वक्त के निशान

लेखक वेद मेहता के निधन के साथ, मैं केवल यह कह सकती हूँ कि हमने एक महान् लेखक ही नहीं, बल्कि एक दृढ़ व्यक्तित्व वाले इंसान को भी खो दिया है। मैं उनसे दो बार मिली थी और सन् 2009 की शरद ऋतु के दौरान एक बार उनका साक्षात्कार किया था; जब वह अपनी पत्नी लिन कैरी (19वीं सदी के अमेरिकी लेखक जेम्स फेनिमोर कूपर के वंशज के साथ) नई दिल्ली आये थे।

वह न केवल एक स्पष्टवादी के रूप में सामने आये बल्कि अपने विचारों में भी वे बहुत साफ थे। हालाँकि एक मेनिन्जाइटिस अटैक ने उन्हें 4 साल की उम्र में नेत्रहीन बना दिया था, फिर भी वह बहुत आत्मविश्वास से भरे थे, जीवन से भरपूर। उल्लेखनीय रूप से, अपनी दृष्टिहीनता को उन्होंने अपने लेखन के आड़े नहीं आने दिया। कई बड़ी और लघु कहानियों के साथ 30 से अधिक पुस्तकों के लेखक थे और इस तथ्य को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि यह सब उन्होंने तीन दशकों, 1961 से 1994,  के बीच किया। वह ‘द न्यू योर्कर’ में एक स्टाफ लेखक थे।

इन सबसे ऊपर, उन्होंने जीवन तो पूरी तरह से जिया। उनके पेशेवर जीवन के असाधारण आदान-प्रदान के साथ, उनकी अपरम्परागत और रंगीन जीवन शैली में पर्याप्त दिलचस्प मोड़ थे; निश्चित रूप से जब उन्होंने बसने का फैसला किया। सन् 1983 में 49 वर्ष की आयु में विवाह, जैसा कि अरस्तू के दर्शन में है कि शादी में प्रसन्न रहने के लिए एक व्यक्ति को अवश्य ही अपने से कहीं युवा महिला से शादी करनी चाहिए।

मेरे साथ साक्षात्कार के दौरान उन्होंने विस्तार से कहा- ‘जब मैं 49 साल का था, तब मैंने शादी की। और लिन मुझसे लगभग 20 साल छोटी हैं। वास्तव में लिन एक दोस्त की भतीजी हैं और मैं उनसे पहली बार तब मिला था, जब वह 11 साल की थीं। और कुछ साल बाद मैं उन्हें फिर से एक पार्टी में मिला। उस समय मैं नशे में था और उन्हें चूम लिया था। अगली सुबह मैंने उन्हें एक माफीनामा भेजा, जिसके जवाब में उन्होंने मुझसे कहा कि यह उनकी तरफ से मेरी भावनाएँ थीं। फिर हमने शादी करने का फैसला किया और सन् 1983 में शादी कर ली। आज वह मेरी इकलौती पत्नी हैं और हमारी दो बेटियाँ हैं।’

उन्होंने इस तथ्य पर ज़ोर दिया था कि हमारे ऐतिहासिक अतीत का ज्ञान बहुत महत्त्वपूर्ण है। उसे उद्धृत करने के लिए मुझे लगता है कि हमारा इतिहास आज की पीढ़ी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। जो लोग इतिहास के बिना रहते हैं, वे जानवरों से बेहतर नहीं हैं। इतिहास महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि यह जीवन में एक आयाम जोड़ता है, जैसे बच्चे और पत्नी एक व्यक्ति के जीवन में अतिरिक्त आयाम जोड़ते हैं।

हालाँकि वह अमेरिका में बसे थे। वह अफगानिस्तान और उसके बाहर अमेरिका की घुसपैठ के सख्त विरोधी थे। खुद उनके शब्दों में- ‘अमेरिका को अफगानिस्तान से बाहर निकलना चाहिए। और ईराक एक बड़ी आपदा थी, पूरी तरह से एक तरह की कल्पना; वैसे ही जैसी अमेरिका से वियतनाम और कोरिया में हुई थी। मैं अहिंसा और सहनशीलता की नीति के साथ हूँ। और मेरा मानना है कि अरस्तू के दर्शन (लोकतंत्र) में आप केवल तभी लोकतांत्रिक कहला सकते हैं, जब बहुसंख्यक आबादी मध्यम वर्ग की हो।’

वेद मेहता भारत में दक्षिणपंथ के सत्ता में आने से भी बेहद आशंकित थे। उन्हें इस बात की चिन्ता थी कि समुदायों के बीच विभाजन और साम्प्रदायिक बदलाव लाये जाएँगे, और यह अपने आप में इस देश की जनता के लिए आपदाओं को बढ़ायेगा।

कहाँ हैं बॉलीवुड सितारे

कहाँ हैं वो बॉलीवुड सितारे और तारिकाएँ, जिन्होंने फिल्मों में किसानों की भूमिका निभायी! मुझे लगता है, वे महज़ एक चित्रण कर रहे थे; परी कथा जैसे चरित्र के साथ। उनके साथ हरे-भरे खेतों और घास के मैदानों और जंगलों में और आसपास गाते और नाचते हुए; भले विभिन्न धाराओं और नदियों और गाँव के तालाबों में नहाते हुए नहीं!

