लॉकडाउन और नुकसान के तनाव में हिंसा

अगर इंसान परेशानी में हो, तो उसका दिमाग सकारात्मक रूप से काम नहीं करता है, जिसके कारण तनाव बढ़ता है। यह एक मनोवैज्ञानिक कारण ही नहीं, बल्कि स्वाभाविक क्रिया है। और इस क्रिया की प्रतिक्रिया का परिणाम ङ्क्षहसा, प्रतिङ्क्षहसा, आत्मघात और झगड़े के रूप में सामने आता है। इन दिनों कोरोना वायरस से बचाव के लिए किये गये लॉकडाउन के चलते लोग ऐसे ही तनाव से गुज़र रहे हैं। और इसके परिणामस्वरूप ङ्क्षहसा भी हो रही है; प्रतिङ्क्षहसा भी हो रही है; लोग आत्मघात यानी आत्महत्या भी कर रहे हैं और झगड़ा भी कर रहे हैं। यह सब घरों के अन्दर ज़्यादा हो रहा है और इसकी शिकार महिलाएँ अधिक हो रही हैं। हालाँकि बच्चे भी इस ङ्क्षहसा से अछूते नहीं हैं। आम भाषा में हम इसे घरेलू ङ्क्षहसा कहते हैं। इसी घरेलू ङ्क्षहसा, जो अमूमन महिलाओं पर होती है; की पड़ताल करती अलका आर्य की यह रिपोर्ट :-

कोरोना वायरस (कोविड-19) के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए विश्व के अधिकांश मुल्कों ने लॉकडाउन यानी तालाबन्दी की रणनीति अपनायी है। कहा जाने लगा कि अब इस हालात में घर-परिवार के सब लोग एक साथ रहेंगे, तो क्वालटी वक्त एक साथ गुज़ारेंगे; अच्छी फिल्में देखेंगे; संगीत सुनेंगे; इनडोर गेम्स खेलेंगे; अच्छी किताबें पढ़ेंगे और एक-दूसरे को खुशनुमा माहौल में वक्त देंगे।

इस लॉकडाउन की टैगलाइन है- ‘घर में रहें, सुरक्षित रहें।’ हर पल टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर यही संदेश सरकार सुना रही है और निजी कम्पनियाँ भी अपने उत्पादनों के विज्ञापनों के ज़रिए इसी सरकारी संदेश का प्रसार-प्रचार कर रही हैं। लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या लॉकडाउन में महिलाएँ पुरुषों की तरह ही महफूज़ हैं? क्या लॉकडाउन में घरों में ही रहने वाला सरकारी निर्देश घरों के भीतर महिलाओं और पुरुषों को बराबरी के सुरक्षित माहौल की गारंटी देता है? कोरोना वायरस के मद्देनज़र लगाये जाने वाले लॉकडाउन में सिर्फ इस वायरस से बचाव, सुरक्षित रहने वाले बिन्दु को ही ध्यान में रखा गया, लेकिन महिलाओं को वायरस से सुरक्षित रखने के साथ-साथ हिंसा, खासकर घरेलू हिंसा से भी बचाने की ज़रूरत होती है, लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।

लॉकडाउन के दौरान दुनिया भर में महिलाओं के खिलाफ होने वाली घरेलू हिंसा की घटनाओं में वृद्धि वाली खबरों के मद्देनज़र संयुक्त राष्ट्र ने भी चिन्ता जतायी है। इसी लॉकडाउन के बीच पति-पत्नी के झगडऩे, मार-पीट वाली खबरें परेशान करने वाली हैं। बात भारत से ही शुरू करते हैं। देश में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के मद्देनज़र फिलहाल 3 मई तक लॉकडाउन है। आवागमन के सभी साधन बन्द हैं। लोगों के संसाधन बन्द हैं। अधिकतर लोगों की आमदनी खत्म हो गयी है। लाखों लोगों की नौकरी पर संकट है। ऐसे में लोग तनाव में आने लगे हैं। कई जगह से आत्महत्या और भूख से मरने के भी मामले सामने आए हैं। कुल मिलाकर इन सब प्रतिक्रियाओं का एक मात्र कारण है तनाव, जो कि कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन से बहुत अधिक बढ़ गया है।

