लाहौरी का वह लाल मकान

दीवारों और खंभों को छाती से कस कर लगाया, छोटी सीढिय़ां, लाल लाहोरी ईट के बने छोटे से घर के ऊपर को जाती हैं, तीन चार छोटे कमरे, एक बड़ा सा शहीद भगत सिंह का चित्र खटिया और नीचे बड़ा सा चरखा रखा था। अरे! ये गांधी कहां से आ गया भगत सिंह के घर में?

दूसरे कमरो में घर के पुराने बर्तन व अलमारियां, वहीं एक छोटा सा पीढा, जिसमें बुनावट टूट गई है रखा था। युवा साथी अमन बोले की अब हमारे समेत किसी को अंदर नहीं आने देना चाहिए बैक्टीरिया से सब खराब हो सकता है। पर समझना बड़ा मुश्किल था। चोरी से छू ही लिया।

मिट्टी के जिस चूल्हे पर कभी भगत सिंह ने रोटी खाई होगी उसको, उसको जिस कुएं से पानी लेते होंगे, जहाँ भी उनके हाथ लगे होंगे, और इन लाहौरी ईटों की इमारत को जो किसी बड़े किले का छोटा सा हिस्सा लगती हैं, यहां पर उनकी सांसों की महक समाई होगी। यह पंजाब में जालंधर से लगभग 50 किलोमीटर अलग शहीद भगत सिंह का पैतृक घर। जिसे जगमोहन जी के प्रयासों से उनके सभी परिवार वालों ने सरकार को इस मार्ग बनाने के लिए दे दिया है।

ऐसा ही अनुभव वर्धा में मिट्टी और लकड़ी की बनी झोपडिय़ों में हुआ था जहां देश को दिशा देने वाला, अंग्रेजी सत्ता को हिला देने वाला और संसार भर में प्यार का पैगाम देने वाला, पूंजीवाद के खिलाफ एक रास्ता देने वाला शख्स रहा करता था। जिसे दुनिया महात्मा गांधी कहती है।

एक बहुत बड़े इतिहास के साथ साक्षात्कार हो रहा था। पर वो चरखे वाली चुभन मन में थी। इसके साथ एक और बात भी जुडी थी। अंदर आने की समय कुछ छात्र स्कूल से भगत सिंह जी के घर के बाहर बने पार्क में आकर मस्ती कर रहे थे। तो मैंने उनसे पूछा था कि भगत सिंह के साथ कैसे जोड़ते हो अपने आपको? एक ने कहा अच्छा आदमी था। गांधी बहुत गलत था गांधी ने गद्दारी की। मैंने पूछा किसने बताया- हम जानते हैं, हमारे बड़ों ने बताया। मैंने फिर खास करके पूछा स्कूल में बताया? हमारी टीचर ने भी बताया है।

चिर युवा शहीद भगत सिंह के शायद 200 – 300 मीटर के इस छोटे से घर के बाहर बढ़ा एक छोटा मैदान, खंबे खड़े किनारे पर और उसके आगे सुंदर सा पार्क। यहीं पर हम लोग खड़े थे। शहीदे-ए-आज़म भगत सिंह की छोटी बहन के बेटे प्रोफेसर जगमोहन जी उस जमाने का अंदरूनी इतिहास हमें बता रहे थे। हम अंदर से भर गए थे। हमारा गाइड भी कितना महान है। 74 साल के जगमोहन जी से किसानों के बीच रायगढ़ में काम करने वाली उल्का महाजन ने पूछा आप हमें गांधी और भगत सिंह के बारे में बताइए। गांधी की गद्दारी और भगत सिंह के फोटो के साथ वाला बड़ा चरखा दोनों का उत्तर जगमोहन जी के शब्दों से मिल गया।

उन्होंने कहा कि गांधी और भगत सिंह दोनों ही निर्भरता से ऊपर उठकर स्वभरता की बात करते हैं। बदकिस्मती से लोगों ने न गांधी को समझा और न भगत सिंह को समझा। सेवा करोगे तो सारे भ्रम मिट जाएंगे। हम पाते है कि जब समाज के दर्द को हम समझते हैं उनके बीच जाते हैं और लोगों का काम करते हैं। तो सबसे अलग ऊपर हमारे लिए समाज की परेशानियों को दूर करना होता है। उनका हल निकालना होता है। फिर कोई भेद नहीं मिलता। गांधी, भगत सिंह और गदर पार्टी के अध्यक्ष बाबा सोहन सिंह भगना तीनों एक ही जगह जाकर मिलते हैं। सच्चाई के साथ लोगों के बीच उनके साथ संघर्ष करते हुए, समाधान के लिए खड़े नजर आते हैं।

उन्होंने आगे कहा तीन बातें आधारभूत है पहली की इतिहास को नम्रता के साथ गहराई से पढ़ो और जानो कि लोगों की समस्याएं क्या है और क्यों है? और देखो लोगों की आशाएं क्या है? आप पाएंगे लोग बहुत बड़ी आशाएं लेकर नहीं खड़े हैं। उनकी आशाओ के लिए काम करो।

भगत सिंह गांधी जी के पूरक रहे। भगत सिंह ने भी लोगों को आत्मबल के आधार पर लडऩा सिखाया, उन्होंने 114 दिन का उपवास किया, उन्होंने अन्याय पूर्ण कानून तोड़े।

जगमोहन जी पाकिस्तान में लाहौर की कोर्ट में चल रहे भगत सिंह वाले वाले केस के लिए जरूरी दस्तावेज और सबूत इक_े कर रहे हैं। पाकिस्तान में भी भगत सिंह का सम्मान है उनका स्मारक है जिस स्कूल में भी पढ़े उसको भी स्मारक के रूप में ही माना जाता है।

