विदेशों में भारतीय व्यंजनों की फेमस ‘करी क्वीन’ हैं सारा

सारा अली चौधरी, जो कि भारतीय मूल की ब्रिटिश नागरिक हैं और यूनाइटेड किंगडम (यूके) में रहती हैं; कुछ समय बैंकिंग और रीयल एस्टेट सेक्टर मे भी अपना दबदबा बनाने के बाद अपने शेफ के पसंदीदा क्षेत्र में लौट आयी हैं। अगर सारा अली को एक सामान्य शेफ कहा जाए, तो यह उनका अपमान होगा। इस काम के प्रति उन्होंने बचपन से जो जुनून और लगाव रखा था, वह आकस्मिक नहीं है। बैंकिंग और रियल एस्टेट में कुछ समय काम करने के बाद अब वह वापस से अपने पसंदीदा कुकिंग के क्षेत्र में लौट आयी हैं। अगर सारा की मानें, तो यह काम न केवल उन्हें सुकून देता है, बल्कि इस काम से उन्हें प्रशंसा व लोकप्रियता भी मिली है।

हाल ही में अपनी भारत यात्रा के दौरान उन्होंने ‘तहलका’ से बात की। उन्होंने बताया कि वह भोजन के व्यवसाय से जुुड़े परिवार में पैदा हुईं और वर्षों इसी क्षेत्र काम भी किया। लेकिन शादी और बच्चे होने के बाद उन्होंने यह कार्य छोड़कर बैंकिंग और रियल एस्टेट में कार्य करके यह सुनिश्चित किया कि मेरे पास और भी काम करने की काबिलियत है। हालाँकि यह कोई ऐसा काम नहीं है, जिसके लिए मैं मरी जा रही थी। लेकिन अब मन फिर पुराने क्षेत्र में लौटने को किया और मैं फिर से अपने पसंदीदा काम की ओर लौट आयी हूँ; जो कि मुझे सुकून देता है। सारा कहती हैं कि बैंकिंग और रियल एस्टेट सेक्टर में काम करने के बाद अपने पहले प्रिय करियर- खाना बनाने के काम में फिर से वापसी करना उन सभी लोगों के लिए एक सदमा है, जो उन्हें जानते हैं।

बता दें कि सारा को यूके, नेपाल फ्रेंडशिप सोसायटी, चाइल्ड नेपाल और जानकी महिला जागरूकता सोसायटी के लिए राजदूत नियुक्त किया गया है और वर्तमान में वह 2015 के भूकम्प के बाद की स्थितियों को दूर करने के लिए नेपाल में भी कर रही हैं।

 वर्ष 2017 में उन्हें इजी करी के लिए स्टार्टअप, द न्यू किड ऑन द ब्लॉक अवॉर्ड, यूनाइटेड किंगडम से सम्मानित भी किया गया था। इतना ही नहीं, इन्होंने ‘करी क्वीन’ जैसे नामों से लोगों में खूब प्रशंसा भी बटोरी। उन्होंने बताया कि यूके में भारतीय व्यंजन बनाने वाली एशियाई महिलाओं की कमी एक गम्भीर समस्या है। वह इस कमी को दूर करने के लिए अपने कौशल और प्रतिभा का उपयोग करके इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए कई बड़ी योजनाएँ शुरू कर रही हैं।

उन्होंने मुस्कुराते हुए अपने ही नाम का ज़िक्र करते हुए कहा कि जिस तरह से चौधरी ने विनम्र स्वभाव से यह साबित किया है कि आज के दौर में पुरुष शेफ इस क्षेत्र में आगे बढऩे की नयी सोच रखते हैं। ऐसे में अगर महिलाओं को इस क्षेत्र में आगे नहीं रखा जाएगा, तो पुरुष उन पर भारी पड़ सकते हैं। सारा ने कहा कि महिलाओं ने प्रत्येक क्षेत्र में काम कर यह साबित किया कि महिलाएँ न केवल घर के कामों में सक्षम हैं, बल्कि प्रत्येक क्षेत्र में समर्थ भी हैं।

