विकास के लिए प्रोत्साहन: नए रोज़गार बनाना, छोटे-मझोले उद्योग धंधों और दूसरे क्षेत्रों पर ध्यान

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यह बात 15 अक्तूबर 2017 की है। हमने तहलका में लिखी आवरण कथा ‘प्रोत्साहन का इंतजारÓ में लिखा था कि मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए प्रोत्साहन पर सोच रही है। तब से एक महीने से भी कम समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नौ ट्रिलियन की योजना की घोषणा कर दी। इसमें से सात ट्रिलियन को सड़क परियोजनाओं और दो ट्रिलियन को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए नियत किया गया है। इससे लडख़ड़ाती अर्थव्यवस्था को कुछ मजबूती मिलेगी। मीडिया घराने के लिए इससे बेहतर बात क्या होगी यदि इसकी अपनी ही बात सरकारी कार्यसूची में आ जाए।
सरकार ने अभी हाल में जो घोषणा की है उसके तहत 83,677 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाने का फैसला लिया गया है। अगले पांच साल में 6.92 लाख करोड़ रुपए का इसमें निवेश होगा। भारतमाला सड़क परियोजना के लिए पहले ही 5.35 लाख करोड़ की लागत से 34,800 किलोमीटर सड़कों को बनाने की घोषणा की जा चुकी है जो समुद्रतटीय और सीमाई क्षेत्रों में बनेगी। निश्चय ही इसमें अर्थव्यवस्था गति पकड़ेगी और उसे बढ़ावा मिलेगा। विपक्ष लगातार सरकार पर अर्थव्यवस्था के कमजोर होने और रोज़गार के कम होते जाने पर हमला बोलता रहा है। लेकिन नई भारतमाला परियोजना से 14.2 करोड़ काम के दिन पैदा होंगे।
भारतमाला परियोजना
इस भारतमाला परियोजना में इकॉनॉमिक कॉरिडोर (आर्थिक गलियारा) लगभग 9000 किलोमीटर लंबे होंगे। इसमें नेशनल कॉरिडारर्स एफिशिएंसी इंप्रूवमेंट (राष्ट्रीय गलियारा गुणवत्ता सुधार) और फीडर रूट 5000 किलोमीटर के होंगे। बोर्डर रोड्स (सीमाई सड़कें) और अंतरराष्ट्रीय कनेकटिविटी लगभग 2000 किलोमीटर होगी। साथ ही ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवेज 800 किलोमीटर के होंगे। सरकार ने आर्थिक तौर पर महत्वपूर्ण शहरों के लिए नए मार्गों की भी पहचान कर ली है। इसे दूरी के आधार पर नहीं बल्कि यात्रा में लगने वाले समय को ध्यान में रखा कर किया है। नए मार्ग इस लिहाज से भी तलाशे गए हैं कि उन पर ट्रैफिक की भीड़ न हो और छोटे शहर न हों। नेपाल और भूटान सीमा पर भी सड़कें बनेंगी। नई परियोजनाओं के लिए धन की व्यवस्था बाजार (2.09 लाख करोड़) से की जाएगी। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप से (1.06 लाख करोड़) और एनएचए आई के टॉल एसेट्स से एसर्ट रिसाइकिलिंग करके और बाकी धन का इंतजाम सेंट्रल रोड़स फंडस करेगा। टॉल-ऑपरेट-ट्रांस्फर मोनेट्राइजेशन से मिलने वाला धन और टॉल कलेक्शन इसका बड़ा आधार होगा।
बैंकों में निवेश
सरकार ने इसके अलावा अगले दो साल में सार्वजनिक बैंकों में 2.11 लाख करोड़ की पूंजी लगाने का फैसला लिया है। हम सभी जानते हैं कि इन सार्वजनिक बैंकों में नॉन परफार्मिंग एसेट्स (एनपीए) काफी बड़ी संख्या में हैं। इनकी वसूली न होने के कारण अब बैंक कर्ज देने से बचते भी हैं। इन बैंकों को सरकारी राहत मिलने से अब व्यापार और उद्योग के विकास में मदद मिलेगी और अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा। बैंकिंग प्रणाली में जो धनराशि जानी है उसकी बजटीय व्यवस्था 18,239 करोड़ की हो चुकी है और 1.35 लाख करोड़ रुपए के बांड भी बिक चुके हैं। बाकी की व्यवस्था