संविधान सम्मान यात्रा 2 अक्टूबर को गांधी के नमक सत्याग्रह से यानी नमक कानून तोडऩे से के स्थान से शुरू हुई थी। संविधान के सभा के अध्यक्ष, पानी पर लोगों की अधिकार की संभवत देश की सबसे बड़ी लड़ाई लडऩे वाले महाड सत्याग्रह के नायक बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के स्थान पर पहुंची थी। 3 दिसंबर को जब शहीद ए आजम के उस घर पर पहुंची जहां उनके दादाजी अक्सर उनको लेकर आते थे, तो यहां आकर संविधान सम्मान यात्रा का, देश के आंदोलनों का आपसी एकरूपता का संदेश पूरा हुआ।

यहाँ एक बात कह दूं, 1998 की बात है, मध्य प्रदेश के बावनगजा में पानी पर देश भर के आंदोलनों की एक बड़ी बैठक थी। बाबा आमटे उन दिनों वहाँ नर्मदा पर बन रहे सरदार सरोवर की डूब में आ रहे छोटी कसरावद गांव में कुटिया बना कर रहते थे। बैठक के बाद उनको मिलने जाना हुआ। एक मोटरसाइकिल पर बीच में मैं बैठा और पीछे टूटे से कैरियर पर मेधा दीदी ने बैठकर मेरे प्रश्न का जवाब दिया कि आज हम गांधी, अंबेडकर आदि सब विचारधाराओं में कैसे सामंजस्य करें?

मेधा दीदी का उत्तर था गांधी, अंबेडकर माकर््स, भगत सिंह आदि सभी शख्सियतों ने अपने अपने समय में एक बड़े वर्ग को प्रभावित करते हुए समाज देश के लिए काम किया है। दुनिया को रास्ता दिखाया है। हमारे लिए सभी महान और महत्वपूर्ण हैं हम सभी की सच्चाई और को साथ लेकर अपने संघर्षों को मजबूत करें। यही जन आंदोलन का राष्ट्रीय समन्वय का आधार रहा और संविधान सम्मान यात्रा जैसे आयोजन भी इसमें से निकलते हैं भगत सिंह जी के घर पहुंचकर यात्रियों ने

भगत सिंह भी धर्मनिरपेक्षता सांप्रदायिक सद्भाव को मानते हुए पूंजी वाद के खिलाफ थे। गांधी की भी लड़ाई अंग्रेजी साम्राज्यवाद के साथ थी और उन्होंने चरखे को केंद्र में रखकर ग्राम आधारित विकेन्द्रित विकास की सोच सामने रखी थी। जिसके लिए ही खादी केंद्रों की बात वे सामने लाये थे। भगत सिंह को अपने विचारों को क्रियान्वित करने का मौका नहीं मिल पाया। मगर हम जो जन समस्याओं पर, पर्यावरण समस्याओं पर आज अपनी ही सरकार के सामने संघर्ष करने को मजबूर हैं। वहां हमें गांधी, अंबेडकर, सुभाष, भगत सिंह और तमाम क्रांतिकारियों को अपना आदर्श मानते हैं और उनसे ताकत लेते हैं।

इन सब ने एक ऐसे आजाद भारत का सपना देखा था जिसमें सब लोग मिलकर के रहेंगे, जिसमें सबको आजादी से सांस लेने की छूट होगी, उनकी अपनी खुशियां होगी, उनके अपने मेले तमाशे होंगे, उनके अपने खान-पान होंगे, उनके अपने रहन-सहन होंगे, उनकी अपनी प्यार मोहब्बतें होंगी, धरती का लाल किसान खुशहाल होगा।

उन्होंने ऐसा भारत कभी नहीं सोचा था जिसमें आजादी के 70 साल बाद धर्म के नाम पर आज बंटवारे की कोशिशें चल रही होंगी, कर्ज से पीडि़त अपमानित किसान आत्महत्या कर रहा होगा, दलित समाज आज भी अपने सम्मान और आर्थिक उत्थान के लिए संघर्ष कर रहा होगा। पंजाब में चार पीढिय़ों से आजादी के लिए लडऩे वाले परिवार से आए भगत सिंह के अलावा गदर पार्टी के उन तमाम शहीदों को भी हम याद करते हैं जिनके बारिशों ने अपनी जाई दादी तक भेज कर जालंधर में बनाया भगत सिंह इसी क्रांतिकारी मिट्टी और हवा से बने थे 305 किताबें पढऩे वाले भगत सिंह जेल में उन्हें दोबारा पढऩे के लिए 10-10 किताबें मंगवाते थे। जेल प्रशासन को कई आदमी सिर्फ उन किताबों को चेक करने के लिए रखने पड़े थे। अपने आखिरी समय फांसी के फंदे पर जाते हुए उनका चेहरा मुस्कुराता हुआ था। उन्होंने कहा था कि इतिहास इस क्षण को याद रखेगा।

भगत के घर से लौटते हुए हल्की ठंडक यह पूछ रही थी कि इतिहास के काले पन्ने, कहीं गहरी खाई या और गलतियों में उलझे या उनसे सबक लेकर आज की परिस्थितियों को देखते हुए आगे बढ़े? गांधी भगत सिंह और क्रांतिकारियों की शहादतें जिस उद्देश्य के लिए हुई उसके लिए आगे बढ़ें भ्रम डालने वाली ताकतों को हराते हुए।

भगता तेरा मुसकुराता चेहरा हमें याद है हम उसी जिंदाबाद कहते हैं!!