लव जिहाद की बेतुकी तुकबंदी

पैसे, पद, प्रतिष्ठा के हिसाब से समाज में मिलती है विवाह की स्वीकृति, संविधान में नहीं है दो धर्मों को मानने वालों को शादी से रोकने की अनुमति

क्या ‘लव’ ‘जिहाद’ है? यह सवाल आज लाखों लोगों के जेहन में अनायास घूमने लगा है। इसके लिए दोनों शब्दों और उनके वास्तविक मानी पर गौर करना बहुत ज़रूरी है। एक दौर था, जब कहा गया था कि शादी से पहले प्यार अपराध है। कुछ लोग आज भी यह मानते हैं; लेकिन कुछ समझदार लोग अब इसे पूरी तरह गलत मानते हैं। शादी से पहले प्यार करने वालों को इसके लिए भयंकर-भयंकर सज़ाएँ भी दी जाती रही हैं। आज भी इसके लिए प्रेमी युगल, खासतौर पर लड़कियों को हैवानियत प्रवृत्ति के लोग भयंकर सज़ा दे डालते हैं; फिर चाहे वह उनकी बेटी या बहन क्यों न हो।

अब लव को जिहाद और जिहाद के इस नये मानी को लव से जोडऩे की साज़िश की जा रही है। सही मायने में लव क्या है और जिहाद क्या? इसे समझने के लिए पहले तो लव और जिहाद के सही मायने समझने होंगे। लव का मतलब होता है प्यार और जिहाद शब्द के दो अर्थ होते हैं, एक अपनी इच्छाओं को मारना यानी विरक्त होकर ईश्वर में लीन हो जाना, या सन्त हो जाना। एक तरह से किसी तरह का अनाचार और पाप न करना। और दूसरा है- ईश्वर / इंसानियत के खिलाफ रहने वाले यानी अत्याचारियों के खिलाफ युद्ध छेडऩा। कुल मिलाकर धर्मयुद्ध को जिहाद कहते हैं। लेकिन अब लव जिहाद का रूप समाज के सामने रखा गया है। दरअसल लव यानी प्यार की खिलाफत एक धर्मयुद्ध नहीं है। यह दो लोगों की जीवन बन्धन में बँधने की स्वेच्छा में एक तरह की दखलंदाज़ी है। वहीं, प्यार में यह ज़रूरी नहीं कि कोई शादी ही करे या धर्म-परिवर्तन ही करे। लेकिन झाँसे से शादी करना या धर्म-परिवर्तन कराना गैर-कानूनी ही है। लेकिन अगर कोई खुद से लालच में या अपने हित के लिए धर्म-परिवर्तन करता है या शादी करता है, तो यह उसका निजी फैसला है और हम इसे गैर-कानूनी नहीं कह सकते। दरअसल इसका सही मापदण्ड तभी तय किया जा सकता है, जब धर्म-परिवर्तन करने वाले की नीयत, इच्छा और स्वीकृति का सही-सही पता हो। धर्म-परिवर्तन जिहाद यानी धर्मयुद्ध भी नहीं हो सकता। आज तक दुनिया में महाभारत से बड़ा कोई धर्मयुद्ध नहीं हुआ है; लेकिन वह एक ही धर्म के लोगों, बल्कि एक ही परिवार के बीच हुआ था। धर्मयुद्ध का मतलब है- मानव धर्म यानी इंसानियत को बचाना; न कि किसी के धर्म के खिलाफ कोई युद्ध छेडऩा या उसका साज़िशन धर्म-परिवर्तन कराना। ऐसे में लव को जिहाद से जोडऩा बेतुकी तुकबंदी ही है। हाँ, किसी को झाँसे में लेकर, लालच देकर या धमकी आदि देकर या बन्धक बनाकर धर्म-परिवर्तन कराने या शादी करने-कराने वालों को दोषी माना जाना कानूनी है; लेकिन इसकी सज़ा देना भी कानून का ही काम है। इसके लिए मॉब लिंचिंग या हत्या या प्रताडऩा आदि गैर-कानूनी है।