सारा कहती हैं कि वह ज़्यादा-से-ज़्यादा महिलाओं को जागरूक कर भोजन बनाने के प्रति बढ़ावा दे रही हैं और इस काम का खूब आनंद ले रही हैं। कई महिलाओं ने अपनी कॉर्पोरेट और डे-जॉब छोड़कर इस व्यवसाय में कदम रखा है, जहाँ वे रसोई में काम करके या फिर निवेश करके उसे अपना व्यवसाय बोल सकती हैं। मेरा मानना है कि ऐसी महिलाएँ अन्य महिलाओं को भी ऐसा ही करने के लिए प्रशिक्षित और प्रेरित करें, जिससे ज़्यादा-से-ज़्यादा महिलाएँ इस व्यवसाय से जुड़ सकें। सारा ने बताया कि वह इस क्षेत्र में महिलाओं के बीच जागरूकता फैलाने में खुशी महसूस कर रही हैं, जिसे वे अपना कह सकती हैं। उन्होंने बताया कि वह एक ऐसे परिवार में जन्मीं, जिनका व्यवसाय रेस्तरां चलाना ही था। सारा ब्रिटेन में भारतीय रेस्तरां चलाने वाली सबसे कम उम्र की एशियाई महिला हैं।

सारा ने कई साल तक महिलाओं और पुरुषों दोनों को प्रशिक्षित किया है। वह बताती हैं कि मुझे मेरे पिता रफीक चौधरी ने सबसे अच्छा प्रशिक्षण दिया है। मेरे पिता बहुत कम उम्र में यूके आ गये थे। वे परफेक्शनिस्ट थे। मुस्कुराते हुए सारा कहती हैं कि पिता के द्वारा प्रशिक्षित होना कठिन था; लेकिन मुझे भविष्य के लिए बेहतरीन मंच उन्होंने ही प्रदान किया। उन्होंने हमेशा मुझे और माँ को रेस्तरां चलाने के लिए प्रोत्साहित किया है। लेकिन पत्रकारोंं ने अब इसमें दिलचस्पी दिखायी है, जो कि हमारे लिए सामान्य बात है। हालाँकि मैं इस व्यवसाय में आने वाली परेशानियों की स्थिति से काफी नाखुश थी। तीन वर्ष पहले जब मैंने इस उद्योग में वापसी की थी, तब यह एक रेस्तरां खोलने की योजना नहीं थी; क्योंकि मुझे नहीं लगता था कि इंग्लैंड में भारतीय रेस्तरां के व्यापार के लिए बहुत कुछ है,   वहाँ रेस्तरां खोलने के लिए उन्होंने कुछ इमीग्रेशन नियम, वेतन, स्टाफिंग और लागत की शर्तें व इन सभी के साथ-साथ लिंग अनुपात का अन्तर। मैं पूछती हूँ कि ऐसा क्यों है? जबकि रसोईघर महिलाओं का अनिवार्य क्षेत्र है। यह स्थिति असहनीय है। मैं उन लोगों के लिए खेद महसूस करती हूँ, जो मुझे कहते हैं कि वे रेस्तरां चलाते हैं।

जब आप इंडियन फूड रेस्तरां खोलते हैं, उसमें लगने वाली मेहनत और निवेश से मिलने वाले लाभ में एक हिस्सा आपदा का भी होता है। चौधरी ने इशारा किया कि भविष्य की योजनाओं की ओर था,, जिसमें भारत उनका गंतव्य वन-स्टॉप-डेस्टीनेशन के है।

सारा कहती हैं कि मैंने यूके में भारतीय व्यंजनों का बाज़ार तलाशने के दौरान पाया कि पाँच में से केवल एक ही महिला शेफ है और उससे भी कम भारतीय हैं। मुझे लगता है यह लैंगिक अन्तर पारम्परिक संस्कृति से आता है। वे लोग, जो अपनी मातृभूमि को छोड़ चुके हैं और दूसरे देशों में अपनी ज़िन्दगी दोबारा से शुरू कर रहे हैं, परन्तु उनकी मातृभूमि की मानसिकता वैसी ही है, जैसी उन्होंने छोड़ी थी।

