विरासत बनेगा शिबू सोरेन का आवास

शिबू सोरेन को भाजपा के शासन-काल में जो सरकारी आवास ताउम्र के लिए आवंटित किया गया था। अब झामुमो की सरकार में सोरेन के इस सरकारी आवास को उनके जीते-जी विरासत के रूप में सँजोने का निर्णय लिया गया है। ख़ास बात यह है कि झामुमो के नेतृत्व वाली सरकार में उनके पुत्र के मुख्यमंत्री होने के बाद भी इस फ़ैसले की कहीं आलोचना या विरोध नहीं हो रहा है। इसकी वजह यह है कि शिबू सोरेन सर्वमान्य नेता हैं।

राजनीतिक परिधि से दूर रहने वाले, जनहित की परवाह करने वाले सर्वमान्य नेता बिरले ही होते हैं। भारतीय राजनीति के पूरे इतिहास को खंगाला जाए, तो ऐसे नेता उँगलियों पर गिने जा सकते हैं। ऐसे ही एक सर्वमान्य नेता हैं- शिबू सोरेन। शिबू सोरेन का सम्मान हर नेताओं से लेकर जन सामान्य तक कोई करता है। उनकी अपनी पार्टी झामुमो हो या भाजपा, कांग्रेस, राजद जैसे अन्य दल हों, सभी शिबू सोरेन की इज़्ज़त करते हैं।

राज्य में अगर कोई गुरुजी के सम्बोधन से कुछ कहता है, तो इसका अर्थ कॉलेज या स्कूल के शिक्षक से नहीं, बल्कि शिबू सोरेन से है। वह कभी शिक्षक नहीं रहे हैं; लेकिन समाज को उन्होंने जो राह दखायी, जो शिक्षा दी, उससे उन्हें दिशोम गुरु की उपाधि मिल गयी। यही कारण है कि झारखण्ड में शिबू सोरेन अपने मूल नाम से कम और गुरुजी के नाम से ज़्यादा जाने जाते हैं।

यूँ तो शिबू सोरेन किसी सम्मान के मोहताज नहीं हैं। हर सम्मान से वह ऊपर हैं। इसके बाद भी सरकार ने हाल में जो फ़ैसला लिया है, वह राज्य के लोगों को लिए एक तोहफ़ा है और ख़ुद शिबू के सम्मान में वृद्धि है।

दरअसल झारखण्ड के सबसे बड़े और सबसे क़द्दावर नेता दिशोम गुरु के रांची स्थित सरकारी आवास को विरासत के रूप में बदलने का फ़ैसला उनके जीते-जी लिया गया है। खास बात यह है कि यह फ़ैसला उनके बेटे और राज्य के मुख्यमंत्री हेंमत सोरेन की सरकार ने लिया है। सरकार का यह फ़ैसला झारखण्ड के जनमानस की उस भावना को धरातल पर उतारने जैसा है, जिसमें गुरुजी के प्रति बेपनाह प्यार झलकता है। गुरुजी अब केवल झारखण्ड के नेता नहीं हैं, बल्कि एक ऐसी शख़्सियत हैं, जिन्होंने हमेशा अलग लकीर खींची है। चाहे सामाजिक आन्दोलन हो या राजनीतिक, शिबू सोरेन का तरीक़ा हमेशा से अलग रहा है। महाजनी प्रथा और आदिवासियों में नशे की बुरी लत के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाले शिबू सोरेन ने राजनीति में भी अद्भुत शालीनता का परिचय दिया है। अपने पाँच दशक के राजनीतिक जीवन में उन्होंने शायद ही अपने किसी राजनीतिक विरोधी के लिए नकारात्मक बातें कही हों। यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों में उनके लिए बराबर का सम्मान है। झारखण्ड की माटी का यह नायाब हीरा दरअसल हर उस सम्मान का हक़दार है, जो झारखण्ड की हवाओं की ख़ुशबू से होकर गुजरता है। केवल झारखण्ड के लिए जीने वाले इस शख़्सियत को दिया जाने वाला हर सम्मान ख़ुद उस सम्मान का सम्मान है; ऐसा लोग मानते हैं।