इन दिनों लव जिहाद पर जिस तरह से बहस छिड़ी हुई है, उस पर चर्चा करने से पहले मैं पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के एक चर्चित मामले का ज़िक्र करना चाहूँगी। उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में अब से करीब आठ-दस महीने पहले एक उच्च वर्ग की लडक़ी ने एक निम्न वर्ग के लडक़े से भागकर शादी कर ली। इस पर लडक़ी के घर वालों ने, जो कि रसूखदार राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं; लडक़े को जान से मारने का षड्यंत्र रचा। आखिर में किसी तरह लडक़ी को वापस घर बुला लिया और जाने क्या किया कि लडक़े को जी-जान से प्यार करने वाली लडक़ी उसी के खिलाफ बयान जारी करने लगी। एक दूसरा उदाहरण हम किसी भी बड़े घर का ले सकते हैं। मसलन रेणु शर्मा ने शहनवाज़ हुसैन से शादी की थी, दोनों के परिवार वालों ने हल्की-फुल्की आना-कानी के बाद यह रिश्ता स्वीकार कर लिया और आज भी यह रिश्ता बहुत अच्छी तरह चल रहा है। एक और उदाहरण मध्य प्रदेश का है। करीब पाँच साल पहले राजस्थान की एक लडक़ी ने अपनी ही जाति के गुजरात के एक लडक़े से प्रेम-विवाह कर लिया; लेकिन आज तक लडक़ी के घर वालों ने यह रिश्ता मंज़ूर नहीं किया; क्योंकि लडक़ा एक मामूली कारीगर है और लडक़ी लखपति घर की है।

यहाँ सवाल उठता है कि लव जिहाद दो धर्मों के युगलों के बीच प्रेम सम्बन्ध या विवाह कर लेना है या फिर पैसे, पद, प्रतिष्ठा के ताने-बाने पर बुनी हुई एक सुविधाजनक पहेली है; जिसमें वर अगर पैसे वाला है, हैसियत वाला है, तो शादी में कोई दिक्कत नहीं, फिर चाहे वह किसी जाति का हो, किसी धर्म का हो। लेकिन अगर वह गरीब है, तो दिक्कत-ही-दिक्कत, विरोध-ही-विरोध। यह भेदभाव केवल वर पक्ष में ही नहीं होता, बल्कि वधू पक्ष में भी होता है। अगर गरीब घर की लडक़ी है, तो लडक़े वाले भी उसे अपनाना नहीं चाहते। पिछले ही साल मशहूर फिल्म अभिनेत्री ने अमेरिकी गायक निक जोनस से शादी की है। दो धर्मों के लोगों की शादी का विरोध करने वाले लोगों से पूछना चाहिए कि क्या उनकी दृष्टि में यह लव जिहाद नहीं है?

उत्तर प्रदेश में अध्यादेश पास

कथित लव-जिहाद और धर्म-परिवर्तन की घटनाओं पर लगाम कसने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 को मंज़ूरी दे दी है। राज्यपाल के हस्ताक्षर होते ही इसे कानून बना दिया जाएगा। इस कानून के लागू होने के बाद छल-कपट व जबरन धर्म-परिवर्तन के मामलों में एक से 10 साल तक की सज़ा और ज़ुर्माना हो सकता है। खासकर किसी नाबालिग लडक़ी या अनुसूचित जाति-जनजाति की महिला का छल से या जबरन धर्म-परिवर्तन कराने के मामले में दोषी को तीन से 10 वर्ष तक की सज़ा भुगतनी होगी।

बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के अपनी मर्ज़ी से दूसरे धर्म में शादी करने पर दखल देने को गलत ठहराने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में कुल 21 प्रस्तावों पर मुहर लगी, जिनमें सर्वाधिक चर्चित धर्म-परिवर्तन विरोधी अध्यादेश को भी स्वीकृति दी गयी है। मध्य प्रदेश सरकार भी लव जिहाद के नाम पर कानून बनाने की तैयारी कर रही है। दरअसल हाल ही में हरियाणा के बल्लभगढ़ में कथित लव जिहाद मामले में मुस्लिम युवक द्वारा हिन्दू युवती की हत्या के बाद से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक की सरकारों ने इसे लेकर कानून बनाने का ऐलान किया। सरकारों का कहना है कि इसका मकसद लोभ, लालच, दबाव, धमकी या झाँसा देकर शादी की घटनाओं को रोकना है।

इधर असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि इस तरह का कानून संविधान की धारा-14 और धारा-21 के खिलाफ है। सरकारों को चाहिए कि अगर वह ऐसा करती हैं, तो फिर स्पेशल मैरिज एक्ट को खत्म ही कर दें। कानून की बात करने से पहले उन्हें संविधान को पढऩा चाहिए। उन्होंने कहा कि युवाओं का ध्यान बेरोज़गारी से हटाने के लिए भाजपा इस तरह के हथकंडे अपना रही है।

हाईकोर्ट की पूर्व टिप्पणी पर योगी ने जतायी थी सहमति

उत्तर प्रदेश में लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने से पहले वहाँ के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर सहमति जता चुके हैं, जिसमें कहा गया था कि महज़ शादी करने के लिए किया गया धर्म-परिवर्तन अवैध होगा। हालाँकि अब यह फैसला हाईकोर्ट की बड़ी बेंच ने बदल दिया है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की बात कहते हुए कहा कि जो लोग अपना स्वरूप (धर्म) छिपाकर बहन-बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ करते हैं, उनको पहले से चेतावनी है कि अगर वो नहीं सुधरे, तो अब राम नाम सत्य की यात्रा निकलने वाली है। वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष एवं समाजसेवी शाइस्ता अम्बर ने इस नये कानून के बनाये जाने वाले योगी के बयान पर सख्त नाराज़गी जतायी।

हाईकोर्ट का नया फैसला

हालाँकि लव जिहाद के खिलाफ धर्म पविर्तन वाले पहले के एक फैसले को पलटते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हर किसी को अपनी पसन्द के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार है, चाहे वह किसी भी धर्म को मानने वाला हो। कोर्ट ने इसे ऐसा करने वाले की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूल तत्त्व माना है। जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने कुशीनगर के सलामत अंसारी और प्रियंका खरवार उर्फ ​​आलिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अगर दो लोग राज़ी-खुशी से एक साथ रह रहे हैं, तो इस पर किसी को आपत्ति करने का कोई हक नहीं है।

बेंच ने प्रियांशी उर्फ समरीन और नूरजहाँ बेगम उर्फ अंजली मिश्रा के दो मामलों में पाया कि दो बालिगों को अपनी मर्जी से अपने साथी चुने थे। ऐसे में उनकी इस स्वतंत्रता के अधिकार पर कोर्ट का पहले का फैसला उचित नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि निजी रिश्तों में दखल किसी व्यक्ति की निजता के अधिकार में गम्भीर अतिक्रमण है, जिसका उसे संविधान के अनुच्छेद-21 में अधिकार प्राप्त है। कोर्ट एक युवती के पिता की ओर से दर्ज करायी गयी एफआईआर भी खारिज कर दी है।

माना जा रहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से प्रदेश सरकार के शादी के लिए युवतियों-महिलाओं का धर्म-परिवर्तन यानी कथित लव जिहाद के खिलाफ कानून के मसौदे को झटका लग सकता है।