तनाव के बीच हिंसक वारदात

इन दिनों लॉकडाउन के चलते हो रहीं अनेक ङ्क्षहसक वारदात सामने आ रही हैं। हाल ही में लॉकडाउन में फँसी एक महिला जब अपने पति के कहने पर भी ससुराल नहीं लौट पायी, तो उसके गुस्साये पति ने अपनी प्रेमिका से विवाह कर लिया। यह वारदात बिहार के एक गाँव की है। हरियाणा राज्य के हिसार में हरियाणा पुलिस के एक गनमैन ने पत्नी के साथ किसी बात को लेकर हुए झगड़े में अपना आपा खो दिया और पत्नी की चटनी कूटने वाले सोटे से हत्या कर दी। हाल ही में मध्य प्रदेश के दमोह में एक रूह कँपा देने वाले वारदात सामने आयी। यहाँ छ: साल की बच्ची के साथ दो युवकों ने दुष्कर्म किया और उसके बाद मासूम की आँखें फोड़ दीं।

भारत के राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक, 23 मार्च से 16 अप्रैल तक 587 शिकायतें आयीं। इनमें 239 घरेलू हिंसा से जुड़ी हुई हैं। आयोग का दावा है कि ऐसे मामलों में बहुत इज़ाफा हुआ है। राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा का कहना है कि घरेलू हिंसा के इतने अधिक मामलों के पीछे एक प्रमुख वजह कोरोना वायरस के कारण लगाया हुआ लॉकडाउन हो सकता है। क्योंकि लॉकडाउन के चलते हालात ऐसे बन गये हैं कि परिवार बिना काम के एक जगह लगातार रहने को विवश हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि हालात ऐसे ही हैं। मगर महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। ऐसे में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएँ हिंसा से बचने के लिए पड़ोसी के यहाँ भी नहीं जा सकतीं। क्योंकि पड़ोसी भी कोरोना वायरस के डर से मदद करने से हिचकिचाते हैं।

आवागमन के सभी साधन बन्द होने के चलते पीडि़त महिलाएँ न तो नज़दीकी अथवा दूर के रिश्तेदारों के यहाँ जा सकती हैं। जहाँ तक पुलिस की मदद का सवाल है, तो इस महामारी के लॉकडाउन के वक्त पुलिस लॉकडाउन का पालन कराने, सील किये गये हॉटस्पाट स्थानों की निगरानी करने, अस्पतालों और क्वारंटीन केंद्रों की निगरानी करने आदि में व्यस्त है।

विश्व में हिंसक घटनाएँ और सरकारों के प्रयास

ऐसे में भारत ही नहीं, बल्कि यूरोप के कई मुल्कों में भी इस तरह की घटनाओं पर नज़र डालना ज़रूरी हो जाता है। क्योंकि इन घटनाओं के दस्तावेज़ीकरण से बाद में विश्लेषण करने में मदद मिलेगी।

ऑस्ट्रेलिया में 75 फीसदी ऑनलाइन सर्च घरेलू हिंसा को लेकर हुईं। आस्ट्रेलिया के राज्य न्यू साउथ में लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले 40 फीसदी बढ़ गये हैं। ऐसे हालात में यहाँ की सरकार ने 15 करोड़ डॉलर का बजटट महज़ घरेलू हिंसा के मामलों से निपटने के लिए रखा है। चीन के वुहान शहर में लॉकडाउन के दौरान 03 फीसदी ज़्यादा घरेलू हिंसा के मामले दर्ज किये गये थे। फ्रांस में घरेलू हिंसा के 32 फीसदी और इसकी राजधानी पेरिस में 36 फीसदी ऐसे मामलों में वृद्धि दर्ज की गयी। फ्रांस ने ऐसे हालात में घरेलू हिंसा के मामलों की जानकारी पर संज्ञान लेते हुए उनकी संख्या में वृद्धि का पूर्वानुमान लगाकर घरेलू हिंसा के पीडि़तों के लिए 20 हज़ार होटल के कमरों का खर्चा देने का ऐलान कर दिया था।

यही नहीं, फ्रांस ने यह भी ऐलान किया कि फ्रांस सरकार घरेलू हिंसा के पीडि़तों के लिए काम करने वाले संगठनों के ज़रिये सुपर मार्केट और फार्मेसी की दुकानों पर सहायता प्वांइट गठित करने के लिए 10 लाख डॉलर की राशि भी मुहैया करायेगी। तुर्की में भी घरेलू हिंसा के मामलों में 40 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है।

घरेलू हिंसा के कारण

हिंसा के मामलों की वृद्धि के पीछे दुनिया भर में कई कारण बताये जा रहे हैं। संकट का दौर चाहे किसी भी तरह का हो, महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा बढऩे वाले साक्ष्य उपलब्ध हैं। कोरोना वायरस चीन में वर्ष 2019 के आिखर में आया और वहाँ से यह वायरस स्पेन, इटली, फ्रांस, ब्रिटेन, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और भारत के अलावा दुनिया के अनेक देशों में फैलता गया, जिससे आज सभी पीडि़त हैं।

