लोकतंत्र बचाओ यात्रा दो अक्टूबर से

किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों को अपने अधिकारों के लिए समय-समय पर संघर्ष करना पड़ता रहा है। यह सिर्फ चुनाव में मतदान करने तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। पिछले 70 वर्षों में हमारे संविधान पर आधारित हमारा लोकतंत्र कई चुनावों के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उथल-पुथल से गुजरा है और कई चुनौतियों से घिरा होने के बावजूद आज तक टिकने में कामयाब रहा है। हालांकि, पिछले चार वर्ष के राजनीतिक सफर और मंथन ने इस देश के ढांचे और चरित्र को कई और आधारभूत तरीकों से हिला कर रख दिया है, जिसे हम में से बहुतों ने गंभीरता से नही लिया।

अपनी कट्टरपंथी, कॉर्पोरेट-अनुकूल, लोग-विरोधी आर्थिक और राजनीतिक नीति को छुपाने के लिए और महत्वपूर्ण मुद्दों पर जागरूकता, सवाल करना और प्रतिरोध को दबाने के लिए, वर्तमान सरकार और उनके ‘परिवारÓ ने नारों, जुमलों, क्रूर बल, ट्रोल-सेना, हिंसक-भीड़ इत्यादि का उपयोग किया है। यह सब इसलिए किया जा रहा है जिससे कि सरकार लोगों को गुमराह कर सके, सशक्त बनाने से रोके, उन पर हमले करें, गिरफ्तार करें, लूट सकें और यहां तक कि मार भी सके, विशेष रूप से मुसलमानों, दलितों, किसानों, श्रमिकों, महिलाओं, छात्रों और अन्य वर्गों के लोगों को सरकार का दवाब शिक्षकों, लेखकों और विचारकों पर भी बढ़ा है ताकि वे कोई सवाल उठाने की हिम्मत न कर सके। इसके अलावा, कई बहु-करोड़ घोटालों के मामले सामने आए। बहु-करोड़पति सरकार की नाक के नीचे से रुपये लेकर, देश से भाग निकलते हैं और बड़े कॉर्पोरेट को हजारों-करोड़ों के ऋण की छूट मिलती है। इसीलिए हर दिन एक अज्ञात आपातकाल रहा है और बनता जा रहा है! मंदसौर, टूथुकुडी और अन्य जगहों पर हमारे लोगों का जो खून बहा वह अभी भी हमारे दिमाग में ताज़ा है यह वास्तव में एक खतरनाक फासीवादी हमले का समय है जहाँ न्याय और दंड का अभाव है।

कृषि क्षेत्र पर संकट किसानों को तबाह करते है। दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अन्याय बढ़ रहा हैं। मुसलमानों पर हिंसा और भीड़ के हाथों उनकी हत्या आम हो गई। छात्रों की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाना शर्मनाक है। स्वास्थ्य और शिक्षा का बड़े पैमाने पर निजीकरण हो रहा हैं। तर्क और असहमति को सहन नहीं किया जा रहा। सामाजिक क्षेत्र की उपेक्षा हो रही है, महिलाओं और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों का उत्पीडऩ शिखर पर है। नौकरियों और काले धन पर किये गए बड़े-बड़े वादे हवा हो गए। वाइब्रेंट गुजरात मॉडल पूरी तरह विफल रहा है। अब यह तेजी से स्पष्ट हो रहा है कि न रिश्वत, न बुलेट और न ही बुलेट ट्रेन लोगों को बहुत लंबे समय तक चुप करा सकती है, और न अभिव्यक्ति पर लगाम लगा सकती है। इस देश के सभी समझदार लोगों और समूहों के सामने यही चुनौती है कि वे एक साथ आने की भावना को पैदा करने में सक्षम हों और विनाशकारी, विभाजनकारी और विकृत शासन जो हमें बर्बाद कर रहा है उसके खिलाफ एक समेकित तरीके से विकल्पों के लिए लड़ें।

हमने देखी है राजनीति में गड़बड़ी और बेईमानी। इसकी मिसाल हैं उत्तराखंड, मणिपुर, मेघालय, दिल्ली और गोवा। देश में स्वायत्त संस्थानों की विश्वसनीयता और वैधता को खत्म करने और हर संस्थान की योजनाबद्ध तरीके से कोशिश की जा रही है। इसके साथ ही हर जगह को सांप्रदायिक किया जा रहा है। सार्वजनिक बैंकिंग प्रणाली जो एक समय में विश्वसनीय होती थी, अब बैंकिंग योग्य नहीं है, उनके सफेद कॉलर अपराधियों ने करोड़ों रुपए लूट लिए अब वे सुरक्षित रूप से देश से बाहर हैं और विदेशों में विलासिता का जीवन जी रहे हैं। पाठ्यपुस्तक, पाठ्यक्रम और बहुवचन इतिहास को भ्रष्ट हिंदुत्व वर्णन बनाने के लिए और झूठ, अविश्वास, अपमान और शत्रुता के बीज बोने के लिए फिर से लिखा जा रहा है। भूमि, जंगल, पर्यावरण, श्रम, सूचना का अधिकार, भ्रष्टाचार-विरोधी इत्यादि से सम्बंधित प्रगतिशील और लोक-उन्मुख कानून जो कि जन-आंदोलनों के दशकों के संघर्ष के बाद अधिनियमित किए गए थे, संशोधित किए जा रहें हैं ताकि कॉर्पोरेट लूट, घोर पूंजीवाद को प्रोत्साहन और सामुदायिक संसाधनों की लूट को बढ़ावा मिले।

सरकार आज संसदीय और संवैधानिक लोकतंत्र का सबसे बड़ा उल्लंघनकर्ता बन रही है और सत्ता, स्थानीय शासन निकायों के साथ-साथ छोटी पार्टियों को हड़प रही है। हम भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण समय से गुजर रहे हैं और एक ऐसे चौराहे पर खड़े हैं जहाँ इस देश की नैतिकता को बचाने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी हमारी है ताकि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय जिसकी कल्पना डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर के उस सपने को पूरा कर सकें।

इसी तात्कालिकता और भावना के साथ ही जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) ने कई चर्चाओं के बाद, एक ‘संविधान सम्मान यात्राÓ की योजना बनाई है – यह एक राष्ट्रव्यापी दौरा होगा, हमारे संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों को बहाल और संरक्षित करने के लिए। यह यात्रा दो अक्टूबर 2018 को गुजरात के दांडी से शुरू होगी, जहाँ से महात्मा गांधी ने 1930 में अपनी प्रसिद्ध नमक यात्रा शुरू की थी। यह यात्रा देश के विभिन्न राज्यों में बैठकें, चर्चा, सार्वजनिक कार्यक्रम, संघर्षों का समर्थन, नफरत और हिंसा के पीडि़तों के दु:ख को बाटते हुए और अनेकता, प्रेम और शांति का संदेश फैलाते हुए गुजरेगी और दिल्ली में जन संसद में 10 दिसंबर 2018, अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस को समाप्त होगी।