वामपंथ नहीं तो देश का भविष्य क्या?

देश में खासकर पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे की प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी। जब तक देश में बेरोजग़ारी, मंहगाई रहेगी तब तक वाम मोर्चे का वजूद बना रहेगा।भले ही आप यह मान लें कि देश में अच्छे दिन आ गए हैं। आलम यह है कि देश में बेरोजग़ारी सबसे खराब स्थिति में है। चुनाव देश में होने थे तो आंकड़ें दबा दिएगए। चुनाव खत्म होने के बाद अब यह बात साफ हुई । दरअसल सवाल यह नहीं है कि वामपंथ का भविष्य क्या है। अलबत्ता सवाल यह है कि वामपंथ के बगैर देशका भविष्य क्या है?

जब पश्चिम बंगाल में 2011 में विधानसभा चुनाव हुए तभी से मीडिया में यह लिखा जाने लगा कि वाम मोर्चा खत्म हो गया है। उसका किला ढह गया है। जबकि मैं औरमेरे साथी परेड ग्राउंड में लाखों की भीड़ के साथ थे। भाजपा इस मैदान में सभा करने की हालत में भी नहीं थी। लेकिन मीडिया में चल  वह रहा था जिसमें न सच्चाईथी और न तथ्य। यह ठीक है कि वाममोर्चा की हार चुनावों में हुई लेकिन उसकी प्रासंगिकता कम नहीं हुई।

दक्षिणपंथी दल बेमतलब की बातों  को राजनीति में ले आते हैं। इसका असर वामपंथ पर पर्दा डालना होता है। पूरा देश जानता ही नहीं बल्कि जानता है कि वामपंथीभविष्य की लड़ाई आज लड़ते हैं। जबकि दक्षिणपंथी हमेशा भविष्य के सुनहरे सपने दिखाते हैं। अच्छे दिनों का भरोसा जगाते हैं। अतीत में ज़रूर वामपंथ में कुछगलतियां हुई होंगी। उन्हें नकारा नहीं जा सकता। लेकिन वामपंथी हमेशा अतीत से सबक लेकर, भविष्य के लिए काम करते हैं।

हाल में हुए लोकसभा चनुावों के बाद बंगाल में तृणमूल कांग्रेस खासी कमज़ोर हुई है। वामपंथी यह मानते हैं कि उनका संगठन, उनका आंदोलन और जन-जन केलिए उनकी प्रासंगिकता अभी खत्म नहीं हुई है। वामपंथियों की सक्रियता और उसके आंदोलन कभी किसी के कमजोर होने से उज्जवल नहीं होते। इसकी खासवजह यह है कि अपनी कमज़ोरियों को दूर करके ही यह ताकत में बढ़ोतरी करता है।

संभव है तृणमूल का निर्माण  इसलिए किया गया हो कि वाममोर्चा की राजनीति को खत्म किया जा सके और धर्म पर आधारित राजनीति शुरू की जाए। बंगाल कीधरोहर नष्ट की जाए। इस मकसद को पाने के लिए धर्म चिन्ह, धर्म पताकाएं, धर्म लिबास, धर्म गुरू, धार्मिक अनुष्ठनों का भरपूर उपयोग राजनीति में किया गया। ऐसाकभी पहले बंगाल में नहीं हुआ। बंगाल की अपनी लोक संस्कृति, परंपरा और मूल्यों को नष्ट कर दिया गया। इसका नुकसान वामपंथ पर भी पड़ा। वाम मोर्चाकमज़ोर हुआ। क्योंकि वामपंथी मंदिर-मस्जिद, पंडित, मौलाना और धर्म का दूसरे धर्म से टकराव कतई पसंद नहीं करते। वाममोर्चा दुर्गा पूजा, रामनवमी औरमुहर्रम पर कभी सियासत नहीं करेगा। ऐसी सियासत वे राजनीतिक दल ही कर सकते हैं जिनके पास अपनी कोई विचारधारा नहीं है।

अब यह साफ दिख रहा है कि केंद्र में हावी भाजपा-आरएसएस (राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ) अब तृणमूल कांग्रेस पर हावी है। अब ये राजनीति में राम मंदिर, राम नवमी, हनुमान जयंती आदि के सहारे जो चाहे वह कर सकते हैं। दक्षिणपंथी इस बात के लिए कुख्यात हैं कि ज़रूरत पडऩे पर ये धर्म का चोला पहन कर वह सब करते है।चाहे मौका चुनाव जीतने का हो या फिर ‘मॉब लिंचिंगÓ का।

इस समय बंगाल में हिंदू-मुसलमानों को लेकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति हो रही है। हिंदी भाषियों और बांग्ला भाषियों के बीच सदियों ही नहीं बल्किआज़ादी के बाद दशकों से रहे सुमधुर संबंधों में तनाव लाने की पुरज़ोर कोशिशें आज हो रही हैं। आज भाजपा और तृणमूल अपस में नहीं लड़ रही हैं बल्कि दोनोंमिलकर बंगाल में शिष्टता, शांति और भाई-चारे को नष्ट कर रही हैं।

वामपंथी आज भाजपा-तृणमूल साजिश को बेनकाब कर रहे हैं जनता में। हर सुबह और हर शाम। बंगाल की जनता यह समझ रही है। वह समझ रही है कि वामपंथी जब सत्ता में थे तो राज्य में कितनी शांति, अमन चैन और सुकून था। वाममोर्चा बंगाल में अब जनता को एकजुट कर रहा है। बंगाल की जनता अब अपनी एकताको और मज़बूत करती हुई, खुद को तैयार कर रही है। वाममोर्चा के कार्यकर्ता भी आने वाली चुनौतियों को जानते -समझते हुए मुकाबलों के लिए खुद को हर चुनौतीके लिए तैयार कर रहे हैं।

 (लेखक, माकपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद हैं)