कहीं विरोध या आलोचना नहीं

राजनीति में सत्ता पक्ष और विपक्ष सिक्के के दो पहलू हैं। अमूमन सत्ता पक्ष यानी सरकार के हर फ़ैसले में विपक्षी ख़ामियाँ निकालता है। सरकार के फ़ैसलों में विपक्षी दलों का विरोध या आलोचना एक आम बात है। देखा गया है कि सरकार के बहुत-ही कम फ़ैसलों में विपक्ष की सहमति रहती है। राज्य में झामुमो के नेतृत्व में गठबन्धन की सरकार है। सरकार में कांग्रेस, राजद घटक दल के रूप में शामिल हैं। मुख्य विपक्षी दल भाजपा है। सरकार ने पिछले सप्ताह शिबू सोरेन के सरकारी आवास को विरासत (हेरीटेज बिल्डिंग) बनाने का फ़ैसला लिया और इसकी घोषणा की गयी। इस घोषणा पर कहीं से विरोध या आलोचना के स्वर नहीं उभरे हैं। यहाँ तक कि विपक्षी दल यानी भाजपा के नेताओं ने भी इस मामले का विरोध नहीं किया। उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की। भाजपा के कुछ नेता सरकार के इस फ़ैसले के पक्ष में ही दिखे।

भाजपा ने ही दिया था आवास

शिबू सोरेन झामुमो का नेतृत्व करते हैं। यानी भाजपा के लिए विपक्षी दल के नेता हैं। लेकिन उनके कद का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शिबू सोरेन वर्तमान में जिस सरकारी आवास में रहते हैं, वह उन्हें भाजपा शासनकाल में ही आवंटित किया गया था। ख़ास बात है कि इस आवास को आवंटित करते समय उनके सम्मान, प्रतिष्ठा को देखते हुए यह निर्णय लया गया कि शिबू सोरेन सांसद या विधायक रहें अथवा न रहें, वह किसी पद को धारण करें अथवा न करें; इससे उनके आवास आवंटन पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। आवंटित आवास ताउम्र उनके ही अधीन रहेगा। यानी एक तरह से यह आवास शिबू के नाम ही कर दिया गया। अब उन्हीं की पार्टी के नेतृत्व में चल रही उनके बेटे हेमंत सोरेन की सरकार ने इसी आवास को विरासत के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है।

ख़ुद में मिसाल हैं दिशोम गुरु

रांची से लगभग 70 किलोमीटर दूर रामगढ़ जिले के गोला से एक पतली-सी सडक़ पहाड़ों पर नागिन की तरह डोलती जाती है। यह सडक़ जहाँ ख़त्म होती है, वहीं एक गाँव है- नेमरा। वहीं एक छोटा-सा रेलवे स्टेशन है, जिसका नाम है- बडग़ल्ला। इसी नेमरा में शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी, 1944 को हुआ। नेमरा गाँव विशालकाय चंदू पहाड़ के बीच बसा हुआ है। गाँव के आसपास महाजनों-बनियों की अजगर-सी कतारें फैली हुई हैं। चंदू पहाड़ से शिबू सोरेन का बड़ा गहरा नाता है; क्योंकि इसी पहाड़ के आँचल में उनके पिता सोबरन माँझी की समाधि है। अफ़सोस कि शिबू जब छोटे थे, उनके पिता की महाजनों और बनियों ने 27 नवंबर, 1957 को हत्या कर दी थी। इस पूरी घटना का किशोर शिबू सोरेन पर गहरा प्रभाव पड़ा। थोड़ा बड़ा होते ही शिबू सोरेन ने दुश्मनों को नहीं, बल्कि दुश्मनी पैदा करने वाली व्यवस्था अर्थात् महाजनी सभ्यता को समाप्त करने के लिए धनकटनी आन्दोलन छेड़ दिया और आदिवासियों के मन में यह बात बैठा दी कि जल-जंगल-ज़मीन पर उनका प्राकृतिक अधिकार है। इस आन्दोलन ने महाजनी प्रथा की नींव को खोखला कर दिया। साथ ही धरती की लूट से बचाने वाले दूसरे आन्दोलन (कोयलांचल की कोयला माफिया के ख़िलाफ़ लड़ाई) करने वाले लोग भी इस आन्दोलन से जुड़ते चले गये। एक महा आन्दोलन खड़ा होने से महाजनी सभ्यता की नुमाइंदगी करने वाले परेशान हो गये। इसी क्रम में बिनोद बिहारी महतो और ए.के. राय से भी शिबू सोरेन का मिलना हुआ। झारखण्ड की भूमि की लूट को रोकने के लिए सांगठनिक प्रयास के रूप में सन् 1972 में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा का जन्म हुआ। शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा के ख़िलाफ़ बड़े आन्दोलन की शुरुआत की और आदिवासी समाज में जागृति लाने के लिए अभियान प्रारम्भ किया। पोखरिया आश्रम में रहने के दौरान ही उन्हें जनजातीय समाज की ओर से दिशोम गुरु की संज्ञा दी गयी।

