विकास को कैसे गति देंगे दाग़ी जनप्रतिनिधि?

गुजरात विधानसभा चुनाव में चुने गये सभी 182 विधायक इन दिनों काफ़ी ख़ुश नज़र आ रहे हैं। सबसे ज़्यादा ख़ुशी भाजपा के विधायकों में है, जिनकी संख्या 156 है। लेकिन विडम्बना यह है कि गुजरात के इन नव निर्वाचित 182 विधायकों में से क़रीब 40 विधायक यानी तक़रीबन 22 फ़ीसदी विधायक आपराधिक श्रेणी के हैं। यह कोई नया मामला नहीं है, क्योंकि देश भर में सैकड़ों सांसद और विधायक आपराधिक पृष्ठभूमि के ही हैं। इसे भी देश का दुर्भाग्य कहना चाहिए, क्योंकि आपराधिक प्रवृत्ति के जनता के ये निर्वाचित प्रतिनिधि सत्ता पाने के बाद निरंकुश ही होते हैं।

हाल ही में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स’ (एडीआर) और ‘गुजरात इलेक्शन वॉच ने नवनिर्वाचित हलफ़नामों के विश्लेषण की रिपोर्ट सार्वजनिक की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 40 आपराधिक पृष्ठभूमि के विधायकों में से 29 यानी कुल 182 विधायकों के 16 फ़ीसदी विधायकों के ख़िलाफ़ हत्या की कोशिश यानी भारतीय दण्ड संहिता की धारा-307, बलात्कार यानी धारा-376, यौन उत्पीडऩ यानी धारा-354 और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। इन 29 में से 20 विधायक भाजपा के, चार कांग्रेस के, दो आम आदमी पार्टी के हैं, वहीं एक निर्दलीय और एक समाजवादी पार्टी का विधायक है।

भाजपा की अगर बात करें, तो उसके 26 विधायकों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामले लम्बित हैं। इन विधायकों का चुना जाना जनता के चुनाव पर सवालिया निशान है और यह दर्शाता है कि आज भी लोग अपने जनप्रतिनिधियों का चरित्र नहीं, बल्कि उनका धनबल देखते हैं। बात अगर साल 2017 की करें, तो उस समय भी 47 विधायक आपराधिक प्रवृत्ति के चुने गये थे।

चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाली संस्था एडीआर नवनिर्वाचित विधायकों के हलफ़नामों का विश्लेषण करने के बाद उनके चरित्र की रिपोर्ट पेश करता है। इस बार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले 40 नवनिर्वाचित विधायकों ने भी अपनी रिपोर्ट में अपने-अपने ऊपर चल रहे आपराधिक मामलों का ज़िक्र किया है। हालाँकि यह कोई गारंटी नहीं है कि हर विधायक अपने ख़िलाफ़ दर्ज सभी आपराधिक मामलों का एकदम सही-सही ब्योरा देता है। ज़्यादातर उन्हीं मामलों को विधायक अपने हलफ़नामे में उजागर करते हैं, जो संगीन और सार्वजनिक होते हैं।

गुजरात दंगों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ भी कई मामले दर्ज हुए, जिनमें से ज़्यादातर मामले इन दोनों बड़े नेताओं के केंद्र की सत्ता में आने के बाद ख़त्म हो गये। आज भी इन दोनों बड़े नेताओं पर कथित आरोप लगते रहते हैं। इस बार के विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान तो गृह मंत्री अमित शाह ने खुलेआम यहाँ तक कह दिया कि 2002 में इन्होंने ने हिंसा करने की कोशिश की थी, हमने इनको ऐसा पाठ पढ़ाया, चुन-चुनकर सीधा किया जेल में डाला, उसके बाद से 22 साल हो गये, कहीं कोई कफ्र्र्यू नहीं लगाना पड़ा। यह निशाना कांग्रेस पर नहीं था, बल्कि मुसलमानों पर था। भाजपा नेता और गृहमंत्री के इस बयान को लेकर यह कहना उचित ही होगा कि चुनाव प्रचार में इस तरह की भाषा जब गृहमंत्री ख़ुद बोल रहे हों, तो भाजपा के उन कार्यकर्ताओं और नेताओं की कौन कहे, जो खुलेआम कांग्रेस और मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर उगलते फिरते हैं।