क्या होगा नया कानून, कितनी होगी सज़ा

उत्तर प्रदेश में लव जिहाद पर कानून विधि विरुद्ध धर्म-परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020 के स्वरूप के तहत जबरन धर्म-परिवर्तन पर 15 हज़ार रुपये के ज़ुर्माने के साथ एक से पाँच साल की जेल की सज़ा का प्रावधान है। वहीं अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति समुदाय की महिलाओं और नाबालिग लड़कियों के धर्म-परिवर्तन पर 25 हज़ार रुपये के ज़ुर्माने के अलावा तीन से 10 साल तक के लिए जेल की सज़ा होगी। इस कानून से पहले उत्तर प्रदेश के गृह विभाग ने लव जिहाद को लेकर अध्यादेश का मसौदा तैयार कर लिया था, जिसमें कहा गया था कि प्रलोभन देकर या जबरन या कपटपूर्वक या विवाह के द्वारा धर्म-परिवर्तन कराने को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा। ऐसा करने वाले के साथ-साथ इसमें सहयोग करने वालों को भी आरोपी माना जाएगा और जुर्म साबित होने पर मुजरिम की तरह ही सज़ा दी जाएगी। इन सभी स्थितियों में धर्म-परिवर्तन होने पर आरोपी को ही साबित करना होगा कि ऐसा नहीं हुआ। बिता दें कि कुछ समय पहले प्रदेश के विधि आयोग ने जबरन धर्म-परिवर्तन पर रोकथाम कानून बनाने के लिए यूपी फ्रीडम ऑफ रिलिजन बिल-2019 का प्रस्ताव भी शासन को सौंपा था।

वहीं मध्य प्रदेश सरकार के नये कानून (मध्य प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2020) का ड्रॉफ्ट भी तैयार हो चुका है। इसके तहत ताज़ा लव जिहाद के मामले में पाँच साल की सज़ा के प्रावधान के अलावा हो चुकी शादियों के रद्द करने का अधिकार भी फैमिली कोर्ट को दिया जा रहा है। लेकिन पुराने मामलों में कार्रवाई तभी होगी, जब पीडि़त या उसके सगे-सम्बन्धी इसकी शिकायत करते हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी धर्म-परिवर्तन के खिलाफ सख्त कानून बनाने की बात कह चुके हैं। उनका कहना है कि धर्म-परिवर्तन के मामलों से सख्ती से निपटने के लिए कानून बनाया जाएगा, जिसका खाका तैयार कर लिया गया है। मध्य प्रदेश में कथित लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने का पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी खुलकर समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि हिन्दू एक ऐसा धर्म है, जिसमें परिवर्तन किये बिना भी कुरान और बाइबिल पढ़ सकते हैं; इसलिए धर्म-परिवर्तन एक साज़िश है, जिस पर सख्त कानून की ज़रूरत है।

कैसे काम करेगा कानून

अगर किसी को धर्म-परिवर्तन करना है, तो उसे एक महीने पहले अदालत में अर्जी देनी पड़ेगी कि वह अपना धर्म बदलना चाहता है। लेकिन ज़ोर-जबरदस्ती या ताकत या लालच या धोखे की बुनियाद पर की गयी शादी, पहचान छिपाकर की गयी शादी को इस कानून के तहत रद्द माना जाएगा। अगर किसी ने बिना अर्जी के धर्म-परिवर्तन किया, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। अगर शादी के लिए किसी को भरमाया गया या झाँसा देकर शादी की गयी, तो यह कानून की नज़र में जुर्म होगा।

कैसे शुरू हुआ कथित लव जिहाद का विवाद और इसे कैसे तय किया गया

मुस्लिम पुरुषों द्वारा गैर-मुस्लिम युवतियों-महिलाओं से शादी करने, खासकर झाँसा, लालच और धमकी देकर शादी करने को कथित तौर पर लव जिहाद कहा गया है; जिसमें महिला का धर्म-परिवर्तन करके उसे मुसलमान बनाया जाता है। हालाँकि कानूनी रूप से यह शब्द मान्य नहीं है और न ही इसका कहीं लिखित इस्तेमाल किया गया है।

