विवाह की आयु बढ़ाने भर से सुधरेगा लड़कियों का जीवन?

हाल में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शादी के लिए लड़कियों की आयु 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रस्ताव पर अपनी मुहर लगाकर देश में दुल्हा-दुल्हन की न्यूनतम उम्र में समानता लाने का $कदम उठाया है। सरकार के इस फ़ैसले से देश में लड़कियों व लड़कों की शादी की वैध न्यूनतम आयु एक समान हो जाएगी। यानी लड़के और लड़कियों के लिए 21 साल की आयु से पहले शादी करना ग़ैर-क़ानूनी होगा।

सरकार के इस फ़ैसले का विरोध भी शुरू हो गया है। राजनीतिक दलों के नेता अपनी राय रख रहे हैं और सामाजिक विषयों के जानकार अपना मत सामने रख रहे हैं। एआईएमआईएम के प्रमुख व सांसद असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि 18 साल की लड़की व्यापार कर सकती है, प्रधानमंत्री चुन सकती है; पर जीवनसाथी नहीं। कितना हास्यास्पद है? समाजवादी पार्टी के सांसद एसटी हसन की राय- बच्चे को जन्म देने की उम्र में पहुँचने पर लड़की की शादी कर देनी चाहिए। यदि लड़की 18 की उम्र में मतदान कर सकती है, तो शादी क्यों नहीं? सपा के ही सांसद डॉ. शफ़ीकुर्रहमान बर्क़ ने कहा कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ायी, तो वे आवारागी करेंगी। जल्द शादी से वे बुरे हालात से बच जाती हैं।

जब इस बयान पर विवाद बढ़ा, तो सांसद बर्क़ ने कहा कि उनके बयान को ग़लत तरीक़े से पेश किया गया है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ख़ुद को और पार्टी को इन विवादित बयानों से अलग कर लिया। दरअसल लड़की की शादी की न्यूनतम आयु बढ़ाने का संकेत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर ही कर दिये थे। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि सरकार बेटियों और बहनों के स्वास्थ्य को लेकर चिन्तित है। बेटियों को कुपोषण से बचाने के लिए ज़रूरी है कि उनकी सही उम्र में शादी हो। यानी सरकारी नज़रिया, सरकारी मंशा यह है कि देश की बेटियों को स्वस्थ रखना है तो उनके कुपोषण को दूर करना होगा और उन्हें पोषित बनाये रखने के लिए उनकी शादी की नयूनतम आयु बढ़ानी होगी। लिहाज़ा सरकार ने इस विधेयक को मंज़ूरी दे दी। अब सवाल यह भी उठता है कि क्या विवाह की आयु बढ़ाने से लड़कियों के जीवन-स्तर में सुधार होगा? क्या सरकार के पास इसके अलावा कोई अन्य विकल्प व योजनाएँ नहीं हैं, जो महिलाओं के सशक्तिकरण को और अधिक गति प्रदान करने में ठोस योगदान दे सकें? क्या सरकार अपने मक़सद में सफल होगी? क्या समाज सरकार के साथ चलेगा?

बता दें कि सरकार ने महिला सशक्तिकरण व लड़कियों की विवाह की न्यूनतम उम्र की समीक्षा के लिए एक कार्यबल का गठन किया था। साल 2020 में गठित इस कार्यबल में स्वास्थ्य मंत्रालय, महिला व बाल विकास मंत्रालय, क़ानून मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी शमिल थे। समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली की अध्यक्षता वाली इस समिति ने सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने की अनुशंसा की व इसके साथ यह भी साफ़ कर दिया कि जल्द शादी होने से लड़कियों की शिक्षा व उनकी अजीविका के स्तर पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। जल्दी गर्भधारण का माताओं और उनके बच्चों के पोषण स्तर और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे शिशु और मातृ मृत्यु दर कम करने में मुश्किल होती है।

देश में लड़की की शादी की उम्र पहले 12 साल थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 14, साल कर दिया गया। विशेष विवाह अधिनियम-1954 के तहत लड़कियों की शादी के लिए न्यूनतम आयु 14 से बढ़ाकर 18 साल की गयी थी। लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 12 से धीरे-धीरे बढ़ाकर 18 साल करना विवाह क़ानून सुधार के स्त्री पक्ष को दर्शाता है। सन् 1978 में न्यूनतम आयु 18 साल तय की गयी थी। लेकिन इस बार प्रगतिशील, स्त्री पक्ष के बीच मे से भी कुछ आवाजें यही इंगित करती हैं कि 18 से 21 करने का कोई औचित्य नज़र नहीं आता। उनकी राय में लड़कियों की शिक्षा व स्वास्थ्य पर अधिक फोकस करने की ज़रूरत है, इन पर आधारित कार्यक्रमों को नौकरशाही व राजनेता मज़बूत प्रतिबद्धता से लागू करें, तो महिलाएँ अधिक सशक्त होंगी और वे ख़ुद ही अपनी शादी जल्दी नहीं करेंगी। आँकड़े बहुत कुछ बोलते हैं और अगर वो आँकड़ें सरकार जारी करे, तो सरकार को अपने गिरेबान में झाँकना ही चाहिए।

हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस)-5, 2019-2020 के आँकड़े जारी हुए हैं। ये आँकड़े बताते हैं कि देश में अभी भी 23.3 फ़ीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है। शहरी इलाक़ों में ऐसी लड़कियों की संख्या 14.7 फ़ीसदी और ग्रामीण इलाक़ों में यह संख्या 27 फ़ीसदी है। भारत में बाल विवाह पर प्रतिबन्ध है; लेकिन आँकड़े गवाह हैं कि देश में बाल विवाह हर साल होते हैं और देश पर बाल विवाह को ख़त्म करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बना रहता है। ग्रामीण इलाक़ों को लेकर इस सर्वे के आँकड़े ख़ासतौर पर चिन्तनीय है। पश्चिम बंगाल में 48.1 फ़ीसदी, बिहार में 43.4 फ़ीसदी, झारखण्ड में 36.1 फ़ीसदी लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो रही है। ध्यान देने वाला बिन्दु यह भी है कि एनएफएचएस-3 के अनुसार, देश में बाल विवाह का फ़ीसद 47 था, जो कि घटकर 2015-16 के एनएफएचएस में 27 फ़ीसदी रह गया। लेकिन यह 27 फ़ीसदी अगले एनएफएचएस- 2019-2020 में 23 फ़ीसदी ही रह गया यानी महज़ चार फ़ीसदी की ही कमी चिन्ता का विषय है और सरकारों को इस पर गहन चिन्तन करना चाहिए। एनएफएचएस-5, 2019-2020 के आँकड़ें ये भी बताते हैं कि देश में महिलाओं में एनेमिया या ख़ून की कमी वाला मामला भी गम्भीर है।

2015-16 के सर्वे से तुलना करें, तो पता चलता है कि यह हर श्रेणी में बढ़ा है। अब दो-तिहाई बच्चे और आधी से अधिक महिलाएँ, चाहे वे गर्भ से हों या नहीं, एनेमिक हैं। तथ्य बताते हैं कि लड़कियों की स्कूल में अधिक वर्षों तक उपस्थिति यानी पढ़ाई से उसके बाल विवाह को टाला जा सकता है, उसके पोषण स्तर में सुधार लाया जा सकता है। 12वीं पास या इससे अधिक शिक्षा हासिल करने वाली लड़कियों की शादी की उम्र में व शिक्षा हासिल नहीं करने वाली लड़कियों की शादी की उम्र में अक्सर फ़ासला औसतन पाँच साल का रहता है। स्टेट ऑफ द वल्र्ड रिपोर्ट-2020 के अनुसार, भारत में शिक्षा नहीं लेने वाली लड़कियों में से 51 फ़ीसदी व प्राइमरी तक पढऩे वाली लड़कियों में से 47 फ़ीसदी की शादी 18 साल से पहले हो गयी थी। लड़कियों की कम उम्र में शादी करने की एक वजह ग़रीबी भी है। विशेषज्ञों का कहना है कि शादियों में जल्दबाज़ी 70 फ़ीसदी वंचित समुदाय जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और आदिवासी जातियों में होती है।

पापुलेशन फांउडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक डॉ. पूनम मुतरेजा का मानना है कि सिर्फ़ क़ानून बना देना समस्या का हल नहीं होगा। इससे रोक नहीं लगेगी, बल्कि लोग शदियों को छुपाने लगेंगे। बाल विवाह की समस्या पहले से ही गाँवों में ज़्यादा है तथा यह समस्या वहाँ और गहरा सकती है। वैसे शादी की उम्र के लिए दूसरे देशों पर निगाह डालें, तो पता चलता है कि चीन में लड़के के लिए 22, तो लड़की के लिए 20 वर्ष की उम्र तय की गयी है। अमेरिका, फ्रांस व जर्मनी में लड़का व लड़की दोनों के लिए 18 साल है। रूस, ब्रिटेन, कनाडा में दोनों के लिए 16 साल है। जया समिति ने भी भारत में लड़का व लड़की दोनों की शादी के लिए न्यूनतम उम्र में जो तीन साल का अन्तर है, उसे ख़त्म करके 21 साल करने यानी एक समानता लाने का सुझाव सरकार को दिया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे हाल ही में मंज़ूर भी कर लिया। सरकार लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करके जो कुछ हासिल करना चाहती है, उसके लिए अन्य विकल्प भी हैं। लेकिन सरकार क़ानून के ज़रिये ही हासिल करना चाहती है।

डॉ. पूनम मुतरेजा का कहना है कि कोई भी क़ानून बनाने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन आज देश के सामने असल चुनौती यह है कि लड़कियों को शिक्षित करना होगा। आर्थिक रूप से सक्षम बनाना होगा तथा समाज में लड़कियों के प्रति सुरक्षा का वातावरण बनाना होगा, तभी कम उम्र में लड़कियों का विवाह रुकेगा। कई खाप पंचायतें भी सरकार से इस मुद्दे पर नाराज़ हैं। ढुल खाप के प्रधान रणधीर सिंह का कहना है कि 18 साल तक ही लड़की की इज़्ज़त की रखवाली माता-पिता के लिए मुश्किल है। 21 साल तक उम्र बढ़ाने से दिक़्क़तें और बढ़ जाएँगी।

कुल मिलाकर अगर यह नया क़ानून बनता है, तो सरकार और समाज के एक तबक़े के बीच तनातनी का माहौल बना रहेगा। वैसे लड़कियों के सशक्तिकरण को अमलीजामा पहनाने के लिए, बराबरी के मौक़े देने के लिए, व्यापक विकास और उन्हें स्थायी समावेशी माहौल मुहैया कराने के लिए सरकार, परिवार और समाज सभी को काम करने की ज़रूरत है।