सवाल यह है कि भाजपा नेताओं के आपराधिक मामलों पर गृह मंत्री क्या कहेंगे? इस बार विधानसभा में एक ही मुस्लिम विधायक चुना गया है, जबकि 40 विधायक वो हैं, जो यह स्वीकार कर चुके हैं कि उनके ख़िलाफ़ आपराधिक मामले हैं। ज़ाहिर ही है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले इन विधायकों में ज़्यादा यानी कम-से-कम 39 या सबके सब हिन्दू ही हैं। जो लोग चुने जाने से पहले या पिछली बार विधायक बनने के दौरान अगर अपराध कर चुके हैं, तो अब क्या वे विधायक चुने जाने के बाद अपराध से तौबा करेंगे? लगता तो नहीं है।

बहुमत से सत्ता में आयी भाजपा की गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री भूपेंद्र भाई पटेल को और साफ़-स्वच्छ छवि के आधार पर गुजरात में लगातार 20 साल से विधानसभा चुनाव और देश में दो बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस दिशा में भी काम करना चाहिए कि उनके राज्य में किसी दाग़ी नेता को भी टिकट नहीं मिलना चाहिए। लेकिन भाजपा से ही ऐसे जन प्रतिनिधियों को टिकट मिलना विडम्बना नहीं, तो और क्या है? स्वच्छ राजनीति की बात कहने वाले प्रधानमंत्री को चाहिए कि वे अब देश की राजनीति में स्वच्छ छवि के नेताओं को स्थापित करने से पहले अपनी पार्टी में साफ़-स्वच्छ छवि के नेताओं को जगह दें और आपराधिक प्रवृत्ति ही नहीं, बल्कि आपराधिक आरोपों से घिरे नेताओं के ख़िलाफ़ भी सख़्ती से पेश आएं। उन्हें इस बात का ध्यान रखना होगा कि उनकी केंद्र की सरकार में भी कई नेता और मंत्री दाग़ी हैं।

हिमाचल प्रदेश में भी इस बार चुने गये 41 फ़ीसदी विधायक दाग़ी हैं। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, कांग्रेस के 40 प्रत्याशियों में से 23 विधायकों पर घोषित आपराधिक मामले और नौ विधायकों पर गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं भाजपा के कुल 25 विधायकों में से पाँच पर घोषित आपराधिक मामले, जबकि तीन विधायकों पर गम्भीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। इस बार सन् 2017 के मुक़ाबले नौ फ़ीसदी ज़्यादा विधायक हिमाचल में आपराधिक श्रेणी के हैं। आज देश में एक भी ऐसी पार्टी नहीं है, जिसमें दागडी चेहरे न हों।

 

घट रहा मुस्लिम प्रतिनिधित्व

इस बार के गुजरात चुनाव में एक ही मुस्लिम विधायक चुनकर विधानसभा तक पहुँच सका है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि गुजरात में पहले भी मुस्लिम विधायकों का टोटा रहा है; लेकिन इस बार मुस्लिम बहुल 73 विधानसभा सीटों पर 230 मुस्लिम उम्मीदवारों के मैदान में होने के बावजूद सिर्फ़ एक मुस्लिम विधायक का चुना जाना हैरान करता है। हालाँकि सन् 1980 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही मुस्लिम विधायकों की संख्या लगातार गिरती रही है। सन् 1990 में भी तीन ही मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे। सन् 2002 के बाद भाजपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों को नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया है, वहीं कांग्रेस ने भी साल 2002 से छ: मुस्लिम उम्मीदवारों से ज़्यादा को कभी टिकट नहीं दिया। सन् 2017 में कांग्रेस के तीन मुस्लिम उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुँचे थे। वहीं सन् 1984 में अहमद भाई पटेल के सांसद बनने के बाद आज तक कोई मुस्लिम सांसद गुजरात से नहीं जीत सका है। अहमद भाई पटेल तीन बार लोकसभा सांसद और पाँच बार राज्यसभा सांसद रहे थे। हालाँकि केंद्र में मंत्री एक बार भी नहीं बने। जबकि गुजरात में क़रीब नौ से 10 फ़ीसदी मुस्लिम मतदाता हैं। कुल 182 विधानसभा सीटों में से 30 से अधिक विधानसभाओं में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 15 फ़ीसदी से ज़्यादा, तो 20 विधानसभाओं में 20 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है। सन् 2011 की जनगणना के मुताबिक उस समय गुजरात की मुस्लिम आबादी क़रीब 10 फ़ीसदी थी।