भारत में पहली बार 2009 में तब राष्ट्रीय स्तर पर लव जिहाद का मुद्दा बना, जब पहली बार केरल और उसके बाद कर्नाटक में इस तरह की घटनाएँ बढ़ीं। उस समय केरल हाईकोर्ट में धर्म-परिवर्तन कर शादी यानी कथित लव जिहाद यानी गैर-मुस्लिम युवती से मुस्लिम युवक द्वारा गलत तरीके से शादी करने का मामला आया। इस मामले में नवंबर, 2009 में वहाँ के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक जैकब पुन्नोज ने कहा था कि केरल में ऐसा कोई भी संगठन नहीं मिला, जिसके सदस्य गैर-मुस्लिम लड़कियों को मुस्लिम बनाने के इरादे से प्यार करते हों। दिसंबर, 2009 में न्यायमूर्ति

के.टी. शंकरन ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया और निष्कर्ष निकाला कि प्रदेश में धर्म-परिवर्तन के जबरदस्ती वाले मामलों के संकेत मिल रहे हैं। तब अदालत ने लव जिहाद मामलों में दो अभियुक्तों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि पिछले चार वर्षों में इस तरह के 3-4 हज़ार मामले सामने आये हैं।

वहीं, 2010 में तत्कालीन कर्नाटक सरकार ने स्वीकार किया था कि कई महिलाओं ने धर्म-परिवर्तन कर इस्लाम कुबूला है; लेकिन इसके पीछे कोई संगठित प्रयास नहीं किया गया है। सितंबर, 2014 में भी उत्तर प्रदेश पुलिस ने उस दौरान तीन महीनों में लव जिहाद के छ: मामलों की जाँच की, जिनमें से पाँच मामलों मे धर्म-परिवर्तन के प्रयास के सुबूत नहीं मिले। भारत में लव जिहाद के मामलों को लेकर हिन्दू संगठन आज भी चिन्तित हैं, जबकि मुस्लिम संगठन इस तरह की मुहिम को लेकर सदैव इन्कार करते रहे हैं।

धर्म-परिवर्तत के खिलाफ बनने वाले कानून के मुख्य प्रावधान

1. यदि केवल विवाह के मकसद से लडक़ी का धर्म-परिवर्तन किया गया, तो विवाह शून्य घोषित किया जा सकेगा।

2. धर्म-परिवर्तन पर रोक सम्बन्धी कानून बनाने को विधि आयोग विधानसभा में अध्यादेश पारित होने से पहले ही उत्तर प्रदेश फ्रीडम ऑफ रीज़नल बिल बना चुका है।

3. धर्म-परिवर्तन को अपराध माना जाएगा, जो गैर-जमानती होगा। इस पर प्रथम श्रेणी मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में अभियोग का मामला चलेगा।

4. जबरन या झाँसे में लेकर धर्म-परिवर्तन या विवाह के लिए धर्म-परिवर्तन के मामले में एक से पाँच साल तक की सज़ा और 15 हज़ार रुपये तक के ज़ुर्माने का प्रावधान है।

5. नाबालिग लडक़ी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति की महिलाओं का जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर दो से तीन से 10 साल तक की सज़ा और कम-से-कम 25 हज़ार रुपये ज़ुर्माने का प्रावधान है।

6. लालच देकर, बहला-फुसलाकर सामूहिक धर्म-परिवर्तन कराने पर अधिकतम 10 साल की सज़ा और 50 हज़ार रुपये ज़ुर्माना लगाया जाएगा।

7. अगर कोई खुद से धर्म-परिवर्तन करना चाहता / चाहती है, तो उसे एक महीने पहले ज़िला मैजिस्ट्रेट को सूचना देनी ज़रूरी होगी, जिसके उल्लंघन पर छ: महीने से लेकर तीन साल तक की सज़ा हो सकती है।

8. यदि कोई संस्था लालच देकर, बहला-फुसलाकर किसी का धर्म-परिवर्तन कराती है, तो संस्था या संगठन के ज़िम्मेदार पदाधिकारियों को दोषी माना जाएगा और वे सज़ावार होंगे।