गौर करने वाली बात यह है कि जहाँ-जहाँ यह वायरस फैल रहा है, वहाँ-वहाँ घरेलू हिंसा की घटनाओं में भी वृद्धि हो रही है। वायरस के प्रसार के साथ-साथ घरेलू हिंसा में प्रसार के मद्देनज़र संयुक्त राष्ट्र ने इसे शेडो पैन्डेमिक यानी छाया महामारी कहा है। गौर करने वाली बात यह है कि लॉकडाउन के वक्त अनेक लोगों ने कहा था कि सिर्फ घर तक ही सीमित रहने से उन महिलाओं की दिक्कतें बढ़ जाएँगी, जो पहले से ही घरेलू हिंसा की शिकार हैं। उनके लिए अत्याचार करने वाले पति के साथ 24 घंटे साथ रहना हालात को बद से बदतर ही बनायेगा।

यूरोप के साक्ष्य बताते हैं कि जब भी परिवार एक साथ अधिक वक्त बिताते हैं, तब-तब घरेलू हिंसा बढ़ती है। घरेलू हिंसा की परिभाषा में केवल शरीरिक हिंसा ही नहीं, बल्कि मानसिक व भावात्मक हिंसा भी शमिल है। ब्रिटिश अध्ययन दर्शाते हैं कि ब्रिटेन में घरेलू हिंसा के पीडि़तों में गम्भीर मानसिक बीमारियों के पनपने की सम्भावना तीन गुना अधिक रहती है। देखा जाए तो घरेलू हिंसा एक जारी रहने वाला अपराध है। इस अपराध की प्रवृत्ति कभी दृश्य, तो कभी अदृश्य रूप से पनपती है।

दिल्ली सरकार की पहल

घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि के मद्देनज़र दिल्ली सरकार के अधीन दिल्ली विवाद निपटारा समिति ने 1800117282 टोल फ्री हेल्पलाइन नम्बर जारी किया है। सरकार के अंतर्गत चलने वाली यह समिति मध्यस्था के ज़रिये समस्या का समाधान कर रही है। मनमुटाव के मामलों में समय पर की गयी मध्यस्था मददगार साबित हो सकती है। इसी के मद्देनज़र यह सेवा उपलब्ध करायी जा रही है। दिल्ली महिला आयोग ने लॉकडाउन के चलते हाल ही में घरेलू हिंसा की घटनाओं के लिए एक व्हाट्स एप हेल्पलाइन शुरू की है। इसमें पीडि़त महिलाएँ 9350181181 नम्बर पर मैसेज करके शिकायत भेज सकती हैं। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल का कहना है कि लैंडलाइन हेल्पलाइन नम्बर 181 के ज़रिये महिलाएँ लॉकडाउन के चलते अपनी शिकायतें ज़्यादा दर्ज नहीं करा पा रही हैं। इसका कारण यह है कि लैंडलाइन पर पीडि़ता के लिए बात करना आसान नहीं हैं; क्योंकि आरोपी भी पीडि़त के आस-पास ही रहता है। दिल्ली महिला आयोग का दावा है कि व्हाट्स एप नम्बर पर ही शिकायत मिलने के बाद आयोग चैट के ज़रिये ही उन्हें काउंसिलिंग भी दे रहा है।

राष्ट्रीय महिला आयोग की पहल

राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी लॉकडाउन में घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि को देखते हुए एक व्हाट्स एप नम्बर- 7217735372 जारी किया है और स्पष्ट किया है कि यह नम्बर आपातकालीन नम्बर है, जिसका इस्तेमाल वे महिलाएँ कर सकती हैं, जो इन दिनों घरेलू हिंसा का सामना कर रही हैं। इसके साथ आयोग यह भी साफ कर दिया कि शिकायत दर्ज कराने वाले ऑनलाइन लिंक्स व ईमेल भी पहले की तरह काम करते रहेंगे। यानी पीडि़त महिलाएँ उनका भी इस्तेमाल कर सकती हैं। देश में लॉकडाउन के दौरान होने वाली घरेलू हिंसा के वास्तविक मामलों की संख्या क्या सामने आयेगी? इस बारे में राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा की कहना है कि लॉकडाउन के बीच उन्हें घरेलू हिंसा वाली शिकायतें अधिकतर ईमेल से ही मिल रही हैं। आयोग में अक्सर महिलाएँ पोस्ट के ज़रिये अपनी शिकायतें भेजती हैैं। लिहाज़ा आयोग को भी लाकॅडाउन के खत्म होने के बाद ही वास्तविक स्थिति का पता चलेगा।