सरकार के इक्विटी शेयर के जरिए बैक ही कमाएंगे। सरकार का सार्वजनिक बैंकों में पूंजी बढ़ाने की इस पहल से बैंकों में पूंजी का बेहतर स्तर हो सकेगा। इससे विकास में मदद भी मिलेगी । तमाम सार्वजनिक बैंकों में दस लाख करोड़ की पूंजी खासे दबाव में थी जिसके कारण बैंकिंग क्षेत्र बेहद संकट में था और यह ताजा कजऱ् न देने की स्थिति में आ गया था । इस अप्रैल में तो बैंकिंग कजऱ् 60 साल पहले के बराबर स्तर पर पहुंच गया था। और बैंकों के सामने दुहरी बैलेंस शीट की समस्या आ गई थी। यह तो पिछले साल के आखिरी महीनों में नया दिवालिया कानून पास हुआ और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बैंकों से उन लगभग पचास खातों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
मजबूत इरादे
मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए नौ ट्रिलियन की योजना शुरू की है। वित्त मंत्रालय ने वित्त मंत्री अरूण जेटली के जरिए संवाददाता सम्मेलन में कहलाया कि यह सब मॅक्रोइकॉनॉमिक फंडामेंट्ल्स के जरिए ही संभव हुआ। कम मुद्रास्फीति, बेहतर चालू खाते और वित्तीय घाटों से यह संकेत मिलता है आने वाले चैथाई महीनों में सकल उत्पाद का विकास ठीक-ठाक होगा। ऐसी उम्मीद है कि वर्तमान साल की दूसरी तिमाही में ही अच्छा विकास दिखे। महत्वपूर्ण यह भी है कि सरकार पहले ही विनिवेश से 30,000 करोड़ रुपए इक_े कर चुकी है। अब यह 72,000 करोड़ का लक्ष्य पाने की ओर सतत प्रयासशील है। दरअसल 2016-17 में भारत में तो विदेशी जमा निवेश आया वह 60.2 बिलियन डालर था। इसकी तुलना में 2015-16 में यह मात्र 55.6 बिलियन डालर और 2014-15 में मात्र 45.1 बिलियन था।
‘अच्छे दिनÓ की उम्मीद बढ़ी
नए प्रोत्साहन पैकेज का ही नतीजा है कि स्टॉक मार्किट में अब उत्साह बढ़ा है और अर्थव्यवस्था में भी नया भरोसा जगा है। इस नई स्थिति का असर निश्चय ही जीएसटी से परेशान व्यवसायियों और अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में होगा। बैंकों में पूंजी बढ़ाने का प्रस्ताव भी खासा सकारात्मक रहा है और इससे बैंकिंग प्रणाली को और सुधारने में मदद मिलेगी। इस विकास के संदर्भ में यह बात भी महत्वपूर्ण है कि सरकार ने यह माना है कि अर्थव्यवस्था के साथ सब कुछ ठीक है। सरकार का यह शुरूआती रुख ज़रूर रहा कि विपक्ष निराशा फैला रहा है। केंद्रीय वित्तमंत्री ने जो उदारता दिखाई उसका एक दूसरा सकारात्मक पक्ष यह था कि खुद वे शुरू में इस पक्ष में नहीं थे कि कोई प्रोत्साहन पैकेज दिया जाए क्योंकि इससे वित्तीय घाटा ही और बढ़ेगा।
इस प्रोत्साहन पैकेज से सीधा लाभ छोटे और मझोले (एमएसएमई) उद्योगों को होगा। जैसी योजना है कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को सप्लाई देने वाले एमएसएमई को नब्बे दिनों के अंदर भुगतान की व्यवस्था होगी और क्रेडिट डिलीवरी में राहत भी। नई सड़क परियोजनाओं के तहत एमएसएमई क्षेत्र में 14.2 करोड़ काम के दिन बन सकेंगे। इसमें आखिरकार लाखों लोगों को अच्छे दिन देखने को मिलेंगे।
महान कवि और सकारात्मक कवि राबर्ट ब्राउनिंग ने लिखा था,’ ईश्वर स्वर्ग में है, दुनिया में सब कुछ ठीक-ठाक हैÓ। इससे यह उम्मीद बंधती है कि मोदी सरकार के उठाए गए नए कदमों से अर्थव्यवस्था दुरुस्त होगी। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि बहुचर्चित ‘अच्छे दिनÓ जो अब तक नहीं आए, अब वाकई वास्तविकता में होंगे और लाखों लोगों के सपने साकार होंगे।