वे लोग नहीं समझ सकते कि इन दिनों भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान में क्या चीज़ें चल रही हैं? जब उन्होंने अपना देश छोड़कर किसी दूसरे देश में जीवन शुरू किया था, तब दूसरा दौर रहा होगा। जहाँ उन लोगों ने अपने परिवारों को बसाया, सुरक्षात्मक होने के मामले में जो सही समझते हैं, वही करते हैं। ऐसे लोग अपने से ज़्यादा मेहनत करने वालों की बात नहीं करते।

एक तरफ तो सारा की इस बात में गुस्सा दिखा, दूसरी तरफ उन्होंने यूके की तुलना में भारत के आतिथ्य उद्योग की प्रशंसा भी की। उन्होंने बताया कि हाल ही में मैंने अपने भारत दौरे के दौरान यह देखा यहाँ के लोग संस्कृति को लेकर अपनी सोच कितनी आगे की रखते हैं और खानपान में शायद ही कोई लैंगिक अन्तर रखते हों। इंग्लैंड इस मामले में निश्चित रूप से भारत से पीछे है।

इससे एक बात तो स्पष्ट है कि सारा अली चौधरी पैदा तो यूके में हुई हैं, लेकिन उनकी भारतीय जड़े आज भी मज़बूत हैं; जिसका स्वाद उनके द्वारा शुद्ध देसी भारतीय व्यंजनों में भी मिलता है। सारा गज़ब का भारतीय भोजन बनाती हैं। भारत की संस्कृति, विरासत और बाकी सभी चीज़ों के लिए किसी से भी मुकाबले में पीछे नहीं हैं।

प्रामाणिक भारतीय भोजन

 सारा कहती हैं कि जब वह प्रामाणिक कहती हैं, तो इसकी वजह यह है कि यूके में भारतीय रेस्तरां ने पश्चिमी लोगों के लिए खाना बनाया है। उन्होंने मार्केटिंग प्रमोशन और पीआर के लिए अपनी रेसेपी को मेन्यू सेल में सुनिश्चित करने के लिए व्यंजनों के स्वाद को बदला और नये तरीके के व्यंजन भी बनाये। कुछ ऐसे भी रेस्तरां हैं, जिन्होंने मूल स्वाद को भीतर रखने की कोशिश की है; लेकिन भारतीय भोजन के ज़ायकों को व्यापक रूप से स्वीकार नहीं किया है।

वह कहती हैं कि मैं एक साथ सैकड़ों लोगों को खाना नहीं खिलाती हूँ और न ही मैं कोई रेस्तरां चला रही हूँ। मुझे अपने भोजन को जनता की माँग के हिसाब से भी बनाने की आवश्यकता नहीं है। मेरा मकसद दुनिया को बताना है कि हम क्या खाते हैं? कैसे खाते हैं? और क्यों खाते हैं? जितने भी भारतीय व्यंजन मैं लोगों के साथ साझा करती हूँ, ये सदियों से चली आ रही हैं।

नये-नये भोजन का रुझान क्या है?

सारा कहती हैं कि फ्यूजन फूड कोई नया भोजन नहीं है। लेकिन मुझे यह हमेशा ही रोमांचक लगता है। इस समय इंग्लैंड में इसकी माँग बहुत बढ़ी है। इसलिए भी, क्योंकि यह शाकाहारी है। उनका मानना है कि भारत इसका उपयोग वर्षों से कर रहा है, इसलिए भारत इस मामले में कहीं आगे है। सारा कहती हैं कि उन्हें केले के पत्तों पर परम्परागत रूप से परोसा हुआ भारतीय भोजन बेहद पसन्द है। वह कहती हैं कि मुझे बड़ी प्लेटों में कई व्यंजन परोसना पसंद नहीं हैं। यह सब तब ही अच्छा लगता है, जब आप फ्रांस में होते हैं। मैं मानती हूँ कि फाइन डाइनिंग कॉनसेप्ट पुराना हो गया है। जब हम भारतीय भोजन की बात करते हैं, तब बड़े भाग में अच्छे स्वाद का भोजन करना ही अच्छा होता है।