सरकार की उदासीनता

एक सवाल यह भी उठता है कि क्या भारत ने लॉकडाउन में घरेलू हिंसा की वारदात रोकने और पीडि़तों के संरक्षण के लिए कोई योजना समय रहते बनायी? सम्भवत: इसका जवाब हैं- नहीं। राष्ट्रीय महिला आयोग के देरी से उठाये गये कदम यही कह रहे हैं। केंद्र सरकार ने भी कोविड-19 महामारी से प्रभावित गरीबों, मज़दूरों के लिए तो आॢथक राहत का ऐलान किया, लेकिन घरेलू हिंसा के लिए कोई भी खास पैकेज नहीं दिया। इस पर एनी राजा की टिप्पणी- ‘दरअसल भारत सरकार ने भी लॉकडाउन की घोषणा करने से पहले कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने वाली तैयारियों और लॉकडाउन के आॢथक पहलुओं पर तो आपस में चर्चा की होगी, लेकिन लॉकडाउन से पारिवारिक जीवन, दाम्पत्य रिश्तों में क्या समस्याएँ पैदा होगीं?  इस पहलू पर सोचा ही नहीं होगा। यह कहा जाए कि सरकार इस मुद्दे से अनजान थी।’

लॉकडाउन से सरकारों को सीख

केंद्र सरकार और राज्य सरकारें लॉकडाउन से बहुत कुछ सीख रही हैं। जैसे कोविड-19 ने केंद्र और राज्य सरकारों को पीपीई, वेंटीलेटर, आईसीयू बेड की संख्या बढ़ाने को विवश कर दिया। भविष्य में प्रवासी मज़दूरों के झुंड पलायन वाली समस्या पैदा नहीं हो, इस बाबत भी सरकारें काम करेंगी। इसी तरह ऐसे हालात पैदा होने पर सम्भवत: घरेलू हिंसा को लेकर भी अग्रिम तैयारी दिखे। दरअसल केवल मंत्रालय, सरकारी अधिकारी ही लॉकडाउन से पैदा हुई विभिन्न दिक्कतों से सबक नहीं ले रहे हैं, बल्कि गैर-सरकारी संगठन व स्वैच्छिक कार्यकर्ता भी बहुत कुछ सीख रहे हैं। और इस सबक को वे अपनी रणनीतियों में शमिल करेंगे।

संयुक्त राष्ट्र संघ की चिन्ता

कोविड-19 के वैश्विक संकट के दौर में घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि को संयुक्त राष्ट्र संघ ने बहुत गम्भीरता से लिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा कि दुनिया में कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते हुए संक्रमण का महिलाओं की सामाजिक और आॢथक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव बढ़ा है, जिसके चलते उनके प्रति मौज़ूद सामाजिक असमानता काफी बढ़ी है। महासचिव ने यह भी कहा कि इस महामारी के कारण महिलाओं के स्वास्थ्य से लेकर उनकी आॢथक स्थिति और सामाजिक सुरक्षा पर भी बुरा असर पड़ा है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा भी बहुत बढ़ गयी है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के खिलाफ जुटी हुई महिलाओं और उनसे जुड़े हुए संगठनों की भूमिका के महत्त्व को समझना होगा। महिलाओं के भविष्य को केंद्र में रखकर सामाजिक एवं आॢथक नीतियाँ बनायी जानी चाहिए; जिनका परिणाम बेहतर होगा और सतत विकास लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी। कोविड-19 ने अंतर्राष्ट्रीय फलक पर घरेलू हिंसा को एक गम्भीर मुद्दे के रूप में फिर से चर्चा में ला दिया है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडिया की महासाचिव एनी राजा कहती हैं कि लॉकडाउन के कारण घर में पति-पत्नी, बच्चे और बुजुर्ग 24 घंटे एक साथ रह रहे हैं। इससे एक-दूसरे के हर काम पर नज़र रखने या एक-दूसरे से ऊब जाने की स्थितियाँ पैदा हुई हैं, जिसके चलते घरेलू हिंसा बढ़ी है। इसके अलावा लॉकडाउन ने अर्थ-व्यवस्था पर गहरी चोट पहुँचायी है। मर्द इस कारण भी परेशान हैं कि आने वाले दिनों में क्या होगा? घर कैसे चलेगा? शराब पीने के आदी मर्दों को शराब पीने को नहीं मिल रही है और छोटे घरों में सभी सदस्यों के एक साथ रहने के चलते वे अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति में खलल पडऩे से भी परेशान होंगे। ऐसे में घरों में, खासकर छोटे घरों में निजता (प्राइवेसी) की समस्या इन दिनों विशेष तौर पर लड़ाई-झगड़े बढ़ा रही है।