उनके संघर्ष की फ़ेहरिस्त इतनी लम्बी है कि गिनाने के लिए सम्भवत: शब्द भी कम पड़ जाएँ। शिबू सोरेन सम्भवत: लोकतंत्र के अकेले ऐसे नेता हैं, जो आक्रामक राजनीति के इस दौर में भी कभी अपने विरोधियों के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोलते। शान्त, संयत और शालीन तरीक़े की राजनीतिक कार्यशैली ही उन्हें दूसरों से अलग करती है, और यही कारण है कि वह जननेता कहे जाते हैं। शिबू सोरेन के जीवन में कहानियाँ ही कहानियाँ हैं। जिस तरह से चट्टानें हज़ारों साल का इतिहास अपने सीने में सँजोये रखती हैं, उसी तरह दिशोम गुरु का जीवन क़िस्सों-कहानियों और असंख्य दु:खों से रंगा हुआ है। वह संघर्ष और आन्दोलन की जीती-जागती मिसाल हैं। अपने जीवन-काल में ही इतिहास पुरुष बन चुके शिबू सोरेन को जानते-समझते हुए सैकड़ों संघर्ष याद आने लगते हैं, जो अपनी माटी, पहाड़, पेड़, पानी और ज़िन्दगी की हिफ़ाजत में लड़े गये। दिशोम गुरु का संघर्ष हमेशा प्रेरित करता है। उनकी सादगी विरल है। उनकी आँखें अब भी उतनी ही स्वपनीली हैं, जितनी पहले हुआ करती थीं। बदलाव के तमाम झंझावातों और दबावों में वह आज भी कई मायनों में पहले जैसे ही हैं। राजनीति में आने के बाद दिशोम गुरु को भी तमाम जटिल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। मगर उन्हें राजनीति में लाने के लिए वही परिस्थितियाँ ज़िम्मेदार हैं, जिन्होंने उनका बचपन काँटों से भर दिया था।

संघर्ष की गाथा बताएगा भवन

दिशोम गुरु का सरकारी आवास रांची के मोरहाबादी इलाक़े में है। इसे नये सिरे से सँवारने की तैयारी शुरू हो गयी है। इसे ऐतिहासिक इमारत के रूप में भी विकसित किया जाएगा, जिसमें शिबू सोरेने का जीवन दर्शन भी झलकेगा। भवन निर्माण विभाग ने इसके लिए निविदा (टेंडर) जारी की है। विरासत भवन का रूप देने के लिए इस पर क़रीब पाँच करोड़ रुपये ख़र्च किये जाएँगे। नये साल में इसके निर्माण का काम शुरू होने की उम्मीद है। इसे छ: महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। भवन निर्माण विभाग द्वारा भवन का काम किया जाएगा। भवन के अन्दर इंटीरियर और अन्य कार्य कला एवं संस्कृति विभाग द्वारा किया जाएगा। यहाँ शिबू सोरेन के संघर्ष की गाथा को तस्वीरों के ज़रिये दिखाया जाएगा। इसके लिए पुरानी तस्वीर और पेंटिंग्स के साथ-साथ उनके संघर्ष की पूरी कहानी की जानकारी मिल सकेगी। अधिकारियों का कहना है कि इस भवन को विरासत के रूप में विकसित करने के पीछे सरकार का उद्देश्य कि लोग सूदख़ोरी-महाजनी प्रथा से लेकर झारखण्ड आन्दोलन तक लम्बी लड़ाई लडऩे वाले अपने नेता के जीवन और संघर्ष के बारे में प्रामाणिक तरीक़े से जानकारी हासिल कर सकें।

“सांसद शिबू सोरेन के आवास को ऐतिहासिक इमारत के रूप में संरक्षित किया जाएगा। आवासीय परिसर में विभिन्न प्रकार की गैलरी होंगी। जिसमें शिबू सोरेन के पूरे जीवन-काल के संघर्ष को तस्वीरों के ज़रिये दिखाया जाएगा। राज्य के विभिन्न आन्दोलनों में शिबू सोरेन की भूमिका का विस्तार से वर्णन होगा। अलग-अलग वक़्त में दिशोम गुरु के द्वारा किये गये कार्यों की व्याख्या भी होगी। चूँकि अभी शिबू सोरेन इस आवास में रह रहे हैं, इसलिए इसके एक हिस्से को विरासत के रूप में विकसित किया जा रहा है। इस कार्य को छ: माह में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। उनके आवास को विरासत भवन बनाने में कला संस्कृति विभाग की भी मदद ली जा रही है”।

(सुनील कुमार, सचिव, भवन निर्माण विभाग)