विवाद का कानून

नागरिकता संशोधन कानून संसद से पारित होने के साथ ही असम, मेघालय, त्रिपुरा के साथ ही पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुआ है। इस कानून के तहत गैर-मुस्लिम छ: धर्मों हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के सदस्यों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। अगरसरकार ने विरोध के बावजूद इस कानून को वापस नहीं लिया, तो 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में शरण लेने वाले हिन्दुओं, सिखों, बौद्ध, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान की जाएगी।

इसका आगे चलकर पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में क्या राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा, यह तो समय के गर्भ में है। लेकिन िफलहाल पूर्वोत्तर के सातों राज्यों में भाजपा सत्ता में है और 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान यहाँ उसका प्रदर्शन अच्छा रहा है। पूर्वोत्तर की 25 में से 18 सीटें उसने जीती थीं। अब भाजपा पश्चिम बंगाल में भी खुद को साबित कर जड़ें जमाना चाहती है। पूर्वोत्तर राज्यों में नागरिकता कानून के विरोध के पीछे लोगों को डर है कि इससे उनकी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान खतरे में पड़ जाएगी। वहीं, असम के बाद पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में विरोध-प्रदर्शन हिंसक हो गये है; इसके पीछे कथित तौर पर मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वाले अधिनियम की आलोचना की जा रही है। असम के लोगों ने आशंका जतायी है कि इसके बाद 1985 का असम समझौता निरर्थक हो जाएगा। असम समझौते ने 1971 के बाद राज्य में प्रवेश करने वाले सभी लोगों को अवैध प्रवासी माना था। इस अधिनियम को अब उच्चतम न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी गयी है कि यह भेदभाव करने वाला है; साथ ही असंवैधानिक भी।

नागरिकता कानून के बाद विदेश नीति और रिश्तों पर भी असर पड़ा है। बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमन ने कहा कि उनके देश ने भारत से अनुरोध किया है कि वह देश में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों की सूची प्रदान करे और वे उनको लेने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि उनके अपने देश के बाशिंदों को घर वापसी का अधिकार है। इससे पहले मोदी सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की विदेश नीति को मज़बूत करने के लिए अच्छा काम किया था। लेकिन राजनयिक मोर्चे पर विरोध एक बड़ा झटका होगा; क्योंकि जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के लिए अपनी भारत यात्रा िफलहाल टाल दी है। इसका आयोजन गुवाहाटी में ही किया जाना था और जापान से पूर्वोत्तर में निवेश सम्बन्धी हस्ताक्षर किये जाने की उम्मीद थी। संयुक्तराष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय, अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग और हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी ने भी लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को कम करने के लिए नागरिकता संशोधन कानून की आलोचना की है। फ्रांस, इज़राइल, अमेरिका और ब्रिटेन ने भारत में अपने नागरिकों के लिए विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए एडवाइजरी जारी की है। पश्चिम बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और केरल जैसे राज्यों ने इसे लागू करने से इन्कार कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकता कानून से जुड़े मामले में कई ट्वीट किये और कहा कि लोगों को संयम बरतना चाहिए। यह कानून किसी भी भारतीय की नागरिकता को प्रभावित नहीं करता है। यह देश की सदियों पुरानी संस्कृति, सद्भाव, और भाईचारे की स्वीकारोक्ति है। हालाँकि यह काम बहुत पहले होना था, पर देर से सही, इसका स्वागत किया जाना चाहिए।