‘वायु प्रदूषण को रोकने में असफल सरकार’

वायु शुद्धिकरण के नाम पर हो रहा व्यापार, केंद्रीय मंत्री बोले- पराली जलाने से होता है केवल चार फीसदी प्रदूषण

राजधानी दिल्ली में गत पाँच-छ: वर्षों से बढ़ते प्रदूषण को लेकर जिस तरह से पराली जलाये जाने को दोषी माना जाना रहा है। दरअसल पराली उतनी दोषी नहीं है। क्योंकि पराली तो सदियों से किसान जलाते आ रहे हैं। बढ़ते प्रदूषण की रोकथाम में असफल सरकारें एक-दूसरे पर आरोपबाज़ी करके अपनी ज़िम्मेदारी से बच रही हैं। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि दिल्ली में पराली से प्रदूषण सिर्फ चार फीसदी है, शेष 96 फीसदी प्रदूषण स्थानीय समस्याओं- जैसे कूड़ा-करकट के जलाने, टूटी-फूटी सडक़ें, धूल और वाहनों की वजह से है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण के बढऩे का प्रमुख कारण पराली का जलाया जाना है; जिसके लिए पंजाब और हरियाणा सरकारों का दोष है। हालाँकि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में प्रदूषण के विरुद्ध अभियान चलाकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं।

एक सच्चाई यह भी है कि दिल्ली-एनसीआर में जिस तरह से प्राकृतिक संशाधनों का दोहन हो रहा है, उस पर सरकारें (मतलब केंद्र और राज्य सरकारें) अनजान बनी हुई हैं। इससे हटकर बढ़ते प्रदूषण को लेकर हो-हल्ला करने वाले पहलुओं पर गौर करें, तो उसके पीछे एक सुनियोजित तरीके से वायु शुद्धिकरण के नाम पर (एयर प्यूरिफिकेशन) बड़ा व्यापार भी हो रहा है। साथ ही चिकित्सकीय उपकरणों के सहारे कुछ लोग वायु प्रदूषण बचाव का तरीका बताकर लोगों को गुमराह कर रहे हैं। इन्हीं तामाम पहलुओं पर तहलका संवाददाता ने पड़ताल की तो, पराली से वायु प्रदूषण होने के पीछे कुछ और ही माजरा दिखा।

जानकारों का कहना है कि दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण का मामला तबसे है, जबसे बाहनों की संख्या में इज़ाफा हुआ है। इन वाहनों से जो ज़हरीला धुआँ निकलता है, उस पर सरकार पूरी तरह से चुप है। पिछले पाँच-छ: साल से दिल्ली में आम आदमी पार्टी और केंद्र में भाजपा की सरकारें बनी हैं, तबसे प्रदूषण को लेकर कुछ ज़्यादा ही शोर-शराबा हो रहा है। लेकिन प्रदूषण कम करने के लिए धरातल पर कोई कारगर काम नहीं हुआ है, जिसके कारण लोगों को ज़हरीलें हवाओं में साँस लेने को मजबूर होना पड़ रहा है। दिल्ली यूनिवर्सिटी की सहायक प्रो. शुचि वर्मा का कहना है कि दिल्ली में बमुश्किल चार से पाँच फीसदी तक ही प्रदूषण पराली की वजह से है; बाकी प्रदूषण खेतों की मिट्टी, सडक़ों की धूल, दिल्ली-एनसीआर में कल-कारखानों से निकलने वाला धुआँ, जगह-जगह कूड़े-कचरे के जलाये जाने और खासकर पुराने वाहनों से होता है। अगर समय रहते इन कारणों पर गौर न किया गया, तो आने वाले वर्षों में भयावह परिणाम सामने आएँगे।

पर्यावरण के जानकार डॉ. दिव्यांग गोस्वामी का कहना है कि पराली को ही वायु प्रदूषण को लेकर ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। पराली के साथ-साथ अन्य स्रोतों को कंट्रोल करना ज़रूरी है; जो सालों-साल से वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। पराली को लेकर ही इतना हो-हल्ला क्यों होता है? जबकि किसान अक्टूबर से लेकर नवंबर में ही पराली जलाते हैं; साल भर तक जो प्रदूषण होता है, उस पर कोई चर्चा क्यों नहीं होती?