मेरा तर्क सरल और सीधा है। चँूकि उन अनगिनत फिल्मी िकरदारों को उनकी किसान भूमिकाओं के कारण लोकप्रियता हासिल हुई, इसलिए उन्हें आज के किसानों और उनकी दुर्दशा पर एक-दो शब्द कहने चाहिए। अगर गाँव के इलाकों में गाकर और नाचकर मनोज कुमारों और दिलीप कुमारों की पसन्द उनके ग्राफ को ऊपर ले जा सकती है, तो यह समय किसानों के साथ एकजुटता कायम करने का है। हो सकता है कि उनके स्वास्थ्य की स्थिति उन्हें प्रदर्शन करने वाले किसानों तक पूरी शिद्दत के साथ जाने की अनुमति न दे; लेकिन उनके परिवार निश्चित रूप से ऐसा कर सकते थे।

वास्तव में यह निराशाजनक से अधिक है कि बॉलीवुड के जाने-माने पुरुषों और महिलाओं में से कोई भी आगे नहीं आया है और बोल रहा है। क्यों? क्या ऐसा इसलिए है? क्योंकि उनके पास बहुत कम समय या कोई निश्चित वैचारिक झुकाव है या वे वर्तमान राजनीतिक शासकों और उनके नियंत्रण में मशीनरी की प्रतिक्रियाओं को लेकर चिन्तित हैं।

मैं ऐसा इसलिए कह रही हूँ, क्योंकि सन् 2002 के गुजरात दंगों के चेहरों के खिलाफ हममें से कई लोगों ने बात की थी; लेकिन बॉलीवुड ने तब भी निराश किया था। कुछ लोगों ने हत्याओं और नरसंहार के खिलाफ बोलने की हिम्मत दिखायी। लेकिन गुजरात के राजनीतिक शासकों पर बॉलीवुड के बड़े नाम और बैनर क्यों खामोश रहे। उनका जवाब कुछ इतना चौंकाने वाला था- ‘अगर हम आन्दोलन में जान गँवाने वालों या उस हालत में पहुँचने वालों के करीब पहुँच गये होते, तो हम सरकार की कुदृष्टि में आ जाते और हमारी फिल्में निशाना बन जातीं, और इसके साथ ही हम बर्बाद हो गये होते। सच में? नतीजे का इतना खौफ!’

और अब जबकि बॉलीवुड, करीना-सैफ अली खान के दूसरे बच्चे के जन्म की खबर सुनने का इंतज़ार कर रहा है कि वे नये बच्चे को क्या नाम देते हैं? आश्चर्यजनक है। करीना और सैफ अली खान ने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा था। तब बहुत हल्के दर्जे की टिप्पणियाँ की गयी थीं। इनमें से बहुत-सी हिन्दु संगठनों की तरफ से।

वास्तव में किसी ने भी बात करने की कोशिश नहीं की। यहाँ तक कि तैमूर के नाम से जुड़ा एक और आयाम है, एक विजेता का।  सन् 1398 में उत्तर भारत में तैमूर के आक्रमण के बाद 1,700 से अधिक लकड़ी नक्काश, वास्तुकार, हस्तलिपि लेखक और अत्यधिक-विशिष्ट रसोइयों (वाज) ने समरकंद से कश्मीर की तरफ पलायन कर दिया था। आज भी कश्मीर घाटी में वाज परिवारों का एक बड़ा हिस्सा समरकंद में अपनी उत्पत्ति की बात करता है और इनकी वाजवान दावतों में बहुत माँग है। इस तथ्य को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए कि दावतों की दावत कश्मीर के दोनों प्रमुख समुदायों, कश्मीरी पंडितों और कश्मीरी मुसलामनों द्वारा की जाती हैं।

शहरयार की नौवीं बरसी पर

शायर, गीतकार, लेखक शहरयार की अगली पुण्यतिथि (उनका निधन 13 फरवरी, 2012 को हुआ था) पर मैं उनके कोई कविता में नहीं डाल रही हूँ। हालाँकि उमराव जान और गमन में उनके गीत सदाबहार हैं।

हाँ, उनकी कविता के बजाय मैं उनके अवलोकन, सह-हास्य की भावना को उजागर कर रही हूँ…। वह मेरे पिता के पैतृक कस्बे  आँवला (उत्तर प्रदेश) से थे और वह जानते थे कि मेरी छोटी बहन, हबीबा, अलीगढ़ में बस गयी थी। उनके आँवला और अलीगढ़ कनेक्शन के बारे में मुझे तब पता चला, जब मैं पहली बार लगभग दो दशक पहले उनसे मिली थी। एक कॉमन मित्र ने हमें इस विभूति से परिचित कराया- ‘वह हबीबा की बहन हैं।’

इस पर उनकी प्रतिक्रिया थी- ‘आप हबीबा की बहन!’

‘हाँ, मैं हूँ…, वह मेरी छोटी बहन है।’

लेकिन आप अलग दिखती हैं! बहुत अलग! आप दो सगी बहनें हैं! वह अपने सिर को ढककर रखती है; लेकिन आप…!’ इसके साथ ही उन्होंने मेरी स्लीव-लेस शर्ट की तरफ लगभग अस्वीकार्य निगाह डाली।

‘हाँ, हम सगी बहनें हैं।’

‘एक ही पिता से?’

‘हाँ, बिल्कुल।’

‘एक ही पिता?’

‘हाँ, हाँ।’

‘एक ही पिता!’

‘कम-से-कम अम्मा ने तो हमें यही बताया है!’

इसके साथ ही हम दिल खोलकर हँसे…।