसी है, जिनमें कोई गलती हो ही नहीं सकती और उनकी कविताओं की सादगी भरी सुन्दरता उनके व्यक्तिगत अस्तित्व को भी सार्वलौकिक बनाती है। इससे पहले साहित्य में सन् 1993 में अमेरिकी लेखिका टोनी मरिसन को उनकी रचना ‘द वाइल्ड आइरिश’ के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

ब्लैक होल पर शोध के लिए तीन वैज्ञानिकों को : ब्लैक होल (ब्रह्माण्ड में अथाह, अनिश्चित काले घने अँधेरे) को समझने के लिए किये गये उल्लेखनीय कार्य के लिए तीन वैज्ञानिकों- रोजर पेनरोज़, रेनहर्ड जेंज़ेल, एंड्रिया गेज़ को इस साल का फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। फिजिक्स पुरस्कार कमेटी के प्रमुख डेविड हैविलैंड ने बताया कि इस साल का सम्मान ब्रह्मांड की सबसे अनोखी चीज़ का समारोह मना रहा है और यह है ब्लैक होल, जो ब्रह्माण्ड का वह हिस्सा है, जहाँ गुरुत्वाकर्षण इतना ज़्यादा है कि रोशनी भी इस क्षेत्र में काम नहीं करती।

मेडिसिन के लिए तीन वैज्ञानिकों

को : इस साल का मेडिसिन नोबेल पुरस्कार हेपेटाइटिस-सी वायरस की खोज करने वाले तीन वैज्ञानिकों- ब्रितानी वैज्ञानिक माइकल हाउटन, अमेरिकी वैज्ञानिक हार्वे अल्‍टर और चाल्‍र्स राइस को दिया गया है। नोबेल पुरस्कार देने वाली समिति ने कहा है कि इन वैज्ञानिकों की खोज ने लाखों लोगों की जान बचायी है; इसलिए हेपेटाइटिस-सी वायरस की खोज करने के लिए इन्हें यह पुरस्कार दिया जाता है। बता दें कि हेपेटाइटिस-सी वायरस से लीवर का कैंसर होता है। इसके चलते लोगों को लीवर ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है। सन् 1960 के दशक में यह एक बड़ी चिन्ता का विषय था कि जो लोग दूसरों से रक्तदान लेते थे, उन्हें एक अज्ञात और रहस्यमयी बीमारी हो जाती थी; जिसके कारण उनके लीवर में जलन पैदा हो जाती थी। इन वैज्ञानिकों ने इसी बीमारी (हेपेटाइटिस-सी) का पता लगाया।

रसायन के लिए दो महिला वैज्ञानिकों को : रसायन (केमिस्ट्री) के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए इस साल का नोबेल पुरस्कार दो महिला वैज्ञानिकों- फ्रांस की इमानुएल शॉपोंतिये और अमेरिका की जेनिफर ए. डुडना दिया गया है। दोनों वैज्ञानिकों को जीनोम एडिटिंग की एक पद्धति विकसित करने के लिए यह पुरस्कार दिया गया है। नोबेल समिति का कहना है कि दोनों महिला वैज्ञानिकों की खोज के बाद जीवन विज्ञान एक नयी ऊँचाई पर पहुँचा है, जिससे मानवता का बहुत भला हुआ है।

अर्थशास्त्र के लिए दो अर्थशास्त्रियों को : इस साल का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दो अर्थशास्त्रियों- पॉल आर मिलग्रोम और रॉबर्ट बी विल्सन को दिया गया है। उन्हें अर्थशास्त्र के क्षेत्र में ऑक्शन थ्योरी में सुधार और ऑक्शन करने के नये आविष्कार करने के लिए यह सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार दिया गया है।