प्रादेशिक मौसम पूर्वानुमान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव का कहना है कि वायु प्रदूषण के बढऩे के तीन कारण हैं, जिनमें एक कारण पराली का जलाया जाना है। दूसरा कारण कल-कारखानों का धुआँ और भवनों का निर्माण और तीसरा कारण वाहनों से निकलने वाला धुआँ है। जब तक इन तीनों कारणों पर रोक नहीं लगेगी, तब प्रदूषण पर काबू पाना मुश्किल होगा। डॉ. कुलदीप का कहना है कि तेज़ हवा चलने और लगभग दो घंटे तेज़ बारिश होने से हवा में और पेड़ों पर जमा धूल के कण साफ हो जाएँगे, जिससे प्रदूषण पर कंट्रोल होगा। उन्होंने बताया कि सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण के बढऩे कारण तापमान का कम होना और हवा का कम चलना है; जिससे हवा के कण जम जाते हैं। हवा में तेज़ गति न होने से वाहनों और निर्माणाधीन भवनों की धूल आसानी से हट नहीं पाती है, जिसके कारण प्रदूषण जमा हो जाता है। जैसे ही तापमान बढ़ेगा और तेज़ हवा चलेगी, तो प्रदूषण धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा।

चौंकाने वाली बात यह है कि इन दिनों दिल्ली-एनसीआर में वायु शुद्धिकरण के नाम पर एयर प्यूरिफेशन के उपकरणों की बिक्री जमकर हो रही है। बताते चलें पिछले पाँच-छ: वर्षों से एयर प्यूरिफेशन का बाज़ार तेज़ी से पनपा है। इसमें प्राइवेट कम्पनियाँ, जो सरकारी कार्यालयों व अस्पतालों से लेकर प्राइवेट अस्पतालों और कार्यालयों में जमकर एयर प्यूरिफेशन के नाम पर उपकरण लगा रही हैं; मोटा मुनाफा कमा रही हैं। अब तो घरों में भी ये उपकरण तेज़ी से लगना शुरू हो गये हैं। एयर प्यूरिफेशन के नाम पर सरकारी और कॉर्पोरेट ऑफिसों में ठेके से लगाये जा रहे हैं, तो घरों में बाज़ारों से इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकानों से खरीदकर लगाये जा रहे हैं। इस समय वायु प्रदूषण के नाम पर मचे कोहराम के चलते नये-नये एयर प्यूरिफेशन के प्रोडक्ट बाज़ार में माइक्रो बेव के नाम पर बेचे जा रहे हैं। दिल्ली के लाजपत नगर और चाँदनी चौक में इन प्रोडक्टों की खरीददारी जमकर हो रही है। यही हाल मेडिकल स्टोरों में है; वहाँ पर नेबुलाइज़रों की बिक्री भी हो रही है। क्योंकि दमा और अन्य श्वसन रोगियों को बढ़ते प्रदूषण के कारण तकलीफ बढ़ी है। एयर प्यूरिफेशन के बारे में ए.के. आरोड़ा का कहना है कि सही मायने में एयर प्यूरिफेशन का काम बैक्टीरिया और वायरस से बचाव के लिए है। पर लोगों ने बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए अपने बचाव के लिए इसका उपयोग शुरू कर दिया है। इस बारे में मैक्स अस्पताल के हार्ट रोग विशेषज्ञ डॉ. विवेका कुमार का कहना है कि वायु प्रदूषण से हार्ट और दमा रोगियों को ज़्यादा खतरा रहता है। बचाव के तौर पर हमें धूल भरे और प्रदूषित क्षेत्र में जाने से बचना चाहिए और मुँह पर मास्क लगाकर ही निकलना चाहिए; क्योंकि प्रदूषित वायु से फेफड़ों को क्षति होती है।

अंबेडकर कॉलेज के छात्र सुनीत कुमार और जोगेश अहिरवार का कहना है कि दिल्ली-एनसीआर के अलावा अन्य राज्यों में क्यों प्रदूषण नहीं है? क्या वहाँ पराली नहीं जलायी जाती है? वहाँ भी जलायी जाती है। लेकिन दिल्ली जैसी सियासत नहीं होती है और न ही दिल्ली-एनसीआर जैसे बाज़ार हैं, जो वायु शुद्धिकरण के नाम पर अपना कारोबार कर सकें। छात्रों का कहना है कि अगर सरकार ने प्रदूषण को रोकने के लिए कारगर कदम नहीं उठाये, तो आने वाले दिनों में लोगों को दमघोंटू ज़हरीली हवा में साँस लेने को मजबूर होना पड़ेगा।